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					  प्रवासी कहानी 
					में परामनोविज्ञान
 (प्रवासी 
					महिला कहानिकारों के विशेष संदर्भ में)
 - डॉ. मधु संधु
 
 "परामनोविज्ञान 
							जीवन में होने वाली अधिसामान्य, विलक्षण, अलौकिक 
							घटनाओं की वैज्ञानिक और निष्पक्ष जाँच तथा अध्ययन करता 
							है। विकिपीडिया के अनुसार, "परामनोविज्ञान न जादू-टोना 
							है, न वह गुह्यविद्या, प्रेतविद्या या तंत्र-मंत्र 
							जैसा कोई विषय। इन तथाकथित प्राकृतेतर, पराभौतिक एवं 
							परामानसकीय, विलक्षण प्रतीत होने वाली अधिभौतिक घटनाओं 
							और प्रक्रियाओं का विधिवत तथा क्रमबद्ध अध्ययन ही 
							परामनोविज्ञान का प्रमुख उद्देश्य है।" 
 परामनोविज्ञान की अवधारणा उतनी ही पुरानी है, जितना 
							मनुष्य जीवन। वैश्विक स्तर पर देखें तो लोक कथाएँ, 
							प्राचीन साहित्य, दर्शन और धर्म ग्रंथ अदृश्य जगत और 
							अलौकिक शक्तियों के आभास की पुष्टि करते हैं। अमेरिका 
							के फ्लॉरिडा का कासाडागा टाउन परामनोविज्ञान के कारण 
							विश्व में साइकिक कैपिटल के रूप में जाना जाता है, 
							जिसकी स्थापना १७७५ में न्यूयार्क के आध्यात्मिक गुरु 
							जॉर्ज काल्बी ने की थी। जबकि परामनोविज्ञान पर 
							वैज्ञानिक शोध उन्नीसवीं शती के उत्तरार्द्ध की देन 
							है। १८८२ में इंग्लैंड में पहली बार ‘सोसाइटी फॉर 
							साइकिकल रिसर्च’ नामक पराभौतिक अध्ययन केंद्र की 
							स्थापना हुई। यद्यपि इससे पहले कैम्ब्रिज में ‘घोस्ट 
							सोसाइटी’ तथा ऑक्सफोर्ड में ‘फेस्मेटोलाजिकल सोसाइटी’ 
							जैसे संस्थान भी थे। ‘घोस्ट सोसाइटी’ की पहली मीटिंग 
							१७ जुलाई १८८२ को हेनरी सिजविक की अध्यक्षता में हुई। 
							१८८४ में विलियम जेम्स द्वारा ‘अमेरिकन सोसाइटी फॉर 
							साइकिकल रिसर्च' की स्थापना की गई। कालांतर में पेरिस, 
							पोलैंड, हालैंड, नार्वे, डेनमार्क आदि में भी 
							परामनोवैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र/प्रयोगशालाएँ स्थापित 
							हुईं। प्रसिद्ध अमेरिकन परामनोवैज्ञानिक जे. बी. राइन 
							ने १९३४ में ड्यूक वि. वि. में परामनोवैज्ञानिक 
							प्रयोगशाला की स्थापना की। महाभारत के संजय की 
							दूरदृष्टि आधिभौतिक शक्ति या परामनोविज्ञान से ही जुड़ी 
							है। ‘ड्रीम ऑफ अ बिलीवर’ में प्रसिद्ध गणितज्ञ और 
							वैज्ञानिक स्वीडन बोर्ग ने अपने ऐसे ही अनुभवों का 
							जिक्र किया है।
 
 पिछले दिनों प्रवासी महिला कहानीकारों पर कोश-ग्रंथ 
							लिखते अनेक कहानियाँ इस विचित्र विषय वस्तु पर भी 
							मिलीं। आज जब यहाँ भारत में भी ऐसी बातों पर विश्वास 
							नहीं किया जाता, प्रवासी लेखिकाओं की कहानियों में यह 
							सब पढ़कर लगा कि यह तो अपने में ही शोध का विषय है।
 
