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संस्मरण

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बहुमुखी प्रतिभा की धनी सुषम बेदी
- सविता बाला नायक

हिंदी साहित्यिक जगत के लोग प्रोफेसर सुषम बेदी के नाम से भली भाँति परिचित हैं। जो उनको कभी नहीं मिल पाए या उनकी रचनाओं को अधिक नहीं पढ़ पाए, वे उनकी गहनता और उनको उनकी रचनायों के माध्यम से जान पायेंगे।

प्रोफेसर बेदी बहु-प्रतिभावान थीं, लेखिका, प्रभावशाली प्राध्यापिका, एक्ट्रेस भी। उन्होंने कई वर्षों तक कोलंबिया युनिवार्सिटी में पढ़ाया और तत्पश्चात वे सिटी कॉलेज ऑफ़ न्यू यॉर्क में पढ़ा रही थीं। उन्होंने कई उपन्यास, कहानियाँ, कविताएँ और कहानी-संग्रह लिखे। उनके उपन्यास ‘हवन’ का कई भाषाओं में रूपान्तर हुआ। उनकी रचनाएँ कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं।

साहित्यिक जगत में अत्यधिक रूचि एवं अपने सक्रिय योगदान के कारण वे अपने अंतिम दिनों तक हिंदी-दिवस, कविता पाठ, कहानी-कार्यशाला/राईटर-वर्कशॉप, ओरल प्रोफिशिएंसी इंटरव्यू (OPI) प्रशिक्षण या किसी न किसी कार्यक्रम के मध्याम से न्यू यॉर्क में स्थित भारतीय दूतावास, कोलंबिया युनिवार्सिटी, न्यू यॉर्क युनिवार्सिट, और येल युनिवार्सिटी एवं अमेरिका व भारत में होने वाले कई कार्यक्रमों से जुड़ी रहीं। उनको भारत की राष्ट्रपति से ‘पद्मविभूषण मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार’ और देश-विदेश से कई पुरस्कार मिले।

प्रोफेसर बेदी से पहली बार मैं 2008 में न्यू यॉर्क युनिवार्सिटी में मिली थी जहां मैं स्टारटॉक के शिक्षक-प्रशिक्षण के लिए गयी थी और वहाँ प्रोफेसर बेदी एवं प्रोफेसर विजय ने ओ.पी.आई. और स्टारटॉक के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी।

सिटी कॉलेज ऑफ़ न्यू यॉर्क में प्रोफेसर बिन्देश्वरी अग्रवाल हिंदी पढ़ाती थीं। जब प्रोफेसर अग्रवाल ने वहाँ से न्यू यॉर्क युनिवार्सिट में जाकर पढ़ाने का निश्चय किया तब उन्होंने सिटी कॉलेज ऑफ़ न्यू यॉर्क में पढ़ाने के लिए हम दोनों के नाम सुझाए तो इस तरह से प्रोफेसर बेदी और मैंने वहाँ पढ़ाना शुरू किया जिससे मुझे उन जैसी अनुभवी और प्रतिभावान व्यक्तित्व के साथ काम करने और उनको जान पाने का अवसर मिला। तत्पश्चात मैंने प्रोफेसर बेदी के निर्देशन में होने वाले कई कार्यक्रमों में भाग लिया।

यहाँ जब भी हम स्थानीय या आस-पास के कार्यक्रमों में जाते या अमेरिक काउंसिल ऑन द टीचिंग ऑन फारेन लैंगुएज (ACTFL) या स्टार टॉक इत्यादि की किसी कांफ्रेंस में न्यू जर्सी या न्यू यॉर्क से बाहर कहीं मिलते तो अधिकतर समय हम साथ में होते थे। तब मैंने पाया कि प्रोफेसर बेदी सभी को, नए और पुराने जानने वालों को समान स्नेह-भाव से मिलतीं और उनको प्रोत्साहित करतीं थी।

धैर्यशील थीं, बात को बहुत ध्यान से सुनतीं थीं और याद रखती थी। निरर्थक बात नहीं करती थी। जब कुछ कहतीं तो उनका हर शब्द महत्वपूर्ण रहता था। जब कभी हम हिंदी के साथ-साथ पंजाबी में कुछ बात करते तो वे कहतीं ‘तुमसे कई बार वो कुछ भूले बिसरे पंजाबी के शब्द सुनने को मिलते हैं तो सुनकर बहुत मज़ा आता है।’ वे बहुत मधुर स्वर में, दिल से और बहुत मग्न होकर गाती थीं। उनकी लगन और आनंद को देखकर सुनने वाले आत्मविभोर हो उठते और बहुत बार उनके साथ मिलकर गाते। वे जब हँसतीं तो खुलकर और अक्सर बेबाकी और ठहाके के साथ। मैंने उनको अपने आस-पास के मित्रों के लिए चिंता करते हुए भी देखा और दूसरों रचनाकारों के अच्छे काम पर उनको खुश होते एवं सराहते देखा।

