अनुभूति

 9. 1. 2004

आज सिरहानेउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवारदो पल
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विशेषांक
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पिछले सप्ताह

सामयिकी में
दीपिका जोशी का लेख
देश देश में नव–वर्ष
°

उपहार में
नव वर्ष के उपलक्ष्य में नया
शुभकामना संदेश जावा आलेख के साथ
नये साल का शुभ दुलार
°

धारावाहिक में
मंच कविता के महत्व के बारे में
प्रसिद्ध व्यंग्यकार अशोक चक्रधर के विचार मंच मचान शीर्षक के अंतर्गत
उनके विशेष अंदाज़ में
एक होता है शब्द, एक
होती है परंपरा
°

फुलवारी में
'
जंगल–के–पशु' लेखमाला के अंतर्गत
हाथी के विषय में जानकारी, हाथी का चित्र रंगने के लिए और कविता
नये साल की बात
!°!

कहानियों में
यू एस ए से सुषम बेदी की कहानी
वे दोनों

छत से फर्श तक के लंबे शीशों से जड़ी उस बड़ी सी बैठक में खूब सारी दिन की रौशनी भरी हुई थी। फर्श पर बिछी सफेद चादरों पर सफेद वस्त्र पहने ढेर सारे लोग उस रौशनी का ही हिस्सा लग रहे थे। कमरे में घुसते ही तारक को लगा जैसे उस श्वेतता में घुले मौत के सर्दपन और जड़ता ने अचानक उसके भीतर को जकड़ लिया है। बीचोंबीच फूलों की माला चढ़ी एक बड़ी सी रति की तस्वीर थी जिसका धूप, दीप और गीता के श्लोकों से अभिषेक किया जा रहा था। रति अब तस्वीर भर थी! तारक की स्तब्ध पनियायी आंखें निस्सहाय सी रजत को खोजने लगी।
°

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से डा रजनी गुप्त की कहानी
सुबह होती है शाम होती है

ट्रेन के गति पकड़ते ही शिवली का मन भी किसी अनजान सी दिशा में उड़ता जा रहा है। बचपन में पापा के साथ के मनोरम पल कितने अल्पजीवी रहे। पापा उसे डाक्टर बनाना चाह रहे थे, किन्तु बेटे की असामायिक मौत ने उन्हें तोड़कर रख दिया था। दिनों–दिन कमजोर होते पापा एक दिन हमेशा के लिए चले गए और फिर यहीं से सिलसिला शुरू होता है – मां का नौकरी करना और शिवली का छोटी दो बहनों को संभालना, पढ़ाना और एक तरह से पूरी देख–रेख। असमय ही समझदार होती चली गई वह। पढ़ने में तेज तो वह पहले से ही थी, इसलिए ग्रेजुएशन के बाद कम्पटीशन में लगातार बैठती गई। शायद अच्छी किस्मत का कमाल था कि उसे वक्त पर पी•आर•ओ• की ठीक–ठाक नौकरी मिल गई।

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साहित्यिक निबंध में
डा रति सक्सेना की कलम से वैदिक देवताओं की कहानियां— इस अंक में 
अग्नि

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महानगर की कहानियां में
तरूण भटनागर की लघुकथा
चेहरे के जंगल में

°

परिक्रमा में
मेलबोर्न की महक के अंतर्गत हरिहर झा का आलेख
आस्ट्रेलिया की आवाज़

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रसोईघर में
स–फल व्यंजन के अंतर्गत
इंद्रधनुष

°

!सप्ताह का विचार!
प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन
हर दर्द की दवा हैं।
— अज्ञात

 

अनुभूति में

नव वर्ष महोत्सव
जनवरी भर
 और
समस्यापूर्ति में
वरिष्ठ कवियों के
साथ प्रकाशित होने का सुअवसर

नववर्ष विशेषांक समग्र

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
हिरासत के बादसुरेश कुमार गोयल
युगावतार वीना विज 'उदित'
फ़र्क़विनोद विप्लव
खिड़की वाला संसार–तरूण भटनागर
अढ़ाई घंटेहरिकृष्ण कौल
°

विज्ञान वार्ता में गुरूदयाल प्रदीप की
खोजपूर्ण जानकारी

हमारी नींद हमारे सपने
°

प्रौद्योगिकी में भास्कर जुयाल की पड़ताल
इंटरनेट की दुनिया में हिंदी का भविष्य
°

घर परिवार में 
फायर प्लेस की सजावट का आनंद
अलाव के अनोखे अंदाज़
!°!

साहित्यिक निबंध में मारिशस में 
हिन्दी कविता के विकास की कहानी
सुनील विक्रम सिंह की ज़बानी
मारिशस में
हिन्दी की सौ साल पुरानी परंपरा
°

हास्य व्यंग्य में 
प्रमोद राय का व्यंग्य
बॉस मेहरबान तो गधा पहलवान
°

आज सिरहाने में 
रजनी गुप्त के उपन्यास से एक परिचय
कहीं कुछ और
°

पर्यटन में 
दीपिका जोशी का यात्रा–विवरण
पतझड़ के बदलते रंगों में डूबा अमेरिका
°

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत

शैल अग्रवाल की कलम से
पंचतंत्र

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
  सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया   साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला