मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


उपन्यास अंश

भारत से सुषमा जगमोहन के उपन्यास 'ज़िंदगी़ ईमेल' का
एक अंश 'संदेसे आते है


तनु की ई-मेल मिली। दीप को थोड़ी देर के लिए राहत भी। उसकी मेल उसे रेगिस्तान में सेहरा की तरह दिखाई देती थी। लेकिन थोड़ी ही देर में उसमें मिराज-सा बनने लगता था। धूप में दौड़ते जाओ, दौड़ते जाओ। लगता है पानी सामने ही तो है। अचानक कानों में आवाज़ आने लगी किसी के गुनगुनाने की, 'ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं'। रचना की ही आवाज़ थी। वह कंप्यूटर पर अपने काम में लगी हुई थी। ये दफ़्तर की ज़िंदगी भी अजीब है। सब लोग एक साथ होते हुए भी कितनी अलग-अलग दुनिया में हो सकते हैं, एक ही समय में।

इस समय उसे उसका गुनगुनाना अच्छा लगा। गुनगुनाओ, रचना और गुनगुनाओ, हमें कनाडा में कहाँ सुनने को मिलेगी ऐसी गुनगुनाहट। वह तनु का खत पढ़ने लगा।
आई लव यू, हाय दीप, वेरी गुड मॉर्निंग टु यू। आपके तीनों ख़त पढ़ लिए। जैसे आया हो ताज़ा हवा का झोंका। यानी फुरसत मिल ही गई।

आगे लिखा था - आज दो टैस्ट मैंने पूरे कर लिए। इस नौकरी में आठ घंटे बैठने में मज़ा आता है। रटे रटाए संवाद बोलती रही और आरक्षण करती रही। जब तक कुछ और नहीं मिलता, तब तक के लिए अच्छा है। आप देखो, आपको किसमें परेशानी कम है। नौकरी तो वो तीर है, जो छूटा तो वापस नहीं आता। इसलिए सोचना होगा कि छोड़ने के बाद बुरे से बुरा क्या हो सकता है? क्या मैं या हम उसको झेलने के लिए तैयार हैं?

एक दूसरे पर दोष लगाए या पछताए बिना। अगर हाँ, तो छोड़ दो। बच्चे ठीक से खाते नहीं। सोचती हूँ कि आपके रहने पर खाते तो ढंग से थे। आप अपने और मेरे पापा से बात करना चाहो तो कर लेना। अपना ख़याल रखना। प्यार से, तनु, मिसिंग माई डियर हस्बैंड।

संदेश पढ़ते-पढ़ते वह कब गुनगुनाने लगा था, 'दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना', उसे ख़याल ही नहीं रहा। वह सोचने लगा, बीवी बच्चों को कनाडा भेज कर खुद ही तो दुख मोल लिए हैं। तब तो बहुत लग रहा था तनु ज़िद कर रही है, रोहित, शरद कह रहे हैं, तो जाने दो न एक बार। टोरंटो जाकर अब उनका लौटना इतना आसान है क्या?

तनु ने मेल में क्या लिखा था, उसे कुछ समझ ही नहीं आया। नौकरी वाले किस्से के सिवा। उसके लिए वही अंतिम सत्य हो गया था। पापा और बाबा से डिस्कस करने को कहती है। बाबा और करण तो कभी चाहते ही नहीं थे कि वे लोग विदेश जाएँ। उनके जाने से वह ही क्यों, बाबा और करण भी तो अकेले हो गए हैं। तनु के माँ-बाप भी इस बात के खिलाफ़ थे। चार बेटे-बेटियों में एक तनु ही तो दिल्ली में थी। इकलौते साले साहब चेन्नई में बिज़नेस कर रहे हैं। दिल्ली आते हैं तो हवाई दौरे पर, दो-चार दिन के लिए ही, वह भी ज़्यादातर बिज़नेस के सिलसिले में। वह कई बार कह चुके माँ-बाप से कि चेन्नई साथ चलें लेकिन पहले ससुर जी की नौकरी का हीला-हवाला था, अब कहते हैं, वहाँ मन नहीं लगता। सासु जी कहती हैं, वहाँ घर के बाहर सब अगड़म-बगड़म बोलते हैं, कुछ समझ ही नहीं आता। गुड़गाँव के डीएलएफ में कोठी बनाई थी कभी बड़े मन से, बहू-बेटे के साथ रहेंगे। पर कभी वहाँ गए ही नहीं। वहाँ के अकेलेपन में दम घुटता था सासु जी का। इंडिया गेट से आगे उनकी दिल्ली ख़त्म हो जाती है। सासु जी को शीला पर फ़िल्म, चाँदनी चौक और कनॉट प्लेस की रौनक ज़्यादा अच्छी लगती है।

