मान लीजिए आपको एक ऐसे
नृत्यकार्यक्रम में चलने का आमंत्रण दूँ जो खुले आसमान
में आयोजित हो, जहाँ सब कुछ इंद्रधनुषी हो और स्वयं
प्रकृति ही नर्तकी हो, तो क्या आप विश्वास करेंगे? शायद आपको
लगे कि मैं कोई कविता कर रहा हूँ या किसी स्वप्निल संसार मे
चलने की बात कर रहा हूँ लेकिन यह सत्य भी हो सकता है अगर आप
हिमआच्छादित ध्रुवीय प्रदेश में धैर्यपूर्वक बैठकर प्रकृति का
अवलोकन करने को तैयार हों।
पता
नहीं, रात का समां, झूमे चंद्रमा, तन मोरा नाचे रे
जैसे बिजुरिया . . . जैसा गीत हसरत
जयपुरी साहब ने किसी ध्रुवीय प्रदेश के आसमान में
होने वाले रौशनियों के किसी पेंटिग को देखकर लिखा था या
नहीं किंतु अक्टूबर से मार्च की रातों में
यहाँ हरक्षण अपना
रंग, ढंग, रूप
और श्रृंगार बदलती प्रकाशशिखाओं को देखकर आप अगर
अपनी सुधबुध न खो बैठें, तो शर्त रही!
वैज्ञानिक
शब्दावली में ऑरोरा बोरियोलिस या ऑरोरा
आस्ट्रेलिस के नाम से जाना जाने वाला यह प्रकाशचुंबकीय
घटना ज्यादातर नार्दन लाइट्स के नाम से प्रचलित है। इसे
हम यहां उत्तरीय प्रकाश कहेंगे। पृथ्वी
के दोनों ध्रुवों पर दिखाई देनेवाली यह खगोलीय घटना
हर जगह भिन्नभिन्न समयों में तथा अलगअलग तीव्रता के
साथ दिखाई देती है।
शीत ऋतु की साफ और अंधेरी रातों में मध्यरात्रि का सूर्य
कहा जाने वाले नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड, उतरी कनाडा,
अलास्का और रूस के उतरी भागों में जहाँ उत्तरीय प्रकाश की रंगीनियाँ अक्सर
दिखाई दे जाती है वहीं दक्षिणी हिस्सों में इसे दशक या शताब्दी
में एक बार ही देखना संभव होता है। उतरी स्कॉटलैंड जैसी मध्य
अक्षांशीय देशों में यह महीने में एक बार दिखाई देता है।
नामकरण
एवं ऐतिहासिक विवरण
वैज्ञानिक परंपरा के अनुसार उत्तरीय प्रकाश
का पहला
दृष्टांत ईसा पूर्व में ही अरस्तू की पुस्तक
मेटिरियोलॉजिका में मिलता है जिसमें इसका वर्णन
प्रज्वलित गैसीय लौ के रूप में किया गया है। लगभग 1230
ईस्वी में नार्वे में लिखी गयी कांगेस्पिले नामक एक पुस्तक
में इसे नार्दलिस कहा गया जो आज के प्रचलित नाम का
आधार है। 16 वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में इटली के महान
वैज्ञानिक गैलेलियो गैलिली ने लैटिन भाषा के शब्द
ऑरोरा बोरियोलिस अर्थात उतर दिशा का रक्तिम
प्रभात नाम दिया और तब से पूरे वैज्ञानिक जगत में यही
नाम प्रचलित है।
जनश्रुति
एवं दंतकथाएँ
प्रत्यक्ष दिखाई वाली प्रकृति की घटनाओं ने मानव मन को हमेशा
से उद्वेलित किया है और अपने वश के परे होने वाली ऐसी
घटनाओं के प्रति अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए आदिम
समाज ने लोककथाएँ रची हैं। उत्तरीय प्रकाश
को
लेकर अपनेअपने विश्वास के अनुसार रची गयी व्याख्याएं भी आज
जनश्रुति और लोककथाओं के रूप में जिंदा है। नार्वे में जहाँ
इसे नाचती आत्माएВ या लड़ते हुए योद्धा की तलवार के
रूप मे मान्यता मिली वहीं उतरी अमेरिका में इसे भूतों और
बुरी आत्माओं के आह्वान का प्रतीक समझा गया।
आसमान में तैरती प्रकाश की इन लहरों को उतरी स्कॉटलैंड
(ब्रिटेन) में मेरी डांसर की संज्ञा दी गयी। डेनमार्क की
लोककथाओं में ऑरोरा बोरियोलिस को यद्यपि
उतर दिशा की ओर उड़ते हुए हंसों के झुंड के पंख के रूप में
बताया गया है लेकिन अधिकांश लोककथाएँ
इसे प्लेग जैसी बिमारियों के अशुभ संकेत या बदला लेने
वाली बुरी शक्ति के रूप में बताती हैं।
दर्शन के परे विज्ञान
किसी दृश्य को कहानियों में आप चाहे जेैसे पिरो दीजिए
किंतु हर प्राकृतिक घटना के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण भी
तो होता ही है।
15वी शताब्दी में यूरोप में हुए पुर्नजागरण ने लोगों को
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की ओर प्रेरित किया और हर तथ्य,
जो अबतक लोककथाओं में सीमित था उसकी इस आधार पर व्याख्या
करने की कोशिश की गयी। उत्तरीय
प्रकाश जैसी घटना के पीछे भी
जो वैज्ञानिक
