मुसाफिर
जब मनीषा को लेने चला तो दो बूँदें आकर गालों पर अटक गईं।
पुलकित हृदय उसने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। मनीषा का मायका
ससुर खदेरी नदी को पार करके पाँच कोस सीधे जाने पर आ गया।
बारिश ने अपना रूप बदल लिया था और बूँदों की जगह धार ने ले
ली थी। मनीषा खुद भी तैयार थी और छुटकी को भी फटाफट तैयार
कर लिया। मुसाफिर ने जल्दी से खाना खत्म किया और तीनों
निकल पड़े। दो महीने बाद आज रात साथ में खाएँगे, बातें
करेंगे, सपने देखेंगे।
जैसे जैसे वे आगे बढ़ते, सड़क के दोनों तरफ पानी बढ़ता
जाता। मुसाफिर ने छुटकी का हाथ पकड़कर तेजी से दौड़ना शुरू
किया। मनीषा भी समझ गई और भागी। थोड़ी देर में तीनों थक
गए। मुसाफिर ने बोला शाम से पहले पुल पार करना ही होगा।
छुटकी को सिर पर बैठाया। इस बार बड़ी हिम्मत की और नदी के
किनारे पहुँच कर ही रुके। नदी का मंजर कयामत समेटे था। हर
बरसात जब नदी में पानी आता तो पुल के ऊपर से हलवा पूरी
चढ़ाया जाता। पूरी लहराते हुए छपाक से गिरती और नीचे तैरते
बच्चे उठा लेते। पर आज तो पानी पुल तक पहुँच गया है। नदी
के दोनों तरफ लोगों की भीड़ है। आज उन्हें अहसास हुआ है कि
ये कोई पुल नहीं छोटी सी पुलिया है। और जल्द ही नदी उसे
बहा ले जाएगी।
एक बुजुर्ग ससुर खदेरी का किस्सा सुना रहे हैं। कैसे देवी
सती के आसुओं से यह नदी बनी है। अगर एक ही दिन में दो बार
नदी पार करनी हो तो देवी के दर्शन जरूरी हैं।
मनीषा को याद आया, वह तो मुसाफिर को कहने वाली थी कि दर्शन
करते हुए चले। बल्कि उसने तो हलवा पूरी भी तैयार किया था।
लेकिन बारिश ऐसी लगातार होती रही कि अन्त में याद ही नहीं
रहा। मुसाफिर ने देखा पुलिया के नीचे का हिस्सा टूटकर बह
गया। भीड़ में से कोई भी पुलिया पार करने की हिम्मत नहीं कर
रहा। वापस मनीषा के मायके जाने में रात हो जाएगी। पुलिया
के उस पार थोड़ी ही दूर पर मुसाफिर का घर है। और छुटकी का
घरौंदा भी। एक आदमी ने हिम्मत की और दौड़ कर दूसरी तरफ आ
गया। एक औरत और एक बच्चा साथ में पार पहुँच गए। मिट्टी का
एक हिस्सा और कट गया।
मनीषा ने मुसाफिर को समझाया। एक बार में एक ही बड़ा आदमी जा
सकता है। पहले मैं जाती हूँ फिर तुम छुटकी को लेकर आना।
मनीषा दौड़कर दूसरी तरफ गई और चिल्लाकर बुलाया। मुसाफिर ने
छुटकी को सिर पर बैठाया और पुलिया खाली दिखते ही दौड़ पड़ा।
तभी दूसरी तरफ से भी एक औरत दौड़ पड़ी और मुसाफिर से जाकर
टकरा गई। पुलिया ने हिम्मत छोड़ दी और जोर की आवाज सुनाई
दी। मुसाफिर ने छुटकी का हाथ पकड़ा और किनारे की तरफ फेंक
दिया।
मनीषा ने ना उम्मीद छोड़ी है ना व्रत। छुटकी को सब पता है
पर बता नहीं रही। मुसाफ़िर घूम के आता ही होगा।
१ जुलाई २०१८ |