शिशु का २१वाँ सप्ताह
—
इला
गौतम
समझ
के साथ विकसित होती दृष्टि
शिशु छोटी वस्तुओं को देखने में और हिलती वस्तुओं पर नज़र
रखने में माहिर हो रहा है। इस समय वह किसी चीज़ का एक
हिस्सा देख कर भी पहचान सकता है - जैसे उसका पसंदीदा
खिलौना जो सोफ़े के नीचे से झाँक रहा हो। यह छुप्पा-छुप्पी
के खेल का आघार बनेगा जो आप शिशु के साथ आने वाले महीनो
में खेलेंगे।
शिशु उन वस्तुओं के पीछे भी जाएगा जिन्हे वह देख नही सकता।
यदि शिशु को मेज़ के पास लाया जाए तो वह उसपर रखी किसी चीज़
उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाएगा। एक पकड़ने के बाद वह दूसरी
भी पकड़ना चाहेगा। शिशु ने पहले सामान्य रंगों के बीच अंतर
करना सीखा था। अब वह पेस्टल रंगो में भी बारीक फ़र्क बताना
शुरू कर रहा है। रंगो के बारे में किताबें पढ़ना या
रंग-बिरंगे चौखटों से खेलना रंगों के बारे में जानने का
आच्छा साधन हैं।
ध्यान बटाना
यदि शिशु सुपर-मार्केट में
विचलित होने लगे तो आप थोड़ी देर के लिए उसका ध्यान बटा
सकते हैं - पूरे समय के लिए तो नही कि आप अपनी पूरी
खरिदारी कर सकें लेकिन थोड़ा समय भी आजकल बहुत मुशकिल से
मिलता है। शिशु को टेड़े-मेड़े चहरे बनाकर या कोई कविता
सुनाकर व्यस्त रखा जा सकता है। ताली बजाना, शीशु को कुछ
पकड़ने के लिए या मुँह में डालने के लिए देना, शैल्फ़ पर
रखी वस्तुओं को नाम लेकर बताना, यह सभी तरीके शीशु का
ध्यान बटाने में काम आ सकते हैं। कुछ बच्चे जगह, आवाज़ें,
महक, और अधिक दोस्ताना दिखाने वाले लोगों के प्रति
सम्वेदनशील होते हैं।
कार्य और परिणाम
शिशु
की अपनी माँ से, दूसरों से, और अपने वातावरण से बातचीत
करने की क्षमता प्रतिदिन बढ़ रही है। जैसे-जैसे शिशु को
समझ आ रहा है कि साधारण से कार्य का भी परिणाम होता है,
वैसे-वैसे अब वह छोटे-छोटे खेल खेलेगा। वह वस्तुएँ गिराएगा
सिर्फ़ आपको उसे उठाता हुए देखने के लिए या यह देखने के
लिए कि वह कैसे और कहाँ गिरती हैं।
एक बार शिशु यह समझ गया कि चीज़ों को फेकना और उठाना कितना
मज़ेदार है, उसकी दुनिया और भी दिल्चस्प हो जाएगी - और आपकी
और भी ज़्यादा फैलावे वाली। यह काफ़ी थकादेने वाली बात लगती
है लेकिन अच्छा यही होगा कि आप इसकी आदत डाल लें। कुछ ही
हफ़तों बाद इससे आपके नन्हे-मुन्ने की हँसी जुड़ जाएगी।
जल्द ही आप देखेंगे कि घर में शोर बढ़ गया है। यह शोर न
सिर्फ़ शिशु की बातों का है बल्कि उसने सीख लिया है कि
चीज़ों को एक साथ मारना कितने मज़े का खेल है। चीज़ों को एक
साथ मारकर, हिलाकर, और मुँह में लेकर वह इस दुनिया पर अपने
प्रयोग करता रहता है।
खेल खेल खेल-
इस खेल से शिशु की देखने,
समझने और पहचानने की शक्ति विकसित होगी। एक अच्छे मौसम
वाला दिन देखकर शिशु को उसकी गाड़ी में बैठाएँ और उसके
धक्का देने वाले हैडल में एक झोला या टोकरी लटका लें। किसी
पार्क या बगीचे में जाएँ। एक नर्म फूल, एक रोचक पत्ती या
किसी अनोखे आकार के तिनके की ओर इशारा करें और कहें यह
देखो कितनी सुंदर पत्ती है। इसको झोले में रखेंगे। वह देखो
कितना सुंदर तिनका है इसे झोले में रखेंगे। आपके चार पाँच
बार इशारा करते ही शिशु भी अपनी पसंद की वस्तु की ओर इशारा
करने लगेगा। उसकी पसंद समझकर उसकी पसंद की वस्तुओं को झोले
मे रख लें। (ध्यान रखें को कोई छोटी गोल चीज जो मुँह में
चली जाए और गले में अटक जाए, कोई तेज गंध वाला पौधा जिससे
शिशु को एलर्जी हो, ऐसी चीजों से दूर रहें।) घर पर आकर इन
सब चीजों को एक मोटे कागज पर चिपकाकर कोलाज बना दें और
शिशु के कमरे की दीवार पर सजा दें। आने वाले दिनों में यह
कलाकृति दिखाकर शिशु को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है।
याद रखें, हर बच्चा अलग होता है
सभी
बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के
दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध
करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान
रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में
ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ
सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र
की सहायता लेनी चाहिए।
|