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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
भावना सक्सैना
की लघुकथा- आशीर्वाद


घर में दोनों अशोक साथ में आए थे, उसका छोटा भाई अशोक और सीता अशोक का वह वृक्ष जो कुछ ही वर्षों में उसे रोपने वाले दादाजी से लंबा हो गया था। हर वर्ष जब वह नारंगी लाल फूलों से लदा होता तो बरखा सारा दिन आंगन में डोलती। उसका हर काम सीता अशोक के इर्दगिर्द होता। जब दादाजी बहुत बीमार हुए दोनों भाई बहन रो रहे थे तो दादाजी ने कहा था, रोना नहीं मैं हर बरस इन फूलों में मुस्कुराऊँगा।

अनजाने ही अब तक घर में सभी यह मानने लगे कि जब जब अशोक पुष्पित होता है, भैया अशोक के लिए कुछ अच्छा होता है। इसी क्रम में भैया एमबीए तक की पढ़ाई पूरी कर गया। उस बरस अशोक पर सबसे ज्यादा फूल खिले थे, मानो दादाजी प्रसन्न हों। फिर अशोक भाई का चयन दक्षिण अमरीका की एक कम्पनी ने कर लिया जो सूरीनाम में बसी थी। घर में सब उदास थे लेकिन कहीं खुश भी थे, समझ नहीं पा रहे था की खुशी ज्यादा है या विछोह का दुख। अशोक स्वयं नहीं समझ पा रहा था क्या करे, हम सब के साथ उसका अपने अशोक की छाँव के खोने का भी दर्द स्पष्ट था। जाने से पहले वाली रात बहुत देर उसके नीचे कुर्सी डाल बैठा रहा था। अपने नामराशि के साथ। परिवार से बिछुड़ने के दर्द में भीगा सा। एक गुच्छा अशोक के फूलों का उसकी गोद में आ गिरा था, मानो कह रहा हो मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। अपने में गुम अशोक भैया ने उसे उठाकर अनजाने ही अपने बैग में डाल लिया था।

भारी मन से देश से विदा हो सूरीनाम के पारामारीबो शहर पहुँचा था अशोक। सुबह दफ्तर पहुँचा तो प्रांगण में सैकड़ों अशोक पुष्प पल्लवित दिखे, बस वह वृक्षों पर नहीं झाड़ियों पर थे, किन्तु वैसे ही लाल सुनहरे। वह भौचक खड़ा का खड़ा रह गया मानो स्वप्न में हो। ड्राइवर ने आकर बताया सर यह यहाँ का राष्ट्रीय पुष्प इग्जोरा है जिसे फायलोबी नाम से अधिक जाना जाता है। यों पुष्पों को देख अशोक को लगा दादाजी का आशीर्वाद फलीभूत हुआ है। कोर की नमी को छोटी अँगुली पर ले उसने मुस्कुराते हुए नई ज़िन्दगी में प्रवेश किया।

१ अगस्त २०१८

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