अनार का वृक्ष
प्रायः ८ अथवा १० फुट से अधिक ऊँचा नहीं होता।
इसकी पत्तियाँ छोटी तथा हरी होती हैं। फूल पीले,
लाल व कुछ पौधों के फूल सफेद होते हैं। प्रतिरोपण
के लगभग चार वर्ष पश्चात् अनार फल देना आरम्भ कर
देता है। सितम्बर से फरवरी माह के मध्य अधिक फल
लगते हैं। मृदु दानों वाले अनार को बेदाना अनार
कहा जाता है। बेदाना अनार सब अनारों में उत्तम
होता है। इस पर शोध करके केन्द्रीस मरु क्षेत्र
अनुसंधान संस्थान, जोधपुर ने बेदाना अनार की खेती
को शुष्क क्षेत्र में प्रोत्साहित किया है। यह
पर्याप्त सूखा सह सकता है, किन्तु सिंचित अवस्था
में ही भली भाँति फूलता-फलता है।
विभिन्न भाषाओं में-
इसे संस्कृत में दाड़िम, करक, पिण्डपुष्प, शूक
वल्लभ, कन्नड़ भाषा में दाड़िम्ब, गुजराती में दाड़म
तथा वनस्पतिशास्त्र में प्यूनिका ग्रेनेटम कहा
जाता है। यह छोटा वृक्ष ईरान, अफगानिस्तान और
बलूचिस्तान की पथरीली जमीन में जंगली तौर से पैदा
होता है और भारत में प्रायः सभी जगह लगता है। अन्य
राज्यों के अलावा कर्नाटक राज्य में टुमकुर,
कोलार, बंगलौर और मैसूर जिलों में इसकी खेती अधिक
होती है।
रासायनिक तत्व-
१०० ग्राम अनार में नमी- ७८.० ग्राम, प्रोटीन- १.६
ग्राम, वसा-०.१ ग्राम, रेशा- ५.१ ग्राम कार्बोज-
१४.५ ग्राम, कैल्शियम- १० मि.ग्रा., फॉस्फोरस- ७०
मि.ग्रा., लौहतत्व- १०८ मि.ग्रा., थायेमीन-०.०६
मि.ग्रा., राइबोफ्लेविन- ०.१ मि.ग्रा. नियासिन-०.३
मि.ग्रा. विटामिन सी-१६ मि.ग्रा. ऊर्जा-६५ कि.
कैलोरी।
आयुर्वेदमतानुसार-
आयुर्वेदिक मतानुसार अनार तीन प्रकार का होता है।
एक मीठा, दूसरा खट-मीठा और तीसरा केवल खट्टा। मीठा
अनार-त्रिदोषनाशक, तृष्णा दाह, ज्वर, हृदय रोग,
काण्ड रोग और मुख दुर्गध को दूर करने वाला,
तृप्तिकारक, वीर्य वर्द्धक, हल्का, किंचित कसैला,
मलरोधक, स्निग्ध, मेधाजनक और बलवर्द्धक होता है।
खट-मीठा अनार दीपन, रुचिकारक और किंचित पित्तकारक
होता है। खट्टा अनार-पित्तकारक, वात और कफ नाशक
है।
इसकी छाल और जड़ें,
वायु नलियों के प्रदाह में उपयोगी तथा अतिसार को
रोकने वाली और कृमि नाशक हैं। इसके फूल नाक से
बहने वाले खून को रोकने में समर्थ होते हैं। इसका
कच्चा फल पौष्टिक, पाचक, क्षुधावर्धक, पित्तकारक
और वमन को रोकने वाला है। इसका पका हुआ फल
पौष्टिक, आँतों को सिकोड़ने वाला, कामोद्दीपक,
पित्तनाशक और त्रिदोष का नाश करने वाला है। प्यास,
शरीर की जलन, बुखार, हृदय रोग, गले की बीमारियों
और मुख की सूजन में भी इसका पका फल उपयोगी है।
इसके फल का छिलका कृमिनाशक, रक्तातिसार और खाँसी
में लाभदायक है। सूखी खाँसी में अनार का सूखा
छिलका चबाने से अत्यधिक आराम मिलता है।
यूनानी मतानुसार-
यूनानी चिकित्सा के मतानुसार मीठा अनार पहले दर्जे
में सर्द और तर है। खट्टा अनार दूसरे दर्जे में
सर्द और रुक्ष है। खट-मीठा अनार पहले दर्जे में
सर्द और तर है। अनार के बीज पहले दर्जे में सर्द
तर हैं। मीठा अनार खून को बढ़ाने वाला, रसक्रिया को
व्यवस्थित रखने वाला, मूत्र निस्सारक, पेट को
मुलायम करने वाला, यकृत को शांति प्रदान करने
वाला, कामोद्दीपक तथा कामेन्द्रियों को बल प्रदान
करने वाला है। खट-मीठा अनार पैत्तिकवमन, अतिसार और
खुजली में लाभ पहुँचाने वाला, आमाशय को बल प्रदान
करने वाला एवं हिचकी को नष्ट करने वाला है। खट्टा
अनार सीने की जलन तथा आमाशय और यकृत की गर्मी को
शान्त करने वाला तथा खून के प्रकोप, ज्वरजन्य
अतिसार और वमन में लाभदायक है। तीनों प्रकार के
अनार मूर्च्छा में लाभ पहुँचाने वाले, हृदय को बल
देने वाले और खाँसी को नष्ट करने वाले होते हैं।
कुछ
घरेलू प्रयोग-
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अनार के फल के
छिलके को मुँह में रखकर उसका रस चूसने से
खाँसी में लाभ होता है।
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कुटज और अनार के
वृक्ष की छाल, इन दोनों का काढ़ा बनाकर शहद के
साथ देने से दुर्दमनीय अतिसार में शीघ्र लाभ
मिलता है। |
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अनार के वृक्ष
की छाल के काढ़े में सोंठ का चूर्ण मिलाकर
पिलाने से बवासीर में बहता हुआ खून बन्द होता
है। |
६
अक्तूबर २०१४