मेलोडी जान-बूझकर कमलेश को यहाँ लाई थी। वैसे इच्छा तो कमलेश
की भी थी इस माहौल से परिचित होने की। सुना खूब था लेकिन देखा
अब। देखा और पाया कि उस जैसे व्यक्तित्व इस माहौल में अधिक देर
नहीं रुक सकते।
'मेलोडी, घर चलें अब?' कमलेश ने उठना चाहा।
कल शाम एक डच हिप्पी नंगा घूमता पकड़ा गया और सिपाही ने जब
उससे इस तरह घूमने की वजह पूछी तो बोला - 'हम क्या करें? ईश्वर
ने हमें नंगा ही पैदा किया है।'
सामने वाली मेज की भीड़ में बैठे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने
मेलोडी की तरफ घूमते हुए सबको बताया और सारी भीड़ ठहाका मार कर
हँस पड़ी। मेलोडी ने अपना बेहद गंदा थैला मेज पर से उठा कर
कंधे पर टाँग लिया। फिर उसमें हाथ डालकर कुछ ढूँढ़ने लगी।
कमलेश की ऊब बढ़ती जा रही थी। शायद मेलोडी सिगरेट ढूँढ़ रही
है। अगर यह सिगरेट सुलगा लेगी तो पंद्रह-बीस मिनिट फिर रुकना
पड़ेगा क्योंकि मेलोडी सड़क पर चलते हुए कभी सिगरेट नहीं पीती।
'सिगरेट रहने दो मेलोडी, घर चलकर डिनर के बाद पीना। माँ इंतजार
कर ही होंगी।'
कैंप कॉफी हाउस के चहल-पहल भरे माहौल पर एक विहंगम दृष्टि डाल
दोनों सड़क पर आ गईं और तेजी से गुजरते ऑटो रिक्शा को रुकवाकर
बैठ गईं।
सड़कों पर रात का शबाब बिखरा पड़ा था। महानगरों की रातें दिन
की बनिस्बत अलहदा होती हैं। रिक्शे की तेज गति के कारण मेलोडी
के कटे बाल उसके दोनों गालों को ढके ले रहे थे। वह मजबूती से
अपना थैला पकड़े थी, अपने मर्दाने कुरते को जींस पहने घुटनों
के बीच दबाए ताकि वह उड़े नहीं। जयपुर से यहाँ आए बीस दिन हो
गए और तभी से वह कमलेश के यहाँ पेइंग गेस्ट है। वह हिप्पी दल
के साथ भारत आई थी और जयपुर में अपने दल से बिछुड़ चुकी थी। वे
सब नेपाल चले गए थे। कमलेश के घर का पता उसे अहलुवालिया ने
दिया था जिनके घर मेलोडी ने एक सप्ताह गुजारा था।
माँ जाग रही थीं और रात्रि के खाने के लिए उन दोनों का इंतजार
कर रही थीं। वे पैंतालीस वर्षीया प्रौढ़ महिला थीं जिनके पति
बांग्लादेश युद्ध में शहीद हुए थे। वे अपने खाली वक्त में
पत्रकारिता करती थीं।
'कमल, आज बड़ी देर कर दी?'
