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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
संकलित बोधकथा- पिंजरे का तोता


एक गाँव में एक व्यक्ति अपने तोते के साथ रहता था, एक बार जब वह व्यक्ति किसी कार्य से दूसरे गाँव जा रहा था, तो उसके तोते ने उससे कहा – स्वामी, जहाँ आप जा रहे हैं वहाँ मेरा गुरु-तोता रहता है. उसके लिए मेरा एक संदेश ले जाएँगे?

क्यों नहीं! – उस व्यक्ति ने उत्तर दिया।
तोते ने कहा मेरा संदेश है-: 'स्वाधीनता की वायु में साँस लेने वालों के नाम एक बंदी तोते का प्रणाम।'
वह व्यक्ति दूसरे गाँव पहुँचा और वहाँ उस गुरु-तोते को अपने प्रिय तोते का संदेश बताया, संदेश सुनकर गुरु-तोता तड़पा, फड़फड़ाया और मर गया।

जब वह व्यक्ति अपना कार्य समाप्त कर पुनः घर आया, तो उस तोते ने पूछा कि क्या उसका संदेश गुरु-तोते तक पहुँच गया था, व्यक्ति ने तोते को पूरी कथा बताई कि कैसे उसका संदेश सुनकर उसका गुरु तोता तत्काल मर गया था।
यह बात सुनकर वह तोता भी तड़पा, फड़फड़ाया और मर गया।

उस व्यक्ति ने बुझे मन से तोते को पिंजरे से बाहर निकाला और उसका दाह-संस्कार करने के लिए ले जाने लगा, जैसे ही उस व्यक्ति का ध्यान थोड़ा भंग हुआ, वह तोता तुरंत उड़ गया और जाते जाते उसने अपने स्वामी को बताया – "मेरे गुरु-तोते ने मुझे संदेश भेजा था कि यदि शीघ्र स्वतंत्रता चाहते हो तो पहले मरना सीखो। "

बस आज का यही सन्देश कि यदि वास्तव में वास्तविक स्वाधीनता की वायु में साँस लेना चाहते हो तो उसके लिए निर्भय होकर मरना सीख लो!
क्योंकि साहस की कमी ही हमें झूठे और बनावटी जीवन के पिंजरे में कैद कर के रखती है।"
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१२ अगस्त २०१३

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