 मनुष्य शरीर पाँच तत्वों यानी धरती, आकाश, वायु, 
							अग्नि, जल का समुच्य है। इनमें आकाश तत्व सूक्ष्म 
							आत्मा के साथ जुड़ा है। मृत्युपरांत आत्म तत्व को छोड़ 
							सभी नष्ट हो जाते हैं। माना गया है कि नई देह प्रवेश 
							तक यह आत्म तत्व वायु मण्डल में तैरता रहता है। इस 
							आत्म तत्व की भटकन प्रवासी महिला कहानीकारों की अनेक 
							कहानियों में मिलती है। पूर्णिमा वर्मन की ‘उड़ान’
							में अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ शारजाह में
							बिजनेस मैनेजमेंट के स्नातक विद्यार्थियों की 
							प्रेजेंटेशन परीक्षा चल रही है। भारतीय साक्षी और 
							अरेबियन मसूद को मिलकर प्रेजेंटेशन तैयार करनी है। 
							रातों रात मसूद फ्रेंच लाइब्रेरी से 
        
        					एस.वी.जी. ग्राफ़िक्स 
							के 
							फ्रेंच टैक्स्ट को अंग्रेज़ी में परिवर्तित कर 
							प्रेजेंटेशन तैयार कर लेता है और अंत में 
							एस.डब्ल्यू.एफ. मूवी जोड़ देता है। साक्षी की साफ़ 
							दमदार अंग्रेज़ी, ... विरोधी टीम के तीखे सवाल और 
							साक्षी के सुलझे जवाब उनकी प्रेजेंटेशन को सफल बना 
							देते हैं। लेकिन १७५ की गति से गाड़ी चलाते माँ से 
							मोबाइल पर बात करते ट्रक से टकरा जाने से साक्षी की 
							जैगुआर गाड़ी चूर चूर हो जाती है और वहाँ से गुजरता 
							मसूद उसे एंबुलेंस पर भी देखता है। उधर साक्षी की 
							भटकती आत्मा घर पहुँच जाती है। सब उसे देखते हैं, उससे 
							बातचीत करते हैं, पर पहचानते नहीं। जबकि अंतत: भटकती 
							आत्मा सागर किनारे आ मुक्त होती है।
 
 उषा राजे सक्सेना की ‘वह कौन थी’, भटक रही मृत आत्मा 
							की प्रेम कहानी है। स्ट्रेथम पार्क के बगीचे रुकरी के 
							एक बेहद खामोश और सुनसान कोने में लेखिका बैठी थी कि 
							एक खूबसूरत औरत ने अपनी दिलकश आवाज़ में अपनी कहानी 
							सुनानी आरंभ की और उस पर कहानी लिखने का आग्रह भी किया 
							कि एक बारह वर्षीय किशोरी एक लंबे चील जैसे सफ़ेद बालों 
							वाले शायर की शायरी से इतनी प्रभावित होती है कि वह 
							उसके जीवन और चिंतन पर छा जाता है। समय के साथ उसकी 
							शादी होती है। बहुत प्यार करने वाला पति मिलता है। दो 
							बच्चे होते हैं। वह समय-समय पर जीवन में दो बार उस 
							शायर से मिलती भी है। तभी वह स्त्री चील जैसे सफ़ेद 
							बालों वाले लंबे आदमी के साथ चल देती है और 
							हैरान-परेशान लेखिका लौट आती है। अगले दिन मिले एक 
							पत्र से उसे पता चलता है कि उस स्त्री की तो सड़क हादसे 
							में मृत्यु हो चुकी है।
 
