| किस-किस को देखिए,किस-किस को 
                    रोइए। आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइए।।
 
                    नींद भला किसे नहीं प्यारी होती? 
                    कड़ी मेहनत के बाद थकान से चूर व्यक्ति मौका लगते ही गहरी नींद 
                    में सो जाता है तो हर समय चिंतित रहने वाला व्यक्ति नींद न आने 
                    से परेशान रहता है। येन-केन-प्रकरेण वह भी सोने की हर चंद 
                    कोशिश करता है। सो कर वह भी चिंताओं से मुक्त होना चाहता है, 
                    चाहे थोड़ी देर के लिए ही सही।  नींद की अपनी दुनिया है और 
                    उसका काफी हिस्सा सपनों से मिल कर बनता है। सपने कितने तरह के 
                    तो होते हैं ये सपने! कुछ रुलाने वाले, तो कुछ हँसाने वाले और 
                    कुछ तो ऐसे भयानक कि सोने में ही पसीना छुड़ा दें। मस्तिष्क की 
                    विद्युत तरंगों के अध्ययन के फलस्वरूप आज हम जान सके हैं कि 
                    इंसान ही नहीं, लगभग सभी स्तनधारी जीव सपने देखते हैं। 
                    चिड़ियाँ भी थोड़े-बहुत सपने देख ही लेती हैं। लेकिन सरीसृप 
                    तथा इससे नीचे की श्रेणी के जीव-जन्तु सपने नहीं देखते। सपने 
                    नींद में ही देखे जा सकते हैं, जागृत अवस्था में नहीं। जागृत 
                    अवस्था में हम मात्र कल्पना कर सकते हैं, जिसे भ्रमवश 
                    दिवा-स्वप्न का नाम दे दिया गया है। यहाँ हम नींद में देखे 
                    जाने वाले असली सपनों की ही बात करेंगे।  आखिर हम सपने क्यों देखते 
                    हैं? क्या इनका कुछ अर्थ भी होता है? क्या इनसे हमारा अस्तित्व 
                    एवं भविष्य भी कुछ सीमा तक जुड़ा है? अनादि काल से ऐसे तमाम 
                    प्रश्नों के उत्तर पाने के प्रयास किए जाते रहे हैं और अक्सर 
                    इन सपनों को भविष्य की तरफ़ इशारा करने वाले साधन के रूप में 
                    देखा गया है। कुछ लोगों ने अपने सपनों को आगे चल कर सच होते 
                    हुए भी देखा है। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा 
                    अपनी ही हत्या का स्वप्न देखना और निकट भविष्य में उसे अपनी 
                    आँखों के आगे सच होते देखने की घटना से कौन नहीं परिचित है? इस 
                    संसार में ऐसे तथाकथित विद्वानों एवं विशेषज्ञों की कमी नहीं 
                    है जो हमारे देखे सपनों के अर्थ बताने तथा उससे संबंधित बातों 
                    के बारे में तरह-तरह के कयास लगाने का प्रयास करते रहते हैं। 
                    ऐसे लोग क्या करते हैं और क्या-क्या दावे करते हैं, इससे 
                    फिलहाल हमारा कोई सरोकार नहीं है। यहाँ हम आधुनिक 
                    यंत्रों-उपकरणों से लैस वैज्ञानिक तथा अनुसंधानकर्त्ताओं के 
                    खोजी नज़रिये से नींद और सपनों के पीछे के सच को जानने का 
                    प्रयास करेंगे।  चूँकि सपनों का संबंध सोने से 
                    है तो आइए सबसे पहले हम नींद के विज्ञान को समझें।  नींद एक प्रकार की लगभग 
                    संपूर्ण अचेतन की अवस्था है, जिससे हम मनुष्य २४ से २५ घंटे की 
                    अवधि में सामान्यत: एक बार अवश्य गुज़रते हैं। हम मनुष्य अक्सर 
                    लेट कर सोना पसंद करते हैं। इस अवस्था में हमारी आँखे बंद हो 
                    जाती हैं, कुछ सुनाई नहीं पड़ता (जब तक कि आवाज़ बहुत तेज़ न 
                    हो) हृदय की धड़कन कम हो जाती है, साँस की लय धीमी हो जाती है 
