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घर-परिवारगपशप


प्रकृति प्रेम के साथ दिवाली
—अर्बुदा ओहरी 

साल भर से जिस महत्त्वपूर्ण त्योहार का इंतज़ार रहता है वह अब आने ही वाला है। त्योहारों के इस पूरे महीने में हर जगह धूम रहती है। बाज़ार-दूकानें, गलियाँ-चौबारे, घर-आँगन सभी सजे रहते हैं। रौनक से भरा यह त्योहार रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ मिल कर मनाने से और भी मज़ेदार बन जाता है। पर यह मज़ा पर्यावरण को शुभता प्रदान करे और प्रदूषण कम से कम हो इसका ध्यान रखना भी आवश्यक है।

मिलकर काम करने का आनंद

दीपावली की शाम सबसे आकर्षक काम पटाखे छोड़ना होता है। बच्चे भी शाम होने की राह तकते रहते हैं। माता-पिता भी दिल खोल कर पटाखों पर खर्चा करते हैं। पल भर की खुशी जो पटाखों से मिलती है उसे लंबा और यादगार बनाया जा सकता है अगर इसे दिखावे के स्थान पर संगठन के सुख में बदला जा सके। पूजा के बाद अपने दोस्तों को घर बुला लें या फिर किसी समीपस्थ मैदान में सभी मिलजुल कर पटाखे छोड़ें। इससे कम पटाखों में ज़्यादा देर तक मनोरंजन का  मज़ा तो मिलेगा ही, मिलकर काम करने का आनंद भी आएगा।

प्रदूषण
को अलविदा

पटाखे दीपावली में पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण होते हैं। इनमें लेड, मेग्नीशियम, ज़िंक, केडियम जैसे कई ज़हरीले पदार्थ होते हैं जो पर्यावरण के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक होते हैं। इनमें से कई रसायन वातावरण में बहुत लम्बे समय तक बने रहते हैं। पटाखों से निकलने वाला धुआँ दमे के मरीजों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। खुशियों भरे त्यौहार का सच्चा आनन्द तभी उठाया जा सकता है जब अपने अतिरिक्त अपने आस-पास के लोगों का भी ख़याल रखा जाए। बाज़ार में इको फ्रेंडली अन्य चीज़ों के साथ इको फ्रेंडली पटाखे भी नज़र आएँगे, हालांकि इनका दाम थोड़ा अधिक है। पटाखे थोड़े कम भले ही हों पर हवा प्रदूषित न करें इसका ध्यान रखना ज़रूरी है। हवा के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण का भी ध्यान रखना चाहिए। तेज आवाज वाले पटाखे बहुत से लोगों को पसंद होते हैं लेकिन ये हमारे काम को नुक्सान भी पहुँचा सकते हैं। एक सामान्य कान के लिए ६० डेसीबल तक की आवाज ही सही होती है। इससे अधिक तेज़ आवाज सुनने से हम बहरे हो सकते हैं! इसलिए दीपावली पर तेज आवाज वाले पटाखों से बचें और ध्यान रखें कि किसी बच्चे, जानवर या अस्वस्थ व्यक्ति को इनसे तकलीफ़ न पहुँचे। सुरक्षा का सबसे अधिक ध्यान रखें।

बिजली का संरक्षण

कुछ वर्ष पहले तक दीपावली पर तेल के दीयों से घर सजाने का प्रचलन था। आज इनका स्थान बिजली की बल्बों ने ले लिया है। घर, मॉल, दुकान, सड़क सभी जगह बजली की सजावट ही दिखाई देती हैं। दिखावे में लाखों यूनिट बिजली यूँ ही बर्बाद हो जाती है, जबकि अभी भी भारत में कई ऐसे गाँव हैं, जहाँ आज तक बिजली नहीं पहुँची है। दीपावली का शाब्दिक अर्थ है दीपों की अवली अर्थात पंक्ति। दीवाली की रात ढेर से दीये जलाएँ। उनकी जगमग रौशनी बहुत लुभावनी लगती है। दीवाली की रात हम लक्ष्मी का इंतज़ार करते हैं, उनका आगमन हमारे घर में हो इसके लिए ढेरों तैयारियाँ करते हैं परंतु दीवाली की रात हम भूल जाते हैं कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू है और उल्लू रात में ही सैर को निकलता है।  ज़्यादा रौशनी और शोर में उल्लू नहीं जा सकता। इस बात को सोचें, ख्याल रखें और सारी रात रौशनी जलाकर लक्ष्मी के आगमन के द्वार बंद न करें। रात ग्यारह-बारह बजे के बाद सारी बत्तियाँ बंद कर दें, यकीन करें आपके घर में तो लक्ष्मी जी आएँगी ही साथ ही हमारे देश में भी लक्ष्मी जी की कृपा होगी।