और फिर उनकी पुरानी पड़ोसिनें। उनके मुहल्ले से काफ़ी लोग छोड़-छोड़ कर साउथ दिल्ली जा चुके हैं। कई पड़ोसी भी चले गए लेकिन अभी भी यहाँ की ज़िंदगी़ उन्हें डीएलएफ के खुलेपन और अकेलेपन से कहीं बेहतर लगती है।
कहेंगी, 'अरे बात करने को कोई तो हो! अकेले तो वहाँ घर फाड़ खाने को आता है। वहाँ तो किसी की शक्ल देखने को भी तरसो। बच्चे साथ होते तो अलग बात थी।'
सो ससुर जी ने भी दिल लगाने को घर के पास ही पहाड़गंज में एक दफ़्तर लेकर प्रॉपर्टी का बिज़नेस खोल लिया था। पैसे की उनके पास कमी क्या? कहते थे, इस बहाने नियम से बाहर निकलना हो जाता है।

और सासु जी ने नीचे की मंज़िल में एक किराएदार रख लिया। किराए से ज़्यादा किराएदार की बेटी मिन्नी उन्हें प्यारी है। स्कूल से आते ही उनके पास आ जाती है। खाना-पीना-रहना यानी सोने तक का सारा काम सासु जी के सिर। कभी किसी ने कह दिया कि इसे आपने बहुत हिला लिया है तो झिड़क देती हैं, 'अरे, कल को मेरा दम निकलने लगा तो मेरे बेटे-बेटी जब तक पहुँचेंगे, तब तक तो हो लेगा मेरा काम तमाम। इसके माँ-बाप ही आएँगे वक्त पर काम। गंगाजल भी शायद इसी मिन्नी के बाप के हाथ से मिलेगा।'

दिल लगाने तो दूसरी चीज़ है शीला पर फ़िल्म। सच पूछो तो दीप ने ही डाली है उन्हें फ़िल्मों की लत। यदा कदा वहाँ के फ़िल्म प्रीमियर के पास उन्हें लाकर देता रहता है। अब उन्हें दीप से पूछने की भी ज़रूरत नहीं। हर नई फ़िल्म सबसे पहले देख लेती हैं। उन्हें पसंद है पहले दिन का शाम वाला शो और उसके बाद कनॉट प्लेस में कहीं शानदार खाना।

दीप उनसे अक्सर उनसे मज़ाक में कहा करता है, 'ममी जी, जब शीला सिनेमा का इतिहास लिखा जाएगा तो दो महान हस्तियों का नाम इसमें ज़रूर आएगा। एक तो अमिताभ बच्चन, दूसरी आप। श्रीमान अमिताभ बच्चन कॉलेज से भाग कर अक्सर शीला सिनेमा पर फ़िल्म देखा करते थे, और आप शीला सिनेमा की वजह से यह इलाका नहीं छोड़ना चाहतीं।' उस समय उनके चेहरे की चमक देखने लायक होती है।

उसे शीला पर फ़िल्म देखनी होती थी तो मान कर चलता था कि तनु का मायके जाने का दिन है। तनु और बच्चे ससुराल पहुँच जाया करते थे। उसके बाद रात तक धमाल। सास-ससुर दोनों का दिल बहला रहता था। काफ़ी समझाया था उन्होंने भी तनु को। तनु ने किसी की नहीं सुनी।

---

उसने तनु को छोटा-सा मेल भेजा।
बेबी, बच्चों की पढ़ाई पूरी होते-होते तो काफ़ी साल हो जाएँगे। तब तक क्या हमें अलग ही रहना पड़ेगा? बच्चों के सिर पर शायद माँ और बाप दोनों का साया होना चाहिए। जहाँ तक नौकरी छोड़ने की बात है तो पछताने का सवाल ही नहीं उठता, वहीं रहना है तुम्हें तो। या फिर कहो कि तुम जल्दी वापस आ रही हो। तुम ठीक से सोचो, फिर लिखो। मैं इंतज़ार कर रहा हूँ। दीप।

--

लौटती मेल से तनु का जबाब मिला। आप बिलकुल ठीक सोचते हैं। मुझे भी लग रहा है कि जब से नियमित नौकरी कर रही हूँ, बच्चे उपेक्षित हो रहे हैं। खाते नहीं ठीक से। क्या पढ़ते हैं, पता नहीं? मैं भी डर रही हूँ कि क्या लंबे समय तक ऐसे रहा जा सकता है। नहीं।

:१५

क्या आज काम पर नहीं जाना? वो लिफ़ाफ़े भेजने वाला घर बैठे ही अच्छा काम है। अगर तुम्हें वो मिल जाता है तो मैं आकर शुरू में वही काम घर बैठकर कर सकता हूँ।