कमलेश हमेशा की तरह माँ से लिपट कर लाड़ से बोली - 'सॉरी ममा,
अभी फ्रेश होकर आती हूँ।'
मेलोडी माँ-बेटी का दुलार प्यार देख मुस्कुराने लगी। उसने अपना
थैला कंधे से उतार कर अपने कमरे की ओर उछाल दिया और दीवार से
पीठ सटाकर खुजाने लगी। माँ हँस दीं और खाना लेने चौके में चली
गईं। कमलेश ने फ्रेश होकर नाइट गाउन पहन लिया। माँ ने आलू के
पराठे बनाए थे और पोदीने की चटपटी चटनी। मेलोडी भी लुंगी और
कुरते में तरोताजा दिख रही थी। उसने खड़े-खड़े ही प्लेट में
परोसे पराठे का एक निवाला तोड़ा और स्वाद लेते हुए बोली -
'ऊँऽऽ टेस्टी।'
फिर कुरसी पर बैठकर इत्मीनान से खाने लगी - 'एंजेली खाने का
बड़ा शौकीन था। उसने अपने सब्जियों के बाग में अपनी पसंद की
सब्जियाँ ऊगाई थीं और उसके पास बेहतरीन नस्ल की मुर्गियाँ
थीं।'
कमलेश खामोशी से खाना खाती रही। पिछले बीस दिनों में बीसियों
बार एंजेली का नाम सुन चुकी है! रोजमर्रा के क्रिया-कलापों में
यह खूबसूरत अंग्रेज लड़की कितनी जुडी है इस नीग्रो नाम से। कभी
पूछेगी एंजेली के बारे में। जब भी वह एंजेली को अपने से जोड़कर
बयान करती है प्रेम, अपनत्व से भर उठती है। यह उसके स्वभाव का
विशेष गुण है।
उस दिन कमलेश थियेटर के बाहर अशोक वृक्षों के नीचे पड़ी बेंच
पर बैठकर अपने संवाद याद कर रही थी। आज अंतिम रिहर्सल थी, कल
से नाटक मंच पर खेला जाना था और पूरे तीस शो का अनुबंध था कि
उसने देखा मेलोडी अपने दोस्त रजनीश के साथ खरामा-खरामा चली आ
रही है। कमलेश को रजनीश बिल्कुल पसंद नहीं है, उसके व्यक्तित्व
में दिखावा और परायापन है। वैसे कमलेश मंच से जो जुड़ी है तो
इस तरह के लोगों से उसका साबका पड़ता है पर रजनीश जैसा तो पहले
कभी मिला ही नहीं।
'हलो कमलेश। कैसी हो?'
'कमलेश नहीं, वासवदत्ता कहो, मुझे अपने रोल को महसूस करने दो।'
'बेचारा।'
मेलोडी के कहने पर रजनीश और
कमलेश दोनों चौंके। मेलोडी की नजरों की दिशा में उन्होंने देखा
कि मेन गेट के बाहर खड़े चाट के ठेले के पास जूठे पत्तों,
दोनों का ढेर है जिसमें से एक लाचार बूढ़ा जूठन चाट रहा है।
मेलोडी तेजी से वहाँ गई और अपने थैले में से डबलरोटी, केले और
मक्खन की टिकिया उसे पकड़ा कर कहा - 'लो खाओ, बाबा।'
बूढ़ा हतप्रभ मेलोडी को निहार रहा था और मेलोडी तृप्ति का भाव
लिए लौट रही थी।
'सारा दे दिया? अब हम क्या खाएँगे? यहाँ तो कुछ मिलता भी
नहीं।'
'हम थियेटर के कैंटीन से कॉफी तो पी सकते हैं न रजनीश?' मेलोडी
की आँखें छलक आई थीं। कमलेश ने उन आँखों में तैरते पानी के
अंदर एक और जज्बा देखा था, इनसानियत का जज्बा... एक अपूर्व
भाव... मानो सूखे दरार पड़े खेतों में अभी-अभी बादल बरसा हो।
जब तक कमलेश की रिहर्सल चली, मेलोडी रजनीश के साथ बैठी बतियाती
रही। भूख तीनों को लगी थी लेकिन कमलेश खुश थी। उसके रोल की,
अभिनय की निर्देशक ने तारीफ की थी और उसकी ड्रेस और ज्वेलरी का
भी पूरा चुनाव हो चुका था। वह गुनगुनाती हुई रिहर्सल रूम से
बाहर निकली।
'चलें, वासवदत्ता।' रजनीश ने चुटकी ली।
'सीधे बंगाली मार्केट। मुझे डटकर खाना है।'
कमलेश ने लापरवाही से कहा।
बंगाली मार्केट की प्रसिद्ध चाट की दुकान पर हिप्पियों का दल
पहले से मौजूद था। कोई साधु जैसी वेशभूषा में था तो कोई
रुद्राक्ष पहने जटा-जूटधारी। चहल-पहल काफी थी। रजनीश एक हिप्पी
ने नजदीक गया जो कानों में बड़ी-बड़ी बालियाँ पहने, त्रिपुंड
लगाए हाथ में जलती सिगरेट के गहरे-गहरे कश ले रहा था। वह अपने
दाहिने पैर और कूल्हे को एक खास लय में हिला भी रहा था।
'तुम लोग घर-द्वार छोड़कर हिप्पी जीवन अपनाकर क्या पाते हो?'
रजनीश ने उससे पूछा।
'भगवान का प्रेम और दकियानूसी रिवाजों से मुक्ति।'
'यानी कि युद्ध? पुराने रिवाजों, विचारों से युद्ध।'
'युद्ध नहीं संघर्ष... हम संघर्ष कर रहे हैं।'
'इस तरह के खानाबदोश जीवन के लिए?'
