बूँदी की पानीदार कटार
- राजकुमार दाधीचि
बूँदी वीरता एवं
शौर्य के लिए इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती
है। जिसमें यहाँ की पानीदार कटार का अनूठा योगदान है
जो बूँदी का राज्य चिन्ह भी है। राव रतन काल में पीले
रंग के झंडे पर राजपूतों के मूल पुरुष चहुवान के ऊपर
बूँदी की प्रसिद्ध कटारी का चित्र अंकित किया गया है
जो यहाँ मुद्रा एवं डाक टिकटों में भी स्पष्ट
दृष्टिगोचर होता है।
पहले किसी भी राज्य का अपना अलग हथियार होता था जिसमें
मुगलों का तमंचा, भरतपुर-करोली का खांडा, काठियावाड़ का
तेगा, अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी का किर्च, सिरोही की
तलवार एवं आदिवासियों का तीरकमान अपना निजी हथियार था।
इसी क्रम में बूँदी ने कटार को अपना हथियार बनाया।
शौर्य की प्रतीक-
बूँदी की पानीदार कटार दोनों तरफ धारदार होती है। इसे
दुधारी भी कहा जाता है। बूँदी में कटार की शुरुआत कब
से हुई इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। लेकिन कटार का
प्रयोग यहाँ सैकड़ों वर्षों से होता आया है जो युद्ध
में हथियार का काम करती थी। इससे युद्ध में दुश्मन पर
आक्रमण करने पर आसानी होती थी। कहा जाता है कि मुगल
दरबार में मदांध सामंत द्वारा कोटा के खूबसूरत
राजकुमार भीमसिंह के साथ अप्राकृतिक छेड़छाड़ कर उपहास
किया तो उनके भाई बुद्धसिंह ने कटार मारकर उस सामंत के
वक्ष को फोड़ दिया। आघात इतना तेज था कि वक्ष के
साथ-साथ पत्थर का खंभा भी फूट गया। पुराने जमाने के
बुलटप्रूफ जरी बख्तर को भी कटार बेंध सकती है।
‘अमरसिंह हाड़ी का खयाल’ पुस्तक में बूँदी की कटारों के
बारे में लिखा है कि बूँदी के राजा शत्रुशल्य की बेटी
सुकुमारी का विवाह जोधपुर के अमरसिंह राठौड़ से हुआ था।
तब सुकुमारी ने कटारी के साथ ही फेरे खाये और बूँदी की
कटार के कमाल से ही अमरसिंह राठौड़ ने बादशाह के मुँह
लगे साले सलावत खान को मौत के घाट उतारा। उसकी बानगी
पद्य में देखिए:-
"बारे लगायो मम ना अब थे जल्दी जावो प्यारी।
फेरा घावों राणी न ले ज्यावो म्हारी कटारी।।
अमरसिंह छत्री की कटारी साग फेंरा पाया।"
जब अमरसिंह गुस्से से चुगल और सलावत खान को मारने निकल
पड़ा तो दासी ने राजा से यों कहा-
राजा से टेर -
"राव थान बाई जी बुलाव म्हारी वो देणन।
बूँदी तणी कटारी तब राजा की टेर,
धुडला पाछा घेर फेर की ज्यो चित चायेगा।।
बूँदी तणी कटार देणन नार बुलाये।।"
रानी की राजा से टेर -
"ये जी वो राठौड़ा राजा लेत ज्या जो जी कटारी म्हारी।
वो बूँदी वारी।।"
राजा
की टेर -
"मत बिलमाओ कामनी म्हान हाड़ी नार।।
देवो हितकार हाथस्यु धाणी पीहर तणी तो कटार"
कटार का वर्णन देखिए -
"कारीगर काफी घड़ी तेज बुणाई धार
नागन ज्यों नखरों कर भारी बीछवनडंक कटार"
राजा ने रानी से युद्ध का वर्णन इस प्रकार किया है-
"मैं कोते रवानी काड़ कटारी सलावत के मारी जी लगी कटारी
