हमारी
सोसायटी की एक बालकनी में खड़ी मेमसाहब चौकीदार से चिल्लाकर
कह रही थीं 'राजन भइया...,राजन भइया...जरा पानी की मोटर
चला देना। तुम्हारे अंकल टॉयलेट में नंगे बैठे हैं।' तब तक
उनके सामने वाली मेमसाहब भी बाहर बालकनी में निकल आईं और
दोनों एक-दूसरे को देखकर बिना हालचाल पूछे ही बतियानें
लगीं। एक बोली-'हमारे यहाँ तो एक बूँद पानी तक नहीं है।
सुबह-सुबह सिर्फ एक घंटे मोटर चलाने से क्या होता है। और
तब तक तो हम लोग सो कर भी नहीं उठ पाते हैं। दुकानदार हैं
रात को देर से आते हैं। सुबह देरी तक सोते हैं।' तभी दूसरी
तरफ की बालकनी में खड़ी मेमसाहब कहने लगीं- 'हमारी ससुराल
यानी इनके पैतृक गाँव में तो अभी भी ट्यूबवैल लगे हुए हैं।
इन्हें तो खेतों पर जाकर अपने ट्यूबवैल को चलाकर उसकी नाद
में घुसकर नग्न-धड़ंग होकर ट्यूबवैल के एक फुट चौड़े मुँह
वाले पाइप में से निकलती हुई तेज धार से नहाने में ही मजा
आता है।
कई बार यह मुझे भी अपने पैतृक गाँव ले जाकर ट्यूबवैल की
बड़ी सी नाद और उसमें घुसकर नहाने और नहलाने का आनंद दिलवा
कर लाए हैं। क्या तेज धार निकलती है इन ट्यूबवैल के मोटे
पाइपों से। शहरों के पाइप तो जब देखो तब सूखे ही रहते है।
और यहाँ के बाथरूम तो देखो इतने छोटे हैं कि इसमें क्या
खुद नहाएँ और क्या पानी भरने हेतु बड़ी बाल्टियाँ रखें।
वैसे मैं यह जानती हूँ कि अब शहरों में कहाँ रक्खा है ऐसी
तेज धार वाला पानी। यहाँ तो हमारी नानी भी होतीं तो पानी
की एक-एक बूँद को तरसतीं। चलवाओ राजन से कहकर पानी चलवाओ।
मेरे यहाँ तो एक बूँद भी पानी नहीं है। सोसायटी की
रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिऐशन के आला पदाधिकारियों को कौन
समझाए कि दिनभर में केवल तीन टाइम एक-एक घंटे पानी चलवा
देने से कुछ नहीं होता।
कम से कम तीन-तीन घंटे तो चलनी ही चाहिए पानी की मोटर।
मैंने कई बार रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिऐशन वाले सक्सेना जी
से भी कहा मगर वह इस मामले में किसी की भी सुनता ही नहीं।
साला बड़ा ईमानदार बनता है। कहता है कि पानी की मोटर अपने
निर्धारित समय पर रोजाना सिर्फ एक-एक घंटे ही चलेगी। इसके
अलावा बिल्कुल भी नहीं आपके यहाँ पानी हो या न हो इसके लिए
एसोसिऐशन जिम्मेदार नहीं है। आप सभी को अपने-अपने घरों में
पानी की मोटर के चलने के निर्धारित समय में ही अपनी
बाल्टियों में पानी भर कर रख लेना चाहिए और उसी से काम
चलाना चाहिए। इसलिए मैं तो राजन भइया को होली-दीपावली
ड्राईफ्रूटस के गिफ्ट पैक व घर में मुर्गमुसल्लम बनने पर
उसके परिवार के लिए भी भिजवा देती हूँ। खुश हो जाता है,
बेचारा।
वैसे भी राजन चौकीदार जरूर है मगर काफी समझदार है और मेरी
सारी बात मानता है। हमारे परिवार के लिए पानी की कितनी
जरूरत है, सब समझता है, चुपचाप चला देता है पानी की मोटर
वर्ना तो इनको भी बिना नहाए ही रोजाना दफ्तर जाना पड़ता।
मेरी भी आँख कहाँ सुबह पाँच बजे खुलती है। भला सुबह पाँच
बजे पानी की मोटर चलवाने की क्या तुक है? रेजिडेंट वेलफेयर
एसोसिऐशन वालों ने तो अपने फिक्स नियम-कानून बना कर हमारी
नाक में दम कर रखा है। खैर छोड़िए, बताइए क्या आप भी राजन
को कुछ देती-वेती हैं? या यों ही अपने घर के सारे काम करवा
लेती हैं। मैं देखती हूँ अक्सर ही वह आपके घर के कामकाज
करता रहता है।'
प्रश्न सुनकर दूसरी तरफ खड़ी मेमसाहब बड़े ही गर्व से बोलीं-
'राजन कोमैंने ही तो रखवाया है यहाँ काम पर। हम ही तो उसे
अपने गाँव से यहाँ लेकर आए हैं। सबसे पहले हम ही तो इस
सोसायटी में आए थे। हमने ही उसे समझाया कि तुम यहाँ रात
मैं चौकीदारी किया करो। और दिन में यहाँ की गाड़ियों को साफ
करके लोगों से अपने मुनाफे की रकम लेकर अपने भविष्य के लिए
जमा करो। चौकीदारी के काम में होता ही क्या है? यहाँ कौन
सी डकैती पड़ रही है। गेट पर अच्छी खासी चौकीदार की केबिन
है बस सोना ही तो है वहाँ पर बैठकर। हाँ, यह बात अलग है कि
वहाँ पर कोई बैड नहीं पड़ा है। सिर्फ कुर्सी है। और फिर रात
में अपनी थोड़ी सी कमर सीधी करने वह अपनी बीबी के पास भी जा
सकता है। यहीं इसी सोसायटी की अंडरग्राउंड पार्किंग के
अंदर ही तो एक कोने में बने कमरे में रहता है उसका परिवार।
कभी-कभार एसोसिऐशन वालों ने गेट पर आधी रात के बाद आकर चैक
भी कर लिया तो कह देना कि बच्चे को देखने घर गया था उसके
पेट में दर्द था। मैंने उसे सबकुछ समझा रखा है।’
इस पर दूसरी मेमसाहब बोलीं- 'वो सब तो ठीक है लेकिन राजन
को कुछ लोग रात में आकर अपनी गाड़ी सही ढंग से पार्किंग में
लगाने के लिए अपने सफर के दौरान रास्ते में पी हुई अपनी
अंग्रेजी शराब का बचा-खुचा अध्धा-पउआ थमा देते हैं। यह तो
गलत है। रात में लोगों की बची-खुची हुई शराब पीकर कभी वह
बहक गया तो देखना किसी दिन सुबह तक वह किसी की गाड़ी चुराकर
ले जाएगा या फिर किसी कबाड़ीवाले से सेटिंग करके उसे बेच
देगा। सुना है आजकल चौकीदार और गाड़ियों की सफाई करने वाले
सोसायटियों में गाड़ी चोरी खूब कर रहे हैं। सोसायटियों के
चौकीदारों द्वारा बलात्कार किए जाने की घटनाओं की खबरें भी
अखबारों में आम होती जा रही हैं।'
अपनी पड़ोसन की बातें सुनकर सामने वाली मेमसाहब मुस्कुराईं
और बोलीं-'नहीं, नहीं राजन ऐसा नहीं है। मैं उसे अच्छी तरह
से जानती हूँ। और फिर राजन बेचारे से सभी का काम चल रहा है
तो हम भला बीच में अपनी टाँग क्यों अड़ाएँ। रेजिडेंट
