इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अनेक विधआओं में देशभक्ति से भरपूर कविताओं का नया
संग्रह। |
कलम गही
नहिं हाथ में- अभिव्यक्ति के चौदहवें जन्मदिवस के अवसर पर नवगीत के लिये
एक विशेष पुरस्कार की घोषणा।
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- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
इस माह स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में विशेष व्यंजन-
तिरंगा पुलाव। |
गपशप के अंतर्गत- स्वतंत्रता दिवस हो और वंदेमातरम की बात न हो यह कैसे हो सकता है? आइये विस्तार से
जानें-
वंदेमातरम
की रचना... |
जीवन शैली में-
शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी
आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं।
१४
प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- ८
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सप्ताह का विचार में-
सारा जगत स्वतंत्रता के लिए
लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता
है। - श्री अरविंद |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
कि आज
के दिन
(११ अगस्त-को)
कवि गोपाल सिंह नेपाली, अभिनेता सुनील शेट्टी, अभिनेत्री जेसी रंधावा
और जैक्लीन फर्नांडेज ...
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धारावाहिक में-
लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और
प्रेरक वक्ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व अपार साहस से
भरपूर आत्मकथा- अंतिम विजय। |
वर्ग पहेली-१९७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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पढ़ें |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
भारत से डॉ सुधा पांडेय की पुराण
कथा
इंद्र की स्वराज कामना
वर्षा ऋतु का समय था, आकाश घने मेघों से आच्छन्न। सायंकाल होते
ही पर्वतों और घने कांतार की वृक्षावलियों में अंधकार छाने
लगा। दैदीप्यमान सूर्य की लोकित प्रभायुक्त सुढ़ह देहयष्टि,
आजानुबाहु एक व्यक्ति पगडंडी पर अपने विचारों में लीन मंदगति
से चला जा रहा था। मुख किंचित अवसाद से मलिन किंतु दृढ़वती
अस्तित्वयुक्त वह युवक अंतरिक्ष और द्युलोक सभी को अभिभूत कर
रहा था, उसकी व्याप्ति का अंत न तो द्युलोक पा सकता था, न
पृथिवी और न ही कोई अन्य लोक ! उसके दृढ़व्रत का अनुकरण करने को
द्यावा पृथ्वी, वरुण, सूर्य और नदियाँ भी तत्पर रहती थीं।
चलते-चलते युवक पथ में अचानक क्षणभर ठिठक गया, समीप के गुल्म
से कोई आहट आयी....युवक ने अपना खड्ग संभाला ही था कि उसके
सामने धम से कूदने की आवाज हुई।
कहीं कोई वन्य जीव या असुर तो नहीं ? इस आशंका से युवक संभलता,
तभी उसने देखा विपत्ति कुछ भी नहीं थी, सामने मुस्कराती शची
विद्यमान थी। आगे-
*
आचार्य संजीव सलिल की
लघुकथा- स्वजनतंत्र
*
अशोक शुक्ला का आलेख
स्वतंत्रता
सेनानी मदारी पासी
*
अमरेश बहादुर अमरेश की कलम से
एक और जलियाँवाला- मुंशीगंज
गोलीकांड
*
शशि पाधा का संस्मरण
शांतिदूत |
अभिव्यक्ति समूह
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अशोक गौतम का व्यंग्य
एक गधे से मुलाकात
*
विनोद
मिश्र सुरमणि का आलेख
लोक - फ़ोक और बुंदेलखंड का स्वांग
*
डॉ. डी.एन. तिवारी की कलम से
नगरवानिकी एवं पर्यावरण
*
पुनर्पाठ में- लता मंगेशकर का संस्मरण
पापा (पं. नरेन्द्र शर्मा)
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से कृष्णा अग्निहोत्री की कहानी-
मी अंजनाबाई देशमुख अहे
उसने बड़बड़ाते हुए अपनी झुकी कमर को कुछ
सीधा करने का प्रयास किया और लाठी पर पूरा वजन डाल अपने घर से
बाहर निकली। अचानक बगल की गली से एक छोटा-सा पत्थर का टुकड़ा
आया और उसकी पीठ पर तेजी से लगा। ‘‘कौन है रे ?’’ हलसी-सी
सिसकारी लेती वह घर के सामने वाली मिट्टी की ओसारी पर लाठी
टिका बैठ गयी। सिसकारी सुनकर बगल से एक लहँगा-चूनरी ओढ़े
नवयुवती झाँकी।
‘‘अम्मा, क्या हुआ ?’’
‘‘क्या होयेंगा री- जानबूझकर सताते हैं।’’ कहकर वह लाठी टेकती
चलने लगी। रुकती-चलती उसने रेलवे फाटक पार कर लिया और एक बड़े
दोमंजले मकान के सामने खड़ी होकर हाँफने लगी। गेट उसने खटखटाया
तो अंदर से एक गोरी-सुंदर स्त्री ने खिड़की से झाँका। उसकी झुकी
कमर की झलक देखते ही कहा, ‘‘आगे जाओ।’’ उसने जैसे-तैसे गेट
खोला। डपटकर डाँटने को तैयार मकान-मालकिन के हाथ में तपाक से
एक कागज का पुरजा थमा, वह बोली, ‘‘मी भिखारन
नाको--मी
तो अंजना देशमुख अहे।’’... आगे- |
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