बल्लू हाथी का बालघर
(नाटक) -दिविक रमेश
पात्र
शेर : जंगलपति
खरगोश : मंत्री
बल्लू हाथी : एक बूढा हाथी
भालू, बंदर, लोमड़ी, चील आदि : सामान्य जानवर
भालिन : भालू की पत्नी
जानवरों के बच्चे : लोमड़ी, गधा, बंदर आदि |
दृश्य एक
जंगल का दृश्य। जानवरों की सभा। चील, चूहे
और मक्खियों जैसे
प्राणी भी मौजूद। शेर जंगलपति के आसन पर। खरगोश मंत्री के
स्थान पर। कुत्ते रक्षकों के रूप में खडे हैं। जानवर मुँह
हिला-हिलाकर बातचीत करने की मुद्रा में लीन। विचार-मग्न भी।
इसी दौरान एक थका-हारा बूढा हाथी वहाँ पहुँचता है और चुपचाप
सबसे पीछे बैठ जाता है। हर जानवर के बोलने के लहजे में उस
जानवर की आवाज का हल्का सा अभिनय।
शेर : तो आज हमने बहुत सी समस्याएँ सुलझा ली हैं। मुझे आधा है
कि मिलजुलकर जो भी निर्णय यहाँ लिए गए हैं उनका सभी जानवर पालन
करेंगे। प्रजातंत्र का सच्चा संदेश यही है।
जानवर : हम पालन करेंगे। हम पालन करेंगे।
शेर : पालन न करने वाले को कडी से कडी सजा दी जाएगी।
जानवर: ठीक है। ठीक है।
शेर : और हाँ, हमें शिकारी आदमियों का हर तरह से मुकाबला करना
होगा। उनके चंगुल से अपने को बचाए रखना होगा। हमारे दुश्मन
लोभी शिकारियों ने हममें से कितनों ही की तो नस्ल ही खतरे में
डाल दी हैं।
बंदर : आप ठीक कह रहे हैं। चीतल जैसे हमारे कितने ही दूसरे
जंगलवासी गिनती के रह गए हैं। चीता तो खत्म ही हो गया है।
शेर : खुद हम शेर भी खतरे में हैं। इसीलिए मेरा फैसला है कि
यदि कोई भी जानवर ऐसे लोभी शिकारियों का साथ देता पाया गया तो
उसे मौत की सजा दी जाएगी। बोलो मंजूर है।
जानवर : मंजूर हैं। मंजूर हैं।
लोमड़ी : (मुँह बनाकर) जरा कुत्तों और हाथियों से तो पूछ लो।
मैंने तो उन्हीं को मदद करते पाया है, शिकारियों की। मुझे तो
इनकी जात पर जरा भी विश्वास नहीं है।
खरगोश : मुझे यही बात पसंद नहीं है तुम्हारी। किसी कुत्ते या
हाथी ने साथ दे दिया तो कोस दिया उनकी पूरी जात को ही। और फिर
यह भी देखना चाहिए कि कहीं उनसे डरा-धमका कर या चालाकी से तो
काम नहीं लिया गया है। याद रखो किसी एक या कुछ के द्वारा गलत
काम करने या हो जाने से पूरी जाति या वर्ग गलत नहीं हो जाता।
यदि हम ऐसा सोचेंगे तो हमारी एकता की ताकत को धक्का लगेगा।
क्या हमारे ज्यादातर हाथी और कुत्ते अच्छे नहीं हैं?
बंदर : मंत्री जी ठीक कह रहे हैं। क्यों लोमड़ी, अब भी कुछ कहना
है तुम्हें?
लोमड़ी : मैं माफी माँगती हूँ।
शेर : गलती को मान लेना ही सबसे बडी माफी है। हमें खरगोश जी की
बुद्धि पर गर्व है। क्यों?
जानवर : हमें खरगोश जी की बुद्धि पर गर्व है।
शेर : ठीक है। कोई और समस्या? नहीं तो सभा समाप्त की जाएगी।
समय भी तो काफी हो गया है।
भालू : एक समस्या है महाराज। आज्ञा हो तो कहूँ।
शेर : (दु:खभरी नाराजगी दिखाते हुए) ठहरिए भालू भैया। आपको
मालूम है कि अब जंगल में राजा की प्रथा खत्म हो चुकी है। तब आप
मुझे महाराज क्यों पुकारते हैं। महोदय कहिए, महामहिम या
जंगलपति कहिए। (हँसकर) मुझमें क्यों मेरा राजापन जगाते हो भाई।
कहीं जाग गया तो (मजाक में हल्की सी दहाड) खैर आप अपनी समस्या
कहिए।
भालू : (विनम्र होकर) समस्या, असल में हम सबकी है जंगलपति।
(रूक कर सबकी ओर देखता है। जानवर जिज्ञासु नजर आते हैं) हम जब
काम पर जाते हैं तो कई बार अपने छोटे बच्चों को छोडना पडता है।
डर लगता है कि कहीं शिकारी उन्हें बहला-फुसला या डरा-धमकार पकड
न ले जाए। यूँ भी हमारे बच्चों का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि
माता-पिता उनकी अच्छी देखभाल करें।
शेर : हूँ। यह समस्या तो मेरी और मेरी शेरनी की भी है।
जानवर : हाँ, यह समस्या हम सबकी है। घर पर अकेले बच्चे ऊब भी
तो जाते हैं। कभी-कभी लडाई भी कर बैठते हैं। बच्चे जो ठहरे।
कोई देखने-टोकने वाला तो होता नहीं।
शेर : तो इस समस्या पर भी विचार कर लेना चाहिए। क्या किसी के
पास कोई तरकीब है? (सभी जानवर चुप है। शेर कुछ देर इन्तजार
करता है) इसका मतलब यह हुआ कि किसी के पास कोई तरकीब नहीं हैं।
क्या आपके पास भी कोई हल नहीं है खरगोश जी!
