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पिछले सप्ताह
साहित्यिक निबंध
में
डा रति सक्सेना की कलम से
वैदिक
देवताओं की कहानियों के क्रम में
इंद्र
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रसोईघर में
सफल व्यंजन के अंतर्गत फलों
की
ताज़गी और स्वास्थ्य से भरपूर
वसंत
माधुरी
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सामयिकी
में
लोकप्रिय गायिका व अभिनेत्री
सुरैया के निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि
स्वर सम्राज्ञी सुरैया °
परिक्रमा
में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
भारतीय उपमहाद्वीप की एक झलक
बृजेश शुक्ला की कलम से
माघमेले
में डूबा प्रयाग °
कहानियों
में
14 फरवरी प्रेमदिवस के
अवसर पर
भारत से डा मीनाक्षी स्वामी
की कहानी
अमृतघट
दिन में अमृता सूरज का ताप लेती। ताप
बढ़ने लगता, तो कोई बड़ी लहर आकर अमृता को अपने आंचल से
पलभर के लिए ढकती, भिगोती और लौट जाती। रात होती तो अमृता चांद को देखा करती,
चांद से बातें करती और चांदनी पीया करती। वह इतनी छककर चांदनी
पीती कि उसके हृदय का खाली घट अमृत से भरने लगता, भरभरकर
छलकने लगता, तब वह समंदर में देखती, तो लगता चांदनी का अमृत
समंदर की लहरों पर बिछ गया है। जब पंद्रह दिन चांद नहीं होता,
तब अमृता अपने छलकते अमृत घट में से चांदनी पीती और ऐसे ही
जीती।
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इस
सप्ताह
कहानियों
में
यू के से उषा राजे
सक्सेना की कहानी
उससे
मिलना
टेबल के पास पहुंच कर उसने कुर्सी को
हल्के से बाहर की ओर खींचा फिर दोनों हाथों से एला को सहेजते
हुए, किसी साम्राज्ञी की तरह उस पर बैठा कर, अपना कैशमेयर
टॉपकोट और स्कार्फ पास खड़े वेटर के हाथों में पकड़ाया, फिर कुर्सी
पर बैठते हुए रेस्तरां और बार का निरीक्षण किया। उसकी शरबती आंखों
में मनोरंजन भरा कौतूहल था। 'फनी प्लेस'। उसने मुस्कराते हुए
एला के समूचे अस्तित्व को आंखों में भरकर, संतुष्ट भाव से देखा। वही, वही, बिल्कुल वही, वह कहीं से
भी नहीं बदला था। शायद उसने, उसे ऐसी जगह पर बुला कर गलती
की। सच! वह ऐसी जगह जाने का बिल्कुल आदी नहीं है। एला को याद
आया, उसकी पसंद कभी भी सवाए, हिल्टन या डोरचेस्टर से कम नहीं
रही है। पर आखिर मैंने उसे बुलाया ही क्यों?
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प्रकृति
और पर्यावरण में
प्रभात कुमार का आलेख
आसमान में चित्रकारी °
आज
सिरहाने
संजय
ग्रोवर का ग़ज़ल संग्रह
खुदाओं
के शहर में आदमी °
हास्य
व्यंग्य में
भारतभूषण तिवारी का व्यंग्य
पहला विज़िटिंग कार्ड °
साहित्य
समाचार में
मुंबई से सूरज प्रकाश की रपट
रावी पार का
रचना संसार
°
1
!सप्ताह का विचार!
पुष्प
की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव
के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है।
गौतम बुद्ध |
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अनुभूति
में
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हसनैन
रज़ा
उषा वर्मा व
नूपुर रघु की
रचनाएं
साथ ही
फरवरी
माह की
समस्यापूर्ति
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पिछले अंकों से°
कहानियों
में
रेशमी
लिहाफविनीता
अग्रवाल
विसर्जन
मीरा कांत
यह
जादू नहीं टूटना चाहियेसूरज
प्रकाश
सुबह
होती है शाम होती हैरजनी गुप्त
चेहरे के जंगल मेंतरूण भटनागर
वे
दोनोंसुषम बेदी
°
'मंच मचान' में
वाचिक परंपरा के महत्व पर
अगली कड़ी अशोक चक्रधर की कलम से
मोह में भंग और भंग में मोह
°
धारावाहिक
में
नव वर्ष की विभिन्न परंपराओं
के विषय में दीपिका जोशी के आलेख
देश देश में नववर्ष
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फुलवारी
में
जंगल के पशु लेखमाला में
बब्बर
शेर से परिचय, कविता शेर
और शेर का सुंदर
चित्र
रंगने
के लिये
सामयिकी
में
उषा राजे सक्सेना की कलम से
प्रवासी भारतीय दिवस
महोत्सव
का एक और दृष्टिकोण
गणतंत्र दिवस के अवसर पर
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से
कवि सम्मेलन की
रपट
नार्वे निवेदन के अंतर्गत
ओस्लो समाचार
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संस्मरण
में निराला जयंती के अवसर पर
महादेवी वर्मा की कलम से संस्मरण
जो रेखाएं कह न
सकेंगी
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विज्ञान
वार्ता में साल भर की विज्ञान
गतिविधियों पर
डा गुरूदयाल प्रदीप की
कलम से
वैज्ञानिक
अनुसंधानः
बीते वर्ष का लेखाजोखा
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धारावाहिक
में
इस पार से उस पार से का अगला भाग
शील साब से
बदलते रिश्ते
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