आज
हम लोग जिस नव वर्ष की खुशियाँ मना रहे हैं, वह नए कैलेंडर के
अलावा और क्या है? स्कूलों, ऑफ़िसों में छुट्टी, टीवी पर रात भर के कार्यक्रम और
रात के बारह बजे धमाल करने से आगे इस नव वर्ष का क्या महत्व
है? भारत में विक्रम संवत का प्रारंभ चैत्र से होता है जो लगभग
मार्च-अप्रैल के करीब पड़ता है और शक संवत का प्रारंभ कार्तिक
से जो अक्तूबर-नवंबर के आस पास आता है। अंग्रेज़ी नव वर्ष के
सबसे क़रीब हम लोग जो त्योहार मनाते हैं वह लोहड़ी, भोगली बिहू,
पोंगल, गुड़ी पड़वा या मकर संक्रांति मान सकते हैं। लेकिन
विश्व में कई जगह 'पश्चिम को छोड़ कर' नया साल एक बड़ा त्योहार
होता है। आइए, इनमें से कुछ की जानकारी ली जाए।
चीन
में एक महीने पहले से ही
घरों की सफ़ाई और रंग-रोगन चालू हो जाता है। इस त्योहार में
लाल रंग महत्वपूर्ण होता है और खिड़की दरवाज़े अक्सर इसी रंग
से रंगे जाते हैं। काग़ज़ के बंदनवार और सजावट की जाती है।
खाने में कुछ विशेष व्यंजन बनते हैं और पहनने में रंगों का
ख़ास ध्यान रखा जाता है। लाल पहनना शुभ, और काला या सफ़ेद अशुभ
समझा जाता है। साल की आखिरी रात के भोजन के बाद सारा परिवार एक
साथ ताश या चौपड़ जैसा कोई खेल खेलते हुए या टीवी देखते हुए नए
साल की प्रतीक्षा करता है। अगले दिन बच्चों और अविवाहितों को
खुशियों के प्रतीक के रूप में रकम से भरा लाल लिफ़ाफ़ा दिया
जाता है। रिश्तेदारों और पड़ोसियों के यहाँ जाकर बधाइयों का
आदान-प्रदान किया जाता है। चीनी लोगों का ऐसा मानना है कि हर
रसोई में एक देवता रहता है जो उस परिवार का सारे साल का
लेखा-जोखा वर्ष के अंत में ईश्वर के पास पहुँचाता है और वापस
उसी परिवार में लौट आता है। सो इस हफ़्ते में उसे विदा करने और
फिर से उसका स्वागत करने के लिए पूरे सप्ताह आतिशबाजी चलती है
और स्वागत समारोह आयोजित किए जाते हैं। तेज़ आतिशबाजी के पीछे
मक़सद बुरी आत्माओं को भगाना भी माना जाता है। यहाँ ड्रेगन
दीर्घ आयु और सुख समृद्धि का प्रतीक है।
जापानी
नव वर्ष पहले २० जनवरी से १९ फरवरी के बीच हुआ करता था। पर अब
यह २९ दिसम्बर की रात से ३ जनवरी तक ३ दिन तक मनाया जाता है।
इस पर्व को यहाँ याबुरी
नाम से जाना जाता है। हमारी दीवाली
की तरह घर की सफ़ाई इस
त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। घर ही नहीं अपितु बौद्ध
और शितो मंदिरों की भी बड़े आयोजन के साथ दिसंबर में ही सफ़ाई
और सजावट आरंभ हो जाती है। सजावट में पाइन बांस और प्लम पेड़ों
के विभिन्न हिस्सों का उपयोग किया जाता है और घर के बाहर रोशनी
की जाती है। जापानियों का मानना है कि साफ़ घर में सुख और
समृद्धि आती है।
इस त्योहार का प्रमुख कार्यक्रम होता है साल की अंतिम रात को
१२ बजे मंदिर की घंटियों का १०८ बार बजना। लोगों की सुविधा के
लिए इसका सजीव प्रसारण रेडियो और टीवी पर भी किया जाता है। इन
घंटियों की आवाज़ के साथ पूरा राष्ट्र एक साथ नव वर्ष की
प्रार्थना करता है। लोग मंदिरों में जाते हैं और भगवान बुद्ध
की पूजा करते हैं। ऐसा समझा जाता है कि इससे भगवान प्रसन्न हो
कर उनको साल भार सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। अगले तीन दिन तक