भारत से जब भी कोई रचनाकार आते तो प्रोफेसर बेदी अक्सर उनके सम्मान में अपने घर पर कथा गोष्ठी या सभा का आयोजन करतीं और ऐसे ही हम लोग कुछ और महान रचनाकारों को भी मिल पाए। प्रोफेसर बेदी उन कुछ गिने चुने कलाकारों और रचनाकारों में से हैं जो अपने व्यस्त जीवन में ताल-मेल बनाए रखते हुए अपने काम, रुचिओं और परिवार को अपना शत-प्रतिशत देने की चेष्टा में लगे रहते हैं और इस में सफल रहते हैं।

प्रोफेसर बेदी के अंतिम कुछ दिनों में मैंने प्रोफेसर बेदी की मिस्ड-कॉल देखी तो उनको फ़ोन करके बताया कि क्षमा चाहती हूँ, मैं शाम की हिंदी-क्लास में थी।" फ़ोन पर उनकी आवाज़ में वही ताज़गी पायी। फिर उन्होंने कहा
"मैं हस्पताल में हूँ।"
"क्या हुआ?"
"अचानक तबियत खराब हुई और तभी हस्पताल आना पड़ा।"
"आप एक-आध दिन में घर आ जायेंगी तो आप बताना मैं मिलने आऊँगी।" फिर कुछ दिन बाद उनसे बात हुई तो उन्होंने कहा कि
"इस दिन आ जाओ"।

तब तक मैं इसी सोच में थी कि कुछ छोटी-मोटी बात होगी और चेक-अप के बाद सब ठीक हुआ होगा। उनके घर के नीचे ही उनके पति दिखे और कहा-
"सुषम ऊपर कमरे में है, तुम चलो मैं आता हूँ।" वहाँ पहुँचकर मैंने जब देखा कि सुषम जी लेटी हुईं थीं और उनके आस-पास ट्यूब्स और ऑक्सीजन-सिलेंडर थे। तब मुझे स्थिति की गंभीरता का ज्ञान हुआ। मुझे देखकर उन्होंने बहुत ख़ुशी से कहा-
"देखो कितने दिनों से मिलने का सोच रहे थे और अब ऐसे में मिले।"
तभी ट्यूब्स हटाते हुए कहा-
"अब के लिए बहुत हुआ, अब वहां बैठक में बैठती हूँ", और बताया कि अक्सर वे बीच-बीच में चलती हैं और कुछ देर बैठक में बैठती हैं।
"सुषम जी हुआ क्या?"
"होना क्या है, बस अचानक फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया। अब डॉक्टर कहते हैं बहुत ध्यान रखने से हो सकता है कि इम्यून-सिस्टम बेहतर हो जाए। तो आप ध्यान रखना।"

तभी उनके पति प्रोफेसर राहुल ऊपर आये। मैंने जाना कि वे नीचे एक्स्ट्रा-ऑक्सीजन-सिलेंडर की डिलीवरी लेने गए थे। कुछ ही देर में उन्होंने पूजा की और धूप-बत्ती के साथ आरती की प्लेट लेकर आये और सुषम जी ने आरती ली। उस एक क्षण में मैंने वो अद्भुत दृश्य देखा जब आरती लेते वक़्त एक पल के लिए रूककर बस वो एक दूसरे को ऐसे देखते रहे जैसे कोई अपनी अमूल्य धरोहर को देखता है, जैसे अक्सर माँ-बाप अपने बच्चों को या वक़्त आने पर बच्चे उनको उसी भरोसे के साथ देखते हैं। उसके बाद वो अपने पति से बोलीं -
"राहुल तुम जाकर फ्लू का इंजेक्शन ले लो।"
"मैं कल ले लूँगा।"
"मैं तो कहती हूँ कि आज ही जाकर ले लो।"
मैंने इस-से पहले भी ऐसे ही उनको एक-दूसरे के लिए, अपने बच्चों, परिवार के अन्य सदस्यों और मित्रों के लिए स्नेह और चिंता करते हुए देखा है।

मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझती हूँ कि उनके साथ कुछ पल बिताने को मिले जो अब मेरे लिए अमूल्य निधि हैं। कई बार मुझसे ऐसे लाड़-दुलार करतीं जैसे मैं नन्हा-बच्चा हूँ। वे बहुत प्यारी और खुशदिल थीं, मार्ग दर्शक थीं, साथ ही सकारात्मक सोच वाला व्यक्तित्व रखती थीं। उनके जीवन से और उनकी रचनायों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनमें हरदम जिंदादिली, बातों में एक चहक और उनकी आँखों में एक चमक रहती थी। उनको जब भी याद करती हूँ तो अक्सर मुझे लगता है कि जैसे अभी भी वे मेरे आस-पास ही हैं। ऐसा व्यक्तित्व रखने वाली महान आत्माएं दुनिया से जाने के बाद भी हमारे दिलों में बसकर रहती हैं।

१ मई २०२०

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