                    तथा मांस पेशियाँ पूरी तरह से ढीली पड़ जाती हैं। सोने में हम 
                    प्राय: करवट बदलते रहते हैं। शरीर के प्रत्येक अंग में सुचारू 
                    रूप से रक्त के प्रवाह को बनाए रखने के लिए संभवत: ऐसा किया 
                    जाता है। सोने एवं बेहोशी में सबसे बड़ा अंतर यह है कि सोते 
                    व्यक्ति को तो तेज़ आवाज़ या फिर झकझोर कर उठाया जा सकता है 
                    परंतु बेहोश आदमी को नहीं। सोते समय मस्तिष्क की कार्य प्रणाली 
                    में काफी बदलाव आता है परंतु यह अंग पूरी तरह शिथिल नहीं 
                    पड़ता। यहाँ नाना प्रकार की कार्यवाहियाँ चलती ही रहती हैं।
                     कोई कितनी देर तक सोता है, इस 
                    संबंध में किसी प्रकार का निश्चित एवं कड़ाई से पालन किया जाने 
                    वाला नियम तो नहीं है फिर भी औसतन एक वयस्क व्यक्ति ७ से ९ 
                    घंटे सोता है। वहीं पर नवजात शिशु २० घंटे, ४ वर्ष का बालक १२ 
                    घंटे, १० वर्ष का बालक १० घंटे तो एक बूढ़े व्यक्ति को ६ से ७ 
                    घंटे की नींद की आवश्यकता होती है।  इसके पहले कि हम अपनी नींद और 
                    सपनों की वैज्ञानिक दुरूहता को समझने के चक्कर में पड़ें, आइए 
                    अन्य जीव-जंतुओं की नींद संबंधी कुछ रोचक जानकारियों पर भी एक 
                    निगाह डालते चलें। कीट-पतंगे तो ऐसा लगता है कि सोते ही नहीं। 
                    हालाँकि इनमें से कुछ दिन में निष्क्रिय पड़े रहते हैं तो कुछ 
                    रात में। मछलियाँ एवं मेढक जैसे जंतु अपनी चेतना के स्तर को 
                    थोड़ा-बहुत घटा लेते हैं परंतु मनुष्यों की तरह निद्रा की 
                    अचेतन अवस्था में नहीं जाते। गाएँ खड़े-खड़े सो तो लेती हैं, 
                    परंतु सपने लेटी अवस्था में ही देख सकती हैं। ह्वेल तथा 
                    डॉलफिन्स हमारी तरह सोने में स्वत: साँस नही ले सकतीं। साँस की 
                    प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित रखने के लिए नींद में भी 
                    इनका आधा मस्तिष्क ही सोता है।  अब आइए फिर से अपनी नींद और 
                    सपनों की दुनिया में वापस चलें। पहली बात -आखिर हमें नींद 
                    क्यों आती है तथा इसके पीछे क्या कारण हैं? इस प्रश्न का सटीक 
                    उत्तर वैज्ञानिक अब तक नहीं खोज पाए हैं फिर भी आज तक के 
                    अध्ययन का निचोड़ कुछ इस प्रकार है:  जागृत अवस्था में ब्रेन स्टेम 
                    (जिसके द्वारा मस्तिष्क का मुख्य भाग मेरूदंड
                    (spinal cord) से जुड़ा रहता है) की 
                    कुछ नर्व कोशिकाएँ सिरेटोनिन एवं नॉरएपीनेफिरन जैसे 
                    न्युरोट्रांसमिटर्स का स्राव करती हैं जो मस्तिष्क के उन विशेष 
                    भागों को सक्रिय रखता है जो हमें जगाए रखने के लिए आवश्यक है। 
                    सुसुप्ता अवस्था में इसी ब्रेन स्टेम की कुछ अन्य नर्व 
                    कोशिकाएँ दूसरे प्रकार के न्युरोट्रांसमिटर का स्राव करने लगती 
                    हैं जो उपरोक्त प्रकार के न्युरोट्रांसमिटर्स का स्राव बंद कर 
                    देती है फलस्वरूप मस्तिष्क के वे भाग निष्क्रिय होने लगते हैं 
                    जो हमें जगाए रखते हैं। कुछ अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जागृत 
                    अवस्था में हमारे रक्त में एडिनोसिन नामक रसायन का जमाव होने 
