एक
नगर में मंथरक नाम का एक जुलाहा रहता था। एक बार उसका
बुनाई वाला करघा टूट गया। नए यंत्र के लिये लकड़ी काटने वह
कुल्हाड़ी लेकर जंगल में गया। वहाँ उसने शीशम का एक बहुत
विशाल और मजबूत पेड़ देखा। इससे तो खूब मजबूत करघे बन
जाएँगे, यह सोचकर जुलाहे ने शीशम को काटने के लिये
कुल्हाड़ी उठाई।
तभी वृक्ष पर रहने वाले एक यक्ष की आवाज सुनाई पड़ी, "तुम
यह पेड़ मत काटो, क्योंकि इसमें मेरा निवास है। मुझे इस पर
शीतल समुद्री समीर का सुख मिलता है।"
जुलाहे ने कहा आपको अपने ही सुख की पड़ी है और मेरे तो
परिवार की रोजी रोटी का प्रश्न है। मुझे कपड़ा बुनने के
लिये नया करघा बनवाना है। उसके लिये शीशम की लकड़ी चाहिये।
अगर यह पेड़ नहीं काटूँगा तो मैं परिवार सहित भूखा मर
जाऊँगा। आप यह पेड़ छोड़कर कहीं और चले जाइये। यक्ष ने कहा
मैं तुम्हारी जरूरत समझ रहा हूँ। अच्छा, तुम इस पेड़ को मत
काटो, बदले में मुझसे अपने लिये कोई वर माँग लो।
जुलाहे ने कुछ सोचकर कहा, मैं अपने मित्र और पत्नी की सलाह
कर लूँ, फिर वर माँगूँगा। जुलाहा प्रसन्न होकर गाँव की ओर
लौटा। रास्ते में उसका मित्र नाई मिल गया। जुलाहे ने उसे
पूरी बात बताकर पूछा, तुम्हारी क्या राय है मैं उससे क्या
वरदान माँगूँ? नाई ने कहा, तुम यक्ष से अपने लिये राज्य
माँग लो। तुम राजा बन जाना और मैं तुम्हारा महामंत्री बन
जाऊँगा। फिर तो लोक और परलोग के सारे सुख और आनंद हमें
मिलेंगे। जुलाहे ने कहा, मित्र तुम्हारी बात भी ठीक है
किंतु मैं अपनी पत्नी की सलाह ले लूँ। पत्नी के पास
पहुँचकर जुलाहा बोला शीशम पर रहने वाला यक्ष मुझपर प्रसन्न
होकर एक वरदान देना चाहता है। बताओ मैं उससे क्या माँगूँ
मेरे मित्र नाई ने राज्य माँगने का सुझाव दिया है।
पत्नी ने कहा स्वामी तुम्हारा मित्र जरा भी बुद्धिमान नहीं
है। उसकी बात पर ध्यान मत दो। राज्य मिल जाने पर अनेक कष्ट
भोगने पड़ते हैं। राज्य के कारण ही तो राम को वन में जाना
पड़ा था। राज्य की वजह से ही पांडवों को भी वन में रहना
पड़ा। राज्य के लिये यदुवंशियों का सर्वनाश हो गया। इसलिये
तुम राज्य की बात भूल जाओ। तुम रोज एक थान कपड़ा बना लेते
हो। घर का खर्चा उसीसे चल जाता है। तुम तो यक्ष से बस दो
हाथ और तथा एक और सिर माँग लो ऐसा होने पर तुम रोज दो दो
थान तैयार कर लोगे। इस प्रकार हमारी आमदनी दुगुनी हो
जाएगी। जुलाहे को अपनी पत्नी की बात ठीक लगी। उसे यक्ष के
पास जाकर अपने शरीर के लिये दो और हाथ तथा एक और सिर माँग
लिया।
यक्ष ने कहा तथास्तु! पलक झपकते जुलाहे के चार हाथ और दो
सिर हो गए। वह प्रसन्न होकर घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में
उसके चार हाथ और दो सिर देखकर लोग उसे राक्षस समझ बैठे।
उन्होंने उसे घेरकर डंडों और पत्थरों से इतना मारा कि वह
वहीं मर गया। यह कथा सुनाकर सुवर्ण सिद्ध ने कहा इसीलिये
मैं कहता हूँ अपनी बुद्धि होना बहुत जरूरी है।
१ मई २०१९ |