फिर आई लव यू से शुरू तनु का एक खत। उसे काफ़ी समय से खोजा जा रहा था। तुम कहाँ हो? कोई जवाब नहीं। मैं इंतज़ार में हूँ। बच्चों के स्कूल जाने के बाद जाऊँगी। काउंसलर के पास कीले एंड फिंच, वहाँ से लॉरेंस १२ बजे दोपहर में पहुँचूँगी। कल एक फ़ोन आया था साउथ एशियन विमेन सेंटर से। बहुत पहले आवेदन किया था। रोहित ने नोट किया था। आज फ़ोन करूँगी कि क्या बात है?
फिर एक घंटे के बाद,
हाय दीप, मैंने भी सोचा है कि पोस्टिंग वाला काम अगर मिलता है तो सबसे अच्छा है। घर पर जब समय हो, किसी को भी, तो कर सकते हैं। देवी माँ मदद ज़रूर करेंगी। हम एक कदम बढ़ाते हैं तो वह हमें दस कदम आगे भेजती है। मेरे पापा ने लिखा था कि ममी टोरंटो आने की सोच रही हैं। मैंने लिख दिया कि दोनों साथ आएँ, तभी अच्छा लगेगा। मुझे मालूम है कि अकेले कैसा महसूस होता है। तनु।

--

अगले दिन उसने तनु को मेल की। मैंने तुम्हारे पास भेजने के लिए अंडरवियर ले लिए हैं। पेन भी लिए हैं। ये बात बताओ कि तुम लोग यहाँ से काफ़ी पेन ले गए थे, वो क्या हुए? आज काजल वगैरह ले लूँगा। होम्योपैथी की दवाएँ भी रख रहा हूँ। जवाब के इंतज़ार में।

और इस बीच उसका मंथन शुरू हो चुका था। क्या एक्सपोर्ट चल रहा है! घड़ी, काजल, कंघी से लेकर चडड़ी बनियान तक सब कुछ यहीं से। भले ही हमें वहाँ की ज़िंदगी पसंद हो, वहाँ के कच्छे बनियान पॉकेट को सूट नहीं करते। ज़्यादातर के विदेशी अंदाज़ और विदेशी शर्ट के नीचे झाँक कर देखा जाए तो दिल और बनियान देसी ही दिखाई देगा। तनु जी को दवाइयाँ भी देसी चाहिए। और वहाँ से दिल्ली फ़ोन करके डॉक्टर से सलाह ली जाती है लेकिन रहना वहीं है। और सरकार ने इस सेवा के लिए अपने प्यारे देशवासियों को कोई पदक देने का कभी सोचा!

--

पूरी दोपहर वह बिज़ी रहा आफ़िस से बाहर। एक फ़िल्म की शूटिंग पर, शिल्पा शेट्टी की प्रेस कांफ्रेंस। शाम को जब लौटा तो ऐसा लगा, जैसे पता नहीं क्या हो गया है। अंकुर तो बाहर ही मिल गया। देखते ही बोला, तेरे ससुर जी का फ़ोन आया था।
कमरे में घुसते ही रचना ने हलो बाद में की, पहले ससुर जी का संदेश।
थोड़ी देर में रजनीश धड़धड़ाता ऑफ़िस में घुसा तो सबसे पहले उस पर नज़र पड़ते ही पहला जुमला, 'दीप, तुम्हारे ससुर. . .'
लेकिन उससे पहले ही दीप बोल पड़ा, 'जी का फ़ोन आया था। पर भई हुआ क्या है? तुम्हीं लोग बता दो। तुम्हें भी कुछ बताया हो मेरे माननीय ससुर जी ने।'
उसे अचानक डर लगने लगा, सब ठीक-ठाक तो है? इतने संदेसे क्यों?

उसने फ़ोन किया, उन्होंने इतना ही कहा, 'बेटे, घर जाने से पहले इधर से होते हुए चले जाना।'
लगता है इस तनु ने वहाँ कुछ कह वह दिया है? आज तो ससुर जी के यहाँ पेशी है, ऐसा लगता है।
राज़ ससुराल जाकर खुला। कल बाबा वहाँ गए थे। कह तो यही रहे थे कि बहुत दिन हो गए समधी-समधन से मिले, लेकिन बात कुछ और थी। ससुर जी साफ़-साफ़ कहने में कतरा रहे थे।
सासु जी कहने लगीं, 'देखो बेटे, इस उम्र में अब उनका सहारा ही कौन है। कल बड़े उदास थे बेचारे। बच्चों को याद करके खूब रो रहे थे। कह रहे थे, आजकल तुम उनका बिल्कुल ध्यान नहीं रखते हो। उनका हर्निया का ऑपरेशन होने वाला है। उनके पास पैसे कम पड़ गए हैं। कह रहे थे, तुमसे पैसे माँगे थे, तुमने इंकार कर दिया।'