                    लगता है। यह रसायन हमें अर्धनिद्रा की स्थिति में ला देता है। 
                    जब हम सोते हैं तब इस रसायन का विघटन होने लगता है। मस्तिष्क 
                    की सक्रिय कोशिकाओं से इस रसायन का स्राव होता है। इनका एक 
                    सीमा से अधिक स्राव एवं जमाव संभवत: इस बात का संकेत होता है 
                    कि इन कोशिकाओं ने आवश्यकता से अधिक ऊर्जा का उपयोग कर लिया है 
                    और अब उन्हें कुछ समय के लिए विश्राम की आवश्यकता है, ताकि वे 
                    फिर से उर्जा के सामान्य स्तर को प्राप्त कर तरोताज़ा हो सकें। 
                    फलत: ये कोशिकाएँ कुछ समय के लिए निष्क्रिय हो जाती हैं।
                     अपने सिर को 
                    एलेक्ट्रोएन्सिफैलोग्राक नामक उपकरण से जोड़ कर विभिन्न 
                    स्थितियों में मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली विद्युत तरंगों 
                    का आकलन एवं अध्ययन किया जा सकता है। पूरी तरह जागृत तथा आराम 
                    की स्थिति में मस्तिष्क से अल्फा तरंगें उत्पन्न होती हैं, 
                    जिनके ऑसिलेशन की दर १० साइकिल्स प्रति सकेंड होती है। 
                    सुसुप्तावस्था में थीटा एवं डेल्टा नामक दो प्रकार की धीमी गति 
                    वाली विद्युत तरंगों का उत्पादन होता है। थीटा तरंगों की 
                    ऑसिलेशन दर ३.५ से ले कर ७ साइकिल्स प्रति सेकेंड होती है तथा 
                    डेल्टा तरंगों की ऑसिलेशन दर ३.५ साइकिल्स से भी कम होती है। 
                    इन तरंगों की कम होती दर गहन से गहनतम निद्रा की अवस्था को 
                    दर्शाती है।  वास्तव में सोते समय हम 
                    निद्रा की क्रमश: पाँच अवस्थाओं से गुज़रते हैं- अवस्था १, 
                    अवस्था २, अवस्था ३, अवस्था ४ और फिर अंत में पुतली के तीव्र 
                    संचालन (Rapid Eyeball 
                    Movement - REM) 
                     की अवस्था। ये अवस्थाएँ इसी 
                    क्रम में बार-बार दुहराई जाती हैं।  निद्रा की पहली अवस्था हल्की 
                    नींद की स्थिति होती है जिसे हम सामान्य बोल-चाल में कच्ची 
                    नींद या फिर तंद्रा की स्थिति कहते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति 
                    सोने और जगने की प्रक्रिया के बीच झूलता रहता है और उसे आसानी 
                    से जगाया जा सकता है। आँखें धीमी गति से घूमती रहती हैं तथा 
                    मांस पेशियाँ शिथिल पड़ने लगती हैं। यदि इस स्थिति मे व्यक्ति 
                    को जगा दिया तो वह अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं का वर्णन 
                    छोटे-छोटे टुकड़ों में कर सकता है, लेकिन उसे पूरी घटना का 
                    ज्ञान नहीं रहता। इस अवस्था में बहुत से लोग कभी - कभी 
                    मांसपेशियों में अचानक संकुचन का अनुभव करते हैं और वे चौंक 
                    उठते हैं, साथ ही उन्हें कभी-कभार अपनी जगह से गिरने का आभास 
                    भी होता है।  जब हम निद्रा की दूसरी अवस्था 
                    में पहुँचते हैं तो हमारी आँखें लगभग स्थिर हो जाती हैं तथा 
                    मस्तिष्क में उत्पन्न होने वाली विद्युत तरंगें धीमी पड़ने 
                    लगती हैं परंतु बीच -बीच में तीव्र ऑसिलेशन वाली तरंगों का 
                    झोंका भी आता रहता है, जिसे 'स्लीप स्पिंडिल' भी कहते हैं। 
                    तीसरी अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते इन विद्युत तरंगों का ऑसिलेशन 