खरगोश : महामहिम! मैं तो इस समस्या पर खूब सोचता हूँ। मेरे पास
एक तरकीब है। पर डरता हूँ कि उसे अमल में लाने के लिए कोई
सहयोग नहीं देगा।
शेर : तरकीब तो बताओ!
जानवर : हाँ हाँ। पहले तरकीब तो बताइए।
खरगोश : तरकीब यह है कि एक सुरक्षित स्थान ढूँढा जाए। फिर वहाँ
सब बच्चों को छोडा जाए। देखरेख के लिए हम जानवरों में से कोई
आगे आए।
शेर : लेकिन क्या सब बच्चे एक साथ रह सकेंगे। लडेंगे नहीं।
मुझे तो डर है कहीं एक दूसरे को मार कर खा ही न जाएँ। सभाओं
की बात दूसरी है वरना।
खरगोश : यही तो हम बडे मात खा जाते हैं। बच्चों और बडों में
फर्क होता है। बच्चे मिल-जुलकर रहना पसन्द करते हैं। लडना
उन्हें सिखाया जाता है। यूँ भी हम जानवर अपनी ओर से किसी को
कुछ नहीं कहते जब तक हमारी जान को ही खतरा न हो।
शेर : यह तो आपने ठीक कहा खरगोश जी। (जानवरों की ओर देखकर)
क्या आपको तरकीब पसंद है? क्या बच्चों के पास रहकर उनकी देखरेख
की जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार है? (जानवर एक-दूसरे को देखते
हैं पर चुप रहते हैं।) तो क्या मैं समझूँ कि खरगोश जी की तरकीब
कामयाब नहीं रही। (शेर फिर जानवरों की ओर देखता है। तभी उसकी
नजर सबसे पीछे बैठे बूढे हाथी पर पडती है। शेर आशंका के साथ
पूछता है) आप कौन हैं? पहले तो कभी आपको देखा नहीं। (सब जानवर
पीछे मुड-मुड कर देखते हैं। हाथी खडा हो जाता है।)
बूढा हाथी : हाँ महोदय। मैं एक दु:खियारा हाथी हूँ। बूढा हूँ।
जंगल में जानवरों की यह सभा देखी तो मैं भी पीछे बैठ गया। मुझे
खरगोश जी की तरकीब ठीक लगी।
शेर : (हैरानी से) लेकिन आप इस जंगल के तो नहीं लगते।
बूढा हाथी : जी। मैं इस जंगल का हूँ भी और नहीं भी। मेरी एक
लम्बी कहानी है।
शेर : तो पहले हम आपका परिचय चाहेंगे। हम जानते हैं कि बहुत से
शिकारी - आदमी हमें पकडने के लिए चालाकियाँ बरतते हैं। हमें
उनके जासूसों से सावधान रहना पडता है। कहीं
बूढा हाथी : नहीं महोदय! मैं उन मजबूर हाथियों में से नहीं
हूँ। मेरा यकीन कीजिए। आज ही दूर की एक बस्ती से दु:खी होकर
किसी तरह बचता बचाता जंगल में आया हूँ। मेरा शिकारियों से कोई
वास्ता नहीं है। यहाँ जंगल में तो बहुत कुछ बदल गया है।
शेर : क्या आप इस जंगल में पहले भी आ चुके हैं?
बूढा हाथी : मैं पैदा ही इस जंगल में हुआ था। बहुत
धुँधला-धुँधला याद है। तब मैं बहुत छोटा था। जंगल में शिकारी
आदमी आए। माँ-बाप ने तो अपनी जान बचा ली। मैं पकड लिया गया। वे
मुझे पकड कर जंगल से दूर ले गए। एक गाँव के बडे से अहाते में
ले जाकर मुझे बांध दिया गया। मुझे अपने माँ-बाप और साथी
जंगलवासियों की बहुत याद आई। खाना अच्छा ही नहीं लगता था। मुझे
खूब रोना आया। लेकिन आखिर समझोता करना पडा।
शेर : समझौता?
