बेला का सुगंधित
संसार
- मुक्ता
भारतीय फूलों
में मोगरा का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। यह भारत के लगभग हर घर
में देखा जा सकता है। साहित्य में यह जितनी गहनता से उपस्थित
है शायद ही कोई दूसरा फूल हो। हमारे दैनिक जीवन में भी इसकी
पूछ सबसे ज्यादा है। सरस्वती की पूजा हो या वेणी शृंगार बेला
या मोगरा हर जगह उपस्थित रहता है। सफेद रंग का यह फूल वसंत से
वर्षा ऋतु तक खिलता है और इसकी भीनी भीनी महक गर्मी के मौसम
में तरावट का अनुभव कराती है। मोगरे को दक्षिण एशियाई संस्कृति
में शक्ति, सादगी, पवित्रता, विनम्रता और शुद्धता का प्रतीक
माना गया है। साथ ही इसके अनेक चिकित्सकीय गुण भी हैं।
अनेक नाम-
मोगरे का वानस्पतिक नाम जैसमिनम संबैक है, इसकी उत्पत्ति भारत
और दक्षिण एशिया में मानी जाती है। यह फिलिपंस का राष्ट्रीय
पुष्प और इंडोनेशिया के तीन राष्ट्रीय पुष्पों में से एक है।
इसे फिलीपीन्स की भाषा टैगलॉग में सम्पग्यिता कहते हैं जिसका
अर्थ है मैं तुमसे वायदा करता हूँ, इसी कारण इसे पारस्परिक
प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। फारसी में इसे 'यास्मीन'
कहते हैं जिसका अर्थ है सुगंधित फूल। इंडोनेशियाई भाषा में इसे
'मालती पुतिह' तथा चीनी में 'मो ली हुआ' कहते हैं। मलेशिया की
भाषा माले में इसे मेलुर या मेलाती और जापानी में मात्सुरिका
कहते हैं। हिन्दी में बेला, मराठी में मोगरा, बांग्ला में
बेली, गुजराती में मोगरो, कन्नड़ में डुंडुमलिगे, कोंकणी में
मोगरे, मलयालम में कोडा मुल्ला, मणिपुरी में कोबक लेई, उड़िया
में जुहीमाहली, संस्कृत में मल्लिका, प्राकृत में मल्लिआ,
पंजाबी में मोतिया, तमिल में कुंदुमल्लि कहते हैं।
रूप रंग-
बेला की झाड़ी लगभग दो मीटर तक ऊँची हो सकती है। हालाँकि कुछ
छोटी नस्लें भी घर में लगाने के लिये अच्छी रहती हैं। पत्तियाँ
चिकनी, सामने की ओर से हल्की गोलाकार, ५ से १२ सेमी. तक लंबी
हो सकती हैं। फूल सफेद खूब सुगंधित और अकेले या ३ के जोड़े में
छोटी छोटी टहनियों पर लगते हैं। फूल इकहरे और दोहरे दोनो
प्रजातियों के होते हैं। कर्णिका दंत ८ से १०, बहुत बारीक, ५
से ८ मि.मी. लंबे, दल चक्र सँकरे १ से १.५ सेमी लंबे, पुंकेशर
२ तथा अंडकोश २ होते हैं। बेला की लताएँ ६ से १० फुट तक की
ऊँचाई तक जा सकती है। दोहरी प्रजाति के फूलों को कंपुपौट कहते
हैं इनमें सुगंध अपेक्षाकृत कम होती है।
रासायनिक विश्लेषण-
बेला के फूल में टैनिन, वसा, सिलिकॉन, ग्लूकोसाइड्स, कैलशियम
औक्सलेट तथा महत्वपूर्ण तैल पाए जाते हैं। फाइकोकैमिल अध्ययन
से इसमें ऐल्कोलाइड, ग्लाइकोसाइड, टैनिन, रेजिन और सैलिसिलिक
अम्ल पाए जाते हैं। इसकी जड़ में डाक्ट्रिऐकोन्टैनोइक अम्ल,
डाक्ट्रिएकोन्टैनॉल, ऐलिएनौलैनिक अम्ल, ड्यूकोस्ट्रॉल और
हैस्पेरिडिन तत्त्व पाए जाते हैं। इसकी पत्तियों व फूल में
बुखार दूर करने तथा जड़ दर्द दूर करने वाली शक्ति पाई गई है।
