हास्य व्यंग्य | |
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एक कुत्ते की आत्मा
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आख़िर मुझे अपनी आवारगी से छुटकारा मिल ही गया। नाहक सड़कों पर दौड़ने, गुर्राने और भौंकने से मुक्ति मिली और स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त हुआ। अभी दो घंटे पहले तक मैं अपने भाइयों के साथ रोटी की तलाश में सड़कों पर मारा-मारा फिर रहा था। पेट की क्षुधा जब शांत नहीं हुई तो हम लोगों ने यह फ़ैसला किया कि अब किसी दूसरे इलाके में जाकर रोटी खोजनी चाहिए और उसी फ़ैसले के आलोक में हमलोग अपने गंतव्य स्थान की ओर कूच कर रहे थे। सड़क पार करते समय हमारे बाकी साथी तो बच गए परंतु मैं लाल-पीली बत्तियों वाली गाड़ियों के झुंड के चपेट में आ गया। वहीं हाथ-पैर ऊपर उठाकर टें बोल गया, सचमुच, मैं कुत्ते की मौत मरा। आप ठीक समझ रहे हैं मेरे भाई! मैं आपके ही मुहल्ले का दिन रात आपकी खुशामद करनेवाला एक कुत्ते की आत्मा हूँ। यह मेरे लिए सुखद संयोग है कि मैंने अकेले निर्वाण नहीं प्राप्त किया है, बल्कि मेरे साथ एक मंत्री महोदय भी जो पड़ोस वाली गली में रहते थे, अभी एक घंटे पहले वे अपने ही शिष्यों द्वारा दुनिया से विदा कर दिए गएँ। सही मायने में देखा जाए तो मंत्री साहब ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि थे, अपने जीवन काल में उन्होंने कई लोगों को ईश्वर के पास भेजा था। वह कुछ और लोगों को ईश्वर के पास भेजना चाहते थे, परंतु उन लोगों ने अपनी लगन, मेहनत और साधना के बल पर ईश्वरीय शक्ति पर विजय प्राप्त की और मंत्री जी को ही शरीर के बंधनों से मुक्त किया। मंत्री महोदय कई आलीशान कोठियों के मालिक थे। पड़ोस में होने के कारण मैं अक्सर उनकी कोठी के पास जाता पर अपने ही भाइयों द्वारा दुत्कार दिए जाने के कारण भीतर घुसने की इच्छा मन में ही रह जाती। आज शरीर के बंधनों से मुक्त होने के बाद उनके बंगले के भीतर घुसने की इच्छा फिर ज़ोर मारने लगी। मैं अपने आप को रोक नहीं सका और घुस ही गया उनके बंगले के अंदर। बंगले के भीतर की स्थिति बड़ी विचित्र थी। चारों तरफ़ ख़ामोशी फैली थी। लोगों का आना-जाना तो जारी था, परंतु माहौल ग़मगीन था। उनके शयन कक्ष में कुछ लोग सुबक रहे थे तो कुछ लोग मूर्तिवत खड़े थे। मंत्री महोदय का शरीर बिस्तर पर ऐंठा पड़ा था और उनकी आत्मा उनके शरीर से दो बित्ते ऊपर और सिलिंग पंखे के चार बित्ते नीचे शून्य में स्थिर होकर परिस्थितियों का विश्लेषण कर रही थी। मंत्री जी बड़े विचलित दिखाई पड़े। अपने जीवन काल में जातीय और सांप्रदायिक दंगे और सामूहिक नरसंहार जैसे यज्ञ-अनुष्ठान करवाने वाले राजनीति के शिखर पुरुष ऐसे विचलित कभी नहीं देखे गए। मंत्री पद तक पहुँचने के लिए उन्होंने कितनी कठोर साधना की है यह हम भली-भाँति जानते थे। यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि पहले वह साधारण 'जेबकतरा' थे। पहले मुहल्ले में जेबें काटने का धंधा किया करते थे, बाद के दिनों में पुलिस-प्रशासन के अपेक्षित सहयोग से पूरे जिले में उनका धंधा चमक उठा। 