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हास्य व्यंग्य


नंगमेव जयते
डॉ. गुणशेखर


मानें या न मानें किसी भी बहस में अंततः नंगा ही जीतता है। मेरी माँ भी कहती थी नंगों के मुँह मत लगा करो। 'नंगा नाचे फाटे क्या?' मेरी माँ की ही तरह दूसरे भी हज़ारों लोग कहते हैं, 'नंगा से खुदाय चंगा।' यानी नंगा तो भगवान को भी चंगा कर देता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह कि नंगे से इंसान क्या भगवान भी डरता है। तो फिर कोर्ट कचहरी से नंगों को क्या डर? वे सही थे हैं और रहेंगे इसे सब जानते हैं।

नंगों में जनता की यह आस्था ऐसे ही नहीं जगी है। इसके प्रमाण हैं। कुंभ पर्व पर लाखों नागा स्नान के लिए जाते हैं। वे तो ''बाजा'' भी नहीं लगाते हैं। उनके प्रति सरकार और जनता का आदर भाव देखिए कि उन्हें सबसे पहले नहाने दिया जाता है और उनके स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। सांसारिक दुनिया में भी कुछ पवित्र नागा साधू हैं। सरकार उनका पद्मभूषण से सम्मान करती है। जनता की तो पूछियो मत इनके पीछे ऐसे पागल हुई पड़ी है जैसे भांग चढ़ी हो। मैं भी तो उसी जनता में से हूँ। अपने प्रिय अभिनेता के पहले एपीसोड से अब तक उनका भक्त हुआ पड़ा हूँ। मेरी चले तो इन्हें बाजा भगवान के रूप में ग्यारहवाँ यानी कल्कि अवतार घोषित कर दूँ और इस्कान वालों की तरह मुंडा घुटा के साथ-साथ खंजड़ी बजाता हुआ नाचता-गाता चलूँ।

आखिर क्या नहीं है उसमें। भगवान श्रीकृष्ण की चौर्य कला, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का लोक कल्याण, भगवान बुद्ध की करुणा और महावीर स्वामी का अस्तेय और अपरिग्रह (वस्त्र त्याग के रूप में) सब कुछ तो इनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है। उसकी फोटो को गलत नज़रिए से देखने वाले की आँखें फोड़ देने का मन करता है। मेरे पास पैसा होता तो इनका अगला धारावाहिक 'नंगमेव जयते' बनाता। लेकिन भगवान ने सुन ली मेरी, धारावाहिक न बना पोस्टर बना, जितनी श्रद्धा थी उतना फल मिला। मुझे अफसोस है मैं अधिक श्रद्धा नहीं दिखा सका। मैं धारावाहिक न बना सका लेकिन बची खुची श्रद्धा को जमा कर के कल्पना तो कर ही सकता हूँ कि धारावाहिक का नायक सामने हारमोनियम लटकाए, आग से जलते हुए रोम को अनाथ छोड़ नीरो की भाँति बाँसुरी बजाता हुए चला आ रहा है। पीड़िताएँ श्रद्धा वश आँखें मींचे अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठी हैं। बैकग्राउंड से दर्द भरी आवाज़ में कोई गीत गूँज रहा है।

हमारा कल्कि अवतार नायक खड़ाऊँ पहने गैलरी से गुज़र रहा है। पीड़िताएँ और उनके परिजन उस पर फूल बरसा रहे हैं। चीर और चित चोर कान्हा-सा सोलह+आठ बराबर चौबीस कलाओं वाला परिपूर्णावतार में यह महानायक 'कोटि मनोज लजावन हारे' की मुद्रा में बल खा रहा है पर, शीलवान और मर्यादित इतना कि श्रद्धालुओं की आँखें बंद होने के बावजूद ''बाजा'' सूत भर भी इधर से उधर नहीं होता बल्कि फेविकोल से चिपका हुआ लग रहा है। वह घूम-घूम कर पीड़िताओं के सर पर बाँसुरी वाला हाथ फेर कर अपने आसन पर विराजमान हो जाता है, आसन के पीछे एक कृत्रिम झरना है और वहीं पर भगवान् बुद्ध की आदमकद मूर्ति स्थापित की गई है। इसके बाद बारी-बारी से नायक पीड़िताओं का दर्द सुनता है। नायक के खरगोश-से चौकन्ने कान दर्द सुन-सुन कर लाल हो जाते हैं और गैंडे-सी आँखों से झर-झर आँसू झरते हैं। श्रद्धालुओं को झरने और आँसुओं की लय-ताल मिलती हुई सुनाई पड़ रही है। पटकथा की पहली कड़ी में अभी इतना ही सोच पाया हूँ।

