भारत के विचित्र गाँव
जैसे
विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं हैं
८-
मिनी लंदन मैस्कुलीगंज।
झारखंड की राजधानी राँची से उत्तर-पश्चिम में करीब ६५
किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव है मैक्लुस्कीगंज। एंग्लो
इंडियन समुदाय के लिए बसाया गया यह गाँव विश्व भर में
अकेला है। १९३० के दशक में साइमन कमीशन की रिपोर्ट आई
जिसमें एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रति अंग्रेज सरकार ने
किसी भी तरह की जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया था। पूरे
एंग्लो-इंडियन समुदाय के सामने खड़े इस संकट को देखते हुए
अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की ने तय किया कि वे अपने समुदाय
के लिए एक अलग गाँव बनाएँगे। आयरिश पिता और भारतीय माँ की
संतान मैकलुस्की बचपन से ही एंग्लो-इंडियन समुदाय की
छटपटाहट देखते आए थे। अपने समुदाय के लिए कुछ कर गुजरने का
सपना शुरू से उनके मन में था। १९३० के दशक में रातू महाराज
से ली गई लीज की १० हजार एकड़ जमीन पर उन्होंने इसकी नींव
रखी और इसी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए घनघोर जंगलों और
आदिवासी गाँवों के बीच सन १९३३ में अपनी संस्था
कोलोनाइजेशन सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा मैकलुस्कीगंज को
बसाया।
अनेक गाँवों वाले इस इस इलाके की पहचान उन ३६५ बंगलों के
कारण है जिसमें कभी एंग्लो-इंडियन लोग आबाद थे। पश्चिमी
संस्कृति के रंग-ढँग और गोरे लोगों की उपस्थिति इसे लंदन
का सा रूप देती तो इसे लोग मिनी लंदन कहने लगे। इंसानों की
तरह मैकलुस्कीगंज को भी बुरे दिन देखने पड़े जब एक के बाद
एक एंग्लो-इंडियन परिवार ये जगह छोड़ते चले गए। कुछ २०-२५
परिवार रह गए और खाली बंगलों के कारण यह स्थान भूतों का
शहर बन गया। धीरे धीरे इसका पुनरुद्धार हुआ और गिने-चुने
परिवार मैकलुस्कीगंज को आबाद करने में जुट गए। कई हाई
प्रोफाइल स्कूल खोले गए, पक्की सड़कें बनी और जरूरत के
सामान की कई दुकानें खुलीं। आज बस्ती की अधिकतर गलियों या
बंगलों में छात्रावास होने के साइनबोर्ड भी मिलेंगे। ये सब
मिनी लंदन को एक नए मैकलुस्कीगंज की ओर ले जा रहे हैं।
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अगस्त २०१८ |