त्रिपुंडधारी हिप्पी ने रजनीश को गौर से देखा - 'नहीं, प्रेम
करने के लिए, ईश्वर के बनाए मानव-मात्र से प्रेम करने के लिए।'
मेलोडी का चेहरा ईश्वरीय प्रेम में भीग उठा। चाट की दुकान के
बाजू में फेंके गए जूठे दोनों के पास कुछ चिड़ियाँ शोर मचा रही
थीं। जब उस ढेर में दूसरा दोना आकर गिरा तो चिड़ियाँ उड़कर
सड़क के किनारे पेड़ पर जा बैठीं। मेलोडी चिड़ियाँ को देर तक
देखती रही फिर कमलेश की हथेली अपने हाथों के बीच दबाकर अपनी
नीली आँखों में भरपूर चमक भरकर बोली - 'मैं भी उड़ना चाहती हूँ
चिड़ियों की तरह... दूर क्षितिज तक।'
कमलेश ने उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की - 'मैं सपना देखती
हूँ कि मैं उड़ रही हूँ। मेरे नीचे खुली धरती है। इस तरह मैं
इस दुनिया के दुख-दर्द को अच्छी तरह देख सकती हूँ। मैं अपने
एंजेली के साथ उड़ना चाहती थी पर वह बेचारा तो... नहीं, वह
बेचारा नहीं था, वह चट्टान सा मजबूत और ग्रेनाइट सा काला था।'
और वह दरख्त से परे नीले आसमान पर तैरते काले बादल के टुकड़े
को देखने लगी जैसे वह टुकड़ा ग्रेनाइट की भारी चट्टान हो।
'मेरा एंजेली हंस की तरह लंबी उड़ान भरने की हसरत रखता था पर
उसके पर काट दिए गए।'
वह बेहद उदास हो गई और कमलेश का हाथ छोड़ अपनी अनामिका में
पहनी किसी धातु विशेष की अँगूठी को गोल-गोल घुमाने लगी, उँगली
में ही गोल-गोल। फिर उसने उस अँगूठी को चूम लिया - 'यह मेरे
एंजेली की मुझे दी पहली भेंट है जब हम कैपटाउन में यूनिवर्सिटी
में मिले थे। मैं दक्षिण अफ्रीकी इतिहास पर शोध करने गई थी।'
'बड़ी खूबसूरत, लाजवाब है यह अँगूठी।' कमलेश ने उस अजीबोगरीब
शक्ल वाली अँगूठी की भरपूर प्रशंसा की।
'अच्छी लगी? पर यह मैं किसी को नहीं दूँगी। तुम्हें भी नहीं।
यह उसकी निशानी है, मेरे एंजेली की।'
कमलेश हँस दी। रात घिरने लगी थी। रजनीश ने उन्हें अपनी कार से
घर तक छोड़ा।
मार्च का अंतिम सप्ताह था लेकिन लगता था जैसे जाड़ा विदा होने
में संकोच कर रहा है। हिमाचल के पर्वतीय इलाकों में बर्फ भी
गिरी थी और शहर खासा ठंडा हो रहा था। राजधानी के कुछ खास
वृक्षों में वसंत आगमन के चिह्न दिखाई देने लगे थे। सीढ़ियाँ
चढ़ते हुए मेलोडी रुकी और उसने अपनी अनामिका से अँगूठी उतारकर
कमलेश की उँगली में पहना दी।
'अरे, तुम पहनो न तुम्हारे एंजेली की निशानी।'
'नहीं पहनो। इस तरह मेरे एंजेली की मुहब्बत का जर्रा-जर्रा
महसूस करेगा। इस अँगूठी से क्या, मेरा एंजेली तो मेरे दिल में
बसता है।'
कमलेश ने साफ देखा कि उसकी पलकों के कोरों पर दो अश्रु बूँदें
झिलमिलाई जिन्हें अपनी उँगलियों में समोकर उसने हवा में छिटका
दिया।
कमरे में माँ टेबिल लैंप की रोशनी में अपना लेख लिख रही थीं।
उन्हें आया देख उन्होंने कागज पर से नजरें उठाईं।
'तुम लिखो माँ... खाने की चिंता मत करो। आज खूब डटकर खाया है।'
'रिहर्सल कैसी हुई?' माँ ने चिंता प्रकट की।
'अरे पूछो मत! अब पंद्रह तारीख को देखना स्टेज पर।'
'अपनी वासवदत्ता को।' कहकर मेलोडी खिलखिला कर हँसी और अपने
कमरे में बिछे पलंग पर कंबल ओढ़कर बैठ गई। कमलेश दो प्यालों
में कॉफी बना लाई।
'अब तुम्हारे शो बेहतरीन होंगे, तुमने अँगूठी जो पहन ली।'
कमलेश ने प्याला उसकी ओर बढ़ाया और खुद कुर्सी पर शॉल ओढ़कर
बैठ गई -'बहुत प्यार करती हो मेलोडी उसे?'
