समकालीन
कहानियों में यू.एस.ए. से
इला प्रसाद
की कहानी
भारत
का वीजा
“देखिये, हम
कुछ नहीं कर सकते। आपके कागजात पूरे नहीं हैं, आपका वीजा नहीं
हो सकता।“ भारतीय वाणिज्य दूतावास की खिड़की पर बैठी महिला ने
फिर से वही रटा-रटाया वाक्य दुहराया और अगले नम्बर के लिये
घंटी बजा दी। खिडकी के ठीक ऊपर लगा बोर्ड लाल रंगों में अगला
नम्बर दिखाने लगा। शुभेन्दु के पीछे खड़े लोग अकुलाने लगे कि वह
हटे तो उनकी बारी आये। पिछले दो
दिनों से, सुबह-शाम इस खिड़की पर हाजिरी लगाते-लगाते शुभेन्दु
बौखला चुका था। माँ की मौत पर कायदे से रो भी नहीं पा रहा। हर
क्षण यह अहसास कि कलकत्ते में, गरियाहाट वाले घर में, माँ की
लाश पड़ी है, उसके द्वारा मुखाग्नि दिये जाने की प्रतीक्षा में
और यहाँ वीजा कार्यालय के नखरे!
“मैडम, आप समझती क्यों नहीं, मैं पिछले बीस साल से अमेरिका का
नागरिक हूँ। मुझे याद भी नहीं कि मेरा पुराना भारत का पासपोर्ट
कहाँ है। आप बीस साल बाद भारत का पुराना पासपोर्ट माँग रहे हैं
मुझसे, कहाँ से लाऊँ मैं?” “देखिये सर, ये नियम दिल्ली से आते
हैं। हमें इनका अनुपालन करना है। हम आपको उसके बिना भारत का
वीजा नहीं दे सकते।“
...आगे-
*
अरविन्द मिश्र का व्यंग्य
विश्वस्त हैं विश्वासघाती
*
श्याम सुंदर दुबे का ललित निबंध
मेरा सच कभी पटरी पर नहीं आता
*
दिवंगत रचनाकार को शेरजंग गर्ग
की श्रद्धांजलि
शिवबहादुर
सिंह भदौरिया: नदी का बहना मुझमें हो
*
पुनर्पाठ में- अश्विन गाँधी का
संस्मरण- एक महल हो सोने का |