 शैल अग्रवाल की ‘घटक’ गूजरों के छोरे बन्ने राजा और 
							राजपूतनी प्रभावती की भटकती आत्मा और अतृप्त प्रेम की 
							कहानी है। उच्चकुलीय राजपूतनी प्रभावती से प्रेम करने 
							के कारण गूजरों के छोरे बन्ने राजा को बरसों पहले मार 
							दिया गया था और राजकुमारी प्रभावती ने भी आत्महत्या कर 
							ली थी। आज भी चाँदनी रात को बन्ने राजा की मोटर बाइक 
							खुद चल पड़ती है और उस पर दोनों बैठे दिखाई देते हैं। 
							कहानी में फौजी नायक रावत, पांडे के साथ राजस्थान के 
							बियाबान में जीप पर जा रहा था कि जीप खराब होने से 
							परेशानी बढ़ जाती है। तभी मोटरबाइक पर एक युवक आकर जीप 
							ठीक कर देता है और ठीक समय पर गाड़ी मिल जाती है। नायक 
							तभी अपने सामने पारंपरिक वेषभूषा में एक आकर्षक युवती 
							को देखता है। वह गाड़ी रुकने पर एक दूर खड़ी मोटरबाइक 
							दिखाती है और बताती है कि बाइक उस गूजरों के छोरे 
							बन्ने राजा की है, जो राजपूतनी प्रभावती से प्रेम करने 
							के कारण बरसों पहले मार दिया गया था और प्रभावती ने भी 
							आत्महत्या कर ली थी। आज भी चाँदनी रात को मोटर बाइक 
							खुद चल पड़ती है और उस पर दोनों बैठे दिखाई देते हैं। 
							तभी नायक उन दोनों को मोटरबाइक पर जाते देखता है और 
							सोचता है कि जो हुआ उस सब का घटक कौन था? घट रूप में 
							प्रभु ने मुझे ही क्यों चुना?
 
 दिव्या माथुर की ‘गवाही’ का नीरज गे है। वह नहीं चाहता 
							कि किसी को भी, खासकर पत्नी राधिका को पता चले कि वह 
							गे है। जब उसका सत्ताईस वर्षीय मित्र डेविड गोल्ड सब 
							राधिका को बताने की धमकी देता है तो नीरज क्लब के 
							आसपास ही उसका कत्ल कर देता है। डेविड की भटकती आत्मा 
							आधी रात को वहाँ से गुजर रहे राज का कुछ ऐसे पीछा करती 
							है कि वह सहायतार्थ नीरज को ही बुलाता है। आत्मा 
							उन्हें वहाँ ले जाती है, जहाँ लाश पड़ी है। लाश को वे 
							सड़क किनारे रखते हैं और वहाँ कत्ल के समय गिरा अपना 
							कफ़लिंग जैसे ही नीरज जेब में डालता है, पुलिस के समक्ष 
							सारा केस स्पष्ट हो जाता है। यानी मृतात्मा द्वारा 
							स्वयं अपने हत्यारे का पता देना पाठक को परामनोविज्ञान 
							जगत के रहस्यलोक में छोड़ देता है।
 
 लावण्या दीपक शाह की ‘मनमीत’ अतृप्तात्मा रूमानी प्रेम 
							की कहानी है। यहाँ राजकुमारी रत्ना की मृतात्मा २०० 
							साल से भटक रही है। आत्मा मोहन को अपना नाम मालती 
							बताती है। कहानी इस प्रकार है कि मोहन और मधुरिमा की 
							शादी की बात चल रही थी कि एक रोज पुलिया पर खड़े मोहन 
							की दृष्टि अद्वितीय सौंदर्य की स्वामिनी मालती पर पड़ती 
							है। वह उसका पीछा करता है। मिलने का क्रम प्रारम्भ 
							होता है। दोनों एक दूसरे से पागलों की तरह प्रेम करते 
							हैं। मालती मोहन के घर, उसकी माँ के पास भी आने लगती 
							है। बताती है कि वह महाराजा रुद्रसिह की बेटी है। उसकी 
							माँ की मृत्यु के बाद वे स्विट्जरलैंड जाकर बस गए और 
							शराब के कारोबारी की सत्रह साल की बेटी से शादी कर ली। 
							मोहन और मालती दोनों प्रेम को समर्पित हैं, अबोध हैं, 
							अनजान हैं। मोहन के जन्म की, आँधी-तूफान की रात की 
							कहानी सुनने के बाद वह कभी नहीं आती। एक दिन मोहन 
							हवेली आता है, मालती की तस्वीर देखता है और सेवक बताता 
							है कि यह राजकुमारी रत्ना की तस्वीर है। इनको गुजरे 
							२०० वर्ष हो गए हैं।
 
