लेखक
कृष्ण बिहारी
°
प्रकाशक
आत्माराम ऐण्ड संस कश्मीरी गेट
दिल्ली
°
पृष्ठ २७२
°
मूल्य २७५ रूपये
|
दो औरतें (कहानी संग्रह)
पिछले
दशक में जिन कहानीकारों ने अपनी रचनाशीलता से आकृष्ट किया
है। उनमें कृष्ण बिहारी का नाम प्रमुख है। अबूधाबी में रह
कर वे जिन मानवीय विवशताओं से जूझते रहे हैं। उसकी सहज
अभिव्यक्ति इस संग्रह की कहानियों में हुई है। यही इन्हें
प्रभावी एवं विश्वसनीय बनाती है। कृष्ण बिहारी उन सभी
प्रवृत्तियों के प्रति जागरूक हैं जो एक मनुष्य को मशीन
बनने के लिए विवश कर रही हैं। विशुद्ध उपयोगितावादी परिवेश
में रहते हुए भी मानवीय मूल्यों को जीवंत करने वाली इन
कहानियों के पात्र आधुनिक समाज के सच्चे प्रतिनिधि हैं।
सोलह कहानियों के इस संग्रह में "राशी", "हे उन्नी हमें
क्षमा करो", "प्रथम पुरूष", "अन्ततः पारदर्शी" एवं "दो
औरतें" का उल्लेख संग्रह की उत्कृष्ट कहानियों के रूप में
किया जा सकता है। इनमें से "राशी" और "हे उन्नी हमें क्षमा
करो " चरित्र प्रधान कहानियाँ हैं। "अन्ततः पारदर्शी",
"प्रथम पुरूष" एवं "दो औरतें" असामान्य मनोविज्ञान पर
आधारित हैं। "राशी" की नायिका राशी एवं "हे उन्नी..."
के उन्नीकृष्णन के रूप में लेखक ने दो अति संवेदनशील
चरित्रों की स्थापना की है। आदर्श एवं यथार्थ में संतुलन
बिठाने में असफल रहे ये चरित्र अपने अपने त्रासद अंत को
प्राप्त होते हैं।
"राशी" की नायिका एक सभ्य एवं सुशिक्षित नवयुवती है जिसे
प्रेम के प्रतिदान के रूप में उपेक्षा व अनचाहे गर्भ के
अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता। अपने उपेक्षित और कलुषित जीवन
से ऊबकर एक दिन वह आत्महत्या कर लेती है। वहीं "हे उन्नी"
का उन्नीकृष्णन एक जीवन्त एवंआशावादी व्यक्ति है। 'उन्नी'
मूलतः जीवन से प्रेम करने वाला व्यक्ति है जो समाज के
पुनर्निर्माण के स्वप्न देखता है। जीवन भर दूसरोंके लिए
जीने वाला 'उन्नी' समाज की असंवेदनशीलता का शिकार होकर
असामयिक मृत्यु को प्राप्त होता है। "राशी" का त्रासद अंत
हमें दुखी करता है लेकिन "उन्नी" का अन्त हमें झकझोरता है। |
1
चरित्र प्रधान
कहानियों के रूप में "मरदानी" एवं "निष्पाप चेहरा" का भी
उल्लेख किया जा सकता है।'मरदानी' की नायिका 'भाभी' एक
अल्पशिक्षित एवं फूहड़ महिला है जो अपने दृढ़ संकल्पों एवं
जीवट से समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाने में सफल
रहती है। पूरे संग्रह में 'निष्पाप चेहरा' ही शायद अकेली
कहानी है जिसका ताना बाना आदर्श के धरातल पर बुना गया है।
कहानी के प्रमुख नायक के रूप में लेखक ने "फणि भूषण
चक्रवर्ती" की रचना की है जो एक शिक्षक है। चक्रवर्ती एक
ऐसे शिक्षक हैं जो अपने एक उद्दण्ड छात्र 'विली' को
सुधारने के लिए प्रयासरत रहते हैं और इसे अपने शैक्षिक
जीवन की चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं। यद्यपि कहानी
का मूल कथ्य बहुत नया नहीं किन्तु अपने आदर्शवादी सरोकारो
के कारण प्रासंगिक अवश्य रहा है। इस कहानी में लेखक ने
बिना किसी अतिवादी
बिन्दु को छुए बड़ी सहजता के साथ कहानी का विकास किया है।
'प्रथम पुरूष' एवं 'अन्ततः पारदर्शी ' विवाहेतर संबंधों पर
लिखी गई कहानियाँ हैं। मानवीय भावनाओं पर लेखक की गहरी पकड़
है इसलिए इन कहानियों के चरित्र असामान्य होते हुए भी
अवास्तविक नहीं लगते। विवाह के कई वर्षों बाद किसी दूसरे
के प्रति अपने मन में उठने वाली आकर्षण की भावना को लेकर
