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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
जातक कथा - मौत की दवा


श्रावस्ती नगरी में कृशागौतमी नाम की एक कन्या रहती थी। उसका विवाह हुआ और कुछ समय बाद वह एक पुत्र की माँ बनी। परिवार में खुशियाँ छा गईं, लेकिन भाग्य में कुछ और ही लिखा था। गौतमी का शिशु जैसे ही चलने योग्य हुआ उसका निधन हो गया।

गौतमी शोक से तप्त होकर अपने मृत पुत्र को गोद में ले उसके लिये घर-घर दवा माँगती घूमने लगी।
लोग ताली बजाकर उसका उपहास करते और कहते, ‘‘गौतमी पागल हो गई है! कहीं मरे हुए की भी दवा होती है।’’

किसी भले आदमी को गौतमी पर बहुत दया आयी। उसने सोचा, इसमें इस बेचारी का दोष नहीं। यह पुत्र-शोक से पागल हो गयी है। इसकी दवा बुद्ध भगवान् को छोड़कर और किसी के पास नहीं।
उसने कहा, ‘‘माँ! तुम बुद्ध भगवान् के पास जाकर उनसे पूछो। वे अवश्य ही इसकी दवा तुम्हें दे सकेंगे।’’
गौतमी अपने शिशु को गोद में लिये हुए, जहाँ बुद्ध पालथी मारे बैठे थे, पहुँची और अभिवादन करके बोली, ‘‘महाराज! मेरे पुत्र को दवा दीजिए।’’

तथागत ने कहा, ‘‘तूने अच्छा किया जो यहाँ चली आयी। जल्दी ही तेरा दुख दूर हो जाएगा। देख, तू इस नगर में से, जिस घर में किसी की मौत न हुई हो, सरसों के दाने माँग ला। फिर मैं उसी से दवा बना दूँगा।’’
भगवान् की बात सुनकर गौतमी बहुत प्रसन्न हुई, और सरसों के दाने लेने के लिये चल दी।

पहले घर में जाकर उसने निवेदन किया, ‘‘देखिए, बुद्ध भगवान् ने मुझे आप लोगों के घर से सरसों माँगकर लाने को कहा है, आप लोग सरसों देने की कृपा करें।’’ गौतमी के ये शब्द सुनकर एक आदमी झट से घर में से सरसों के दाने ले आया और गौतमी को देने लगा।
गौतमी ने पूछा, ‘‘पहले यह बताइये कि इस घर में किसी की मौत तो नहीं हुई?’’
यह सुनकर घर के लोग आश्चर्य से कहने लगे, ‘‘गौतमी! यह तू क्या कह रही है? यहाँ कितने आदमी मर चुके हैं, इसका कोई हिसाब है?’’
गौतमी असमंजस में पड़ गई- ‘‘तो मैं आपके घर से सरसों न लूँगी।’’
गौतमी दूसरे घर गयी। सब जगह उसे वही उत्तर मिला। वह समझ गई कि सारे नगर में एक भी घर ऐसा नहीं होगा जहाँ किसी की मौत न हुई हो। फिर उसे ध्यान आया कि बुद्ध भगवान ने शायद जान-बूझकर ही उसे सरसों माँगने के लिये भेजा। जिससे उसे इस बात का ज्ञान हो जाए कि मृत्यु हर परिवार में होती है।

यह समझ में आते ही वह अपने मृत पुत्र को नगर के बाहर श्मशान में ले गयी। उसे अपने हाथ में लेकर बोली, ‘‘प्रिय पुत्र! मैंने समझा था शायद तुम्हीं अकेले मरने के लिये पैदा हुए हो। लेकिन अब मुझे मालूम हुआ कि मौत सबके लिये है। जो पैदा हुआ है, उसे एक न एक दिन अवश्य मरना है।’’ इतना कहकर अपने पुत्र को श्मशान में रख, उसके अंतिम संस्कार को पूरा कर वहाँ से लौट आयी।

लौटकर गौतमी बुद्ध के पास गयी।
बुद्ध ने पूछा, ‘‘गौतमी! सरसों के दाने मिल गये?’’
गौतमी ने कहा, ‘‘भगवन्! सरसों नहीं चाहिए। उसका काम हो गया है!’’

४ मई २०१५

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