                    बहुत ही कम हो जाता है और अब डेल्टा तरंगों के उत्पादन की 
                    शुरुआत हो जाती है। इस अवस्था में भी कभी-कभी छोटी परंतु तीव्र 
                    ऑसिलेशन वाली तरंगें उत्पन्न होती रहती हैं। चौथी अवस्था तक 
                    पहुँचते-पहुँचते तो मस्तिष्क केवल डेल्टा तरंगों का ही उत्पादन 
                    करता है।  वास्तव में तीसरी एवं चौथी 
                    अवस्था गहन निद्रा की स्थिति होती है । इस समय आँखें तथा मांस 
                    पेशियाँ पूरी तरह शिथिल पड़ जाती हैं। इस अवस्था में किसी को 
                    जगाना बड़ा ही कठिन कार्य होता है। यदि किसी तरह व्यक्ति को 
                    जगा भी लिया जाय तो वह तुरंत अपने आस-पास के वातावरण से 
                    तारतम्य नहीं बिठा पाता और थोड़े समय के लिए उसकी चाल में 
                    लड़खड़ाहट देखी जा सकती है। साथ ही उसमें आत्मविस्मृति, 
                    दिशा-भ्रम तथा उलझन की स्थिति बनी रहती है। गहन निद्रा की 
                    स्थिति में ही कुछ बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं या फिर कुछ 
                    लोग निद्राचार (sleep walk) भी कर 
                    सकते हैं।  सोने के लगभग ७० से ९० मिनट 
                    के बाद हम तीव्र नेत्र गोलक संचालन-आरइएम-की अवस्था में 
                    पहुँचते हैं। इस अवस्था में सांस लेने की गति अनियमित परंतु 
                    तेज़ हो जाती है, आँख की पुतलियाँ झटके के साथ तेज़ गति से 
                    विभिन्न दिशाओं में घूमने लगती हैं तथा हाथ-पैर अस्थाई रूप से 
                    शिथिल पड़ जाते हैं। साथ ही हृदय की धड़कन तथा रक्त-चाप बढ़ 
                    जाता है। यही वह अवस्था होती है, जब हम सपने देखते हैं। यदि इस 
                    अवस्था में व्यक्ति जाग जाय तो उसे सपने आधे-तीहे याद भी रहते 
                    हैं जिनका वर्णन वह कर सकता है।  आरईएम सहित नींद का पहला चक्र 
                    ९० से ११० मिनट का होता है। पहले चक्र में आरईएम का समय थोड़ा 
                    कम होता है परंतु जैसे-जैसे रात बीतती है, हर चक्र में गहन 
                    निद्रा का समय कम होता जाता है और आरईएम का समय बढ़ता जाता है। 
                    सुबह के समय तो नींद का अधिकांश भाग पहली, दूसरी अवस्था तथा 
                    आरईएम को मिला कर ही पूरा होता है। एक वयस्क व्यक्ति अपनी नींद 
                    का ५० प्रतिशत निद्रा की दूसरी अवस्था में बिताता है, २० 
                    प्रतिशत आरईएम की अवस्था में तथा बाकी ३० प्रतिशत अन्य 
                    अवस्थाओं में। वही एक नवजात शिशु अपनी निद्रा काल का ५० 
                    प्रतिशत आरईएम की अवस्था में बिताता है। बुढ़ापे में तो लंबे 
                    समय वाली लगातार निद्रा का अभाव होने लगता है तथा इसमें गहन 
                    निद्रा की अवस्था तो लगभग गायब ही हो जाती है। बूढ़े व्यक्ति 
                    को अक्सर अनिद्रा की शिकायत रहती है।  इतने ज्ञान के बाद आइए अब हम 
                    सपनों के वैज्ञानिक पहलुओं पर नज़र दौड़ाएँ। सामान्य अवस्था 
                    में हम हर रात नींद के कम से कम दो घंटे सपने देखते हुए बिताते 
                    हैं। हम क्यों और कैसे सपने देखते हैं, इस संबंध में 
                    वैज्ञानिकों को कुछ ज़्यादा ज्ञान नहीं है। १९५३ में पहली बार 
                    अनुसंधान- कर्त्ताओं ने नवजात शिशु के मस्तिष्क में उत्पन्न 
