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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से पावन की कहानी— खूबसूरत व्यवधान


‘क्या हमारी फिर मुलाकात होगी?’
‘देखते हैं, मेरे जाने के बाद अगर आप जिन्दा रहे तो?', उसने मुस्कराते हुए कहा।
यही वो क्षण था जिसे वो रोकना चाहता था, ठहरा देना चाहता था, इस मुस्कराहट को और मुस्कराने वाली को। उसने कामना तो की लेकिन जल्द ही सिर झटक दिया।

लैपटॉप पर आशिक़ी-२ का गाना बज रहा था और मोबाइल फोन पर बातचीत हो रहा थी।
सुन रहा है न तू...रो रहा हूँ मैं...
‘तो ठीक है, तू खुश रह अपनी दुनिया में। मैं जा रहा हूँ हमेशा के लिए।', लड़के के चेहरे पर करुणा, क्रोध और असहायता के मिले जुले भाव थे।
‘तुम जहाँ मर्जी हो जाओ, पर मेरा पीछा छोड़ो। मैं दुखी होने की सीमा भी क्रास कर चुकी हूँ।', दूसरी ओर से कहा गया।
‘मैं मरने की बात कर रहा हूँ, मरने की, समझी? अगर तुझे लगता है तू उस हरामजादे चौहान के साथ खुश रहेगी तो ठीक है मैं तेरे रास्ते से हट जाता हूँ।’, लड़के ने तैश में आते हुए कहा।
‘अरे यार मत मरो, मैं जिन्दा आनन्द से तो निपट सकती हूँ लेकिन अगर तुम भूत बन गये तो कैसे निपटूँगी।’,
लड़की का स्वर हल्का सा शरारती हो आया, ‘और खबरदार जो सचिन को गाली दी।’
‘हाँ, तू तो उसकी मूरत बनाकर पूजा कर रही है न।’
‘शटअप।’
‘ठीक है। लेकिन मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ। मैं सचमुच मरने जा रहा हूँ।’
‘अच्छा! गुड न्यूज है ये तो। पर सूसाइड नोट में मेरा नाम मत लिखकर जाना। नहीं तो बाद में तुम्हारे घरवाले और पुलिस मुझे तंग करेगी। तब तो...एक मिनट रुको, कोई दरवाजे पर है।’

लड़का प्रतीक्षा करने लगा। वह तो कब से प्रतीक्षा ही कर रहा है। कुछ देर बाद लड़की का स्वर सुनाई दिया। उसे लगा बहुत देर बाद लड़की बोली।
‘नहीं लिखा न सूसाइड नोट में मेरा नाम?’
‘तुझे अभी भी मजाक लग रहा है न। अभी तुझे वॉटसएप पर फन्दे की और सूसाइड नोट की फोटो भेजता हूँ, तब पता चलेगा कि मैं बिल्कुल मजाक नहीं कर रहा हूँ।’
‘ठीक है, भेजो फोटो, तब तक तो पीछा छोड़ो। पर एक बात याद रखना, पहले तुम अपना प्यार मुझ पर थोप रहे थे और अब अपना मरना। मैं किसी के लिए भी जिम्मेदार नहीं हूँ, समझे? और मरने की बात मुझसे बार-बार बोलने की जरूरत नहीं है। प्लीज स्पेयर मी।’
‘मेरी तो हर चीज के लिए तू जिम्मेदार है विशाखा। ये तू भी जानती है और मैं भी। एनीवे, अब हमेशा के लिए आनन्द से पीछा छूट जायेगा। अच्छा! एक बार मेरे लिए वायलिन बजा दे। मेरी रिक्वैस्ट है।’
‘तुम पागल हो गये हो क्या?’
‘प्लीज।’
‘नहीं।’

