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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
वीना विज उदित की कहानी- "युगावतार"


कार के एक्सीलेटर पर पाँव रखते ही मयंक भूल जाता था कि वो जमीन पर है। उसके ख्याल आसमानी रंग भरने लगते थे। वह उन रंगों में खो जाता था। यही सब तो चाहा था उसने। अपने पास एक बढ़िया कार हो और पाँव के नीचे अमेरिका की जमीन हो। हाई वे पर स्पीडिंग मना थी, पर वो कई बार बेपरवाह हो जाता था। वह भविष्य के सपने नहीं बुनता था, वो तो अतीत में गोते मारने लगता था। स्वयं को गर्वित सिंहासन पर बैठाकर, स्वंय ही प्रशंसक बन जाता था। माटी से उठकर स्वंय के बलबूते पर महल निर्मित किया था उसने।

दिल्ली के पहाड़गंज के मुल्तानी ढाँडे की गली नंबर पाँच में एक कमरे में उसका सारा परिवार कहने को रहता था। वैसे उनका उठना, बैठना, सोना-जागना तो गली में ही चलता था। वहाँ सारा दिन शोर शराबा, चिल्लपों मची रहती थी। सरकारी स्कूल से घर लौटकर सभी बच्चे गली में बैठकर तख्ती साफ करते, उस पर मुल्तानी मिट्टी मलते थे। तख्ती सूखने को रखकर सारा हमउम्र टोला पिछली सड़क लाँघ कर बिड़ला मंदिर की ओर दौड़ पड़ता था। वहाँ के बाग़ बगीचों में फूलों के इर्द गिर्द मँडराती तितलियाँ पकड़ना, झूले झूलना, और घूम फिरकर वापिस आ जाना, बचपन की इन मीठी यादों ने कभी भी मयंक का पीछा नहीं छोड़ा था। छोटे से घर में रहते हुए भी उसने अपने लिए बचपन के मधुर स्वप्न सजा लिए थे। अपने बाल्यकाल को खेलों से वंचित नहीं रखा था।

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