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अजंता तथा एलोरा में बौद्ध दर्शन
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मनोज कुमार अम्बष्ट
गौतम बुद्ध के संदेशों का मगध सम्राट बिम्बिसार एवं आम जनता
द्वारा बौद्ध धर्म के अपनाये जाने के पश्चात बौद्ध धर्म
देश-विदेश में तेजी से फैला। सम्राट अशोक द्वारा आजीविकों हेतु
बराबर पहाड़ी (बिहार के जहानाबाद जिलो में अवस्थित) में गुफा
बनवाने से प्रेरणा लेकर कई स्थानों पर गुफाओं का निर्माण हुआ,
जिनमें अजंता तथा एलोरा की गुफाओं का स्थान सर्वोपरि है।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के अंतर्गत अजन्ता की गुफाएँ
बौद्ध धर्म की हीनयान और महायान शाखा को चित्रित करती हैं,
जबकि एलोरा की बौद्ध-गुफाएँ बज्रयान को। अजंता की गुफाएँ जहाँ
हजार वर्षों से भी अधिक गुमनामी के गर्त में रहीं, वहीं एलोरा
की गुफायें प्राचीन कारवा मार्ग ‘सार्थवाह-पथ’ पर स्थित होने
के कारण सदैव व्यापारियों, यात्रियों यहाँ तक की विदेशी
पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी रहीं। इन गुफाओं के अध्ययन
अथवा जानकारी का दृष्टिकोण भले ही पुरातात्विक (ऐतिहासिक,
सामाजिक, सांस्कृतिक), कलात्मक (स्थापत्य कला, मूर्ति कला,
भित्ति चित्र) अथवा धार्मिक हो, इनकी अंशतः या समग्रतः
उपादेयता ही हमारे लिए गर्व की बात है।
महाराष्ट्र में औरंगाबाद से १०७ कि.मी. उत्तर (जलगाँव से ६०
कि.मी. दक्षिण, २०, ३२ उत्तरी अक्षांश तथा ७४, ४५ पूर्वी
देशान्तर) में सहयाद्री पर्वत श्रृंखला के इनह्याद्री पहाड़ी के
मध्य, भूतल से २५० फुट (७६.२ मीटर) की ऊँचाई पर, बाजू के
सप्तकुंड जलप्रपात से निकली छोटी नदी बधोरा के तट पर ५५० मीटर
में अर्द्धचंद्राकर अथवा घोड़े के नाल के आकार में फैली,
मुख्यतः गुप्तकालीन परम्परा से प्रभावित, अजंता की तीस गुफाओं
का निर्माण, ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से छठीं शताब्दी के मध्य
सातवाहन तथा वाकाटक शासन-काल में हुआ, जिन्हें आधुनिक दुनिया
के सामने लाने का श्रेय सन् १८१९ में मद्रास सेना के आखेट हेतु
आये ब्रिटिश लशकर के जॉन स्मिथ को जाता है मूलतः बौद्ध
भिक्षुओं के वर्षावास हेतु निर्मित, सुंदर भित्तिचित्रों के
लिए विश्व विख्यात अजंता की गुफाओं को मानव समुदाय हेतु इनकी
महत्ता को देखते हुए यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत सूची में
शामिल किया गया है। इनमें मूर्ति विहीन गुफा हीनयानी तथा
मूर्ति सहित गुफा महायानी मानी जाती है। प्रारंभिक हीनयान
विहार आकार में छोटे तथा स्तंभ रहित थे। गुफा सं. -९, १०,१९,२६
तथा २९ चैत्य हैं तथा शेष संघाराम अथवा विहार। भित्तिचित्रों
के विषय जातक कथाओं पर आधारित है।
बुद्ध की विशाल मूर्ति
बरामदा, हॉल, छोटे-छोटे कक्ष, एक चैत्य तथा अतिसुदंर चित्रों
से युक्त गुफा सं. -१, अजंता के सुंदरतम विहारों में से एक है।
प्रवेश द्वार के सामने अंतिम छोर पर बुद्ध की वज्रपर्यकासन तथा
धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा में बैठी विशाल मूर्ति है जो दोनों
छोर से देखने पर मुखमंडल पर तीन भिन्न भाव प्रदर्शित करती है।
इसमें दाहिनी ओर वज्रपाणि तथा बायीं ओर एक अन्य बोधसत्व चँवर
हिला रहे हैं और ऊपर में दो उड़ते हुए चित्र हाथ में माला लिये
हैं। सभामंडल के तीसरे स्तंभ पर चार बैठे हुए हिरणों की मूर्ति
को एक ही मुख से युक्त दिखलाया गया है, जो कि एक उत्कृष्ट
शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है। यहाँ के बोधिसत्व पद्मपाणि का
चित्र विश्वप्रसिद्ध है। काली रानी के चित्र में शरीर रचना और
आँखों की लाली सराहनीय है।
अन्य चित्रों में शिवि जातक पर आधारित राजा शिवि द्वारा कबूतर
के वजन के बराबर माँस बाज को दिया जाना, आलार नामक व्यापारी
द्वारा शिकारियों को धन देकर उनके चुंगल से नागराज को मुक्त
करवाना, मार द्वारा लोभ तथा आक्रमण, विभिन्न भ्रमणों के दौरान
राजकुमार सिद्धार्थ को प्रभावित करने वाले चार दृश्यों में
तीन- वृद्ध, रोगी और शव के चित्र, श्रावस्ती का चमत्कार
(श्रावस्ती में राजा प्रसेनजित तथा अन्य लोगों के समक्ष बुद्ध
द्वारा स्वयं को असंख्य रूपों में प्रदर्शित करना) अपनी पत्नी
‘सुंदरी’ पर आसक्त सौतेले भाई नंद को बुद्ध द्वारा भिक्षु
बनाना, राजसभा, इत्यादि के अलावा शंखपाल जातक, महाउम्भग जातक,
महाजनक जातक तथा चंयेय जातक पर आधारित भावप्रवण चित्र कुशलता
पूर्वक दर्शाये गये हैं। गुफा सं.- २ एक विहार है, जिसमें
हारिती एवं उसके पति की उत्कीर्ण प्रतिमा, छत में खूबसूरत
पेंटिग, महारानी ‘माया’ का स्वप्न में सफेद हाथी को देखना और
उसके बारे में महाराज शुद्धोदन को सुनाना, बुद्ध के जन्म के
समय माया का पेड़ की शाखा को पकड़ना तथा जन्मोपरांत बुद्ध का सात
कदम चलना जैसे चित्रों के अलावा हंस जातक, विदुर पंडित जातक,
रुरू जातक पर भी आधारित अनेक भित्ति चित्र दृष्टिगोचर होते
हैं।
नागराज नागरानी
बीस स्तंभों तथा विश्राम हेतु चौदह छोटे कक्षों से युक्त गुफा
सं. १६ के सम्मुख सीढ़ियों के दोनों ओर हाथी घुटने टेके हुए
हैं। सामने नागराज-नागरानी का शिल्प है। इस विहार में बुद्ध की
प्रलम्बपद आसन तथा व्याख्यान मुद्रा में भव्य मूर्ति है। उड़ती
हुई आकृति-युग्म की प्रतिमा भी सराहनीय है। कपिलवस्तु में
प्रथम आगमन के समय बुद्ध का भिक्षा हेतु अपने सौतेले भाई नंद
के यहाँ जाना तथा उसका उस समय अपनी पत्नी ‘सुंदरी’ को स्नानगृह
में सहयोग हेतु व्यस्त रहना और बाहर आने पर बुद्ध द्वारा उसे
भिक्षु बनाना, श्रावस्ती का चमत्कार, सुजाता द्वारा बुद्ध को
खीर खिलाया जाना, शुद्धोदन तथा माया द्वारा माया के स्वप्न का
विवेचन जैसे दृश्यों के अलावा हस्ती जातक, महाउमग्ग जातक तथा
महासुत्तसोम जातक के दृश्य चित्रित हैं। काल के थपेड़ों से
न्यूनतम प्रभावित गुफा सं. १७ उत्कृष्ट भित्तिचित्रों से
परिपूर्ण एक विहार है, जिसके चित्र केशांतर जातक, छदंत जातक,
महाकवि जातक तथा हस्ती जातक, महासुत्तसोम जातक, सरभ मिग जातक,
मच्छ जातक, मातृ-पोषक जातक, साम जातक, महिष जातक, वलाहस्स
