इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
दीपावली के अवसर पर दीपों की जगमगाहट से भरपूर विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों
की दीप-रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये
चुने हैं- दीपावली के अवसर पर विशेष व्यंजनों के अंतर्गत-
चटपटे पनीर पकौड़े। |
गपशप के अंतर्गत-
दीपावली तो हम हर साल मनाते है। इस बार पर्यावरण का भी ध्यान रखें और
मनाएँ- -
प्रकृति प्रेम
के साथ दिवाली
|
जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद
और संतुष्ट बना सकती हैं -
४. खुशियों के खजाने हमारे
त्यौहार।
|
सप्ताह का विचार-
स्वयं-प्रकाशित-दीप-को भी प्रकाश के लिये-तेल-और-बत्ती-का जतन करना पड़ता है बुद्धिमान भी अपने-विकास-के-लिये निरंतर यत्न करते हैं। |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
कि आज के दिन (२० अक्तूबर को) जैन संत आचार्य तुलसी, तेलुगु के कवि गुंटुरु
शेषेन्द्र सरमा, अभिनेत्री जैक्लिन फर्नांडेस...
विस्तार से |
धारावाहिक-में-
लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और
प्रेरक वक्ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से
भरपूर आत्मकथा-
अंतिम-विजय-का-ग्यारहवाँ-भाग। |
वर्ग पहेली-२०७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपने विचार यहाँ लिखें |
|
साहित्य एवं
संस्कृति
में- दीपावली के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है मारीशस से
कुंती मुकर्जी की कहानी-
सोने का रथ
सोनलता
आँखें मींचती हुई आयी और अपनी माँ से कहने लगी-
“आज मैंने फिर वही सपना देखा।”
सोनलता की माँ प्रेमलता ध्यानमग्न होकर सूर्य को अर्घ्य दे रही
थी। तुलसी के चौतरे पर घी का दिया जल रहा था और धूप बत्ती की
सुगंध से वातावरण सात्विक बना हुआ था। सुबह के छः बजे थे। हवा
में हल्की ठंडक अब भी थी और प्रेमलता एक झीनी साड़ी में लिपटी
कोई मंत्र बुदबुदा रही थी।
“आज भी माँ मेरी बात नहीं सुनेगी” सोनलता कोई बाधा दिये बिना
अपने कमरे में लौट आयी और मन ही मन कहने लगी- “ऐसी भी कोई
ज़िंदगी होती है।” वह सोलह साल की हो
गयी थी और अब वह अपने लिये एक विस्तृत आकाश चाहती थी। उसने
अपने कमरे की खिड़की खोल दी और आकाश की ओर देखने लगी। नीले
आसमान में सफ़ेद सफ़ेद कुछेक बादल के टुकड़े फैले थे, समुद्र की
लहरों पर सूर्य की स्वर्णिम किरणें अधखेलियाँ करने लगी थीं, वह
समझ गयी कि आज का दिन सुहाना होगा। वह कुछ और सोचती कि उसने
अपनी माँ को रसोईघर की ओर जाते देखा। वह गहरी सोच में पड़ गयी।
आगे-
*
अफसर खाँ सागर का व्यंग्य
कैटल क्लास की दीवाली
*
शोभाकांत झा का
ललित निबंध-
रामराज्य
*
डॉ. राजनाथ त्रिपाठी का आलेख
सीता
का निर्वासन- देश और विदेश में
*
पुनर्पाठ में चिरंतन का आलेख
दीपोत्सव के
प्रारंभ का इतिहास |
अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
प्रमोद यादव की लघुकथा
अदृश्य आँखें
*
डॉ. अशोक उदयवाल से
स्वाद और स्वास्थ्य में-
एक अनार सौ उपकार
*
सुरेश कुमार पण्डा का ललित निबंध
उदास चाँदनी
*
पुनर्पाठ में सुप्रिया से जानें
शरदऋतु वस्तुतः पर्वों की ऋतु
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
पावन की कहानी-
पुराना अलबम
‘इस लड़के से मेरे रिश्ते की बात चली थी।’, ये वाक्य हम दोनों
ने ही आगे पीछे कहा था। पुराना अलबम बड़ा खतरनाक होता है। वह उन रगों पर हाथ रख देता है
जो कभी दुख रही होती थीं। हालाँकि
बाद में वे उस दुख को जीवित तो नहीं करतीं पर एक टीस जरूर दे
जाती हैं और अतीत की घटना को वर्तमान में ले आती हैं।
अलबम के इस फोटो से ही बात शुरू करती हूँ। भाई का
रिसेप्शन था जिसमें प्रतीक अपनी बहन के साथ आया था। उसकी बहन
सौम्या मेरी प्यारी सहेली। फोटो में मेरी बड़ी बहन कल्पना और
प्रतीक साथ खड़े हैं। उसके चेहरे पर एक सकुचाई हुई मुस्कराहट है
और कल्पना के चेहरे पर छेड़ने का भाव। तब सौम्या के अलावा सिर्फ
वही जानती थी कि मेरे और उसके बीच कोई ताना बाना बुना जा रहा
है। ये अठ्ठारह साल पहले की बात है। आज भाई की शादी का अलबम
देखते समय उसका फोटो सामने आ गया तो मीरा ने चौंकते हुए पूछा
था, ‘ये कौन है?’ अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया, ‘ये प्रतीक
है, इस लड़के से मेरे रिश्ते की बात चली थी।
आगे- |
अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
|