बूढा हाथी : जी कब तक भूखा रहता। मुझे प्यार भी दिखाया जाता था
और मार भी खानी पडती थी। मेरी गर्दन देखिए। (सब जानवर देखते
हैं।) ये गड्ढे लोहे की एक चीज के हैं जिसे आदमी अंकुश कहता
है। मैंने अपनी पूरी जवानी अपने मालिक आदमी की सेवा में खपा
दी। कभी कोई शिकायत नहीं की। जो मिल खा लिया।
शेर : तब?
बूढा हाथी : लेकिन अब जब मैं बूढा हो गया और पहले जितना काम
करने लायक नहीं रह गया तो मुझे ज्यादा सताया जाने लगा।
शेर : वह कैसे?
बूढा हाथी : एक से एक जुल्म किए गए मुझ पर। आप पूछते हैं तो
बताता हूँ। यूँ सोच कर भी काँप उठता हूँ। एक बार मुझ पर जरूरत
से भी ज्यादा लकडियाँ लाद दी गई। मुझसे चला नहीं जा रहा था।
कमर टूटी जा रही थी। लेकिन महावत था कि जब देखो तब मेरी गर्दन
में अंकुश गाड़ देता। मैं दर्द के मारे भीतर ही भीतर कराहा कर
रह जाता। जानते हैं न कि महावत भी एक आदमी होता है जो प्यार भी
जताता है लेकिन अपना काम निकालने के लिए बेरहम भी हो जाता है।
अब क्या क्या बताऊँ।
शेर : यह तो आदमी की ज्यादती है। बुढापे का ख्याल तो करना
चाहिए था न उसे।
बूढा हाथी : आदमी बहुत स्वार्थी होता है महोदय। वह केवल अपनी
सोचता है। हद तो यह है कि मैंने आदमियों के जंगल में ऐसा भी
कुछ देखा जिसे सुनकर आप हैरान होंगे।
शेर : वह क्या?
बूढा हाथी : कुछ आदमी तो अपने ही बडे-बूढों तक का ध्यान नहीं
रखते। उनका अपमान करते हैं। कभी-कभी तो मारते-पीटते भी हैं।
उनके कमजोर शरीर का भी ध्यान नहीं करते। ऐसे आदमियों से भला
में जानवर क्या उम्मीद करता।
शेर : बडे बेशर्म हैं ये आदमी। (गुस्से में) आपने ऐसे दुष्टों
को रोंद क्यों न डाला।
बूढा हाथी : क्या करता। मजबूर था। फिर उनका नमक भी खाया था।
जिस थाली में खाया उसी में छेद तो नहीं कर सकता था न? हम
जानवरों में एहसान की क्या कीमत होती है यह तो आप जानते ही
हैं। आदमी तो अपने स्वार्थ के आगे अपने सगे तक का ऐहसान भुला
दे।
शेर : यह तो आपने ठीक कहा।
बूढा हाथी : और फिर आदमी चालाक भी बहुत होता है। काम निकालना
हो तो चापलूसी भी खूब कर सकता है। हम जैसे भोले जानवरों के लिए
तो थोडा सा प्यार ही बहुत होता है। हम तो प्यार के आगे अपने पर
किए जुल्मों को भी माफ कर देते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ।
कई बार मैं आदमी की चाल में आकर उसे माफ करता रहा। सताया जाकर
भी उसके लिए पेड ढोता रहा
शेर : (घृणा से) धूर्त, स्वार्थी। नासमझ कहीं का। जंगल के
पेडों तक को बेरहमी से काट डालता है। पेड खुद उसके लिए कितने
जरूरी हैं, इस बात की भी परवाह नहीं करता।
बूढा हाथी : हाँ बस उस आदमी का वह बच्चा बहुत अच्छा था। उसकी
बहुत याद आ रही है। कितना प्यार करता था। मैं तो चाहता हूँ कि
सब आदमी बस बच्चे ही हो जाएँ। कितने अच्छे होते हैं बच्चे।
चाहे हमारे हों या आदमियों के। वह बच्चा तो बूढे आदमी को भी
बहुत प्यार करता था। मुझे जब मार पडती तो उसे बहुत दु:ख होता।
मार के बाद वह मेरे पास आता। मेरे संूड को सहलाता। लिपटता।
चूमता। चोरी से लाया चूरमा खिलाता और कहता, "मैं बहुत छोटा हूँ
न? इसीलिए तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।" किसी के आने की आहट
आते ही बेचारा चला जाता।
शेर : आपकी कहानी तो बहुत दु:खभरी है। (जानवर भी दु:खी हैं)
बूढा हाथी : दु:ख से छुटकारे के लिए ही तो मैंने आदमी का घर
छोड दिया। (आह भरते हुए) और किसी तरह जंगल की राह ली। यही सोचा
कि आखिरी सांस तो अपनी जन्मभूमि पर छोड सकूँगा। अपने तकलीफ भी
देंगे तो सह लूँगा।
शेर : नहीं आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। यह जंगल आपका है। हम सब
आपके हैं। आप हमारे बुजुर्ग हैं। हम आपकी मदद करेंगे। (जानवरों
की ओर देखकर) क्या कहते हैं आप सब?