जातक, शिवि जातक, रूस जातक तथा निगोधमिग जातक पर आधारित है।
यहाँ पर व्याख्यान मुद्रा में बुद्ध की एक बैठी हुई मूर्ति है,
जिसके एक ओर पद्यपाणि तथा दूसरी ओर वज्रपाणि चँवर हिला रहे
हैं। यहाँ भावी बुद्ध मैत्रेय के साथ सात मानुषी बुद्ध संबंधित
वृक्ष के नीचे बैठे हैं। इसमें महल का दृश्य, अप्सरा की सुंदर
मूर्ति, स्नानगृह का दृश्य, बरामदा के छत पर सुंदर चित्र, ‘मदर
एंड चाईल्ड’ के नाम से प्रसिद्ध यशोधरा की अँगुली पकड़े राहुल,
वेशभूषा में मग्न राजकन्या के अलावा मुर्गों की लड़ाई, पहलवानों
की कुश्तियाँ, बैलों की टक्करें, किन्नर आदि के चित्र
प्रेक्षणीय हैं।
परिचारकों की मूर्तियाँ
संभवतः ४५०-५२५ ई. के मध्य निर्मित बरामदा तथा सभामंडप से
युक्त गुफा सं. २० एक विहार है, जिसके गर्भगृह में बुद्ध की
मूर्तियाँ हैं। १२ स्तंभों से युक्त हॉल तथा १२ छोटे कक्षों के
साथ गुफा सं. २१ एक विहार है, जिसमें व्याख्यान मुद्रा में
बुद्ध की बैठी हुई प्रतिमा के अतिरिक्त परिचारिकाओं एवम्
रानियों के साथ नागराज, परिचारिकाओं के साथ हारिती, यक्ष
इत्यादि मूर्तियाँ दर्शनीय हैं। गुफा सं. २२ एक विहार है,
जिसमें बुद्ध की प्रलम्बपाद आसन में बैठी हुई मूर्ति के
अतिरिक्त संबंधित वृक्ष के नीचे मैत्रेय के साथ सात मानुषी
बुद्ध का चित्र है। गुफा सं. २३ एक अपूर्ण बड़ा विहार है, जिसके
बाहरी स्तंभ के पलास्तर सुसज्जित है। गुफा सं. २४ एक अपूर्ण
विहार है, जिसमें सहचरों तथा उड़ती हुई आकृतियों से युक्त बुद्ध
की प्रलम्बपाद आसन में बैठी हुई प्रतिमा के अतिरिक्त एक सुंदर
स्तंभ है। गुफा सं. २५ भी एक अपूर्ण विहार है। लगभग ४५०-५२५ ई.
के मध्य निर्मित गुफा सं. २६ सुंदर शिल्पकला से युक्त एक चैत्य
गृह है, जिसके द्वार के सामने ही स्तूप में बुद्ध की
प्रलम्बपाद आसन में बैठी हुई मूर्ति है। मूर्ति के चारों ओर
प्रदक्षिणा पथ है। स्तंभों से युक्त इस चैत्य की छत में लकड़ी
के काम की प्रतिकृति है। बाँयी दीवार पर मार द्वारा लोभ तथा
आक्रमण का उत्कीर्ण दृश्य और बुद्ध का महापरिनिर्वाण का
उत्कीर्ण दृश्य-दो साल वृक्षों के बीच चारपाई पर बुद्ध चिर
निद्रा में, नीचे उनके शिष्य विलाप करते और ऊपर हर्षित
स्वर्गीय विभूतियाँ आर्शीवाद प्रदान करती हुई दर्शायी गयी हैं।
गुफा सं. २७ तथा २८ विहार हैं। गुफा सं. २९ रास्ता विहीन एक
अपूर्ण चैत्य है।
एलोरा पहाड़ी
औरंगाबाद से ही २९ कि.मी. उत्तर-पश्चिम दिशा में पश्चिमी घाट
के चरणद्री अथवा एलोरा पहाड़ी में, ५-११ वीं शताब्दी के मध्य
हिंदू धर्मावलम्बी चालुक्य, राष्ट्रकूट तथा यादव वंश के शासन
काल में उत्कीर्ण, प्राचीन कारवाँ मार्ग सार्थवाह पथ पर स्थित,
सम्प्रति विश्व विरासत सूची में शामिल एलोरा की चौंतीस गुफाओं
(२०,२१ उत्तरी अक्षांश तथा ७५, १० पूर्वी देशान्तर पर) में से
प्रथम बारह गुफाएँ बौद्ध धर्म की हैं और तत्कालीन वज्रयान शाखा
को निरूपित करती हैं।
एलोरा की गुफा सं. १० भिक्षुओं के लिए छोटे-छोटे चार कक्षों
(सेल) से युक्त एक विहार है। लगभग ६२५ ई. तक निर्मित गुफा सं.
