इसमें कोई मुश्किल नहीं होती,
अगर दुनिया में एक ही किस्म के साबुन होते। आखिर 'बोली को करना
ही क्या था? घर से निकलना था और मालकिन ने जो रुपये दिए थे,
उनसे दुकान जाकर साबुन खरीदना था। घर आकर मालकिन को साबुन और
बाकी के पैसे दे देने थे। इसमें दिक्कत क्या थी? यह तो कोई
बच्चा भी कर सकता है।
बोली वैसे उम्र के हिसाब से
बिल्कुल बच्ची तो नहीं थी लेकिन इस शहर के हिसाब से बच्ची ही
थी। कोरे दिमाग वाली बच्ची, जिसे यह मालूम नहीं था कि साबुन भी
कई तरह के होते हैं - जिस तरह से आदमी। बोली थी तो इसी धरती की
प्राणी, लिहाज़ा उसे यह तो मालूम था कि आदमी कई तरह के होते
हैं - जैसे वह और उसकी मालकिन। लेकिन इस धरती पर भी तो कई
दुनिया हैं - आदमी और साबुन की तरह। अब चूँकि बोली किसी दूसरी
दुनिया से इस नई दुनिया में आई इसलिए उसे यह पता नहीं था कि
साबुन भी कई तरह के होते हैं।
बोली को इस नई दुनिया में कदम
रखे हुए अभी एक माह भी नहीं हुआ था। वह करीब बीस दिन पहले अपने
मामा के साथ यहां आई थी। उसे अपनी पुरानी दुनिया से इस नई
दुनिया का सफर तय करने में कुछ ही पहर तो लगे थे। |