खरगोश : हाँ हम सब मदद करेंगे।
बंदर : मैं भी। मैं हाथी दादा की जूँ निकालूँगा।
चील : अरे बुद्धू जूँ तो तुम्हारे शरीर में होती हैं। कभी
नहाते भी हो? (सब जानवर हँसते हैं)
बूढा हाथी : (आँखें खुशी से गीली) चील तुम बहुत शरारती हो। पर
बंदर जी ने ही आप सबको हँसाया है। उनका शुक्रिया करना चाहिए।
मैं तो आप सभी का आभारी हूँ। पर यह भी बता दूँ कि मैंने आदमी
की कुछ खूबियों को भी जाना है। मैंने वहाँ मेहनत करना सीखा है।
भिखारियों की, आदमियों के जंगल में भी इज्जत नहीं। सो मैं
मुफ्त की रोटी नहीं तोडना चाहता।
शेर : रोटी?
एक जानवर : यह रोटी क्या है हाथी दादा?
बूढा हाथी : बहुत प्यारी चीज है। आदमी इसे अपने हाथ से बनाते
हैं। आग में। बस यूँ समझो कि रोटी माने खाना।
बंदर : तो आज से मैं भी खाने को रोटी कहूँगा। (हँसता है) रोटी
रोटी रोटी (सब हँसते हैं)
बूढा हाथी : मेरी आपसे यही विनती है कि आप मुझे एक खास काम
करने की आज्ञा दें। ताकि मैं इज्जत का खाना खा सकूँ।
शेर : आप नहीं ही मानते तो हमें मंजूर है। पर वह खास काम है
क्या? आपके योग्य भी है कि नहीं?
बूढा हाथी : वही। खरगोश जी की तरकीब वाला। बच्चे मुझे बहुत
प्यारे हैं। और बच्चे भी तो मुझे बहुत प्यार करते हैं। मैं न
केवल उनकी देखभाल करूंगा बल्कि उन्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ भी
सुनाऊँगा। उन्हें अच्छे-अच्छे खेल भी सिखऊँगा।
शेर : अच्छा।
बूढा हाथी : जब में आदमियों के जंगल में था तो मेरा कुछ समय उस
स्थान पर भी बीता था जिसे आदमी शहर कहते हैं। वहाँ माँ-बाप काम
पर जाने से पहले अपने बच्चों को एक खास स्थान पर छोडते हैं।
क्या नाम था हाँ क्रेश याने बालघर। आपकी आज्ञा हो तो मैं भी
सुरक्षित स्थान देखकर बालघर बनाना चाहूँगा। उसमें छोटे ही नहीं
बडे बच्चे भी आ सकेंगे।
शेर : यह तो बडी अच्छी बात है। (खरगोश को देख कर) क्यों मंत्री
जी?
खरगोश : हमारी तो समस्या ही हल हो गई महामहिम! (बूढे हाथी को
देखकर) हम आपके आभारी हैं।
जानवर : हम हाथी दादा के आभारी हैं।
शेर : (बूढे हाथी से) खरगोश जी कोई अच्छी सी जगह खोजने में
आपकी मदद करेंगे। आप जल्दी से जल्दी वो क्या कहते हैं हाँ
बालघर शुरू करने की तैयारी कीजिए। कोई भी कठिनाई हो तो कहिएगा।
जानवर : हम सब आपके साथ हैं।
बूढा हाथी : आप नहीं जानते कि आपने मेरा कितना भला किया है। अब
बच्चों के बीच इस बूढे का समय खुशी-खुशी कट जाएगा। अपने आदमी
मालिक के बच्चे से बिछुडने का दु:ख भी बँट जाएगा। मैं आपका दिल
से आभारी हूँ।
खरगोश : नहीं दादा ऐसा मत कहिए। आप बडे हैं। आप महान हैं।
बंदर : हाथी दादा आप अपने बल के लिए मशहूर हैं। तो क्या हम सब
आपको बल्लू दादा कह कर पुकारें?
जानवर : हाँ हाँ आपको हम बल्लू दादा कहेंगे।
बूढा हाथी : क्यों नहीं? क्यों नहीं?