'हाँ बहुत। वह नीग्रो था। ब्रिटिश हुकूमत के नीचे साँस लेता
मात्र एक गुलाम। उसके सामने दक्षिण अफ्रीका का इतिहास खुला
पड़ा था कि किस तरह पूर्वजों को उनकी ही जमीन से बेदखल किया
गया और किस तरह उन्हें अपना गुलाम बनाकर भुखमरी और बदहाली के
कगार पर लाकर खड़ा कर दिया गया था। वह अक्सर मुझे अपने परिवार
के बारे में बताता था कि किस तरह उसके बाबा को अंग्रेजों ने
बुरी तरह पीटा था और वे महीने भर अस्पताल में पड़े रहे थे
मात्र इस कसूर के लिए कि वे जिस अंग्रेज ऑफिसर की घोड़ी की
देखभाल करते थे उसी की लड़की को उन्होंने सिगरेट पेश की थी।
'मेलोडी... हम तो खच्चरों की तरह पैदा होते हैं, खच्चरों की
तरह जीते हैं और खच्चरों की तरह मर जाते हैं। मेरे देश में सब
कुछ है। सुंदर पार्क है, आराम के लिए बेंचे हैं, तैरने के लिए
पुल है, बाइस्कोप है पर वह सब मात्र अंग्रेजों के लिए आरक्षित
है। यहाँ की सड़कें नियॉन सायनों से चमकती और कारों से भरी हैं
पर हर कार में अंग्रेज है - और हर अंग्रेज को सड़क पर चल रहे
कालों पर अत्याचार करने का हक है। मेरे देश का सारा वैभव
मुट्ठी भर गोरे अत्याचारियों के लिए है, हमारी अमानवीय
जीवनचर्या से उसे क्या सरोकार? लेकिन मैं बदल डालूँगा। मैं
रंगभेद को कुचल डालूँगा।'
'तुम्हें बुरा नहीं लगता मेलोडी? उसके मुँह से अपनी जाति के
खिलाफ सुनकर? कमलेश के सवाल से मेलोडी चौंकी लेकिन वहाँ
ईश्वरीय प्रेम की आभा थी।
'नहीं, वह सचमुच अमानवीय स्थिति जी रहा था... सारा नीग्रो
समाज। दोष हमारी जाति में ही था। डि क्लार्क ने राष्ट्रपति पद
सँभालते ही इस अत्याचार को खत्म करने की कोशिश की। दंगे भड़क
उठे। काला और सफेद खून बहने लगा पर खून न काला था न सफेद। खून
तो लाल-खूनी लाल था। तब मैंने एंजेली को अपने घर में छिपाना
चाहा था लेकिन उस पर भूत सवार था, वह प्रेम भूल चुका था। उसका
भाई मारा गया था और उसके पिता को पुलिस के घोड़ों ने कुचल दिया
था। वह मेरा एंजेली... एक खूँख्वार विद्रोही बन चुका था। उस
वक्त पुलिस गश्त लगा रही थी, देखते ही गोली मार देने के आदेश
थे पर वह नहीं माना। मैंने हाथ जोड़े, गिड़गिड़ाई, पैर पकड़
लिए पर उसने मेरी एक न सुनी... अपने तीन वर्षों के प्रेम भरे
जीवन में मैंने पहली बार उसके चेहरे पर अपने लिए घृणा देखी। वह
नाग सा फुफकारा - 'तुम श्वेतों की ही तो करनी है यह जो आज मेरी
कौम भुगत रही है।' और उसने मुझे जोर से लात मारी और बाहर निकल
गया। फिर गोली की आवाज और सड़क पर छटपटाती उसकी देह। मैं जोरों
से चीखी पर उस तक मेरी चीख नहीं पहुँची... उसने दम तोड़ दिया
था, उसकी आँखें खुली थीं जिनमें संपूर्ण गोरी कौम के प्रति
सुलगती नफरत थी।'
मेलोडी रोने लगी। कमलेश ने उसे रोने दिया। उसकी कॉफी ठंडी हो
चुकी थी। कमलेश दूसरी कॉफी बना लाई। इस बीच उसने उठकर चेहरा
