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१९. ८. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में- शिवबहादुर सिंह भदौरिया, मेघ सिंह मेघ, अनिलप्रभा कुमार, स्वाती भालोटिया और आरती पाल बघेल की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत ब्रेड के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है- ब्रेड पोहा

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- दिल की बातें और छोटा सा पिन

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- मोटर की सवारी।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-२९ विषय- मेरा देश के लिये प्राप्त रचनाओं का प्रकाशन शुरू हो गया है। टिप्पणी लिखने के लिये यहाँ देखें।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है ९ दिसंबर २००६ को प्रकाशित नरेन्द्र मौर्य की कहानी— इच्छामृत्यु

वर्ग पहेली-१४७
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-  

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
इला प्रसाद की कहानी भारत का वीजा

“देखिये, हम कुछ नहीं कर सकते। आपके कागजात पूरे नहीं हैं, आपका वीजा नहीं हो सकता।“ भारतीय वाणिज्य दूतावास की खिड़की पर बैठी महिला ने फिर से वही रटा-रटाया वाक्य दुहराया और अगले नम्बर के लिये घंटी बजा दी। खिडकी के ठीक ऊपर लगा बोर्ड लाल रंगों में अगला नम्बर दिखाने लगा। शुभेन्दु के पीछे खड़े लोग अकुलाने लगे कि वह हटे तो उनकी बारी आये। पिछले दो दिनों से, सुबह-शाम इस खिड़की पर हाजिरी लगाते-लगाते शुभेन्दु बौखला चुका था। माँ की मौत पर कायदे से रो भी नहीं पा रहा। हर क्षण यह अहसास कि कलकत्ते में, गरियाहाट वाले घर में, माँ की लाश पड़ी है, उसके द्वारा मुखाग्नि दिये जाने की प्रतीक्षा में और यहाँ वीजा कार्यालय के नखरे!
“मैडम, आप समझती क्यों नहीं, मैं पिछले बीस साल से अमेरिका का नागरिक हूँ। मुझे याद भी नहीं कि मेरा पुराना भारत का पासपोर्ट कहाँ है। आप बीस साल बाद भारत का पुराना पासपोर्ट माँग रहे हैं मुझसे, कहाँ से लाऊँ मैं?” “देखिये सर, ये नियम दिल्ली से आते हैं। हमें इनका अनुपालन करना है। हम आपको उसके बिना भारत का वीजा नहीं दे सकते।“ ...आगे-

*

अरविन्द मिश्र का व्यंग्य
विश्वस्त हैं विश्वासघाती
*

श्याम सुंदर दुबे का ललित निबंध
मेरा सच कभी पटरी पर नहीं आता
*

दिवंगत रचनाकार को शेरजंग गर्ग की श्रद्धांजलि
 शिवबहादुर सिंह भदौरिया: नदी का बहना मुझमें हो
*

पुनर्पाठ में- अश्विन गाँधी का
संस्मरण- एक महल हो सोने का

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पिछले सप्ताह- स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर


संकलित बोध-कथा
पिंजरे का तोता
*

अनीता महेचा का आलेख
स्वतंत्रता के पुजारी- महाराणा प्रताप
*

भजन लाल महाबिया की कलम से
राष्ट्र चेतना और आल्हा का व्यक्तित्व
*

पुनर्पाठ में- तारकेश्वरी सिन्हा से संवाद
संसद में नहीं हूँ झख मार रही हूँ
*

समकालीन कहानियों में भारत से हेमंत जोशी
की कहानी अनास नदी क्यों सूख गई

असीम राय निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन में मदन मोहन शर्मा का बेताबी से इंतज़ार कर रहा था। रात के दस बज कर दस मिनट हो चुके थे और इंदौर एक्सप्रेस निकलने में अब कोई पाँच मिनिट बचे थे। अचानक सीढ़ियों से भागते हुए उतरता मदन उसके पास आ पहुँचा। वह हाँफ रहा था लेकिन सिगरेट तब भी हाथ में थी।
एई दादा, अपना डिब्बा किधर है?
यही सामने वाला है। यह भी कोई समय है आने का? असीम गुस्से में भी था और आश्वस्त भी हो चुका था।
सामान रखते-रखते गाड़ी चल पड़ी थी। दोनो सहकर्मी अपनी-अपनी बर्थ पर चादर बिछा कर बैठ चुके थे। असीम अपनी उत्सुकता को ज़्यादा देर तक रोक नहीं पाया। एई बताओ मदन कि झाबुआ जैसी पिछड़ी जगह जाने के लिए तुम उतना ज़ोर क्यों लगाया?
उधर हमारा दूसरा बीबी रहता।
ओरी बाबा! तुम तो छुपा रुस्तम रे। आज तक किसी को बताया नहीं।...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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