२ के भीतर खड़े १२ वर्गाकार खंभों में बादामी की ‘आमलक’ शैली
तथा गुप्तकाल की ‘घटपल्लव’ शैली परिलक्षित होती है। इसमें
बौद्धों के कुबेर ‘जम्भल’ मातृत्व की प्रतीक ‘हारिती’ एवम्
उसके पति ‘पांचिक’ (कुबेर का सेनापति) की भी मूर्ति है।
विभिन्न आसनों और मुद्राओं में बुद्ध की ६८ मूर्तियों के
अतिरिक्त मैत्रेय की २, अवलोकितेश्वर की २१, जम्भल की १, तथा
तारा की भी १, मूर्ति है। घटपल्लव शैली की १२ खंभों से युक्त
गुफा सं. ३ में बुद्ध की ४, अवलोकितेश्वर की २, वज्रपाणि की एक
तथा बोधिसत्व की एक मूर्ति है। अधिकाँश बर्बाद हो चुकी गुफा
सं. ४ एक दो मंजिली गुफा है। इसमें बुद्ध की ५, मैत्रेय की २,
अवलोकितेश्वर, भृकूटी तथा बोधिसत्व की एक-एक तथा तारा की एक
मूर्ति है। लगभग ६६०-६७० ई. तक पूर्ण स्थानीय लोगों में
"महानबाड़ा" के नाम से प्रसिद्ध गुफा सं. ५, ११७ फुट लंबी तथा
साढ़े अठावन फुट चौड़ी एक विहार है।
आमलक शैली के २४ खंभों पर टिकी इस गुफा में बुद्ध की
प्रलम्बपाद आसन तथा धर्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा में बैठी हुई
मूर्ति के साथ अवलोकितेश्वर तथा मैयेत्र सह्चर के रूप में हैं।
इसके अलावा यहाँ वज्रपाणि तथा भृकूटी की भी एक-एक मूर्ति है।
गुफा सं. ६ में बुद्ध की २, बुद्धमंडल की २, मैत्रेय की ३,
अवलोकितेश्वर की २, जम्भल की ९, तारा की २ तथा महामयूरी की एक
मूर्ति है। गुफा सं. ७, चार सामान्य स्तंभ, १२ छोटे कक्ष (सेल)
तथा एक मूर्ति से युक्त एक सामान्य विहार है। गुफा सं. ८ एलोरा
का एकमात्र विहार है, जिसमें बुद्ध मूर्ति के चारों ओर
प्रदक्षिणा पथ है। प्रलम्बपाद आसन तथा धर्मचक्र मुद्रा में
बैठी बुद्ध की इस मूर्ति के बाँयी ओर वज्रपाणि तथा दायीं ओर
मैत्रेय खड़े हैं तथा ऊपर के दोनों ओर उड़ते हुए गंधर्व हैं। इस
गुफा में मैत्रेय की ३, अवलोकितेश्वर की ३, वज्रपाणि की १,
विद्याराज्ञी और सर्पदंश तथा अन्य रोग दूर करने वाली जादू की
देवी, महामयूरी की १, रोष की देवी भृकुटी १, और हारिती एवम्
पांचिक की एक मूर्ति है। गुफा सं. ९ में बुद्ध की प्रलम्बपाद
आसन तथा धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में सिंहासन पर बैठी मूर्ति
के अलावा अवलोकितेश्वर तथा तारा की एक-एक मूर्तियाँ हैं।
देवताओं के शिल्पी "विश्वकर्मा" के नाम से अभिप्रेत गुफा सं.
