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हास्य व्यंग्य

किलर इंस्टिंक्ट यानि मारक प्रवृत्ति
- महेशचंद्र द्विवेदी


चालीस वर्ष तक विश्व मे हाकी की बेताज बादशाह बनी रही भारतीय हाकी टीम जब पाकिस्तान की टीम से लगातार हारने लगी थी, तो प्राय: सहानुभूति के साथ अंग्रेज़ीदां भारतीय दर्शक कहने लगते थे कि भारतीय टीम के खेल में तो कोई कमी नहीं है, परंतु इसमे किलर इंस्टिंक्ट लैकिंग कम है। यह सुनकर मैं ठेठ टाट-पट्टी के स्कूल मे पढ़ा हुआ आदमी काफ़ी कन्फ़्यूज़ हो जाया करता था। मैंने किलर इंस्टिंक्ट पहले न तो कभी सुनी थी और न कभी देखी थी। हाँ, मारक-मंत्र के विषय मे अवश्य सुना था कि किसी शत्रु का काम तमाम करना हो तो किसी भूत-पिशाचों पर सिद्धि-प्राप्त पुरुष से मारक मंत्र चलवा दो - फिर घर बैठे उसके तड़प-तड़प कर मरने का मज़ा लो। मैं सोचता था कि अंग्रेज़ी मे किलर इंस्टिंक्ट मारक-मंत्र को ही कहा जाता होगा, परंतु फिर संदेह होता था कि जब मारक मंत्र का आविष्कार और विकास भारत मे ही हुआ है, तो यह कैसे हो सकता है कि भारतीयों मे किलर इंस्टिंक्ट की कमी हो। फिर जब मेरे अंग्रेज़ी के ज्ञान मे कुछ वृद्धि हुई तो समझ में आया कि मारक मंत्र तो एकमात्र भारतीयों हेतु आरक्षित मंत्र-शक्ति है जो अमावस्या की घोर अंधेरी रात में किसी नए मुर्दे की कब्र पर आसन लगाकर प्रेतात्माओं का आवाहन करने से प्राप्त होती है और बिना चाकू-गोली चलाए शत्रु का सफ़ाया करने का भ्रम पालने के काम आती है, जबकि किलर इंस्टिंक्ट तो आत्मिक ज्ञान से वंचित बेचारे गोरों के मन की आस्था है जिसे प्राप्त करने के लिए उन्हें दिन रात कमर तोड़ अभ्यास करना पड़ता है।

हमारा इतिहास गवाह है कि हमारे राजे-महाराजे, सुर-असुर, और अलुए-ठलुए, अवसर हाथ में आने पर अपने शत्रुओं पर मारक-मंत्र जैसे अस्त्र का प्रयोग करने में कभी नहीं चूके हैं परंतु उन्होंने किसी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा मे अथवा विदेशियों से युद्ध में उनको पराजित करने हेतु किलर इंस्टिंक्ट के प्रयोग जैसी विदेशी तरक़ीबों से प्राय: परहेज किया है। अब अर्जुन को ही लीजिए- जब अधर्मिर्यों के विनाश हेतु युद्धरत होने का अवसर आया तो उन्हें आततायी अपने वंशज लगने लगे और उनकी किलर इंस्टिंक्ट घास चरने चली गई। वह तो भला हो भगवान कृष्ण का कि मौके पर सद्बुद्धि दे दी, नहीं तो भारत में द्वापर में ही कलियुग आ गया होता। जब अफ़गानी लुटेरे ग़जनी ने सोमनाथ पर हमला किया, तो हमने किलर इंस्टिंक्ट को अपने पर कभी हावी नहीं होने दिया और मंदिर की रक्षा का भार भगवान को सौंपकर निश्चिंत होकर सो गए- बात भी वाजिब थी कि जब मंदिर भगवान का है तो वह खुद अपनी रक्षा करें, हमें क्या कुत्ते ने काटा है कि बिना बात साँप की बांबी मे हाथ डालें। नादिरशाह आया और दिल्ली को जीता, फिर बेचारे ने सिर्फ़ तीन दिन के लिए दिल्ली में कत्लेआम और लूटपाट करने की अपने सैनिकों को मोहलत दे दी- अब इतने भर के लिए बाकी हिंदुस्तान उसका मुकाबिला करने को खड़ा हो जाता, यह कहाँ की शराफ़त होती? मानता हूँ कि बाबर, खिलजी, औरंगज़ेब जैसों ने हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा, बलपूर्वक उनका धर्मपरिवर्तन कराया, उन पर जज़िया लगाया एवं उनकी स्त्रियों को लूटा, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम इस आधार पर उनके पाँचों नमाज़ बिला नागा अदा करने के सद्गुण को नज़रअंदाज़ कर दें और छात्र-छात्राओं को सही इतिहास पढ़ाकर उन महान शासकों के ख़िलाफ़ 'गुमराह' करें। हम कोई अमरीकनों जैसे गए-गुज़रे थोड़े ही हैं कि ट्विन टावर्स पर हमला करने वाले ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए उसको शरण देने वाले अफ़गानिस्तान पर ही हमला बोल दें। हमारे यहाँ तो भारत पर सोलह बार हमला करने वाले मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज जैसे सपूत हराने के बाद इसलिए छोड़ देते रहे हैं, जिससे 17वीं बार वह उन्हें हराकर अपनी किलर इंस्टिंक्ट का उन पर भरपूर प्रयोग कर सके।

