नार्वे निवेदन
विश्व
में उथल पुथल
इराक युद्ध पर
ईराक
युद्व को लेकर यूरोप में बिखराव हो गया है। नाटो ने भले
ही सैनिक सहायता के लिए टर्की को हरी झंडी दिखा दी परन्तु टर्की की
संसद ने बहुमत से अपनी भूमि का प्रयोग, अमेरिका द्वारा इराक के खिलाफ युद्ध
में करने से साफ मना कर दिया है। राष्ट्रपति बुश का इरादा अभी भी
विश्व से फन्डामेन्टलिस्टों को दुनिया से
या तो समाप्त करना है या उन्हें कमजोर करना है। बुश जी
कथित आतंकवाद के खिलाफ मुहिम के तहत इराक पर हमला करने पर
अड़े हुए हैं जबकि स्वयं अमरीकी जनता युद्व के पक्ष में नहीं है।
इराक
युद्ध को लेकर अधिकतर देशों के मन्त्रीगण दुनिया के विभिन्न
देशों की यात्राओं पर हैं। लॉबी कार्य बहुत तेजी पर है। ऐसी
और इतनी बड़ी हलचल पहले कभी नहीं देखी गयी। नार्वे के
प्रधानमन्त्री, विदेश मन्त्री और अन्य कुछ संसद सदस्य भी यात्रा पर हैं।
ब्रि्रटेन
के प्रधानमन्त्री भी बड़ी परेशानी में हैं क्योंकि उनकी विदेश
विकासमन्त्री श्रीमती क्लेयर शार्ट ने 10 मार्च को धमकी दी है कि
यदि ब्लेयर
इराक के खिलाफ युद्ध का अपना विचार नहीं त्यागते तो वे अपने पद
से त्यागपत्र दे देंगी।
संयुक्त
राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में इराक के विरूद्ध अमरीका और ब्रिटेन की तरफ से
यदि एक नया प्रस्ताव आता है तो फ्रांस
और रूस ने वीटो के प्रयोग से उसे रोकने का फैसला लिया
है। नार्वेजीय
पार्लियामेन्ट ने भी युद्ध होने पर 200 मिलियन क्रोनर (एक क्रोनर
भारतीय सवा छे रूपये के बराबर है।) मानवता सम्बन्धी
सहायता के लिए खर्च करने की अनुमति दी है।
समय निकट आने
और युद्ध के प्रारंभ होने पर अनेक समीकरण भी
बदलेंगे। अनेक देशों की स्थिति अधिकांशतया साफ हो जायेगी
कि उनका रूख युद्ध के पक्ष में है या विपक्ष में, या फिर ढुलमुल
रवैया है या तटस्थता।
यह विश्व युद्ध तो नहीं होगा पर उथलपुथल ऐसी होगी कि
विश्व के सभी देशों की अर्थव्यवस्था और राजनैतिक हालात
बदलेंगे। यह युद्ध विश्व मे एक नया सन्देश देगा। आदर्श नाम की
आस्था का भले ही धर्मगुरू और विश्व शक्ति गुरू ढिंढोरा पीटते
रहे हों परन्तु उनमें से अनेकों नेशनलिस्टों और
फन्डामेन्टालिस्टों जैसा व्यवहार करते नजर आयेंगे। अब वक्त ही
बतायेगा कि हम कितने शान्तिप्रिय हैं?
डा
सुरेश चंद्र शुक्ला 'शरद आलोक'
|