इसके फूलों का सत दुर्गंधनाशक होता है।
अन्य प्रयोग-
फूलों का उपयोग जास्मिन टी बनाने के लिये किया जाता है। इसे
पेट के अल्सर के लिये उपयोगी माना गया है। मोगरे के पत्तों को
पीसकर जहाँ भी दाद, खुजली और फोड़े- फुंसियाँ हो वहाँ लगाने से
लाभ होता है। कोई घाव ठीक ना हो रहा हो तो बेल वाले मोगरे के
पत्तों को पीस कर लगाने से ठीक हो जाता है। इसकी जड़ का काढ़ा
पीने से अनियमित मासिक ठीक होता है। इसके दो पत्तों में काला
नमक लगा कर सेवन करने से पेट की गैस दूर होती है। इसके फूलों
के उपयोग से से पेट के कीड़ों, पीलिया, त्वचा रोग,
कंजक्टिवाईटिस, आदि में लाभ होता है
मोगरे की खेती-
मोगरा की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है
इसमें मोगरा को कलम के द्वारा लगाया जाता है। लगभग १० सेमी
लंबी कलम को ५०-७५ सेमी दूरी पर १-१.५ मी की कतारों में लगाया
जाता है। वर्षा के अंत में लगभग नवंबर माह में पौधे को पानी
देना बंद कर देते हैं। इस समय पौधा अपनी पत्तियाँ गिरा देता है
और सुषुप्तावस्था में चला जाता है। फरवरी माह के प्रारंभ में
पौधों को उनकी लंबाई लगभग आधा करते हुए छाँट देते हैं। इसी समय
पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाते है साथ ही गोबर की खाद १०-१५
किग्रा प्रति झाड़ी की दर से देते हैं। पौधे को ३२५ ग्राम
एसएसपी व १०० ग्राम एमओपी तथा दो वर्ष से ऊपर के पौधे को ७५०
ग्राम एसएसपी व २०० ग्राम एमओपी देते हैं। कलियाँ आने के बाद
सप्ताह भर के अंतराल पर पौधों की सिंचाई की जाती है। फूल जब
कली की अवस्था में रहता है उसी समय सुबह तड़के या शाम को
इन्हें तोड़ लिया जाता है। अगर व्यावसायिक दृष्टि से यह फूल
उगाया जाए तो २५०-३०० किग्रा फूल प्रति एकड़ की उपज एक बार बोने
पर दो वर्ष बाद प्राप्त होती है। जो पाँच वर्ष तक बढ़ती है और
फिर घटनी शुरू हो जाती है। १० वर्ष के उपरांत पौधों को उखाड़कर
पुनः नए पौधों का रोपण किया जाता है।
प्रजातियाँ-
बेला की दो प्रमुख प्रजातियाँ हैं- मोगरा और मोतिया। इसके
अतिरिक्त कुछ और भी जातियाँ हैं। जिन्हें मुख्य रूप से दो
भागों में बाँटा जा सकता है- इकहरे एवं दोहरे पंखुड़ी नुमा
फूलों वाली। इकहरे पुष्प वाली जातियों का व्यावसायिक दृष्टि से
विशेष प्रचलन नहीं है। दोहरी पंखुरियों वाली जातियों में से
कुछ जातियाँ विशेष रूप से प्रचलित है जिन्हें व्यवसायिक स्तर
पर देश के बिभिन्न भागों में उगाया जाता है उत्तर प्रदेश के
कनौज, गाजीपुर, जौनपुर, बलिया लखनऊ में दोहरी पंखुड़ी वाले
बेला के फूल उगाए जाते हैं।
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मोगरा के पत्ते गोल शाखा पर एक ही
जगह ३-४ होते हैं। फूल की
पंखुड़ियों में अनेक चक्र होते
हैं पंखुडियाँ गुथी हुयी, घनी और
गोल होती है कलियों का ब्यास लगभग
६से.मी.होता है पुष्प देखने में
अत्यंत सुन्दर लगते हैं इसके
