हिंदी राष्ट्र का प्रतीक है
पी. वी.
नरसिंहराव
(दक्षिण
भारत हिंदी प्रचार सभा के अमृतोत्सव वर्ष के उद्घाटन समारोह के अवसर पर
प्रधानमंत्री श्री पी.वी. नरसिंहराव का भाषण)
हमने कितनी रुकावटों का सामना किया है, पर पीछे ही देखना नहीं, आगे भी देखना है।
क्या सब कर चुके या कुछ और करना है। याद रखिए, देखते-देखते सौ साल गुजर जाएँगे,
परखते-परखते आँखों पथरा जाएँगी। हमें अब कुछ नयी दिशाओं में सोचने का समय आ गया है।
अब घर-घर जाकर पढ़ने वाले की खोज करने की जरूरत नहीं, वह समय बीत चुका है। पढ़ने का
विरोध, पढ़ाने का विरोध, घेराव, आंदोलन का वक्त चला गया हैं सब लोग खुद-आ-आकर पढ़ने
लगे हैं। उनकी आँखों में चमक आ गयी है। बाप हिंदी का विरोध करेगा, पर बच्चे को जरूर
भेजेगा पढ़ने के लिए, क्योंकि वह भविष्य से डरता है।
हिंदी राष्ट्र का प्रतीक है,
राष्ट्रीयता का प्रतीक है, रचना का आधार है। वह हमारी स्वतंत्रता का मूल है।
राजगोपालाचारी से लेकर बड़े-बड़े नेता पहचान चुके कि इसमें राष्ट्रीयता की भावना
हाफिज है। पंडितजी ने कहा, हिंदी के बिना राष्ट्रीयता का बिंब अधूरा है। किसने
हिंदी को यह स्थान दिया। हम सबने मिलकर हिंदी के लिए ऐसा स्थान बनाया है। महात्मा
गांधी ने हिंदी को भारतीयता का प्रतीकात्मक महत्व प्रदान किया था। हम सब हिंदी के
कार्यकर्ता हैं। आज नया मूल्यांकन का दिन आ गया।
पढ़ना-पढ़ाना तो है ही, हमें हिंदी में फैलाव नहीं गहराई पैदा करनी है। जीवन को
सहित्य में उतारने की कोशिश करनी है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का एक नया रूप
होना है। हम प्रचार सभा न कहलाये या तो हिंदी सभा या हिंदी साहित्य सभा। प्रचार कुछ
अलग तरह का होता है। अब हमारा काम भिन्न हो गया है। हम को तो उन प्रांतों में हिंदी
के लिए जोरदार स्थान बनाना है। हिंदी भाषा में प्रांतों की भाषा की आत्मा बिठानी
है। हमारा कितना ज्ञान हिंदी साहित्य में गया, हमारी कितनी बातें हिंदी में आयीं।
भाषा की विशेषता ही नहीं साहित्य की विशेषताएँ भी कितनी आयीं। हिंदी साहित्य को और
कैसे निखारा जाए। हिंदीतर प्रांतों में दुगुने तिगुने इतिहासवाली भाषाएँ हैं।
बंगला, असमिया, ओडिया, तेलुगु, कन्नड़, तमिल आदि भाषाएँ हैं। इनका साहित्य, मुहावरा,
सौंदर्य का भंडार हिंदी का बैंक है। हिंदी का बैंक वाकई आज अपने प्रांतों के बाहर
ही है। इसकी जमापूंजी का अंदाजा नहीं। आज हमें यह ठोस काम, अपनी कमाई को कमाने का
काम, बढ़ाने का काम करना चाहिए। वातावरण इसके लिए अनुकूल है। वातावरण से फायदा उठाना
ही समझदारी है।
अब कम्प्यूटर आ गया है। चारों तरफ कम्प्यूटर देखते हैं और उसके बारे में बातें
सुनते हैं। जो भी इनपुट होता है उसे वापस आना है। अंगरेजी में कहते हैं ‘गार्बेज इन