१० भारत में चैत्य स्थापत्य कला की पराकाष्ठा का परिचायक है। ७
वीं सदी के उत्तरार्द्ध में पाषण में उत्तकीर्ण गुफा की
अर्द्धचंद्राकर छत काष्ठ निर्मित प्रतीत होती है, इसीलिए इसे
सुतार झोपड़ी भी कहते हैं।
सुजाता की विशाल प्रतिमा
धरपल्लव शैली के २४ सुंदर स्तंभ, तीन ओर से छज्जे तथा छज्जे के
लिए सीढ़ियों युक्त इस गुफा में प्रवेश करते ही सामने
प्रदक्षिणा पथ सहित स्तूप दीखता है, जिसमें बुद्ध की
प्रलम्बपाद आसन और धर्मचक्र मुद्रा में सिंहासन पर बैठी विशाल
मूर्ति के बाँयी ओर मैत्रेय तथा दाहिनी ओर पद्यपाणि खड़े हैं
तथा ऊपर में दोनों ओर उड़ती हुए कई आकृतियाँ भी हैं। इस गुफा
में बुद्ध की १६, मैत्रेय की २, अवलोकितेश्वर की १९, मंजुश्री
की २, वज्रपाणि की २ तथा जम्भल की एक मूर्ति के अलावा देवियों
में चुराडा की ६, तारा की ३, सरस्वती की २ तथा भृकूटी की ३
मूर्तियाँ है। ‘दो ताल’ के नाम से प्रसिद्ध ८ वीं शताब्दी में
निर्मिति गुफा सं. ११ एक तीन मंजिली गुफा है, जिसकी निचली
मंजिल का पता सन् १८७६ के बाद चला। यहाँ विभिन्न आसनों तथा
मुद्राओं में बुद्ध की २६, मैत्रेय की ६, अवलोकितेश्वर की ३२,
मंजुश्री की ७, वज्रपाणि की ६, ज्ञानकेतु की २ अलग तथा दो
बुद्ध मंडल में, दुख और अकर्मण्यता का नाश करने वाले बोधिसत्स
सर्वसोक्तामोनीर्घातमती बुद्धमंडल में २ बार तथा बुद्धशक्तियों
में चुराडा की ११, तारा की ७ तथा भृकूटी की एक मूर्ति है। यहाँ
सुजाता की भी मूर्ति है।
संभवतः राष्ट्रकूट शासनकाल में ८ वीं सदी के उत्तरार्द्ध से ९
वीं सदी के प्रथम दशक में निर्मित, एलोरा में बौद्ध धर्म की
गुफाओं की अंतिम कड़ी, गुफा सं. १२ तीन मंजिली होने के कारण तीन
ताल कहलाती है। ११६ गुणा ४२ क्षेत्र वाले भूतल में एक लंबा सा
हॉल, बगल की दीवारों में छोटे-छोटे कक्ष तथा मध्य में पवित्र
स्थल है। यहाँ विभिन्न आसनों तथा मुद्राओं में बुद्ध की ५४
मूर्तियों के अलावा मैत्रेय की ६, अवलोकितेश्वर की २६,
मंजुश्री की २३, वज्रपाणि की १९, ज्ञानकेतु की तीन स्वतंत्र
तथा बुद्धमंडल में ४ मूर्तियाँ और बुद्ध शक्तियों में जांगुली
की १, चुराडा की १०, तारा की १०, महामयुरी
की १, सरस्वती की १
तथा भृकूटी की ३ मूर्तियाँ हैं। यहाँ सात मानुषी बुद्ध और उनसे
संबंधित अलग-अलग वृक्ष भी उत्कीर्ण हैं। एलोरा की गुफाओं में
गंधर्व, अप्सरा, किन्नर, बौना इत्यादि की भी बुद्ध, बोधिसत्व
तथा बुद्धशक्तियों के साथ मूर्तियाँ हैं।
इस प्रकार अजंता की गुफाओं में तत्कालीन हीनयान, महायान और
बुद्ध के जीवन से संबंधित मूर्तियाँ तथा सुंदर भित्तिचित्र
हैं, जबकि एलोरा की बौद्ध गुफाओं में उस समय तेजी से फैली
वज्रयान को निरूपित करती बुद्ध, बोधिसत्व, बुद्धशक्तियाँ तथा
कुछ हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
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