विशेष प्रकार का भोजन किया जाता है जिसमें "ओजोनी" नाम का सूप
अवश्य होता है। यह सूप सोयाबीन और मछली के शोरबे से बनाया जाता
है। कार्ड भेजना जापानियों में बहुत लोकप्रिय है। ये कार्ड
जापानी डाक सेवा 'नेनगाजो' से ख़रीदे जाते हैं और पहली जनवरी
से पहले ही पोस्ट कर दिए जाते हैं। जापानी डाकसेवा इन्हें पहली
जनवरी को बाँटने की विशेष व्यवस्था करती है। अनुमान है कि एक
जापानी नव वर्ष के सैंकडों कार्ड तक भेजता है।
म्यांमार में, जो भारत का पड़ोसी देश है, नव वर्ष के उत्सव को
'तिजान' कहते हैं जो तीन दिन चलता है। यह पर्व अप्रैल के मध्य
में मनाया जाता है। भारत में होली की तरह इस दिन एक दूसरे को
पानी से भिगो देने की परंपरा इस पर्व का प्रमुख अंग है। अंतर
इतना है कि इस पानी में रंग की जगह इत्र पड़ा होता है।
प्लास्टिक की पिचकारियों में पानी भर कर लोग बिना छत की
गाड़ियों में सवार एक दूसरे पर खुशबूदार पानी की बौछारें करते
चलते हैं। त्योहार की तैयारी एक हफ़्ते पहले से शुरू हो जाती
है। घरों की सफ़ाई और सजावट तो होती ही है, सड़कों पर शामयाने
लगाकर खुशी मनाई जाती है। मित्रों व परिचितों को बुलाया जाता
हे और मिठाइयाँ खिलाकर नव वर्ष के पर्व का मज़ा उठाया जाता है।
विभिन्न प्रकार के नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन
होता है और यह कार्यक्रम हफ़्ते भर तक चलते ही रहते हैं। भगवान
बुद्ध की पूजा का इस पर्व का विशेष अंग है।
ईरान
मे नव वर्ष के समारोह को 'नौरोज' कहते हैं। सूर्य के मेष राषि में प्रवेश करने के दिन
यह पर्व मनाया जाता है। यह अकेला ऐसा मुस्लिम पर्व है जिसका
मुहम्मद साहब से कोई संबंध नहीं है। लोग भोजन, मिठाइयों और
उपहारों की तश्तरियाँ एक दूसरे के घर भेजते हैं। साल के अंतिम
सप्ताह में बाज़ार सजावट और रोशनी से जगमगा उठते हैं। नये साल
का उत्सव बारह दिनों तक चलता है। नवरोज़ में मेज़ की सजावट का
विशेष महत्व होता है और इसको हफ़्तसिन कहते हैं। सिन अर्थात
'स' अक्षर से शुरू होने वाले सात व्यंजन परोसे जाते हैं।
त्योहार से पंद्रह दिन पहले गेहूँ के दाने बो दिए जाते हैं।
नौरोज़ के दिन मेज़ के चारों ओर बैठकर इन अंकुरों को पानी से
भरे बर्तन में परिवार के सभी लोग बारी-बारी से डालते हैं। मेज़
पर शीशा, एक झंडा, एक मोमबत्ती तथा एक रोटी रखी जाती है जो
ईरानी लोग शुभ मानते हैं।
बच्चे सेंटाक्लाज़ की तरह हाजी फिरूज़ का रूप धरण करते हैं।
भड़कीले रंग के ढीले ढाले पाजामे और चटकीली साटन की
कमीज़ें
पहन कर मुह पर काला रंग लगा कर भोपू और ढोल बजाते हुए, झुंड
बना कर नाचते गाते हुए सड़कों पर निकल पड़ते हैं और नए साल के
आने की सूचना हर किसी को देते हैं। साल के अंतिम बुधवार को
जगह-जगह अलाव जलाए जाते हैं। लोग इनके ऊपर से छलाँगें लगाते
हैं और अग्नि से याचना करते हैं कि वह अपना स्वस्थ लाल रंग
उन्हें प्रदान करे तथा अस्वस्थ पीला रंग ले ले। उपहार में
नए-नए नोट बाँटे जाते हैं, नए कपड़े पहने जाते हैं, लोग अपने
अपने घरों पर रोशनी करते हैं और शुभकामनाएँ देते हैं, कुरान का
पाठ भी होता है।
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