इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
जय चक्रवर्ती, राजेन्द्र वर्मा, शुचिता श्रीवास्तव,
जयप्रकाश मानस, और स्वयं दत्ता की
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में-
पुदीना टोना।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
१५- काफी का
कमाल |
जीवन शैली में-
कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं-
१८-
सैर सपाटे में
आनंद लें |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
१४- फूल, चौखाने,
धारियाँ
और बिंदियाँ
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- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं-
आज
के दिन-
(११ मई-को)
साहित्यकार सआदत हसन मंटो, लेखक मैथिल राधाकृष्णन, अभिनेत्री पूजा बेदी
और... विस्तार से
|
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से राधेश्याम बंधु के नवगीत संग्रह-
प्यास के हिरन का परिचय। |
वर्ग पहेली- २३६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
उपन्यास अंश में प्रस्तुत है
अलका सरावगी के उपन्यास
जानकीदास तेजपाल मैनशन का अंश
स्मृतियाँ
वह
इन दो सालों के जीवन में पूरी तरह बदल गया। अकेलेपन की आदत भी
उसे पड़ ही गई। भले ही काफी परेशानी के बाद। आदमी मजबूरन मजबूत
हो जाता है। न हो तो क्या करे? क्या दीवालों से अपना सिर पीटे
या जिस-तिस को फोन कर अपना रोना गाना सुनाता जाए - यह जानते
हुए कि सामनेवाले ने कान से फोन हटाकर बगल में रख दिया है? सच
पूछा जाए तो वह इतना मजबूत कभी नहीं था। दीपा के रहते भी नहीं।
उसे मालूम है कि अब जीवन में न बड़े दुख होंगे और न ही बड़े
सुख। अब न कोई डर बचा है न कोई बडी उम्मीद। अगर आज कोई उससे
पूछे कि उसके जीवन में किसी बात का अफसोस है क्या, तो उसके लिए
बताना मुश्किल हो जाएगा। अमेरिका से एडवोकेट बाबू ने बुला
लिया, तो क्या? उसे खुद मालूम है कि अमेरिका उसके लिए ठौर नहीं
बन सकता था। वह तो मन ही मन तरस खाता है उन लोगों पर जो वहीं
रह गए और अब चाहकर भी वापस नहीं आ सकते। बम्बई में
अकेला। परिवार ने कह दिया होगा, तुमको जहाँ जाना... आगे-
*
आलोक सक्सेना का व्यंग्य
हमारी
सोसायटी में राजन के जलवे
*
बुद्धिनाथ मिश्र का ललित निबंध
फूल आए हैं कनेरों में
*
राजेन्द्र शंकर भट्ट का
आलेख
विभिन्न धर्मों में जल प्रलय की कहानी
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पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का छठा भाग |
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प्रेरक प्रसंग
मौत की दवा
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मनोज कुमार अम्बष्ट का आलेख-
अजंता एलोरा की गुफाओं में बौद्ध दर्शन
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मुक्ता की कलम से-
गौतम बुद्ध की नगरी सारनाथ
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पुनर्पाठ
में मनोहर पुरी से जानें-
उत्सव बुद्ध
पूर्णिमा का
*
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर प्रस्तुत
है भारत से
डॉ
सुधा पांडेय की बौद्धकथा-
तृष्णा तू न गई
वाराणसी
का राजा भौतिक सुखों में इतना अधिक आसक्त था कि उसकी तृप्ति
कभी नहीं होती थी। धन का लोभी वह राजा प्रतिक्षण कई-कई नगरों
का राज्य जीतकर उन पर शासन करने को आतुर रहता था।
उस दिन राजद्वार पर एक तरुण ब्रह्मचारी आ पहुँचा था। ‘किसलिए
आये हो।’ राजा के पूछने पर उसने स्वाभाविक ढंग से उत्तर दिया-
‘महाराज, मुझे तीन ऐसे नगर ज्ञात हैं, जो प्रभूत धान्य,
स्वर्ण, अलंकारों से भरे हैं। उन्हें आसानी से जीता भी जा सकता
है। मैं आपको उन्हीं नगरों पर विजय प्राप्त करने की सलाह देने
आया हूँ।’
'कब चलेंगे?’ राजा उत्कंठा से भर उठा था।
‘कल प्रातः ही प्रस्थान करेंगे। आप जल्दी से सेनाएँ तैयार
करायें।’ तरुण ब्रह्मचारी ने उत्तर दिया और अपने स्थान को लौट
गया था।
‘कैसा सुखद समाचार है। उस ब्रह्मचारी ब्राह्मण तरुण ने आकर
मेरे भाग्य के द्वार ही खोल दिये। बिना प्रयास किये ही उत्तर
पांचाल, इंद्रप्रस्थ... आगे-
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