शेर : बोलो बल्लू दादा की जय।
जानवर : जय। बल्लू दादा की जय।
बूढा हाथी : (सूँड़ उठा उठाकर जय जयकार को रोकने का संकेत करते
हुए) लेकिन मेरी एक शर्त भी है। शर्त नहीं बल्कि प्रार्थना ही
समझें।
शेर : शर्त? प्रार्थना? (सब जानवर चौंककर देखते हुए)
बूढा हाथी : प्रार्थना यह है कि आप बडे अपने झगडों को अपने तक
ही सीमित रखेंगे। उनमें बच्चों को नहीं उलझायेंगे।
लोमड़ी : यह कैसे संभव होगा? बच्चे कोई अलग हैं हमसे? हमारी
लडाई उनकी भी लडाई होगी और हमारा प्यार उनका भी प्यार होगा।
बुढा हाथी : यही तो समझने की बात है। बच्चों के दिमाग कोमल
होते हैं। उन पर गलत बातों का बहुत जल्दी और बुरा असर पडता है।
वे सीधे-सच्चे होते हैं उनकी अपनी दुनिया होती है।
शेर : आप से क्या बहस की जाए। आप तो ज्ञानी हैं। हमें आप पर
पूरा भरोसा है, बल्लू दादा। लेकिन हमें इतना हक जरूर दीजिए कि
जब भी कोई नुकसान होता देखें तो हम आपसे बालघर को बंद करने की
प्रार्थना कर सकें।
बूढा हाथी : बिलकुल ठीक। इसी को समझदारी कहते हैं। बालघर हमारा
प्रयोग है।
शेर : धन्यवाद। (सब की ओर देखते हुए) अच्छा तो मेरे प्यारे
जंगलवासियों! अब सभा समाप्त होती है।
जानवर : जंगलपति शेर की जय। हमारे जंगलपति की जय। बल्लू दादा
के बालघर की जय। मंत्री जी की जय।
(संगीत उभरता है। जानवर गपशप करते हुए चल पडते हैं)
(दूसरा दृश्य)
नदी किनारे बल्लू हाथी (बल्लू दादा) का बालघर। घने पेड। जानवर
अपने अपने बच्चों को लिये हर ओर से आते दिखाई दे रहे हैं।
बच्चे उछलते कूदते आ रहे हैं। एक दो बच्चे रो भी रहे हैं।
बल्लू दादा बच्चों को प्यार कर चुप कर देते हैं। एक दिशा से
भालू अपनी पत्नी और बच्चों के साथ आते हैं।
भालू : बल्लू दादा! ओ बल्लू दादा! (बल्लू हाथी सामने) लो
संभालो इन शैतानों को। जरा कस कर रखना। नहीं तो नाक में दम कर
देंगे आपकी। पता नहीं किस पर गए हैं शैतान। मामा की तरफ की ही
शैतानी नजर आती है मुझे तो। (हँसता है)
भालिन : (तुनक कर) अजी रहने दो। अपने को देखो। अभी तक मसखरी
करने की आदत नहीं गईं। (हाथी हँसता है और भालू भी)
बल्लू हाथी : अरे छोडो भी इन हठखेलियों को। बच्चे शरारत नहीं
करेंगे तो क्या हम तुम करेंगे। शरारती बच्चे समझदार भी बहुत
होते हैं। (बच्चों की ओर देखते हुए) आओ बच्चों, चलो अन्दर चलो।
बडे प्यारे बच्चे हैं। इन्हें तो मैं खूब कहानियाँ सुनाऊँगा।
भालू-बच्चे : सच बल्लू दादा।
बल्लू हाथी : हाँ, यहाँ बहुत मजा आएगा तुम्हें।
जानवर - बच्चे : (एक एक कर) हमारे माँ-बाप को फुर्सत ही नहीं
होती। कहानियाँ सुनाने की। थके-हारे आते हैं और सो जाते हैं।
कहानी सुनाना कल-कल पर टालते रहते हैं। आप तो नहीं टालेंगे न
बल्लू दादा!
बल्लू हाथी : मैं क्यों टालूँगा बच्चो। तुम्हारे माता-पिता को
सचमुच मेहनत करनी पडती है। उन्हें फुर्सत कहाँ। मैं तो खाली
हूँ। तुम्हारी ही तरह। तो खूब मजा करेंगे। खूब कहानियाँ
चलेंगी। इतनी कि तुम सुनते-सुनते ऊब जाओगे।
खरगोश - बच्चा : (खिलखिलाते हुए) आप भी कितने भोले हैं बल्लू
दादा। कभी बच्चे भी कहानियों से ऊबते हैं? (जानवर हँसते हैं)
भालू : अरे बल्लू दादा, आपके पास तो जादू है जादू। कितना घुल
मिल गए हैं। हमारे तो सँभाले नहीं सम्भलते। खैर आप जानें या
ये। हम तो चले काम पर। शाम को मिलेंगे (बच्चों की ओर देखकर) और
हाँ, दादा को तंग नहीं करना बच्चो। जैसा कहें, करना।
(जानवर चल पडते हैं। बच्चे देखते हैं। बल्लू हाथी बच्चों को
संबोधित करते हुए)
बल्लू हाथी : देखो बच्चो आज सबसे पहले मैं तुम्हें एक मजेदार
पर काम की बात बताऊँगा।
बंदर - बच्चा : और कहानी?