वेलफेयर एसोसिऐशन वाले सक्सेनाजी से कहकर उस पर सख्ती
करवाने का मतलब होगा कि उसको यहाँ से हटा दिया जाएगा और
फिर दूसरा कोई नया चौकीदार आएगा तो वह हमारी इतनी कहाँ
सुनेगा। ऊपर से कहीं शराब न पीने वाला, शाकाहारी और
ईमानदार हुआ तो फिर। राजन नहीं होगा तो हम लोग आपस में ही
लड़भिड़ कर मर जाएँगे। अभी वह हमारे एक इशारे पर हमारी
गाड़ियों को ठीक ढंग से पार्किंग में लगा देता है,
सुबह-सुबह साफ भी कर देता है, बेचारा खुद ही निकाल भी देता
है। जब तब बाजार से लेकर आए हुए हमारे सामानों से भरे हुए
भारी-भरकम थैलों को दूर से ही देखकर उन्हें उठा कर स्वयं
ही घर पर लाकर ऊपर रख देता है। और इन सब के बदले में
बेचारे को मिलता ही क्या है कभी कोई सौ या दो सौ रुपए पकड़ा
देता है तो कोई पाँच सौ ही केवल लेकिन फिर भी चुपचाप सबका
काम करता रहता है बेचारा। इसलिए मैं कहती हूँ कि राजन से
अच्छा तो कोई और दूसरा चौकीदार हो ही नहीं सकता।'
सुनकर मेमसाहब बोलीं- 'अजी साहब, हमें क्या चलो राजन को
आवाज दो और पानी की मोटर चलवाओ। अभी तक नहीं चली है मोटर।
इनको दफ्तर जाने के लिए देरी हो रही है।'
एक बार फिर से बालकनी में खड़ी मेमसाहब ने अपनी सोसायटी के
चौकीदार को चिल्ला कर जोरदार आवाज लगाई- 'राजन भइया...,
राजन भइया..., जरा पानी की मोटर चला देना।'
इस बार आवाज सुनकर राजन भइया दौड़ कर आए और तुरंत ही पानी
की मोटर का स्विच फिर ऑन कर दिया लेकिन वह उसे अपनी परिचित
मेम साहब के द्वारा निर्धारित किए गए तीन घंटे लगातार पानी
की मोटर चलाने के समय के बाद उसे ऑफ करना भूल गए और पूरे
चौबीस घंटे तक चलती रही हमारी सोसायटी की पानी की मोटर
परिणामस्वरूप अगली सुबह तक जल गई। रेजिडेंट वेलफेयर
एसोसिऐशन वाले सक्सेना जी अब पानी का टैंकर मँगवाने का
इंतजाम कर रहे थे। जब तक दो-तीन दिन में पानी की मोटर नई
नहीं लग जाती तब तक सभी को चुल्लू भर पानी से ही अपना काम
चलाना पड़ेगा। राजन भी अपनी सोसायटी के साहब लोगों के बीच
में एक ट्रे में ठंड़े पानी से भरे हुए गिलास रखकर सभी को
पानी पिला रहा था। पास खड़े कुछ प्रबुद्धजन नई पानी की मोटर
की खरीद और स्थापित किए जाने पर होने वाले भारी व्यय के
बाद प्रतिफ्लैट अपने-अपने हिस्से में आने वाली धनराशि की
एक मुश्त अतिरिक्त किश्त का हिसाब-किताब लगा रहे थे। नई
पानी की मोटर लग जाने के बाद जब पहली बार ऑन की गई तो
सोसायटी के सभी परिवारों के सदस्यों को राजन द्वारा
मोतीचूर के लड्डू बँटवा दिए गए।
अगली सुबह फिर से अपनी बालकनी में खड़ी होकर एक मेमसाहब ने
बेहिचक होकर आवाज लगाई-'राजन भइया..., राजन भइया..., जरा
पानी की मोटर चला देना।' |