फूलों से निरंतर सुगंध निकलती
रहती है इसकी कुछ जातियाँ ऐसी भी
हैं जिनमें थोड़ी भिन्नता पाई जाती
है। बेला के पत्ते गोल मोतिया
जैसे किन्तु फूल इकहरे और
छोटे-छोटे होते हैं।
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मोतिया के पौधे की पत्तियाँ लगभग
८ से.मी.लम्बी और ६.५से.मी.चौड़ी
होती हैं कलियाँ गोल होती हैं,
पुष्प दोहरी पंखुड़ियों वाले
गोलाकार तथा फूल ३ से.मी. तक चौड़े
होते हैं। पंखुडियाँ लगभग ४
कतारों में पाई जाती हैं। इस जाति
के फूलों का उपयोग हार बनाने के
लिए किया जाता है, जो अपनी सुगंध
के लिए बहुत ही लोकप्रिय है। फूल
मोटे दोहरे ८ से २१ पंखुड़ी वाले
होते हैं।
इसके
साथ ही बेला की अनेक अन्य जातियाँ भी
उगाई जाती हैं।
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मदन
मान- इस जाति के पौधों की
पत्तियाँ लम्बी कुछ हल्के हरे रंग
की होती हैं। पत्तियाँ १०
से.मी.लम्बी और ५ से.मी.चौड़ी,
नीचे की ओर पतली, ऊपर की ओर
नुकीली, चिकनी सतह वाली होती हैं।
कलियाँ लम्बी व नुकीली तथा खिले
हुए पुष्प लगभग ३ से.मी.चौड़े होते
हैं जिसमें पंखुड़ियों के चार
वृत्त होते हैं। इस जाति के फूलों
की सुगंध सर्वोत्तम होती है।
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पालमपुर- इस जाति की पत्तियाँ
हरी, लगभग १० से.मी .लम्बी और ७
से.मी.चौड़ी तथा पत्तियाँ आगे की
ओर नुकीली और नीचे की ओर गोलाई
लिए होती हैं। एक पुष्प शाखा पर
३-३ कलियाँ निकलती हैं। कलियाँ
लगभग ३ से.मी.और १.५ से
२.०से.मी.चौड़ी होती हैं। फूल
श्वेत और देखने में आकर्षक लगते
हैं फूलों में पंखुड़ियों के ४
वृत्त होते हैं।
कुछ और नयी प्रजातियाँ भी हैं
जैसे- एच.एस.१८, एच.एस.८५,
एच.एस.८२ भी प्रचलन में हैं।
मोगरे का पानी
और इत्र-
मोगरे
का पानी और इत्र बहुत अधिकता से
प्रयोग में लाया जाता है। मोगरे के
पानी का प्रयोग गुलाबजल की तरह होता
है। इसे हाइड्रो आसवन की प्रक्रिया
द्वारा फूल से बनाते हैं। इसका रंग
सफेद होता है और इसका उपयोगा
अरोमाथेरेपी के लिये किया जाता है।
सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी
यह पानी बहुत उपयोगी पाया गया है।
मोगरे का इत्र भाप आसवन विधि के
माध्यम से प्राप्त किया जाता है । यह
इत्र ताजगी देने वाला एवं इसकी सुगंध
तीव्र होती है । इसका रंग पीला होता
है तथा इसका उपयोग अगरबत्ती, रूम
फ्रेशनर और दूसरे अनेक सुगंधित
उत्पादों के निर्माण में किया जाता है
। अरोमाथेरेपी से दिमाग और शरीर को
आराम पहुँचाता है । इससे तनाव, चिंता
तथा तंत्रिका थकान से राहत मिलती है।
सौंदर्य प्रसाधन जैसे क्रीम, मलहम,
साबुन, टेलकम पाउडर आदि के निर्माण
में इस इत्र का प्रयोग होता है। इसका
उपयोग तनाव दूर करने के लिये भी किया
जाता है। ऐसा समझा जाता है कि इसका
सकारात्मक प्रभाव शरीर, मन और आत्मा
के बीच संतुलन बनाये रखता है।
१५ जून २०१५ |