जानवर - बच्चे : हाँ हाँ पहले कहानी।
बल्लू हाथी : हाँ हाँ कहानी तो होगी ही। पर गहरी दोस्ती के लिए
कुछ बातें तो हो जाएँ। अच्छा पहले थोडा खेल-कूद तो लो ताकि
व्यायाम हो जाए और तुममें ताकत आ जाए। इस बीच मुझे तुम्हारे
लिए एक अच्छा सा गीत तैयार करना है।
बच्चे : गीत?
बल्लू हाथी : हाँ गीत जिसे तुम गा सको। हर रोज। बच्चो गीत हो
या कहानी उसका मजा भी लेना चाहिए और उसकी सीख पर ध्यान भी देना
चाहिए।
बंदर-बच्चा : पर आप कहानी कब सुनाएँगे बल्लू दादा। हम तो बोर
हो रहे हैं।
बल्लू हाथी : सब्र। सब्र का फल मीठा होता है। और हर चीज का
अपना समय। जानते हो जब मैं आदमियों के जंगल में था तो मुझे यह
देखकर दु:ख होता था कि कई बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय टी.वी.
पर कार्टून देखने या कम्प्यूटर पर खेल खेलने में बिताते थे।
(बच्चे ऊबने लगते हैं। कुछ उबासियाँ लेने लगते हैं।)
बल्लू हाथी : अरे तुम तो ऊबने लगे। (हँसते हुए) मेरी बात समझ
तो आ रही है न? वैसे अच्छी बातें किसे अच्छी लगती हैं। चिन्ता
मत करो। कहानियाँ भी होंगी। (प्यार से) अच्छा चलो अब भागो और
थोडा खेल कूद लो। गीत तैयार होते ही तुम्हें बुलाता हूँ।
जानवर - बच्चे : तो हम जल्दी से खेल-कूद कर आते हैं।
बल्लू हाथी : ठीक हैं।
(बच्चे चले जाते हैं और मंच के दो कोनों में खेलने लगते हैं।
बीच में आगे की ओर बल्लू हाथी कुछ सोचने और लिखने की मुद्रा
में। मंच पर अँधेरा। प्रकाश । हाथी के चेहरे पर काम खत्म होने
का संतोष)
बल्लू हाथी : आओ बच्चो आओ। अब तो तुम खेल चुके होंगे। मैंने भी
गीत तैयार कर लिया है।
(बच्चे दौडे दौड़े आते हैं।)
बल्लू हाथी : तो गीत शुरू करें। मैं पहले बोलूँगा। पीछे पीछे
तुम बोलना। बाद में हम मिलकर गाएँगे। तो बोलो - हम जानवर जंगल
के, हमको जंगल प्यारा है।
जानवर - बच्चे : हम जानवर जंगल के, हमको जंगल प्यारा है।
गधा - बच्चा : बल्लू दादा एक बात कहूँ। गुस्सा तो नहीं करेंगे?
बल्लू हाथी : नहीं नहीं। कहो, बिना डरे।
गधा - बच्चा : हम अगर ऐसा बोले तो कैसा लगेगा - हम बच्चे जंगल
के, हमको जंगल प्यारा है।
बल्लू हाथी : (सोचते हुए और पंक्ति को गुनगुनाते हुए) हम जानवर
जंगल के हम बच्चे जंगल के (खुश होते हुए) बहुत अच्छा सुझाव है
तुम्हारा। तुम तो आलोचक निकले। शाबाश बस जरा यूँ कर लेते हैं -
हम बच्चे हैं जंगल के, हमको जंगल प्यारा है। ठीक। तो बोलो - हम
बच्चे हैं जंगल के, हमको जंगल प्यारा है।
बच्चे : हम बच्चे हैं जंगल के, हमको जंगल प्यारा है।
बल्लू हाथी : अब आगे- अलग अलग है रंग हमारे
बच्चे : अलग अलग है रंग हमारे
बल्लू हाथी : अलग अलग है ढंग हमारे
बच्चे : अलग अलग है ढंग हमारे
बल्लू हाथी : अलग अलग है घर हमारे
बच्चे : अलग अलग है घर हमारे
बल्लू हाथी : खान पान सब न्यारे न्यारे
बच्चे : खान पान सब न्यारे न्यारे
बल्लू हाथी : जंगल एक हमारा है, हमको जंगल प्यारा है
बच्चे : जंगल एक हमारा है, हमको जंगल प्यारा है
बल्लू हाथी : आओ अब गीत का यह हिस्सा मिल कर गाते हैं - और जरा
घूम घूम कर।
हम बच्चे हैं जंगल के
हमको जंगल प्यारा है
अलग अलग है रंग हमारे
अलग अलग है ढँग हमारे
खान पान सब न्यारे न्यारे
जंगल एक हमारा है
हमको जंगल प्यारा है।
कहो बच्चो मजा आया न?
