जल-प्रलय कहानी विभिन्न धर्मों में
- अल्लाम् अलहिन्दी
इस तथ्य से किसी
धर्म को इन्कार नहीं कि एक पुरुष और स्त्री के मेल से
मानवकुल का आरंभ हुआ। दुनिया के विभिन्न धर्मों में ये
प्रथम पुरुष और स्त्री आदम और हव्वा, मनु और ईड़ा, ऐडम
और ईव और ब्रह्मा और हव्यवति के रूप में नजर आते हैं।
किसी भी धर्म के दायरे में रहकर हम जरा उस समय के बारे
में विचारें जब संसार में यही एक स्त्री-पुरुष थे। फिर
उनकी संतानें हुई और संतानों की संतानें हुईं। इस
प्रकार जनसंख्या में नितदिन वृद्धि होने लगी। आबादियाँ
बढ़ने लगीं। और फिर एक समय ऐसा आया कि वह स्थान जहाँ
सारे लोग मिल-जुल कर रहते थे, अपर्याप्त हो गया, और एक
ही पूर्वज की संतान होते हुए भी उन लोगों को अपनी
मातृभूमि को अलविदा कहकर विभिन्न टुकड़ियों के रूप में
विभिन्न क्षेत्रों की ओर स्थानांतरण के लिए विवश होना
पड़ा।
फिर वह समय भी आया कि लोग अपना धर्म और जीवनार्थ भूलने
लगे। सत्यमार्ग से दूर होने लगे। उन पर लोभ और लालच का
प्रभुत्व होने लगा। एक-दूसरे के प्रति निश्छल और
स्वार्थाहीन भावनाओं की जगह निजी स्वार्थ की भावनाओं
ने ले ली तो पहले उनके स्वामी ने उन्हीं के बीच रहने
वाले सज्जनों द्वारा उन्हें समझाया, डराया, धमकाया,
किंतु जब उनकी सरकशी हद से बढ़ गयी तब उसने उनका
अस्तित्व ही समाप्त कर देने की ठान ली, और तब भगवान
कृष्ण को गीता में यह कहना पड़ा-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम्सृजाम्यहम्। हे अर्जुन!
जब-जब भी धर्म की ग्लानि और अधर्म का प्रभुत्व होता
है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ। (श्रीमद्भगवद्गीता
अध्याय: ४ श्लोक ७)
इस समय हमारे सम्मुख तीन ग्रंथ हैं- वेद, बाइबिल और
कुरान। इन तीनों ग्रंथों के वे पृष्ठ खुले हुए हैं
जिनमें उक्त परिस्थिति पैदा होने के बाद की कहानी लिखी
है। और तीनों ग्रंथों की कहानियों में इतनी समानता है
कि थोड़ी-सी भिन्नता का कोई महत्व नहीं रह जाता। ये
तीनों ग्रंथ दुनिया के तीन विभिन्न क्षेत्रों से संबंध
रखते हैं, जिनकी भाषा एवं सभ्यता एक-दूसरे से अति
भिन्न है। आइए हम तीनों ग्रंथों की कहानियों पर नजर
डालकर एक रोचक रहस्योद्घाटन से लाभान्वित हों।
वेद की कहानी
‘विष्णु का आज्ञाकारी मनु उसके ध्यान में लीन था। एक
बार विष्णु ने उसे स्वप्न में बताया कि ‘हे प्रिय मनु
सुनो, सातवें दिन प्रलयागमन होगा, तुम सज्जनों के साथ
नाव में बैठ जाना।’ (भविष्य पुराण प्रतिसर्गपर्व खंड १
अध्याय ४)
‘प्रलयंकारी बाढ़ के समय जब सारी पृथ्वी डूब जाएगी, तब
तुम्हारे द्वारा सृजन का आरंभ होगा।’ (मत्य पुराण
अध्याय ४ श्लोक १४)
इस प्रकार मानकर उस महान पुरुष ने तीन सौ हाथ लंबी,
पचास हाथ चौड़ी और तीन हजार हाथ गहरी सुंदर नौका बनायी।
समस्त जीव-जंतुओं के जोड़े और अपने कुटुंब के साथ नौका
में सवार होकर विष्णु के ध्यान में जीन हो गया। चालीस
दिन तक प्रलयंकारी वर्षा हुई। भारत वर्ष पानी में डूब
गया और चार समुद्र मिलकर एक हो गये। विष्णु का
आज्ञाकारी मनु अपने कुटुंब के साथ बच गया। (भविष्य
पुराण प्रतिसर्ग पर्व खंड १ अध्याय ४)
बाइबिल की कहानी
नोहा, सत्यपुरुष अपने काल के लोगों में निर्मल था। और
नोहा ईश्वर के साथ चलता रहा और ईश्वर ने नोहा से कहा
सारे मनुष्यों का विनाश मेरे निकट आ पहुँचा है,
क्योंकि उनके कारण पृथ्वी अत्याचारों से भर गयी है।
अतः देख, मैं पृथ्वी सहित उन्हें नष्ट करूँगा। तू
गोफिर की लकड़ी की एक नौका अपने लिये बना और ऐसा करना
कि नौका की लंबाई ३०० हाथ, चौड़ाई ५० हाथ और ऊँचाई ३०
हाथ हो और उसमें तीन खंड हों और देख, मैं स्वयं पृथ्वी
पर प्रलयंकर बाढ़ लाने वाला हूँ। और सब जो पृथ्वी पर है
उनका विनाश हो जाएगा, पर तेरे साथ मैं अपना वचन स्थित
