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१०. ३. २०१४

इस सप्ताह-

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अनुभूति में-
शशि पुरवार, प्राण शर्मा, उषा यादव उषा, पीयूष भारत और बागेश्री चक्रधर की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

दमास  हरी पत्तियों के अप्रतिम सौदर्य का विस्तृत साम्राज्य है, दमास हरीतिमा का उपहार है, दमास इमारात की शान है। ...आगे पढ़ें

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- होली की तैयारी में चटपटी चाट के लिये विशेष रुप से बनाई गई पापड़ी चाट

आज के दिन (१० मार्च को) १९२३ में नाटककार मनोरंजन दास, १९३२ में अंतरिक्ष वैज्ञानिक और 'इसरो' के भूतपूर्व अध्यक्ष उडुपी रामचन्द्र राव...

हास परिहास के अंतर्गत- कुछ नये और कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी का आनंद...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- ३२  विषय- 'शादी उत्सव गाजा बाजा' में रचनाओं का प्रकाशन प्रारंभ हो गया है। टिप्पणी के लिये देखें- विस्तार से...

पुरानी लघु कथाओं- के अंतर्गत प्रस्तुत है ९ दिसंबर २००२ को प्रकाशित सूरज प्रकाश की लघुकथा- ग्लोबलाइजेशन

वर्ग पहेली-१७६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में भारत से
पावन की कहानी- खूबसूरत व्यवधान

‘क्या हमारी फिर मुलाकात होगी?’
‘देखते हैं, मेरे जाने के बाद अगर आप जिन्दा रहे तो?', उसने मुस्कराते हुए कहा। यही वो क्षण था जिसे वो रोकना चाहता था, ठहरा देना चाहता था, इस मुस्कराहट को और मुस्कराने वाली को। उसने कामना तो की लेकिन जल्द ही सिर झटक दिया। लैपटॉप पर आशिक़ी-२ का गाना बज रहा था और मोबाइल फोन पर बातचीत हो रहा थी।
सुन रहा है न तू....रो रहा हूँ मैं...
‘तो ठीक है, तू खुश रह अपनी दुनिया में। मैं जा रहा हूँ हमेशा के लिए।', लड़के के चेहरे पर करुणा, क्रोध और असहायता के मिले जुले भाव थे।
‘तुम जहाँ मर्जी हो जाओ, पर मेरा पीछा छोड़ो। मैं दुखी होने की सीमा भी क्रास कर चुकी हूँ।', दूसरी ओर से कहा गया।
‘मैं मरने की बात कर रहा हूँ, मरने की, समझी? अगर तुझे लगता है तू उस हरामजादे चौहान के साथ खुश रहेगी तो ठीक है मैं तेरे रास्ते से हट जाता हूँ।’, लड़के ने तैश में आते हुए कहा। आगे-

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श्रीप्रकाश का व्यंग्य
भीड़तंत्र की महिमा
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डॉ. रामलखन सिंह सिकरवार से प्रकृति
के अंतर्गत आम्र मंजरी और धनुषधारी कामदेव
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गुलाब सिंह का आलेख-
नवगीत और भारतीय संस्कृति
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पुनर्पाठ में- पूजा श्रीवास्तव की दृष्टि से
कृष्ण बिहारी का कहानी संग्रह- दो औरतें

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पिछले सप्ताह- शिवरात्रि के अवसर पर


करुणाकांत चौबे की लघुकथा
लैपटॉप
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मोहनचंद मंटन की कलम से-
सरस्वती संपादक के रोचक प्रसंग
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योगेश प्रवीण का संस्मरण
गन्ने में शेर
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पुनर्पाठ में- प्रभात कुमार से जानें
जीवनरक्षक छतरी और गर्मी का शीशमहल

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समकालीन कहानियों में भारत से
रेणु सहाय की कहानी- रेत का महल

सारा जंगल लाल नजर आ रहा था। यहाँ के जंगलों में पतझड़ से पहले पेड़ों के पत्ते लाल हो जाते हैं, जैसे पके हुए फल और फिर कुछ दिनों के बाद सारे पत्ते झड जाते हैं और सिर्फ ठूँठ रह जाते हैं। जब सारा जंगल लाल हो जाता है तो बड़ा मनमोहक लगता है। इस दृश्य को देखने के लिये सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। ऐसा दृश्य शुभ्रा ने किसी फिल्म में देखा था और आज सामने देख कर रोमांचित हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे किसी जश्न की तैयारी हो और चारों ओर कोलाहल मचा हो। पेड़, पत्ते आपस में बातें कर रहे हों, खिलखिला रहे हों। ऐसे में तरुण के साथ होने से मन प्रफुल्लित हो रहा था। हलके गुलाबी रंग के शर्ट और जीन्स में बड़े हैंडसम लग रहे थे तरुण। गुलाबी रंग के कपड़े तरुण को बहुत पसंद हैं शायद। उसने एक बार पूछा भी था, तो वह मुस्कुरा के रह गए। पता नहीं हर वक्त यह रिचर्ड क्यों लगा रहता है। उसे समझ में नहीं आता क्या, यह हमारा पारिवारिक कार्यक्रम है और फिर हमारी नई-नई शादी... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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