बच्चे : हाँ बल्लू दादा बहुत मजा आया।
बंदर बच्चा : ओह गीत भी बहुत मजेदार होता है।
बल्लू हाथी : अच्छा!
बच्चे : अब गीत का अगला हिस्सा भी तो सिखाएँ।
बल्लू हाथी : तो सुनो - - पहले पूरा हिस्सा। फिर पहले की तरह
एक एक पंक्ति
जंगल से ही जीवन अपना
जंगल से ही सच है सपना
सबसे पहले जंगल अपना
इस पर वारें सबकुछ अपना
जंगल देश हमारा है
हमको जंगल प्यारा है
(सब की ओर इशारा करता है। सब गाते हैं)
हम बच्चे हैं जंगल के
हमको जंगल प्यारा है
बल्लू हाथी : बहुत खूब बहुत खूब। तुम तो बहुत ही होशियार बच्चे
हो।
बंदर बच्चा : पर हमारी कहानी कब होगी बल्लू दादा?
बल्लू हाथी : लगता है तुम्हें कहानी बहुत अच्छी लगती है। अच्छा
यह बताओ तुम्हें कैसी कहानी अच्छी लगती है?
बंदर-बच्चा : जो मजेदार हो। (बल्लू हाथी हँसता है)
बल्लू हाथी : भई मैं तुम्हें कुछ आदमियों वाली कहानियाँ भी
सुनाऊँगा।
बच्चे : आदमी!
बल्लू हाथी : हाँ भई यह एक मजेदार बात है। तुम तो कभी आदमियों
के बीच रहे नहीं न? बडे चालाक लेकिन समझदार होते हैं। उनकी
बहुत सी कहानियाँ ऐसी हैं जिनके पात्र हम जानवर हैं। कभी कभी
तो वे अपनी कल्पना से हमें ऐसा दिखाते हैं कि बस पूछो मत। हँसी
भी आ जाती है और हैरानी भी।
बच्चे : अच्छा!
बल्लू हाथी : हाँ। तुम्हें भी आदमियों वाली कहानियाँ पसंद
आएँगी। पर भई कहानी के साथ साथ थोडी सेवा भी करनी पडेगी।
बच्चे : सेवा?
बल्लू हाथी : नहीं समझे न? अरे भई आदमी जब अपने बच्चों को
कहानी सुनाते हैं तो साथ-साथ अपने हाथ, पांव और पीठ दबवाते
हैं। इसी को सेवा कहते हैं। (हँसते हुए) खैर तुम घबराओ मत। मैं
कम ही सेवा करवाऊँगा। (बच्चे एक दूसरे को देखते हैं) अच्छा तो
अब काफी समय हो गया है। हमारी दोस्ती भी खूब हो गई है।
बंदर - बच्चा : तो बल्लू दादा कहानी तो सुनाइए न?
बल्लू हाथी : पहले कुछ खा-पी तो लो।
खरगोश - बच्चा : मुझे तो बहुत भूख लगी है।
बच्चे : हमें भी।
बल्लू हाथी : तो जाओ मजे से मिल बाँट कर खाओ पीओ। (बच्चे चले
जाते हैं। थोड़ी देर में एक छोटा बच्चा 'खरगोश' रोता हुआ आता
है)
खरगोश - बच्चा : बल्लू दादा! बल्लू दादा! लोमड़ी - बच्चा मुझे
बहका कर मेरा खाना खा गया। अब अपना खाना मुझे नहीं देता।
बल्लू हाथी : अच्छा यह तो बुरी बात है। चलो देखते हैं।
बल्लू हाथी : (लोमड़ी बच्चे से) बेटे क्या तुमने खरगोश का खाना
खाया है? (लोमड़ी - बच्चा चुप) यह तो अच्छी बात नहीं। किसी
भोले-भाले प्राणी को ठगना नहीं चाहिए। हम जानवर इसीलिए बदनाम
हैं कि हम अपने से छोटे या कमजोर को तंग करते हैं या खा जाते
हैं। इसीलिए हमें जंगली और असभ्य कहा जाता है। मैंने अच्छे और
सभ्य आदमी देखें हैं। सुना है कि वे भी पहले जंगली थे और सभ्य
नहीं थे।
बंदर-बच्चा : पर मेरे बापू तो कह रहे थे कि आदमियों के जंगल
में बंदूकों, गोले-बारूदों से एक दूसरे को मार डालते हैं।
कमजोर आदमी वहाँ भी डर डर कर जीते हैं।
बल्लू हाथी : तुम्हारे बापू ने ठीक बताया है। पर हमें किसी की
भी केवल अच्छी बातें सीखनी चाहिए। बुरी नहीं। चाहे वे मेरी ही
क्यों न हों।
लोमड़ी बच्चा : मुझे माफ कर दीजिए बल्लू दादा।
बल्लू हाथी : शाबाश। बच्चो क्या तुम चाहते हो कि आज खरगोश भूखा
रहे।
बच्चे : नहीं। (सब बच्चे थोडा थोडा खाना खरगोश को देते हैं)
बल्लू हाथी : बच्चों अब हम शाम हो चली है। वह देखो तुम्हारे
माता-पिता भी तुम्हें लेने आ रहे हैं। अब कहानी कल ही हो
पाएगी। तुम जल्दी जल्दी अपना गाना गाओ। याद है न?