पर भाई ऐसा कहना एकतरफ़ा होगा कि हममे किलर इंस्टिंक्ट है ही नहीं- वरन मेरा विश्वास है कि हमारी किलर इंस्टिंक्ट अन्यों से अधिक मारू है, अंतर केवल उन अवसरों का है जिन पर हम इस इंस्टिंक्ट का प्रयोग करते हैं। आप को प्रत्यक्ष अनुभव करना हो, तो किसी दिन किसी सरकारी कार्यालय में किसी काम को लेकर चले जाइए- फिर देखिए कि वहाँ चपरासी व बाबू से लेकर अधिकारियों तक की किलर इंस्टिंक्ट आप की जेब की कितनी मारक है। देश की बड़ी-बड़ी फ़ाइनेंस कंपनियों व सरकारी कार्पोरेशनों के चेयरमैन व मैनेजिंग डाइरेक्टर्स की अतिक्रियाशील किलर इंस्टिंक्ट के द्वारा अपनी कंपनियों को लूटकर दिवालिया बना देने के प्रकरण तो आप प्राय: अख़बारों मे पढ़ते ही रहते होंगे। हमारे देश के राजनैतिक क्षेत्र में तो किलर इंस्टिंक्ट का खुला खेल फरक्काबादी खेला जाता है- चुनाव मे प्रतिद्वंद्वी को बूथ-कैप्चरिंग करके पराजित कर दो, यदि उसमे सफलता न मिले तो पैसे से ख़रीद लो जिसके लिए प्रतिद्वंद्वी की किलर इंस्टिंक्ट भी अपने ऐंटीना खोलकर एवररेडी रहती है, और कहीं इसमे भी शक हो तो किलर इंस्टिंक्ट का सीधा प्रयोग कर प्रतिद्वंद्वी को किल करवा दो। सांप्रदायिक दंगों मे हम देवी-देवताओं और पीर पैगंबर का जयकारा कर अपनी किलर इंस्टिंक्ट का ऐसा बेहिचक प्रदर्शन करते हैं, जैसे उन्होंने हमें इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु इंसान बनाया हो।

खेल के मैदान मे अथवा विदेशियों से प्रतिस्पर्धा में हम अपनी किलर इंस्टिंक्ट को भले ही दबाकर रखते हों पर अपने लोगों पर मारक मंत्र के प्रयोग से चूकने का दोष हमें कोई नहीं दे सकता है : संभवत: हम गंजे हैं और भगवान ने ग़लती से हमें नाखून दे डाले हैं, जिनसे हम अपनी ही खोपड़ी नोचते रहते हैं।

16 दिसंबर 2005

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