इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
अपनी भाषा और साहित्य को समर्पित विविध विधाओं में अनेक
रचनाकारों की सुंदर रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये
चुनी है- जाती हुई बरसात के मौसम में लक्ष्मी शर्मा की व्यंजन
विधि- मेथी के पकौड़े। |
गपशप के अंतर्गत- जितनी दवाएँ बढ़ती हैं उतने रोग और बात बात में
दवाओं की जरूरत पड़ती ही रहती है पर क्या यह स्वास्थ्यवर्धक है? जानें-
दौड़ दवाओं की। |
जीवन शैली में-
शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी
आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं।
१४
प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- १२
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सप्ताह का
विचार- एक पल का उन्माद जीवन की क्षणिक
चमक का नहीं, अंधकार का पोषक है, जिसका कोई आदि नहीं, कोई अंत
नहीं।
--रांगेय राघव |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन
(८ सितंबर को) स्वामी शिवानंद सरस्वती, कथाकार राधाकृष्ण, गायक भूपेन हजारिका,
आशा भोंसले, अभिनेता मुरली...
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धारावाहिक-में-
लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और
प्रेरक वक्ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से
भरपूर आत्मकथा-
अंतिम विजय
का पाँचवाँ भाग। |
वर्ग पहेली-२०१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
विशेषांकों की समीक्षाएँ |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- हिंदी दिवस के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
डॉ.सरस्वती माथुर की कहानी-
आयोजन
लाजवंती गोखले एशिया के इस बहुचर्चित और विशाल साहित्यिक उत्सव
में जब पहुँची तो फेस्टिवल की शुरुआत हो चुकी थी और रंगायन हॉल
में वरिष्ठ रंगकर्मी व फिल्मकार विक्रांत सेठ का 'की नोट' चल
रहा थाl बाहर के फ्रंट लॉन में बहुत से लेखक एक गोल मेज के
चारों ओर कॉफ़ी पीते हुए सहज बातचीत कर रहे थे। शहर के बीचों
बीच बने "लेखक पैलेस" में गत पाँच सालों से पाँच दिवसीय
फेस्टिवल हर वर्ष जनवरी में ही आयोजित किया जाता है। सभी से एक
ही मंच पर मिलने जुलने का यह अवसर किसी दूसरी ही दुनिया में ले
जाता है !सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक अलग- अलग सत्र और
सांस्कृतिक आयोजन चलते रहते हैं। देश विदेश की प्रमुख प्रसिद्ध
हस्तियाँ गुलाबी नगर का मुख्य आकर्षण होती हैं। जहाँ निगाह
डालो लेखकों का जमघट नज़र आता हैl लेखक पैलेस के बीचों बीच एक
लान है जहाँ सर्दियों की ऊनी सी धूप में लेखको के समूह संवाद
में डूबे नज़र आते हैं।
आगे-
*
डॉ. मनोहरलाल का व्यंग्य-
साहित्यकारों से
अनोखे प्रश्न लाजवाब उत्तर
*
पी. वी. नरसिंहराव का
दृष्टिकोण
हिंदी
राष्ट्र का प्रतीक है
*
तेलुगु कवि विश्वनाथ सत्यनारायण
से
साक्षात्कार- मैंने हिंदी क्यों सीखी
*
युद्धवीर सिंह लांबा “भारतीय” का
आलेख
हिंदी हैं हम वतन है हिंदोस्तां
हमारा |
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चीन से डॉ. गुणशेखर का
व्यंग्य- नंगमेव जयते
*
डॉ. उषा तैलंग के शब्दों
में-
महाभाव स्वरूपिणी श्री राधा
*
इला प्रसाद के कहानी संग्रह-
''तुम इतना क्यों रोईं रूपाली'' से परिचय
*
शैलेन्द्र चौहान का आलेख-
सदा सजीली गजल दुष्यंत की
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.एस.ए. से
इला प्रसाद की कहानी-
आवाजों की दुनिया
गली में अभी धूप पसरी हुई थी।
गर्मियों की शाम पाँच बजे का समय कुछ नहीं होता। सूरज तब भी
सिर पर चमकता-सा लगता है, जमीन तप रही होती है। लोग घरों में
दुबके होते हैं और मोहल्ले में सन्नाटा पसरा लगता है।
इक्का-दुक्का रिक्शेवाले.... यह समय गली में पैदल चलने के
लिये, कुछ रहस्य बाँटने के लिये, दो बच्चियों को सही लगा।
‘‘माँ और मामी क्या बातें कर रही थीं ?’’
‘‘तुमने सुना नहीं?’’
‘‘नहीं न!’’
‘‘चल, बताऊँ।’’
चारु ने चंदामामा छोड़ा और रूपा के साथ हो ली।
‘‘यहीं कहाँ निकल रही हो तुम, इतनी धूप में?’’ पीछे से चारु की
माँ ने टोका।
‘‘ये बस गली के मोड़ तक। चिक्कू को घुमा लायेंगे।’’
‘‘नहीं, अभी धूप है।’’
‘‘थोड़ी दूर तो है। अच्छी हवा चल रही है। घर में बंद हैं दिन
भर। जाने दीजिये न फुआ।’’
आगे- |
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