पानी से धो लिया था और सिगरेट सुलगा ली थी।
'डि क्लार्क ने गोराशाही को खत्म कर दिया था पर मेरा एंजेली भी
तो खत्म हो गया न।'
वह तेजी से कश लेने लगी। गाढ़े तेज तंबाकू की नशीली खुशबू कमरे
में फैलने लगी। नशा मेलोडी पर भी छाने लगा।
'एंजेली ने मुझे एक बेटा दिया था।' फिर अप्रत्याशित ढंग से वह
खिलखिलाई -डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत के अनुसार तो उसे
चलने और बोलने लगना चाहिए था।'
और हँसी रुदन में बदल गई - 'नन्हा एंजेली भी मर गया, अपनी बिन
ब्याही माँ को तमाम संकटों से मुक्ति दिला गया। आखिर मुक्ति का
खून ही तो बह रहा था उसकी धमनियों में भी। मैंने उसे एंजेली की
कब्र के बाजू में दफना दिया। उस सिमिट्री में पहले बैंगनी रंग
के फूल खिलते थे। लेकिन जानती हो कमलेश जब नन्हा एंजेली दफनाया
गया उस साल वसंत ने एक भी बैंगनी फूल नहीं खिलाया। और खिलता भी
कैसे? अब वह मेरे नन्हें के लिए जमीन के अंदर जो खिलता है।'
बस, इससे ज्यादा सुनने की ताव कमलेश में न थी। इतने दर्द,
पीड़ा के बावजूद मेलोडी का चेहरा शांत, सौम्य और ईश्वरीय प्रेम
से ओतप्रोत था। वह आकंठ प्रेम में डूबी थी। और प्रेम के पास न
नफरत होती है न घृणा... प्रेम और मात्र प्रेम।
कमलेश का आज पहला शो था। वह सुबह नाश्ता करके थियेटर चली गई
थी। माँ को पत्रिका के कार्यालय जाना था लेकिन मेलोडी दिन भर
सोना चाहती थी। तय हुआ कि नाटक के शुरू होने के आधा घंटा पहले
वह हॉल में माँ से मिल लेगी ताकि दोनों साथ बैठ सकें।
शाम के चार बजे होंगे। गहरी नींद से उठकर तरोताजा हो मेलोडी
जयपुर से लाया शिफॉन का घाघरा और चोली पहन रही थी। ओढ़नी उससे
लेते नहीं बन रही थी इसलिए उसने उसे कमर में बेल्ट की तरह बाँध
लिया था। दो दिन पहले कमलेश उसके लिए घाघरे के रंग की बिंदी
लाई थी जिसे उसने अपनी दोनों भौंहों के बीच में चिपका लिया था।
मेलोडी को लगता ही नहीं था कि यह घर पराया है कि महीने भर बाद
वह काहिरा चली जाएगी। एंजेली के वियोग ने उसे सैलानी जो बना
दिया है! वह सारी दुनिया को अपने कदमों से नाप लेना चाहती है
ताकि यह देख सके कि भगवान की बनाई इस दुनिया के किस टुकड़े में
केवल प्रेम ही प्रेम है। इस घर से उसे प्रेम मिला। माँ भी उसे
बेटी जैसा ही मानने लगी हैं... उसकी दी हुई सौगातें उन्होंने
बड़े जतन से सजा कर रखी हैं। मॉरीशस के समुद्र तट से लाए
खूबसूरत पत्थर और उड़ीसा के कटक से लाए चाँदी के लाजवाब खिलौने
उनकी बैठक की शोभा हैं। अचानक फोन बज उठा। रजनीश का था। वह आना
चाहता था पर उसने शो देखने जाने की बात कही।
'ठीक है, मैं तुम्हें घर से पिकअप कर लेता हूँ। साथ-साथ शो
देखेंगे।'
मेलोडी मना नहीं कर पाई। शो छह बजे शुरू होगा। हॉल तक पहुँचने
में कम से कम आधा घंटा तो लग ही जाएगा। उसे रजनीश का चेहरा याद