दोनों ही कहानियों के चरित्र स्वयं को किंकर्तव्यविमूढ़ता
की अवस्था में पाते हैं। उनकी विवशताओं इच्छाओं एवं
भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति ही इन कहानियों का मूल सौन्दर्य
है।
संग्रह की शीर्षक कहानी 'दो औरतें' अपने विशेष कथ्य एवं
संरचना के कारण पहले से ही चर्चित हो चुकी है। कहानी के
प्रारम्भ में नायक देह व्यापार से जुड़ी हुई दो औरतों से
अलग अलग समय पर मिलता है। ये दोनों औरतें दो अलग अलग
सामाजिक स्तरों एवं भिन्न आय वर्गों का प्रतिनिधित्व करती
हैं। चरित्रों के पारस्परिक संवाद, उनके क्रियाकलाप
इत्यादि में लेखक ने किसी प्रकार के संकोच का निर्वाह नहीं
किया है। कहानी को विवादित बनाने में इन्हीं तत्वों का
योगदान रहा है लेकिन कहानी का मूल भाव इन सभी तत्वों को
निष्प्रभावी बनाता है और नायक हमारी घृणा का नहीं, संवेदना
का पात्र बन जाता है। इसका कारण उसकी वे कोमल भावनाएँ हैं
जो उसकी दैहिक आवश्यकताओं से अधिक प्रभावी हैं। कहानी का
नायक हमें इसलिए भी प्रभावित करता है क्योंकि वह अपनी
कमियों को सहज रूप से स्वीकार करता है। वह अपने मन के
प्रत्येक भाव के प्रति जागरूक है। उसकी यही जागरूकता और
ईमानदारी सम्पूर्ण पतनशील
परिस्थितियों के बीच भी उसे
निर्लिप्त और निर्दोष रखती है।
लेखक के अपने परिवेश को चित्रित करतीं 'ब–बाय', 'मकड़जाल',
'जड़ों से कटने पर' एवं 'काठ होते हुए लोग' में लेखक ने
उन्हीं प्रवृत्तियों को अपना निशाना बनाया है जो ऐसे
समृद्ध एवं विकसित समाजों में पनपती हैं। 'ब–बाय' में
प्रेम एवं समर्पण को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया
गया है। वहीं 'मकड़जाल' एक ऐसे व्यक्ति की व्यथा कथा है जो
अपनों की असीमित अपेक्षाओं के मकड़जाल में बुरी तरह से फँसा
हुआ है। 'जड़ों से कटने पर' एवं 'काठ होते हुए लोग' में
लेखक ने उन मानवीय विवशताओं को केन्द्रबिन्दु बनाया है जो
एक सुव्यवस्थित एवं उपयोगितावादी परिवेश की देन हैं।
'ड्रॉइविंग लाइसेंस', 'बच्चा' और 'वरुण का क्या होगा'
संग्रह की समस्या प्रधान कहानियाँ हैं। 'वरुण का क्या
होगा' उस अर्थ में थोड़ी भिन्न कहानी इसलिए है क्योंकि
इसमें मानसिक रूप से असामान्य बच्चे के भविष्य पर चिन्ता
जताई गई है। कहानी 'बच्चा', 'काठ होते हुए लोग' की अगली
कड़ी सी मालूम होती है। सुसम्पन्न जीवन शैली और तेज़ रफ़्तार
ज़िन्दगी के बीच आँखें खोलते नौनिहाल कब अपनी उम्र से बड़े
हो जाते हैं, यह आज के लेखकों के लिए एक प्रासंगिक विषय
है। 'काठ होते हुए लोग' के साथ साथ कहानी 'बच्चा' भी इसी
विषय को उठाती है। अबूधाबी जैसे शहर में एक अदद ड्रॉइविंग
लाइसेंस के लिए 'ड्रॉइविंग लाइसेंस' का नायक किस तरह से
जूझता है उसका सुंदर और दयनीय चित्रण इस कहानी में मिलता
है।
.
कृष्ण बिहारी सामाजिक
एवं परिवेशगत प्रवृत्तियों के प्रति जागरूक है। वे किसी
विस्तार अथवा विषय की विवेचना में फँसने के बजाए सीधे तौर
पर अपनी बात कहना पसंद करते हैं उनकी कहानियों का शिल्प
चरित्रों की मनःस्थिति एवं कथ्य की आवश्यकता के अनुरूप
निर्धारित होता है। वे कहानी उसी तरह लिखते हैं जिस तरह
कोई व्यक्ति डायरी लिखता है।
इस संग्रह की उल्लेखनीय विशेषता है संप्रेषणीयता। कुल
मिलाकर यह संग्रह कृष्ण बिहारी के रचना संसार से हमें
परिचित कराता है और भविष्य में और अच्छी कहानियों के लिए
आश्वस्त करता है। पुस्तक पठनीय है।
— पूजा
श्रीवास्तव |