गार्बेज आउट।’ कम्प्यूटर सुंदर अक्षर और सुंदर फोंट देता है। पढ़ते हैं, आनंद आता है
और अपनी प्रगति के बारे में सोचते हैं। ये अकसर भूल जाते हैं कि बहुत धीमी गति से
प्रगति हो रही है। अन्य देशों में वोर्ड फाइंडर आ गये हैं। सबसे बड़ा वोर्ड फाइंडर
भारत में हजार साल पहले बना था ‘अमर कोष’ एक आदमी के दिमाग की खोज। क्या उस तरह
कम्प्यूटर से हिंदी में काम नहीं कर सकते हैं मैंने सुना बारह भाषाओं का कोष आया
है, बटन दबाने पर आपको शब्द मिल जाएगा। पर यहाँ नहीं।
आज तो स्टाइल राइटर भी आ गये हैं।
हमने कई बार सुना है लोग बोलते जाते हैं, वाक्य खतम ही नहीं होता है। शब्द भटक जाते
हैं, भरमा देते हैं। स्टाइल राइटर आपको टोक देता है। आपके लेखन की त्रुटियों को
निकाल देता है। ऐसे ही अनजान में कभी-कभी अश्लील शब्द आ जाते हैं एकदम कोकोकियल
स्टाइल राइटर सबका संकेत करता है। कई तरह के सॉफ्टवेअर बने हैं। लोग बताते हैं।
कितना वे जानते हैं इसका मुझे पता नहीं, पर उनकी बातें सुनकर विश्वास पैदा हो जाता
है। शब्द कोष सॉफ्टवेअर उदीयमान लेखक, पढ़नेवाले, पढ़ानेवाले के लिए काफी अच्छी
सामग्री है।
मैं फिर अमर कोष का उल्लेख करना चाहूँगा। इस आधार पर हिंदी में एक सॉफ्टवेअर आप
तैयार कीजिए। यह एक प्रोजेक्ट का काम है। बड़े दिमाग का काम है। भविष्य की दिशा में
काम है। यह काम आनुषंगिक ढंग से भी किया जा सकता है और खास ढंग से भी। पर कर सकती
है तो दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा ही कर सकती है। पहले मोटूरि सत्यनारायण जी ने
जो काम किया, उसके बारे में सोचता हूँ। अब उतने ही बड़े पैमाने पर काम होना चाहिए,
प्रचार का ही नहीं, भाषा का। मुझे अपनी भाषा का गर्व है। पर हिंदी में काम होने पर
बड़ी तृप्ति मिलती है। लगता है कि हमने देश के लिए कुछ किया है।
कुछ बातें तेलुगु में कहता हूँ पर
हिंदी में कहने पर ज्यादा लोग सुनते हैं यह मुझे अनुभव होता है। आपके पास चार
भाषाएँ हैं, बदली हुई परिस्थिति है, एक इतिहास है, कई बड़े लोगों के काम के आदर्श
हैं। समर्पण के भाव से आप क्या नहीं कर सकते। मुख्तलिफ बाते हैं कट आउट की तरह उनसे
आप ताकत ले सकते हैं। मैं कई संस्थाओं से जुड़ा हूँ, पर कांग्रेस को छोड़कर किसी अन्य
संस्था से इतने समय में, इतनी लंबी अवधि से जुड़ा नहीं हूँ जितनी सभा से। सभा का काम
मैंने पास से भी देखा है और अब दूर से भी देख रहा हूँ। मुझे समस्याओं का पता है, पर
समस्याएँ कहाँ नहीं। नयी बात और पुरानी बात दोनों में अड़चनें हैं। हम सोचना भी
जानते है और दूर करना भी। मुझे विश्वास है जब शताब्दी मनाएँगे, तब कई रिकॉर्ड होंगे
जिन पर हमें गर्व होगा।
८ सितंबर २०१४ |