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पिछले सप्ताह कहानियों
में आज लगभग दो वर्ष होने जा रहे हैं। दिलीप ने काम धाम छोड़ रखा है। घर में भी शराब और शाम को 'पब' मे भी शराब। नाश्ते और भोजन मे केवल शराब ही शराब। ऐसा क्या दुख है दिलीप को? वह क्यों नहीं समझ पा रहा है कि उसके इस व्यवहार से जया को कितना दुख पहुंच रहा है? वह बेचारी दिन भर नौकरी करती है, घर आ कर अपनी बेटी पलक की पढ़ाई में सहायता करती है, और रात को भोजन बना कर दिलीप की प्रतीक्षा करती है। . . .अब तो प्रतीक्षा करना भी बन्द कर दिया है . . . ° सामयिकी
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेन परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी
सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार
शुक्ला