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"देखो पिताजी...। मैं
माँ जैसी दिखती हूँ ना...।" शीना
के हाथ में फ्रेम की हुई एक काली-सफेद फोटो थी, जो
उसने अपने गाल से सटा रखी थी। पिताजी चारपाई पर बैठे अखबार पढ़
रहे थे। उन्होंने चश्मे से शीना को देखा और अनमन सी 'हूँ' करके
फिर अखबार पढ़ने लगे। "पिताजी बताओ ना..."
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"हाँ बेटा, आप बिल्कुल अपनी माँ जैसी दिखती हो।" शीना के
पिताजी को अपनी बात में घसीटना चाहती थी।
"पर पिताजी माँ के बाल तो लंबे हैं...ये देखो।" शीना ने
अपनी उँगली फोटो के फ्रेम पर जमकर दबा रखी थी। मानो उसकी उँगली
फ्रेम के शीशे को भेदकर माँ की चोटी तक पहुँच जायेंगी। उसने वह
फोटो अखबार के ऊपर रख दी।
पिताजी ने चश्मा उतारा। अखबार एक तरफ
रखा और शीना को गोदी में बैठा लिया। फिर दोनों बाप–बेटी उस
फोटो को देखने लगे। घर की दीवार, दीवार पर खिड़की, खिड़की के ऊपर
चढ़ी हुई क्विस केलिस की बेल। खिड़की के ठीक सामने खड़ी शीना की
माँ, माँ का ऊँचाचा माथा, गोल बिंदी, बड़े–बड़े फूलों वाला सलवार
कुर्ता और दोनों कंधों से लटकती
मोटी लंबी चोटियाँ...।
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शीना सात साल की है। उसने
माँ की इस फोटो को कई बार देखा है।
फिर भी वह बार–बार उसे पिताजी के पास ले आती है। |