‘तुझे मेरी कसम है। तुझे याद है अमित सर की फेयरवैल में तूने पहली बार जब वायलिन बजाया था। तेरी वो बन्द आँखें, हल्की सी टेढ़ी गरदन और वायलिन पर चलता हुआ हाथ। आज भी वो छवि मेरे भीतर अंकित है। उसी दिन से मैं तेरा दीवाना हो गया था। प्लीज आखरी बार बजा दे।’, लड़के का स्वर रुआँसा हो गया।
‘शटअप आनन्द। तुम्हें एक बार में बात समझ नहीं आती क्या?’, दूसरी ओर लड़की का गुस्से भरा स्वर, ‘मेरा पीछा छोड़ो यार।’
‘मेरी रिस्वैस्ट और कसम की तुझे परवाह नहीं तो जा छोड़ दिया पीछा तेरा। आनन्द के बिना आनन्द से रहना।’, लड़के ने कहा और फोन काट दिया।

आशिकी-२ का आशिक अभी भी रो रहा था और उसे सुनने वाला कोई नहीं था। आनन्द नाम का लड़का फाँसी के लिए रस्सी खोज रहा था और उसे मरने से बचाने वाला कोई नहीं था। उसके माँ बाप और छोटा भाई किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी में गये थे और कल सुबह से पहले नहीं आने वाले थे। कल सुबह तो उनका उसकी लाश से आमना सामना होगा।
आनन्द पर मरने की धुन सवार हो चुकी थी। जीवन बस यहीं तक है, और यहाँ तक आकर भी वह फेलियर ही साबित हुआ। क्या कहा था विशाखा ने? यू आर फेलियर मिस्टर आनन्द। साली ने मिस्टर आनन्द तो ऐसे बोला था जैसे कितनी बड़ी इज्जत दे रही हो मुझे।
हाँ, मैं फेलियर हूँ लाइफ में, प्यार में, नौकरी में...।’, आनन्द जोर से बोला। लेकिन उसे भी सुनने
वाला कोई नहीं था।
आशिकी-२ का गाना बदल गया था - हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते...

उसे हैरानी हुई कि वह इस घर में रहता है और उसे यही नहीं मालूम कि रस्सी कहाँ रखी होती है? या इस घर में रस्सी है भी या नहीं? आखिरकार, बहुत खोजने के बाद उसे रस्सी मिल गयी। रस्सी देखते ही उसकी आँखे चमक उठीं। मन में ठानी हुई बात को पूरा करने वाली चमक। जीवन का आखिरी कदम उठाने वाली चमक, रस्सी! मिलने के बाद भी उसे बहुत काम करने थे। रस्सी का फन्दा तैयार करना है, उसे पंखे से बाँधना है, सूसाइड नोट लिखना है, उनके फोटो खींचकर विशाखा को भेजना है। उसने सोचा तो नहीं था, फिर भी वो आ गया जो अक्सर उसके हर काम में सबसे पहले आ जाता था बल्कि उसे लगता था कि वह पहले से ही पंजे गाड़े उसके आगे बैठा हुआ होता है। व्यवधान।

डोरबेल बड़ी अधीरता से तीन बार बजी। ऐसा लगा जैसे बजाने वाले के पीछे फौज पड़ी हो। उसने एक गहरी नजर रस्सी पर डाली और मुख्य द्वार की ओर बढ़ गया। दरवाजे में लगी मैजिक ऑई से उसने बाहर देखा। एक अनजान परी चेहरा बेचैनी और घबराहट भरे भाव के साथ खड़ा था। प्रश्न चिन्ह लिए लड़का ठिठका सा खड़ा रहा। ये कौन आ गयी? उसकी नजर दीवार घड़ी पर पड़ी। रात के पौने ग्यारह बज रहे थे। तभी घण्टी फिर बजी और फिर बजी। उसने चिटकनी खोलने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि दरवाजा भी पीटा जाने लगा।