 उषा राजे सक्सेना की ‘शर्ली सिम्पसन शतुरमुर्ग है’ में 
							अति संवेननशील शर्ली सिम्पसन को कुछ स्वप्न बार-बार 
							त्रस्त करते हैं कि वह हाइड पार्क के लेन स्क्वायर की 
							भीड़ में वस्त्रहीन धूम रही है। इन स्वप्नों के पार्श्व 
							में उसके जीवन में आने वाले अहंकारी, खुदगर्ज प्रेमी 
							और पति हैं। जिन बातों के लिए उसने प्रेमी टॉम को छोड़ा 
							था, वही सब पति कामरान में हैं। वह मानों शतुरमुर्ग की 
							तरह आँखें बंद कर हर ज्यादती को रेशनालाइज करती रहती 
							है। कहानी अवचेतन मन और स्वप्न मनोविज्ञान लिए है।
 
 दिव्या माथुर ने भी अपनी कहानी 'हिन्दी@ स्वर्ग. इन’ 
							में फैंटेसी और परा- मनोविज्ञान का चित्रण किया है। 
							महावीर शर्मा की अन्येष्टि पर जा रही दिव्या की गाड़ी 
							की वैन से दुर्घटना क्या होती है कि वह सीधी स्वर्ग 
							में पहुँच जाती है। वह महावीर, कमलेश्वर, प्रभा खेतान, 
							कन्हैयालाल नन्दन, लक्ष्मी मल सिंधवी, मनोहर श्याम 
							जोशी, सभी को देख हैरान होती है कि मृतकों के बीच वह 
							कैसे पहुँच गई। क्या उसकी मृत्यु हो चुकी है। ग्रीन 
							अन्त्येष्टि का सोचती है, जिसमें मृतक के शरीर को ११९६ 
							सेन्टीग्रेड डिग्री तक फ्रीज़ करके पाउडर बना खेतों मे 
							डाला जा सकता है। सभी लोग पृथ्वी पर जीवित अपने परिवार 
							की बातें करते हैं। पृथ्वी का सब कुछ देख भी सकते हैं। 
							दिव्या अपने कामों का सोचती है। प्रवासी साहित्यकारों 
							और पत्रकारों द्वारा उसे प्रोत्साहित करने, विदेश 
							यात्रा के लालच की बात होती है। अंतत: सभी एक दिव्यता 
							में खो से जाते हैं।
 
 परामनोविज्ञान दिव्यता से सम्बद्ध एक अनुभूति है, 
							जिसका अप्रत्यक्ष सा, अलौकिक एहसास व्यक्ति और 
							व्यक्तित्व को आंदोलित कर जाता है। यह परालौकिकता से 
							जुड़ा मन का विज्ञान है, धार्मिक आडम्बर नहीं। ऐसी भी 
							कहानियाँ मिलती हैं, जहाँ ढोंग का आवरण ओढ़ा गया है। 
							सुषम बेदी की ‘गुरुमाई’ की राजी माँ पति की उपेक्षा, 
							प्रताड़ना, अवहेलना, अनाचारों से छुटकारा पाने के लिए 
							प्राणिक हीलिंग और जापानी रेखी सीख, गुरुमाई का मुखौटा 
							ओढ़ अपने आशीर्वचन से भक्तों के दुख दूर करने का नाटक 
							अपनाती है। वह लंदन, न्यूयार्क, कैनेडा, सिंगापुर 
							–यानी पूरे विश्व की यात्राएँ करती रहती है, जबकि अपने 
							असामान्य बच्चे को स्वस्थ करने की कोई शक्ति उसके पास 
							नहीं। उनकी ‘तीसरी दुनिया का मसीहा’ में काले जादू का 
							उल्लेख है।
 
 छठी इंद्रिय द्वारा होने वाले पूर्वाभासों या 
							इनट्यूशन्स को भी कोरी कल्पना नहीं कहा जा सकता। कहानी 
							का सीधा संबंध प्रत्यक्षानुभूतियों से है। लगता है 
							मानों इन कहानीकारों ने अपने जिये भोगे अतींद्रिय 
							अनुभव कहानी जगत में शेयर किए हैं। आज के बैज्ञानिक 
							अनुसंधान जगत ने हमारे समक्ष अतींद्रिय जगत के ढेरों 
							रहस्य अनावृत किए हैं।
 
					१ जुलाई २०१८ |