दूसरी कड़ी की पटकथा में सोचता हूँ कि नायक एक अति मानव है। उसको रात में दो बजे किसी लड़की का फोन आता है कि उसका अपहरण हो गया है। वह फोन आते ही बिस्तर से ही चुपके से उठके चला जाता है जैसे सिद्धार्थ गए थे। वहाँ अपहर्ता उसे रेल की पटरी पर मिल जाते हैं। यह उन्हें मार-मार के लहूलुहान कर देता है उसके बाद इसे होश आता है कि अरे कपड़े तो पहने ही नहीं। सुबह होने को है। घर जाए तो जाए कैसे। इसलिए उन बलात्कारियों से छीना हुआ ''बाजा'' आगे लगा के घर जाता है। पीपली लाइव वाला दुष्ट मीडिया वहाँ भी पहुँच जाता हैं और फोटो खींच लेता हैं। वैसे भी मीडिया को सामाजिक सरोकारों का इतना होश कहाँ रहता है कि किसी की मजबूरी के पीछे के कारणों पर सोचे -विचारे। मीडिया वालों को तो तो बस ब्रेकिंग न्यूज़ चाहिए। वे स्टूडियो में ही ब्रेकिंग न्यूज़ बना डालते हैं। हमारा नायक अनजाने ही इस मामले में आगे निकल गया हैं कि उसने ब्रेकिंग न्यूज की जगह न्यूड न्यूज की एक नई विधा का आविष्कार कर डाला है। कालान्तर में ब्रेकिंग न्यूज की जगह न्यूड न्यूज की इस नई विधा के आविष्कार का यह विशेष फोटो सोशल मीडिया पर वाइरल हो जाता है।

तीसरी कड़ी एक अन्य संभावना पर आधारित होगी। उसमें यह दिखाया जाएगा कि भगवान बनने के पहले हमारा नायक एक अति साधारण इंसान है जिसकी एक प्रेमिका होती है। समाज की मर्यादा के कारण उसको लेकर वह जंगल में जाता है। उसके पीछे कुछ बदमाश लग जाते हैं। वे इसकी प्रेमिका का अपहरण कर लेते हैं और इसके कपड़े फाड़ देते हैं लेकिन यह यह इतना निडर है कि पटरी-पटरी दौड़ते हुए उनका पीछा करना नहीं छोड़ता है। दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे हर दिशा से गोलियाँ आती हैं पर इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती हैं। गोलियाँ इसे चीरें उसके पहले ही यह तीन बलात्कारियों को चीर कर नारी के प्रति अपने त्याग-बलिदान का नग्न आदर्श समाज के सामने स्थापित करता है। उनमें से कुछ बदमाश ऐंटीक चीजों के शौकीन हैं वे ''बाजा'' लेकर चलते हैं। हमारा नायक उनका भी बाजा बजा देता है और बाद में उनसे ''बाजा'' छीन भी लेता है। उसके पास कुछ ही गोलियाँ बची हैं। बचे हुए बदमाशों को ठिकाने लगाने के लिये नायक उनका पीछा करते हुए पटरी-पटरी भागता है। शरीर में गोलियाँ धँसी हैं। उनसे लहू रिस रहा है। देह पूरी लाल है। कंकड़-पत्थरों पर भागते-भागते पैरों पैरों ने ज़वाब दे दिया है। तलुओं से खून बह रहा है फिर भी वह भाग रहा है। रुक नहीं रहा है। या तो जब कोई नागरिक दिखता है तो सामने ''बाजा'' लगा लेता है या फिर जब बदमाश लात-सात चलाते हैं तो वह ''बाजा'' आगे कर अपनी रक्षा कर लेता है।

अभी तो इतना ही शूट करने का मन है क्योंकि ज्यादा सोचने से कुछ फायदा नहीं है। बात बन जाएगी और धारावाहिक हिट हुआ तो और भी एपिसोड बनेंगे। अपने देश में न तो मसाले की कमी है और न ही मसाला मैनों की। न तो देश कहीं जा रहा और न बलात्कारी व भ्रष्टाचारी। चल निकला तो पुराने सारे कीर्तिमान पीछे छूट जाएँगे। पैसे की भी कमी नहीं है पाँच क्या चीज है मैं तो छह-सात करोड़ भी दे सकता हूँ। अगर इस पर भी नायक न माने तो एक एपीसोड के दस करोड़ भी दे दूँगा पर अपने इष्ट भगवान के लिये 'नंगमेव जयते' बनाऊँगा ज़रूर।

१ सितंबर २०१४

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