बच्चे : हम बच्चे हैं जंगल के
जंगल हमको प्यारा है
अलग अलग है रंग हमारे
अलग अलग है ढंग हमारे
अलग अलग है घर हमारे
खान-पान सब न्यारे न्यारे
जंगल एक हमारा है
हमको जंगल प्यारा है।
(पास खडे माता-पिता खुश हैं। बच्चे उनके साथ कूदत-फाँदते चल
पडते हैं। कोई कोई गीत भी गुनगुनाता है। बल्लू हाथी गीली आँखों
से देखता रहता है।)
तीसरा दृश्य
अगली सुबह। बालघर। बल्लू हाथी छिपे हुए हैं। बच्चे खुश हैं।
अपना गीत गा रहे हैं। खत्म होने पर बाहर निकल कर
बल्लू हाथी : वाह! वाह! बहुत अच्छा। तो आओ बच्चो चलो नदी
किनारे। वहाँ नहाएँगे खूब मजे से और फिर होगी
बच्चे : आदमियों वाली कहानी।
बल्लू हाथी : अरे तुम्हें तो याद है।
बंदर -बच्चा : बल्लू दादा मुझे तो रात नींद भी बहुत देर से
आयी। यही सोचता रहा कि कैसी होगी कहानी।
बल्लू हाथी : अच्छा ! तो आओ चलें नदी किनारे।
(सब नहाते हैं)
बल्लू हाथी : चलो भई अब नहाना बंद करो। मजा आया न?
बच्चे : हाँ बल्लू दादा। अब हम रोज नहाया करेंगे।
गधा - बच्चा : कितना अच्छा लग रहा है नहा कर!
बल्लू हाथी : तो जल्दी से व्यायाम करके मेरे पास पहंुचो ताकि
कहानी (सब चले जाते हैं)
(अंतिम दृश्य)
बल्लू हाथी को बच्चे घेर कर बैठे हैं।
बल्लू हाथी : बच्चो यह कहानी भोलू किसान और धूर्त साधुओं की
है। एक था भोलू किसान। (कहानी सुनने-सुनाने का मूक दृश्य)
तो बच्चो यह थी भोलू किसान की कहानी। अच्छी लगी न? अब शाम हो
चली है। तुम्हारे माता-पिता भी आ चले हैं। तो अब जाने से पहले
गीत हो जाए। (बच्चे गीत गाते हैं। माता-पिता पास आ आकर चुपचाप
खडे होते जाते हैं। खुश)
(गीत समाप्त)
भालू : बल्लू दादा आपने तो कमाल कर दिया है। बच्चों के आपसी
प्यार को देखकर अब तो हम बडों को भी अपने झगडों पर शर्म आने
लगी है।
गधा : हाँ बल्लू दादा, भालू भाई ठीक कह रहे हैं।
बंदर : मैं तो सोच ही नहीं सकता था कि अलग अलग जानवरों के बीच
भी इतना प्यार हो सकता है और वे साथ साथ रह सकते हैं!
खरगोश : घर में भी कितने अच्छे और भले हो गए हैं ये बच्चे।
कितनी इज्जत देते हैं हम बडों को। झगड़ा भी नहीं करते। बल्कि
मदद ही करते हैं। अच्छी अच्छी बातें करते हैं। मैं तो कहूँगा -
बल्लू दादा की जय! बल्लू दादा के बालघर की जय!
शेर : मंत्री जी ने ठीक कहा।
सब जानवर : जय। बल्लू दादा की जय! बल्लू दादा के बालघर की जय।
बल्लू दादा : असल में तो हमें करनी चाहिए 'जानवरों की जय!
जानवरों के बालघर की जय!'
बच्चों की जय! हम सबके आपसी मेल मिलाप से ही यह बालघर इतना
अच्छा चल रहा है। और जब तक यह मेल मिलाप रहेगा, यह बालघर भी
चलता रहेगा और हमारा देश जंगल भी बना रहेगा।
शेर : हम सब आपके साथ हैं। अब हम आपके प्रति आभार प्रकट करते
हुए आपसे विदा लेते हैं। आप भी आराम कीजिए। हमारे लायक सेवा हो
तो जरूर बताइये।
(जानवर चल पडते हैं। बच्चे गीत गुनगुनाते, उछलते-कूदते साथ चल
रहे हैं हाथी प्यार से देखता रहता है)
१ अप्रैल २००३
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