इमोशन, एक्शन, ड्रामा!
हूँ, तो यह कारण था, बाबा के समध्याना प्रेम का। बाबा ने पिछले हफ़्ते उससे ज़िक्र किया था ऑपरेशन का। कहा था, 'मेरे पास ज़्यादा पैसा नहीं है। दीप, तुम १५,००० रुपए दे देना।'
वह पहले ही खुंदक में था। बाबा के पास कितना पैसा है! वो नहीं निकलना चाहिए बैंक से! बेटा ही देगा। उसे गुस्सा आ गया। मैंने कनाडा जाने के लिए पैसा माँगा तो उन्होंने एक पाई भी देने से इंकार कर दिया। अब मेरा बाल-बाल कर्जे में है, तनखा के नाम पर खाली काग़ज़ मिल रहा हैं और बाबा ऊपर से ऑपरेशन के लिए पैसा माँग रहे हैं। क्या करेंगे इस पैसे का!

'मैं एक पैसा नहीं दूँगा, बाबा। सारी ज़िम्मेदारी मेरी ही क्यों?' उसने बाबा से कह दिया था।
तो यह बाबा का ब्रह्मास्त्र है। बहुत खूब बाबा!
ससुर जी उसे समझा रहे थे। बेटे माँ-बाप का दिल दुखाना नहीं चाहिए। तुम तो अब उन्हें छोड़ कर जा रहे हो और भी पता नहीं क्या क्या? उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। एक अच्छे दामाद की तरह वह चुपचाप बैठा सब कुछ सुनता रहा। सासु जी के हाथ की कचौड़ियाँ खाता रहा और सोचता रहा, बाबा ने जो पैसा माँगा है, अब तो देना ही पड़ेगा, ससुर जी से तो कह नहीं सकता। पहले ही का देना है। वह भी तनु ने माँगा था। उन्हें देना होता तो खुद ही कह देते। अब जुगाड़ किया कहाँ से जाए?

--

अब उसका मन इस दिल्ली में बिल्कुल नहीं लग रहा। रात को भी कई बार नींद खुली। बार-बार लगता था जैसे फ़ोन बज रहा है। सुबह से सिरदर्द हो रहा था। दवा खाई, तब कुछ चैन आया। दफ़्तर आते ही तनु को खत लिखना शुरू किया। कल तुम्हारे पापा ने बुलाया था। बाबा तुम्हारे घर गए थे। उनका हर्निया का ऑपरेशन होना है। उन्हें पैसे चाहिए थे इसलिए तुम्हारे पापा से कहा कि वो मुझ से दिलवाएँ। कितना अजीब लग रहा था सास-श्वसुर से यह सब सुन कर। मैं घर गया तो पैसे माँगने लगे। मैंने कहीं से उधार ले लिए थे। १५,००० उन्हें दे दिए। एक और उधार चढ़ गया। इसलिए सिरदर्द हो गया। करण को मैंने कह दिया कि पैसे नहीं हैं तो मकान बेच दो। मुझे तो वैसे ही लोगों को देने हैं। बेबी, अगर लगता है कि वहाँ कुछ खास नहीं हो पाएगा तो लौट आओ। अब इस उम्र में क्या वहाँ लिफ़ाफ़े बनाऊँगा? मुझे आज बहुत घबराहट हो रही है।

१०:१३ पर तनु ने सुबह के ख़त का जबाब भेजा था : क्या चिंता करनी है १५,००० रुपए की। आप अपनी मन की शांति ख़रीद रहे हैं। परेशानी है तो पहले टिकट बुक करवाओ। पैसे की चिंता मत करो। यहाँ हमारा भविष्य बेहतर है। भगवान ने अभी तक साथ दिया है तो आगे भी देगा। बाबा को परेशान होने और करने की आदत है। वो बताना चाहते हैं कि हम दोनों बहुत बुरे हैं। कोई बात नहीं। चिंता नहीं लेने का, हाँ बाबू। डॉलर में यह रकम कोई ज़्यादा नहीं हैं। बेटे होने का फ़र्ज़ है। मैंने इस हफ्ते ३०० डॉलर बनाए हैं। आप पर मैंने वो डॉलर वार दिए। जाने दो, अब बिलकुल ध्यान से पता करो कितने दिन में पैसे मिलेंगे यार? कब टोरंटो के प्लेन की सीट मिलेगी? तो काम शुरू। आगे कोई भी पैसे कहें तो कह देना, बेबी भेजेगी तब ही दे सकता हूँ। आजकल पूरे हिंदुस्तान में वालंटरी रिटायरमेंट का दौर चल रहा है। तुम भी अपने ऑफ़िस में कुछ पता करो। कुछ ऐसा हो जाए तो मज़ा आ जाए। मिलते हैं फिर। आपकी तनु।

९ दिसंबर २००५

 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।