इस माह- |
अनुभूति में-
मंजुलता श्रीवास्तव, मंजुल मंजर, अनिता कपूर, परमजीत कौर रीत और बनवारीलाल खामोश की रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में भारत से
सुशांत सुप्रिय
की कहानी-
तितलियाँ
बाईसवीं
सदी में एक दिन देश में ग़ज़ब हो गया। सुबह लोग सो कर उठे तो
देखा कि चारों ओर तितलियाँ ही तितलियाँ हैं। गाँवों, क़स्बों,
शहरों, महानगरों में जिधर देखो उधर तितलियाँ ही तितलियाँ थीं।
घरों में तितलियाँ थीं। बाजारों में तितलियाँ थीं। खेतों में
तितलियाँ थीं। आँगनों में तितलियाँ थीं। गलियों-मोहल्लों में,
सड़कों-चौराहों पर करोड़ों-अरबों की संख्या में तितलियाँ ही
तितलियाँ थीं। दफ़्तरों में तितलियाँ थीं। मंत्रालयों में
तितलियाँ थीं। अदालतों में तितलियाँ थीं। अस्पतालों में
तितलियाँ थीं। तितलियाँ इतनी तादाद में थीं कि लोग कम हो गए,
तितलियाँ ज़्यादा हो गईं। सामान्य जन-जीवन पूरी तरह
अस्त-व्यस्त हो गया। लगता था जैसे तितलियों ने देश पर हमला बोल
दिया हो।
दिल्ली में संसद का सत्र चल रहा था। तितलियाँ भारी संख्या में
लोकसभा और राज्यसभा में घुस आईं। दर्शक-दीर्घा में तितलियाँ ही
तितलियाँ मँडराने लगीं। अध्यक्ष और सभापति के आसनों के चारों
ओर तितलियाँ ही तितलियाँ फड़फड़ाने लगीं। आख़िर दोनों सदनों की
कार्रवाई दिन भर के लिए स्थगित करनी पड़ी।
आगे...
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अंतरा करवड़े की
लघुकथा-
शाश्वत
*
अजयेन्द्रनाथ त्रिवेदी का
ललित निबंध-
कदंब कहाँ है
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रचना प्रसंग में कुमार रवींद्र का आलेख
कविता की मिथकीय भंगिमा
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पुनर्पाठ में गुरमीत बेदी के साथ
पर्यटन- चंबा की घाटी में
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पिछले अंक-में---
शीशम विशेषांक |
पंचतंत्र से लघुकथा-
जुलाहा और यक्ष
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डॉ विद्युल्लता का ललित निबंध
शीशम कितना मनोहारी
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मुकेश कुमार पारीख की कलम से
भारत का प्रमुख पेड़ शीशम
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पुनर्पाठ में गिरीश भंडारी का आलेख
वृक्ष : भिन्न देश-भिन्न परम्पराएँ
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वरिष्ठ
कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरव गाथा में
प्रस्तुत है
जैनेंद्र की कहानी-
तत्सत
एक
गहन वन में दो शिकारी पहुँचे। वे पुराने शिकारी थे। शिकार की
टोह में दूर-दूर घूम रहे थे, लेकिन ऐसा घना जंगल उन्हें नहीं
मिला था। देखते ही जी में दहशत होती थी। वहाँ एक बड़े पेड़ की
छाँह में उन्होंने वास किया और आपस में बातें करने लगे।
एक ने कहा, "आह, कैसा भयानक जंगल है।"
दूसरे ने कहा, "और कितना घना!"
इसी तरह कुछ देर बात करके और विश्राम करके वे शिकारी आगे बढ़
गए।
उनके चले जाने पर पास के शीशम के पेड़ ने बड़ से कहा, "बड़
दादा, अभी तुम्हारी छाँह में ये कौन थे? वे गए?" बड़ ने कहा,
"हाँ
गए।
तुम उन्हें नहीं जानते हो?"
शीशम ने कहा, "नहीं, वे बड़े अजब मालूम होते थे। कौन थे,
दादा?''
दादा ने कहा, "जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी
कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा, वे
चलते कैसे हैं? अपने तने की दो शाखों पर ही चलते चले जाते
हैं।"
शीशम- "ये लोग इतने ही ओछे रहते हैं,
आगे...
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