                    होने वाली 'आरईएम' अवस्था के विद्युत तरंगों का ग्राफ लेने तथा 
                    उसे समझने में सफलता पाई। इसके बाद ही वे यह समझ पाए कि नींद 
                    की आरईएम अवस्था में ही हम अक्सर स्वप्न देखते हैं। 
                     'आरईएम' स्थिति का प्रारंभ 
                    मस्तिष्क के पिछले भाग, स्टेम के पॉन्स नामक हिस्से से उत्पन्न 
                    होने वाली विद्युत तरंगों रूपी संकेतों से होता है। ये संकेत 
                    मस्तिष्क के थैलमस नामक भाग तक पहुँचते हैं जो इन्हें मस्तिष्क 
                    के वाह्य भाग सेरिब्रल कॉर्टेक्स को प्रेषित कर देता है। यह 
                    भाग प्राप्त सूचनाओं को पुनर्व्यवस्थित करने, नई बातों को 
                    सीखने तथा सोचने समझने के लिए ज़िम्मेदार है। पॉन्स से ही ऐसे 
                    संकेत भी उत्पन्न होते हैं जो मेरूदंड में अवस्थित न्युरॉन्स 
                    को निष्क्रिय कर हमारे हाथों एवं पैरों की मांस पेशियों को भी 
                    शिथिल कर देते हैं। यदि ऐसा न हो तो व्यक्ति स्वप्न के साथ 
                    अपने हाथ-पैर भी चलाने लगता है। ऐसा कभी-कभी होता भी है। यदि 
                    व्यक्ति मार-पीट का सपना देख रहा हो तो ऐसी स्थिति में बगल में 
                    सोए व्यक्ति को दो-चार लात-घूँसों का सामना भी करना पड़ सकता 
                    है।  आरईएम अवस्था की निद्रा 
                    मस्तिष्क के उस भाग को उत्प्रेरित करता है जहाँ नई बातें 
                    सीखी-समझी जाती हैं। किसी नई बात को सीखने के तुरंत बाद यदि 
                    व्यक्ति को आरईएम अवस्था वाली निद्रा से वंचित कर दिया जाय तो 
                    वह सीखा हुआ सारा ज्ञान भूल भी सकता है।  जैसा कि हमें पता है, नींद की 
                    आरईएम अवस्था की आवृति लगभग प्रत्येक ९० से १०० मिनटों के 
                    अंतराल पर होती रहती है। निश्चय ही हर बार इनका प्रारंभ पॉन्स 
                    से उठने वाली ऐसी ही विद्युत तरंगों के कारण होता है। वास्तव 
                    में ये तरंगें अनियमित एवं बेतरतीब होती हैं। चूँकि ये तरंगें 
                    सेरिब्रल कॉर्टेक्स को प्रभावित करती हैं, फलत: यह भाग इन्हें 
                    जोड़-तोड़ कर कुछ अर्थ देने का प्रयास करता है। यही प्रयास एक 
                    अर्थहीन कहानी के रूप में चित्र एवं आवाज़ के साथ स्वप्न के 
                    रूप में दीखता है। इसका मतलब यह नहीं है कि सारे सपने अर्थहीन 
                    ही होते हैं। यदा-कदा हमारा मस्तिष्क इस आरईएम की अवस्था में 
                    इन विद्युत तरंगों के सहारे अवचेन में गहरे बैठी किसी गंभीर 
                    समस्या का समाधान तलाशने का प्रयास करता है और कभी-कभी हमारे 
                    व्यक्तित्व तथा भविष्य की ओर भी इशारे करने का प्रयास करता है। 
                    इस दिशा में अभी विस्तृत एवं गहन अनुसंधान की आवश्यकता है। 
                    सपनों के बारे में अब तक हम जो कुछ समझ सके हैं उनका 
                    सार-संक्षेप निम्न है:  सपने अक्सर कहानी के रूप में 
                    होते हैं। इनमें पात्र भी होते हैं, चित्र भी होते हैं तथा 
                    आवाज़ भी होती है।  सपनों में स्वप्न देखने वाला 
                    सदैव शामिल रहता है।  सपनों में हमारे साथ घटित नई 
                    बातें अक्सर शामिल रहती हैं और कभी-कभी हमारे मन में गहरे पैठी 
                    चिंताएँ तथा डर का भी समावेश होता है।  स्वप्न देखते समय यदि आस-पास 