रखूँगा। तू नौका में बैठ जाना और तेरे साथ तेरे पुत्र,
तेरी पत्नी, और पुत्रों की पत्नियाँ और जंतुओं की
प्रत्येक प्रजातियों में से दो-दो अपने साथ नौका में
ले लेना। नोहा ने ऐसा ही किया। सात दिन के पश्चात ऐसा
हुआ कि तूफान का पानी पृथ्वी पर आ गया, समुद्र के सारे
स्रोत फूट निकले, और आकाश की खिड़कियाँ खुल गयीं। चालीस
दिन और चालीस रात वर्षा होती रही और पृथ्वी के सारे
जीव मर गये, मात्र एक नोहा बचा या वे जो नौका में सवार
थे, फिर नौका अरारात की पहाड़ियों पर टिक गयी। उसने एक
कौए को उड़ाया (जो वापस न आया) फिर उसने एक कबूतर हो
उड़ाया, ताकि पृथ्वी पर देखे कि पानी घटा या नहीं। जब
पृथ्वी बिल्कुल सूख गयी, तब ईश्वर ने नोहा से कहा,
‘अपना गोत्र बढ़ाओ, बढ़ो और पृथ्वी को पुनः शृंगारित
करो।’
(बाइबिल, सृजन, अध्याय: ६,७,८,९)
कुरान की कहानी
'और वाणी की गयी नूह की ओर कि तेरी कौम में से कोई
ईमान नहीं लाएगा, मात्र उन सज्जनों के जो ईमान ला चुके
हैं, इसलिए अब तू उन दुर्जनों के कर्तव्य पर चिंता न
कर, और हमारे आदेश के अनुसार हमारे निरीक्षण में एक
नौका बना, तनिक पक्ष न लेना उनका जो दुर्जन हैं
क्योंकि वे अवश्य जलमग्न किये जाएँगे और वह नौका बनाने
लगा, यहाँ तक कि हमारा आदेश आ पहुँचा और ‘तनूर’ से जल
उबलने लगा तो हमने आदेश किया कि इस नौका में प्रत्येक
प्रजाति के जानवरों के नर-मादा जोड़े सवार कर और उन्हें
भी सवार कर जो ईमान लाये। फिर पहाड़-जैसी मौजों के बीच
वह नौका तैरने लगी। फिर आदेश दिया गया कि हे पृथ्वी
अपना जल पी जा और हे आकाश थम जा। तुरंत जल घट गया और
काम तमाम कर दिया। नौका जूदी पर्वत पर जा टिकी। फिर
आदेश हुआ कि हे नूह उतर कुशलतापूर्वक!" (कुरान, अध्याय
११ श्लोक ३६-४८)
ये थे एक ही कहानी के तीन आदिग्रंथ से प्रस्तुत किये
गये व्याख्यान। कुरान में नौका ठहरने के स्थान को
‘जूदी’ कहा गया है और बाइबिल में ‘अरारात’, जूदी
अरारात पर्वत की ही एक चोटी का नाम है, जो इराक के
उत्तरी क्षेत्र आमीनिया में स्थित है। यहाँ वेद और
कुरान से यह ज्ञान नहीं होता कि नौका से उतरने के
पश्चात वे लोग जिनसे बाद में सारी दुनिया आबाद हुई,
सर्वप्रथम कहाँ बसे? लेकिन बाइबिल से स्पष्ट होता है
कि वे लोग सर्वप्रथम दजला व फरात के दो आबे
मैसोपोटामिया के दक्षिणी क्षेत्र में आबाद हुए। यही
क्षेत्र आगे चलकर सुमीर कहलाया और फिर बाबिलॉन (बाबिल)
की महान सल्तनत की स्थापना के बाद इस पूरे दक्षिणी
मैसोपोटामिया को बाबिल कहने लगे। अतः बाइबिल में इस
क्षेत्र को बाबिल ही कहा गया है। ‘इसलिए उसका नाम
बाबिल हुआ। ईश्वर ने वहाँ समस्त भाषाओं में अंतर डाला
और वहाँ से उनको ईश्वर ने सारी पृथ्वी पर
फैलाया’(बाइबिल, सृजन, अध्याय १९)
देवमालाई रूप
अब आइए इस कहानी का देवमालाई रूप देखें और गौर करें कि
पूर्ण रूप से देवमालाई रंग में रंगी हुई होने के
बावजूद तीनों धर्मग्रंथ से कितनी समानता रखती है।
एक बार देवतागण किसी बात पर लोगों से नाराज हो गये और
उन्होंने सारी पृथ्वी को जलमग्न करने का निश्चय किया।
किंतु जलदेवता ने इसकी सूचना सरकंडों को दे दी, जिनसे
किसी आदमी की झोंपड़ी बनी हुई थी। सरकंडों ने यह बात
झोंपड़ी के मालिक को बता दी। उसने एक विशाल नौका तैयार
की और उसमें अपने कुटुंब, कुछ शिल्पियों, जीव-जंतुओं
और पक्षियों को बिठाया। देवताओं ने जो दिन निश्चित
किया था, उस दिन आकाश में काले-काले बादल घिर आये और
भीषण वर्षा होने लगी। सारी पृथ्वी जलमग्न हो गयी, नौका
पर सवार लोगों के अलावा सारे लोग नष्ट कर दिये गये। छह
दिन के बाद वर्षा और तूफान थम गये। पानी घटने लगा, कौए
ने उड़कर भूमि का पता लगाया और नौका पर सवार लोग तथा
जीव वहाँ उतर आये।’
११ मई
२०१५ |