जैसे ही उसने दरवाजा खोला, बाहर खड़ी लड़की बदहवासी से भीतर दाखिल हो गयी। अभी वह कुछ समझ भी नहीं पाया था कि लड़की ने जल्दी से दरवाजा बन्द कर दिया और दरवाजे से पीठ लगाकर लम्बी-लम्बी साँसे लेने लगी।
‘आ...प? कौन हैं आप?’, लड़के ने अटकते स्वर में पूछा।
लड़की ने हाथ से उसे रुकने का इशारा किया। वह उसी प्रकार गहरी साँसे ले रही थी।
लड़की की उम्र पच्चीस के आसपास होगी और वह बहुत खूबसूरत थी। उसने क्रीम रंग का अनारकली सूट पहना हुआ था जिससे वह बहुत मासूम, बहुत कमसिन लग रही थी। बेचैनी और घबराहट ने उसकी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आने दी थी। लड़का मोहित सा उसे देख रहा था। वह भूल गया कि आत्महत्या करने के लिए उसने रस्सी तलाश की थी।

‘पा...नी...पानी मिलेगा?’, कोई परिचय देने की बजाय लड़की ने पानी की माँग की। आनन्द ने सिर हिलाया और पानी लेने चला गया। लगभग फौरन ही वह पानी लेकर आ गया। लड़की ने पानी का गिलास थामा और एक ही साँस में सारा पानी पी गई।
‘और?’, आनन्द ने पूछा।
‘लड़की ने इन्कार में सिर हिलाया और खाली गिलास आनन्द की ओर बढ़ा दिया।
‘थैक्यू।’, लड़की ने धीरे से कहा।
आनन्द गिलास पकड़े चुपचाप लड़की को देख रहा था। लड़की के चेहरे से बदहवासी कम हो गयी थी लेकिन वह अभी भी असहज थी।
‘क्या मैं कुछ देर यहाँ रुक सकती हूँ?’, लड़की ने पूछा।
‘आप हैं कौन? और कोई समस्या है क्या?’
‘क्या आपके यहाँ किसी को बैठने के लिए नहीं कहते?’, लड़की ने भोलेपन से पूछा।
‘ओ.. सॉरी।, प्लीज बैठिए।’, उसने सोफे की और इशारा करते हुए कहा।

लड़की धीरे-धीरे चलती हुई सोफे पर बैठ गयी। आनन्द भी उसके सामने बैठ गया। गिलास उसने बीच में रखी मेज पर रख दिया। लैपटॉप पर गाना बदला। आशिकी-२ का ही एक और गाना - तू ही ये मुझको बता दे चाहूँ मैं या ना...। उसके कमरे से बहती हुई गाने की आवाज वहाँ तक आ रही थी। लड़की ने उसके कमरे की दिशा में देखा मानो उस कमरे में गाना लाइव चल रहा हो, फिर उसने कहा,
‘एक्चुली, मैं यहाँ से गुजर रही थी तो दो तीन आदमी रास्ते में मुझे छेड़ने लगे। मैं उनसे बचने के लिए भागी और जो पहला घर मुझे दिखाई दिया वो आपका मिला और मैंने आपके घर की घण्टी बजा दी।’
‘और वे आदमी?’, आनन्द ने शंकित स्वर में पूछा।
‘वे मेरे पीछे ही थे। क्या वे यहाँ आ जायेंगे? वैसे उन्होंने मुझे देखा तो है यहाँ आते हुए।’, वह भी आशंकापूर्ण स्वर में बोली।
‘ऐसे कैसे आ जायेंगे। फिर भी मैं पुलिस को फोन कर देता हूँ।’, आनन्द ने कहा।
‘नहीं, पुलिस को फोन रहने दीजिए। अगर वे लोग बाहर नहीं हुए तो खामखाह पुलिस नाराज होगी और हम दोनों से उल्टे सीधे सवाल करेगी।’, लड़की ने तुरन्त कहा।
‘आपके पास कुछ सामान भी नहीं है। आपका बैग वगैरहा। उन लोगों ने लूट तो नहीं लिया?’, वह खाली हाथ थी जबकि लड़कियाँ बड़ा सा बैग अपने साथ जरूर रखती हैं जिसमें दुनिया जहान का सामान होता है।
नहीं, मेरे पास कुछ नहीं था, मेरा मतलब है, है। आई मीन, मैं खाली हाथ ही थी।’
‘आपका घर...?’
‘घर?’, लड़की कहीं खो सी गई, ‘मैं...मैं थोड़ी देर बाद चली जाऊँगी।’, वह व्याकुल हो उठी।