तथ्य छिपा है उसकी व्याख्या हमें न सिर्फ अंचभित करता है बल्कि पृथ्वी
के प्रति हमारी कृतज्ञता को भी बढाता है।
पृथ्वी
के सतह से आमतौर पर 100 से 200 किलोमीटर ऊपर उत्पन्न
रंगबिरंगी आभा या ऑरोरा के पीछे तीन अदृश्य कारक हैं
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, इसका वायुमंडल और सौरपवन।
हमारी
पृथ्वी वास्तव में एक विशाल चुंबकीय छड़ के समान है जिसका
चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र सैंकड़ो मील दूर तक फैला है। पृथ्वी का
आयनमंडल यानी इसकी वायुमंडल का बाहरी हिस्सा, सूर्य के सतह
पर उठने वाली आँधियों के फलस्वरूप उत्पन्न हानिकारक आयनीकृत
प्लाज्मा कणों को रोककर हमारी रक्षा करता है। सूर्य वास्तव में एक
गैसीय पिंड है जिसके केंद्र की तो पूछिए ही मत, सतह का तापमान
5800 डिग्री केल्विन है। इस तापमान पर आयनीकृत प्लाज्मा या
सौरगैसें इसकी सतह को छोड़कर 3001000 किमी प्रति घंटा
की रफ़्तार से बाहर की ओर अंतरिक्ष में निकलती है।
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इस घटना को कॉरोनल मास इजेक्शन
कहा जाता है। लगभग 23 दिनों के बाद प्लाज्मा कणों के ये
बादल पृथ्वी के चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र में प्रवेश करते है और
पृथ्वी के ध्रुवों की ओर आकर्षित होकर वायुमंडलीय गैस
कणों से टकराते है। इस टक्कर के फलस्वरूप उत्पन्न प्रकाश कण
(फोटॉन) हमें इंद्रधनुषी रंगों वाले ऑरोरा के रूप में
दिखाई देती है। वास्तव में, नंगी आँखों से देखने के लिए
कम से कम 10 करोड़ फोटॉन की आवश्यकता है। सौरकणों की
मात्रा और पृथ्वी के वायुमंडल में उपलब्ध गैस पर ही ऑरोरा
के प्रकाश का रंग और उसकी तीव्रता निर्भर करती है।
सामान्यतया
पीला, हरा, रक्तिम लाल या पीलापन लिए लाल रंग ऑरोरा
में देखा जाता है किंतु काफी हद तक यह ऊँचाई पर भी निर्भर
करता है। |
सूर्य
की सतह से उठती लपटें |
वायुमंडल
के नीचले हिस्से में उत्पन्न उत्तरीय प्रकाश
ज्यादातर लाल होता है
जबकि 120180 किमी
पर हरा रंग उत्पन्न होता है। वायुमंडल की प्रत्येक गैस चूँकि एक
अलग रंग के प्रकाश का उर्त्सजन करती हैं इसलिए ऑरोरा की प्रकाश
संरचना को आप पृथ्वी के वायुमंडल का फिंगरप्रिंट समझ सकते हैं।
उत्तरीय
प्रकाश से संबधित एक महत्वपूर्ण पहलू जो आपको चौंका सकता है,
वह है ऑरोरा से उत्पन्न ध्वनि।
क्या
रोशनी की बदलती रेखाँए ध्वनि पैदा कर सकती है? ठोस तौर पर तो
इसका उतर देना तो संभव नहीं पर कइयों ने इसे सुनने का
दावा किया है। अभी तक कोई ऐसा माइक्रोफोन नहीं बना जिससे
ऑरोरा की ध्वनि को सुना जा सके किंतु अप्रत्यक्ष विधि द्वारा
मैग्नेटोमीटर का प्रयोग कर इसे सुना जा सकता है। अब आप
अनुमान कर सकते हैं कि ओपन एयर थियटर में चलने वाला यह
दृश्यश्रव्य शो कितना आकर्षक होगा!
कब
और कैसे देखें? एक कठिन प्रश्न है यह। आखिर आप ऐसी नर्तकी के पीछे
भागने की बात कर रहे हैं जो सिर्फ प्रकृति के इशारे पर ही नाचती
है। नृत्य की भावभंगिमाओं की तो छोड़िए, अगर आप उसके रूप की
एक झलक पाने को भी लालायित हैं तो भी यह स्थान और आपके
भाग्य पर निर्भर है। यदि आप उतरी स्कैंडनेविया के देश जैसे
नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड, उतरी कनाडा, अलास्का या रूस के
उतरी भाग में हैं; आसमान साफ है और आपके अंदर पर्याप्त
धैर्य है तो
देखने से आप ज्यादा दूर नहीं। ऑरोरा
दर्शन की संभाव्यता बढाने के लिए आप
NOAA
के ध्रुवीय उपग्रह की
सहायता से तैयार किए गए नार्दन लाइट के वलय मानचित्र का सहारा
ले सकते हैं। हर क्षण परिवर्धित हो रहे इस मानचित्र को2325;ो2325;ो2325;ो2325;ो आप
NOAA
के जालघर
http://sec.noaa.gov/pmap पर देख सकते
हैं। लुकाछिपी के इस खेल में आप खूब सारे गर्म कपड़े रखना न भूल जाएँ क्योंकि आप का सामना जमाने वाली सर्दी से हो सकता है। तो, ब्रह्मांड के ऋर्षिमुनियों द्वारा प्रायोजित कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए आपको शुभकामनाएँ। |