संस्कृति और संस्कार

दीवाली केवल सजावट और धूमधाम में ही न बिता दें। अपनी संस्कृति के पौधे को भी सींचें। साहित्य और संस्कार से जुड़ने के यही तो अवसर होते हैं। त्योहार के आयोजन का रंग-ढंग थोड़ा बदल दिया जाए तो अपने देश से दूर रहनेवाले लोग भी संस्कारों के आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं। सारे दिन खरीदारी और फिल्मी गानों पर बच्चों को नचाने की बजाय उन्हें अल्पना या रंगोली बनाना सिखाएँ, उनके साथ मिलकर तोरण और कंदील बनाएँ, घर सजाएँ। राम की कहानी सुनाएँ, दीपमंत्र सिखाएँ, लक्ष्मी-स्तुति बोलने का अभ्यास करवाएँ या गणेश वंदना याद करवा दें। टीका लगाना, दीप जलाना, बड़ों के चरणस्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेना, आरती लेना आदि सीखने के यही अवसर होते हैं। आज के व्यस्त जीवन में रोज तो इनका समय मिलता नहीं। इन्हें प्रमुख पर्वों पर दोहराएँ, ये जीवन भर उनके साथ रहकर उनका मार्ग प्रशस्त करेंगे।

उपहारों में समझदारी

दीवाली पर ढेरों उपहारों का लेनदेन होता है। अनेक उपहार ऐसे होते हैं जो किसी काम नहीं आते। उपहार खरीदते समय जिसको उपहार देना है उसकी पसंद का ध्यान रखें। केवल दिखावे के लिए उपहार न खरीदें, उसकी उपयोगिता के विषय में भी सोचें। हो सके तो ऐसी किसी वस्तु को उपहार में न खरीदें जिसे रिसाइकिल नही किया जा सकता, जैसे- प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी मूर्तियाँ, पॉलीथीन से बने उपहार, स्टफ्स आदि। इन्हें एक बार उपयोग के बाद फेंक देना होता है, ये हवा पानी और मिट्टी के साथ मिलकर उसका हिस्सा नहीं बनते और वर्षो तक पृथ्वी पर कचरे के रूप में पड़े प्रदूषण का ढेर बन जाते हैं। इसलिए पूरी कोशिश करें कि उपहार खरीनने से पहले दो बार सोचें। ज़रूरी हो तभी खरीदें और रिसाइकल के योग्य हो इसका ध्यान रखे। घर में सजावट के लिए भी प्लास्टिक के बल्बों के स्थान पर मिट्टी के दीयों को उपयोग कर सकें तो श्रेयस्कर होगा।

बचत भी संरक्षण है

त्योहारों के साथ ही आती है सेल और स्कीमों की बहार, इन दिनों अखबार विज्ञापनों से भरे रहते हैं। ऐसी बहुत सी लुभावनी चीज़ों पर स्कीम होती है कि व्यक्ति बिना ज़रूरत के भी खरीदने को विवश हो जाता है। ऐसे विज्ञापनों पर सोच समझ कर ही ध्यान दें। ऐसा सामान न खरीदें जिसकी ज़रूरत न हो। टीवी, डीवीडी प्लेयर या अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के नवीनतम मॉडल रोज ही आते रहते हैं। केवल नई के चक्कर में पैसे खर्च करना आसान तो है लेकिन बचत में सेंध भी लगा देता है। घर में कूड़ा इकट्ठा होता है सो अलग। अतः याद रखें बचत ही संरक्षण तो है ही आय भी है।

प्रकृति के पाँच नियम

कोई भी सामान खरीदने और फेंकने से पहले प्रकृति संरक्षण के इन प्रकृति प्रेम के ये नियम याद रखें –

  • कम खर्च करें- एक दर्जन कमीज़ों में काम मज़े से चल रहा है तो तेरहवीं क्यों?

  • पुनर्प्रयोग करे- अखबारों को बेचने की सुविधा नहीं तो रिसाइकिल के लिए भेजें, डिस्पोज़ेबेल का प्रयोग बंद करें।

  • पुनर्निर्माण करें- चादर पुरानी हो जाए तो झाड़न बना लें, पुराने परिधानों को नए डिज़ाइन में ढालें।

  • इन्कार करें - क्या इस चीज़ की मुझे सचमुच ज़रूरत है? या सिर्फ इसलिए खरीदना है कि अच्छी लग रही है?

  • खर्चने से पहले दुबारा सोचें- बचत में सुख है, बचत में सुरक्षा है, निवेश भी ज़रूरी है।

  • धरती, आकाश, पृथ्वी, हवा और अग्नि को प्रदूषित करने वाला कोई काम न करें। ये जीवन के आवश्यक तत्त्व हैं। इनका संरक्षण करें।

इस बार दीपावली के त्योहार पर सबका दिल से ख़्याल रखें। अपनापन बहुत से उपहारों से अधिक मूल्यवान होता है। ज़रा सी समझदारी किसी भी पर्व आनंददायक और चिरस्मरणीय बना सकती है, अपनी ओर से कोई कसर न छोड़ें। दीपावली को परम्परागत तरीके से मनाएँ। त्योहार और रीति-रिवाज़ हमारे संस्कार और हमारी थाती हैं, इनका आशीर्वाद परिवार में बनाए रखें।  सभी को दीपावली के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

५ अक्तूबर २००९ २० अक्तूबर २०१४

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