बीच कलेज हाँड पाँसली तोड़ गयी सलाबतिये करमहीन हुसमन
की पींजर फोड़ गयी।" जबकि झज्जर कृत ‘अमरसिंह राठौड़’
पुस्तक के पृष्ठ ६५ के १७२ वें दोहे में अर्जुन गोड़ की
नाक काटने पर अमरसिंह के बारे में यह कहा:-
"करी मरते ने सफाई, कटारी गजब चलायी।
मारी फेंक कटार, ये मेरी नाक उड़ायी।।"
बूँदी में कटार का निर्माण मानमल सिकलीगर एवं मांगीलाल
सीकलीगर के पूर्वज पीढ़ी-दर-पीढ़ी से करते चले आ रहे
हैं। पहले मानमल के पिता चौथमल और दादा और उनके पिता
इस काम को करते थे जो राजन्य कहलाते थे। बूँदी रियासत
के जमाने में हथियार निर्माण की जिम्मेदारी इनके
परिवार को ही प्रमुख रूप से थी। तब यह लोग कटार के
अलावा तोड़ेदार, चकमक, टोपीदार बंदूकें व तलवार बनाने
का कार्य करते थे। स्वर्गीय चौथमल सिकलीगर ने अठारह
साल पहले अपनी मृत्यु तक राज-परिवार की ओर से मानमल को
आज भी आठ रुपये प्रतिमास पेंशन मिलती है। इन्होंने
आजादी के बाद सन् १९५० में सदर बाजार में सिकलर का
व्यवसाय प्रारंभ कर दुकान लगा ली। वैसे तो दुकान में
तलवार, कटार, चाकू, छुरी के धार देने का काम ही होता
है लेकिन बूँदी की कटार को देशी-विदेशी पर्यटकों को
बेचने का कार्य भी मानमल करते है।
इतिहास से शो-पीस तक
अब शो-पीस के लिए ही कटारें खरीदी जाती हैं। कटारें
बनाने के लिए बूँदी से कच्चे लोहे को खरीदकर भट्टी में
गरम कर हथोड़े से कूट-पीटकर कटार का आकार देकर रफ
ग्राइंडर में साफ करके फाइन फिनिशिंग ग्राइंडर में
लिया जाता है। मानमल अब तक ५००-७०० कटारें बूँदी की
बनाकर बेच चुके हैं और फिर धार लगाकर कवर बनाया जाता
है और कटार तैयार मान ली जाती है। वैसे कटार के कवर पर
सोने-चाँदी की नक्काशी (न क्सबंदी) कार्य भी होता है
जो सुनार करते हैं। साधारणतया कटार का मूल्य ३०० रु.
से १००० रु. तक होता है। कटारों की बिक्री नवरात्रि
में अधिक होती है क्योंकि लोग नवरात्रि में चक्र व
कटार की पूजा करते हैं। पहले कटार बेचने के लिए
लाइसेंस की जरूरत नहीं रहती थी लेकिन अब लाइसेंस की
आवश्यकता हो गयी है। सन् १९९२ में ‘इंटेक’ के प्रयासों
से उन्हें लाइसेंस भी मिल गया है। कहा जाता है कि -
"सिकलीगर ने पीऊ पर,
वारी जाऊ अनेक,
रण झाटक कंत कने,
लगे न झाटक एक।।"
अर्थात
सिकलीगर की स्त्री से राजपूत की स्त्री कह रही है कि
तेरे पति ने मेरे पति के हथियार पर ऐसी धार लगायी कि
मेरे पति के युद्ध में हथियार हाथ में लेने पर कोई
तकलीफ नहीं हुई अर्थात उसकी धार पैनी होने से कोई झटका
नहीं लगा और युद्ध में विजय-श्री प्राप्त हुई।
बूँदी की कटार छोटी-बड़ी सभी प्रकार की होती हैं।
साधारणतया कटार एक फुट से दो फुट तक होती हैं। जबकि
कुछ कटार तीन व साढ़े तीन फीट की भी बनायी जाती हैं।
कटार को पकड़ने में सुविधा रहती है क्योंकि इसमें मूठ
के दोनों तरफ डंडियाँ एव ऊपर तिकोनी धार (ब्लेड) होती
है।
८ जून
२०१५ |