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पुरालेख
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कहानियों में मजबूरी तो इंग्लैंड आना भी थी। लेकिन यह मजबूरी बिछड़ने की नहीं, मिलने की थी, साथ रहने की थी। पत्नी की मृत्यु के बाद का अकेलापन, किसी अपने के साथ रहने की चाह और इकलौता पुत्र। यही सब गोपालदास जी को लंदन ले आया था। बेटी विवाह के बाद अमरीका में है और बेटा इंग्लैंड – बेचारे गोपालदास जी अकेले फरीदाबाद में अपनी बड़ी सी कोठी में कमरे गिनते रहते। अधिकतर रिश्तेदार दिल्ली में। अब तो फरीदाबाद से दिल्ली जाने में भी शरीर नाराज़गी ज़ाहिर करने लगता था। ऐसे में ज़ाहिर सी बात है कि इंद्रेश ने अपने पिता की एक नहीं सुनी और उन्हें लंदन ले आया था। |
कहानियों में
"सर कभी आपने सोचा कि एक सपना होगा आपका भी, कि आपके पास खूब
सारा पैसा हो! . . .बड़ा सा बंगला हो! . . .शानदार कार हो!
भाभी के पास ढेर सारे जेवर हों! आपके बच्चे ऊंचे स्कूल में पढ़ने
जाएँ! आप लोग भी फ़ॉरेन टूर पर जाएं! यानी कि आपके पास वे सारी
सुख–सुविधाएं हों जो एक आदमी के जीवन को चैन से गुज़ारने के लिए
ज़रूरी हैं। लेकिन आप लोग मन मसोस के रह जाते हैं, क्योंकि आपके
सामने वैकल्पिक रूप में अपनी इतनी बड़ी इच्छाएं पूरी करने के लिए
कोई साधन नहीं हैं। छोटी–मोटी एजेंसी या नौकरी से यह काम कभी पूरे
नहीं होंगे– हैं न! एम आय राईट?"
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कहानियों में |
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