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प्रेरक-प्रसंग

पगडंडी
- पदमा चौगांवकर

चौड़े रास्ते ने पास चलती पगडंडी से कहा -
"अरी पगडंडी, मेरे रहते मुझे तुम्हारा अस्तित्व अनावश्यक-सा जान पड़ता है। व्यर्थ ही तुम मेरे आगे-पीछे, जाल-सा बिछाए चलती हो!"

पगडंडी ने भोलेपन से कहा, "नहीं जानती, तुम्हारे रहते लोग मुझ पर क्यों चलते हैं। एक के बाद एक दूसरा चला। और फिर, तीसरा, इस तरह मेरा जन्म ही अनायास और अकारण हुआ है!"
रास्ते ने दर्प के साथ कहा, "मुझे तो लोगों ने बड़े यत्न ने बनाया है, मैं अनेक शहरों-गावों को जोड़ता चला जाता हूँ!"
पगडंडी आश्चर्य से सुन रही थी। "सच?" उसने कहा, "मैं तो बहुत छोटी हूँ!"
तभी एक विशाल वाहन, घरघराकर रास्ते पर रुक गया। सामने पड़ी छोटी पुलिया के एक तरफ़ बोर्ड लगा था, "बड़े वाहन सावधान! पुलिया कमज़ोर है।"

वाहन, एक भरी हुई यात्री-गाड़ी थी, जो पुलिया पर से नहीं जा सकती थी। पूरी गाड़ी खाली करवाई गई। लोग पगडंडी पर चल पड़े। पगडंडी, पुलिया वाले सूखे नाले से जाकर, फिर उसी रास्ते से मिलती थी। उस पार, फिर यात्रियों को बैठाकर गाड़ी चल दी।

रास्ते ने एक गहरा नि:श्वास छोड़ा! "री, पगडंडी! आज मैं समझा छोटी से छोटी वस्तु, वक्त आने पर मूल्यवान बन जाती है।"

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