                    आवाज़ हो रही हो तो अक्सर ये आवाज़ें भी सपने का हिस्सा बन 
                    जाती हैं।  सपनों को हम सामन्यतया 
                    नियंत्रित नहीं कर सकते।  तो ये रहीं सपनों की बातें। 
                    अब आइए हकीकत पर वापस चलें और जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलू 
                    अर्थात नींद से संबंधित कुछ और बातें भी जानें। यथा - क्या 
                    सोना ज़रूरी है? यदि हाँ, तो हमें अच्छी नींद के लिए क्या-क्या 
                    करना चाहिए?  हम मनुष्यों के लिए सोने की 
                    आवश्यकता के बारे में वैज्ञानिकों में अभी भी दुविधा की स्थिति 
                    बनी हुई है। फिर भी जानवरों पर किए गए कुछ प्रयोग नींद के 
                    महत्त्व को भली भाँति दर्शाते हैं। चूहे सामन्यत: २ से ३ साल 
                    तक जीवित रहते हैं। यदि उन्हें नींद की आरईएम अवस्था से स्थाई 
                    रूप से वंचित कर दिया जाय तो वे बड़ी मुश्किल से ५ सप्ताह तक 
                    ही जीवित रह पाते हैं। और यदि उन्हें नींद से पूरी तरह वंचित 
                    कर दिया जाय तो वे केवल ३ सप्ताह तक ही जीवित रह पाते हैं। 
                    उनके शरीर का तापक्रम भी असामान्य रूप से बहुत ही कम हो जाता 
                    है। उनकी पूँछ तथा पैरों पर घाव दीखने लगते हैं। अनिद्रा रोग- 
                    प्रतिरोधक क्षमता को हानिकारक सीमा तक कम कर सकती है। 
                     हमारे स्नायु तंत्र की कार्य 
                    क्षमता को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए भरपूर नींद आवश्यक 
                    है। लंबे समय तक बिना भरपूर नींद के जगे रहने का कुपरिणाम 
                    दूसरे दिन उनींदेपन तथा किसी कार्य में ध्यान न लगने के रूप 
                    में देखा जा सकता है। इसका दुष्प्रभाव स्मरण शक्ति तथा शारीरिक 
                    क्षमता में कमी के रूप में परिलक्षित होता है। व्यक्ति अन्कों 
                    के जोड़-घटाव, गुण-भाग आदि में ज़्यादा गल्तियाँ करता है। यदि 
                    अनिंद्रा की स्थिति आगे भी बनी रहे तो व्यक्ति विभ्रमित हो 
                    सकता है तथा उसकी मनोदशा में भारी उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है।
                     कुछ विशेषज्ञों के अनुसार 
                    निद्रा हमारी स्नायु कोशिकाओं को कुछ देर के लिए विश्राम तथा 
                    क्षतिपूर्ति का अवसर प्रदान करती है। बिना नींद के इन कोशिकाओं 
                    का ऊर्जा-स्तर खतरनाक हद तक नीचे गिर सकता है या फिर सक्रिय 
                    अवस्था में इनमें सामान्य जैव रसायनिक प्रतिक्रियाओं के लगातार 
                    चलते रहने के कारण विषाक्त पदार्थों का जमाव भी खतरनाक सीमा तक 
                    पहुँच सकता है। ऐसी परिस्थिति में ये कोशिकाएँ सुचारू ढंग से 
                    कार्य नही कर सकतीं। नींद, इनमें ऊर्जा के स्तर की 
                    पुनर्प्राप्ति तथा विषैले पदार्थों से मुक्ति का एक सहज उपाय 
                    प्रतीत होता है।  इसके अतिरिक्त यह भी पाया गया 
                    है कि गहन निद्रा की स्थिति में बच्चों तथा युवाओं में वृद्धि 
                    -हॉर्मोन्स का स्राव अधिक मात्रा में होता है। शरीर की बहुत सी 
                    कोशिकाओं में विशेष प्रकार के प्रोटीन्स का उत्पादान भी अधिक 
                    मात्रा में होते देखा गया है। ये प्रोटीन्स कोशिकाओं की वृद्धि 
                    तथा जागृत अवस्था में उनमें हुई टूट-फूट की भरपाई के काम आते 
