सुदीप शुक्ल की लघुकथा
बाढ़ और मुसाफिर
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डॉ. मधु संधु की कलम से
प्रवासी कहानी में परामनोविज्ञान
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भावना तिवारी से
रचना प्रसंग में-
नवगीत में
महिला रचनाकारों का योगदान
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पुनर्पाठ में- उर्मिला शुक्ल का आलेख-
भक्तिकालीन काव्य में वर्षा ऋतु
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
दीपक शर्मा
की कहानी-
चंपा का
मोबाइल
“एवज़ी
ले आयी हूँ, आंटी जी,” चम्पा को हमारे घर पर हमारी काम वाली,
कमला, लायी थी।
गर्भावस्था के अपने उस चरण पर कमला के लिये झाड़ू-पोंछा सम्भालना
मुश्किल हो रहा था।
चम्पा का चेहरा मेक-अप से एकदम खाली था और अनचाही हताशा व
व्यग्रता लिये था। उस की उम्र उन्नीस और बीस के बीच थी और काया
एकदम दुबली-पतली।
मैं हतोत्साहित हुई। अतिव्यस्तता के अपने इस जीवन में मुझे
फ़ुरतीली, मेहनती व उत्साही काम वाली की ज़रुरत थी न कि ऐसी
मरियल व बुझी हुई लड़की की!
“तुम्हारा काम सम्भाल लेगी?” मैं ने अपनी शंका प्रकट की।
“बिल्कुल, आंटी जी। खूब सम्भालेगी। आप परेशान न हों। सब निपटा
लेगी। बड़ी होशियार है यह। सास-ससुर ने इसे घर नहीं पकड़ने दिए
तो इस ने अपनी ही कोठरी में मुर्गियों और अंडों का धन्धा शुरू
कर दिया। बताती है, उधर इस की माँ भी मुर्गियाँ पाले भी थी और
अन्डे बेचती थी। उन्हें देखना...
आगे-
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