'खाकी' और 'खादी' अपने-अपने हिस्से खाने के आदि हो चुके थे। फिर एक समय ऐसा भी आया जब कानून के प्रोत्साहन से उन्होंने राजनीति में कदम रखा। यहाँ भी उन्हें अप्रत्याशित सफलता मिली। योग्यता के सारे मापदंड तो वे पहले ही पूरा कर चुके थे। यकीनन कहा जा सकता है कि सड़क से संसद तक पहुँचने में 'जेबकतरी' की भूमिका प्रमुख रही। आज सारा राष्ट्र उनको श्रद्धांजलि देने के लिए उनके बंगले में समा गया था।
पक्ष-विपक्ष, साहूकार-पत्रकार, भ्रष्टाचारी-बलात्कारी जैसे महान व्यक्तित्व उन महान
आत्मा को नमन कर रहे थे। फूलों से लदे ट्रक, बैंड-बाजें, गाड़ियों की आपा-धापी,
तेज़ी से चमकते फ्लैश। श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए राष्ट्र को 'सहारा-परिवार'
की तरह एकजुट देखकर मेरा मन राष्ट्रीयता की भावना से सराबोर हो उठा। धन्य है, हमारा
देश, हमारे नेता और हम नाली में लोटने वाले पशु गण। मैं अपने विचारों में खोया था
परंतु मंत्री जी की नज़र मुझ पर पड़ गई। मुझे देखते ही वह भड़क उठे - मंत्री जी का प्रवचन सुनकर मुझे अपनी बेचारगी का एहसास होने लगा। मैंने उनकी हाँ
में हाँ मिलाते हुए कहा - "हाँ स्वामी, आप ठीक कह रहे हैं, नंगा रहना मेरा अपराध
है। आपने कितनी बार साड़ी-धोती बँटवाई, पर क्या करे, हमारी जात ही नंगी है। हमलोग
खानदानी नंगे हैं। हुज़ूर! एक तरह से देखा जाए तो हम सभी नंगे हैं क्योंकि ईश्वर ने
हम सभी को नंगा पैदा किया है। इस हम्माम में हम सभी नंगे हैं। बुरा न माने हुजूर,
आप भी नंगे हैं। फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि आप अपने 'नंगई' के कारण श्रेष्ठ
हैं और हम अपनी 'नग्नता' के कारण निकृष्ट।" मंत्री महोदय मेरी बातों से संतुष्ट नज़र आए पर मुझे आत्मग्लानि हो रही थी कि मैंने
बेवजह मंत्री जी के बंगले में आकर उन्हें दुखी किया। मैं मंत्री जी के 'स्वीट होम'
से निकलकर अपने 'स्ट्रीट होम' की तरफ़ चलने के लिए बढ़ा ही था कि एक ज़ोरदार आवाज़
आई 'ठहरो!' जी चाहा उनके चरणों पर साष्टांग लेट जाऊँ पर वह अदृश्य थे और मैं भी शरीर मुक्त।
मैंने कंपकपाती आवाज़ में पूछा -"क्या आज्ञा है प्रभु?" इतना सुनते ही मंत्री महोदय अपनी खुशी रोक नहीं पाए। हर्षित स्वर में चिल्लाकर बोले
- "धन्य हो प्रभु! आपने मेरे मन की मुराद पूरी कर दी। चुनाव को लेकर मैं चिंतित था,
आपके इस आशीर्वाद के लिए मैं सदैव आपका आभारी रहूँगा।" मेरी जब आँखें खुली तो अपने भाई-बंधुओं से घिरा पाया। खानदानी परंपरा के अनुसार
हमारे शुभचिंतकों ने चाटकर, और भौंककर, हमारे स्वागत में खुशियाँ प्रदर्शित की।
मंत्री जी के पुनर्जीवित होने पर उनके आवास पर भी जश्न मनाया जा रहा था। दूरदर्शन
ने भी खुशी ज़ाहिर करते हुए शोक संगीत की जगह गरमा-गरम पॉप परोसी। 9 दिसंबर 2005 |