आया। हमेशा हड़बड़ी से भरा लेकिन प्यारा। उसने एक लंबी साँस
भरी और खो सी गई। 'ओह एंजेली!' महज अपने लिए निकली एक खामोश
सिसकारी। अचानक आईने पर नजर गई। उसे अपना तराशा हुआ सौंदर्य
अजंता की गुफाओं में देखी मूर्तियों जैसा लगा। वह बड़ी
मासूमियत से मुस्कुराई। ऐसी बेलौस और मासूम मुस्कराहट जो दिल
की गहराइयों में सिर्फ अपनों के लिए पैदा होती है।
आते ही रजनीश ने जेब से व्हिस्की की छोटी बोतल निकालकर उसकी
मनपसंद सिगरेट की डिब्बी उसे भेंट की। मेलोडी खुश हो गई -
'शुक्रिया... तुम कॉफी पियोगे? फिर चलें।'
'अरे छोड़ो कॉफी ऑफी... एक-एक पेग हो जाए तो शो देखने का मजा आ
जाएगा।'
'ठीक है... लेकिन जल्दी वाला पेग लेते हैं... एकदम फास्ट।'
वह चौके से ग्लास और पानी की बोतल ले आई। रजनीश ने केबिनेट में
रखे डेक को ऑन किया और उस पर गजलों का कैसेट लगा दिया। मीठा
तरन्नुम खामोश फिजा को मुखारित करने लगा।
रजनीश ने पेग बनाकर मेलोडी की ओर बढ़ाया - 'आज की शाम तुम्हारे
नाम।'
'ऊहूँ... वासवदत्ता के नाम। ईश्वर उसे सफलता दे।'
और मेलोडी ने लंबा घूँट भरा। रजनीश ने इत्मीनान से बैठकर
सिगरेट सुलगाई - दो सिगरेटें जलाकर उसने एक मेलोडी को दी -
'बहुत प्यारी लग रही हो तुम इस पोशाक में।'
मेलोडी मुस्कुराई। उसने दूसरी घूँट में अपना गिलास समाप्त कर
दिया और टेबिल पर कोहनियाँ टिकाकर चेहरे को अंजलि में भरे वह
रजनीश को देखने लगी जिसे पेग खत्म करने की कोई हड़बड़ी नहीं
थी। बल्कि उसने अपने और मेलोडी के गिलास में फिर से व्हिस्की
उँड़ेल दी थी। मेलोडी ने मना भी नहीं किया और दूसरा पेग भी
नहीं पिया। वह अपलक शून्य में ताकने लगी। उसके चेहरे पर
हौले-हौले मुसकुराहट की लकीरें बनती-बिगड़ती रहीं। कोई मीठा
खयाल फूल की तरह खिलता चला गया। उसके शरीर में कोई हरकत न थी
पर जैसे संगीत की तिलस्मी लहरियाँ उसके रोंएँ-रोंएँ को झंकृत
कर रही थीं। उसका सारा अस्तित्व उस खयाल में घुल सा गया। वह
मेलोडी नहीं, महज एक दिलकश खयाल थी उस गजल का जो डेक पर अभी तक
बज रही थी।
'एंजेली - तुम प्रेम की पीड़ा हो जो मेरी रग-रग में समाई है।'
एंजेली, मैं। तुममें समा जाना चाहती हूँ... मैं उस कगार को ढहा
देना चाहती हूँ जहाँ मानवता खत्म होती है।'
एंजेली ने उसके होंठों पर अपने होठ रख दिए और उसके बालों में
अपनी उँगलियाँ उलझा दीं। लेकिन ये स्पर्श... ये एंजेली
तो
नहीं। ये तपिश एंजेली की स्निग्ध छुअन तो नहीं... अचानक वह
तड़प कर परे हट गई। रजनीश एक ओर हाँफता खड़ा था। संपूर्ण
मानवता को प्रेम करने वाली मेलोडी रो पड़ी - 'ये तुमने क्या
किया रजनीश? मेरे होठों पर से एंजेली का स्पर्श मिटा दिया। अब
मैं कैसे जिऊँगी? उस स्पर्श को कहाँ से पाऊँगी।'
रोते-रोते वह वहीं फर्श पर बैठ गई। रजनीश ने घबराकर जेब में
कार की चाबी टटोली और कमरे से बाहर चला गया। |