वतन से दूर में आस्ट्रेलिया से
रेखा राजवंशी की कहानी-
अनन्त यात्रा
अपने
जीवन के नब्बे सालों में जितेंद्र नाथ जी ने सोचा भी नहीं था
कि कभी ऐसा दिन भी आएगा। इससे पहले भी अपने इकलौते बेटे के पास
कई बार सिडनी आ चुके थे। जब भी वे पहुँचते तो बेटा-बहू बड़े
उत्साह से उन्हें लेने एयरपोर्ट आते। घर पहुँचने पर उनके आराम
का पूरा ख्याल रखा जाता। पोता-पोती दोनों दादू-दादू करते आगे
पीछे घूमते रहते। सिडनी में बेटे के घर में सारी सुख सुविधाएँ
थीं। घर में क्लीनर आता, गार्डनर आता, कुक भी आती थी, पर उनकी
रोटियाँ उनकी मॉडर्न बहू ही बनाती थी। तीन महीने में वे बेटे
के परिवार के साथ रहने की सारी हसरत पूरी कर लेते थे । बेटा
कभी-कभी व्हील चेयर में बिठा शॉपिंग मॉल ले जाता, जहाँ वे अपने
पसंद के सब्ज़ी, फल खरीद लेते। फिर कॉफी शॉप में बैठ कॉफी और
मफिन भी खा लेते। इस तरह से उनका मन भी बहल जाता। कभी पोती ज़िद
करके उन्हें बीच पर आइसक्रीम खिलाने ले जाती, कभी पोता उन्हें
ड्राइव पर ले जाता। बहू-बेटे उन्हें नई से नई फिल्में दिखा
लाते थे। इस बार भी समय बहुत अच्छा बीत रहा था, हँसी खुशी में
वक्त कट रहा था।
आगे...
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मंजुल भटनागर की
लघुकथा-
तथास्तु
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सामयिकी में-
जैव आतंकवाद की वैश्विक चुनौती
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संजय खाती का आलेख
खेल कोरोना
का
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पुनर्पाठ में डॉ. गुरुदयाल
प्रदीप से
विज्ञान वार्ता-
जैविक
और रासायनिक हथियार
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