                    हैं। गहन निद्रा को एक प्रकार के सौंदर्य-निद्रा की संज्ञा भी 
                    दी जा सकती है। भरपूर नींद लेने वाले व्यक्ति का भवनात्मक एवं 
                    सामाजिक व्यावहारिकता का पक्ष भी संतुलित रहता है।  कुल मिला कर संक्षेप मे कहा 
                    जा सकता है कि नींद हमारे सामान्य जीवन का अति आवश्यक अंश है। 
                    तो अब प्रश्न यह उठता है कि भरपूर अच्छी गहन निद्रा के लिए 
                    हमें क्या करना चाहिए? इस बारे में विशषज्ञों के सुझाओं का 
                    सार-संक्षेप निम्न है:  
                      
                      पर्याप्त शारीरिक श्रम तथा 
                    चिंता-मुक्त रहना अच्छे नींद की संभवत: पहली शर्त है। 
                      
                      अच्छी नींद के लिए २० से ३० 
                    मिनट का नियमित व्यायाम अवश्य करें, लेकिन सोने के समय के तथा 
                    व्यायाम के बीच पर्याप्त अंतराल होना चाहिए। 
                      सोने तथा जगने के समय के बारे 
                    में नियमिता बरतें। हर रात एक निश्चित समय पर सोएँ तथा 
                    सूर्योदय के साथ जगने का प्रयास करें । सूर्योदय के साथ जगने 
                    पर हमारे शरीर की जैविक घड़ी पर्यावरण के साथ आसानी से ताल-मेल 
                    बिठा लेती है और हमारा दिन अच्छा बीतता है। 
                      सोने के पूर्व गुनगुने पानी 
                    से नहाना, पढ़ना अथवा अन्य किसी साधन का सहारा, जिससे शरीर तथा 
                    मन पूरी तरह आराम की स्थिति में आ जाय - अच्छी नींद में सहायक 
                    होते हैं। 
                      सोने के पूर्व शराब जैसे 
                    नशीले या व्यसनी बनाने वाले पदार्थों यथा कॉफ़ी जैसे कैफ़ीन 
                    युक्त पेय आदि का सेवन न करें। एल्कोहल हमें गहन तथा आरईएम 
                    अवस्था वाली निद्रा से वंचित करता है। 
                      धूम्रपान करने वाले व्यक्ति 
                    भी गहन निद्रा की स्थिति में कम ही जा पाते हैं। जैसे ही उनके 
                    शरीर में निकोटिन की मात्रा कम होती है वैसे ही उनकी नींद टूट 
                    जाती है। सोने की गोलियों का सेवन बिना डॉक्टर की सलाह के तो 
                    कदापि न करें। 
                      नींद न आने की स्थिति में 
                    बिस्तर पर लेटे रहने से कोई लाभ नहीं होता। नींद नहीं आ रही 
                    है-इस बात की चिंता भी अनिद्रा की स्थिति ला सकती है। हमें उठ 
                    कर किसी हल्के फुल्के कार्य में लग जान चाहिए। ऐसा करने से 
                    थोड़ी देर में नींद आ जाती है। 
                      शयन कक्ष का नियंत्रित 
                    तापक्रम नींद की दृष्टिकोण से अच्छा है। बहुत ठंड या गर्मी 
                    नींद में बाधा उपस्थित करते हैं।  तो जनाब, जैसा कि इस आलेख के 
                    प्रारंभ में सुझाया गया है -कड़ी मेहनत के बाद हमारे शरीर को 
                    आराम की भी उतनी ही आवश्यकता है। अत: भरपूर सोइए तथा सुहाने 
                    सपने भी अवश्य देखिए। और हाँ, अच्छी नींद के लिए बिस्तर पर 
                    जाते समय किसी को मत देखिए अर्थात चिंता-मुक्त रहिए, लेकिन 
                    मुँह मत ढकिए; रोशनी का स्रोत अवश्य बंद कर दीजिए। शरीर में 
                    ऑक्सीजन की मात्रा कम होने तथा तेज़ रोशनी से भी नींद में 
                    व्यवधान पड़ सकता है। 
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