आनन्द ने कुछ नहीं कहा, बस परेशान, व्याकुल, असहज खूबसूरती को देखता रहा। परेशान वह भी था बल्कि वह तो जिन्दगी से ही परेशान हो गया था। और अब वह इस खूबसूरत व्यवधान से परेशान हो रहा था। अजीब स्थिति थी, न वह उसे जाने को कह सकता था और न ही उसके सामने मर सकता था। उसे विशाखा पर भी बहुत गुस्सा था। दोपहर तक तो वह विशाखा की भी जान लेने की सोच चुका था। वह शायद ऐसा कर भी देता अगर किसी फिल्मी तरीके से उसके पास पिस्टल आ जाती तो। क्या कह रही थी, आनन्द के भूत से कैसे निपटूँगी? चिन्ता मत कर, अब तुझे भूत बनकर ही...

लड़की कुछ पूछ रही थी।
‘आप यहाँ अकेले रहते हैं?’
‘क्यों?’, वह रूखे स्वर में बोला।
‘क्यों मतलब?’, वह हड़बड़ा गई। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद जो नहीं थी। फिर सँभलते हुए बोली, ‘मैंने सोचा, चुपचाप बैठने से तो कुछ बात करना अच्छा है। अगर आप नहीं बताना चाहते तो...।’
‘ऐसी बात नहीं है’, वह धीरे से बोला, ‘दरअसल आप अचानक से मेरे घर में आ गयीं। आप इतनी रात में क्यों घूम रही हैं? न आपके पास सामान है, मोबाइल है, शायद पैसे भी नहीं होंगे? इसलिए मुझे थोड़ा अजीब सा लगा। जरूर बहुत बड़ी मजबूरी होगी आपकी?’
लड़की उसका चेहरा ताक रही थी। आनन्द के चुप रहने के बाद भी वह उसे ताकती रही। इस तरह ताकने से वह हल्का सा विचलित हुआ। उसकी आँखें भी बेहद खूबसूरत थीं। क्या उपमा देते हैं? हाँ, हिरणी सी आँखें।
‘क्या हुआ? कुछ गलत कहा मैंने?’, आनन्द ने पूछा।
उसने इन्कार में गर्दन हिलाई।
‘आपको कहीं फोन करना है तो कर सकती हैं।’
‘हाँ, फोन तो करना है पर अभी नहीं, पहले अपनी मजबूरी तो बता दूँ आपको।’, उसके चेहरे पर पीड़ा की छाया डोल गई।

यही...बिल्कुल यही वो क्षण था जैसे कैमरे का बटन क्लिक हुआ और वो चेहरा फोटो के रूप में उसके भीतर कैद हो गया। वह पीड़ा से भरे बहुत खूबसूरत चेहरे पर मोहित हो गया, उसका दीवाना हो गया बिना यह सोचे कि एक दीवानगी के कारण वह आत्महत्या करने जा रहा था। उसको ऐसे देखते हुए वह थोड़ी असहज सी हो गई। उसने अपने अब तक के जीवन में बहुत नजरों का सामना किया है-घूरती हुई, खा जाने वाली, भेदती हुई, वासनामयी। मगर ये नजरें वह दूसरी बार देख रही थी। कोरे प्यार से भरी नजरें थी वे।

‘आप ऐसे क्या देख रहे हैं?’
‘सॉरी।’, आनन्द ने सिर झटका, ‘आप न बताना चाहे तो चलेगा या टेक यूअर ओन टाइम।’, उसने जल्दी से कहा। इस बार उसका स्वर नर्म था।
‘गुस्सा...ये गुस्सा बहुत खतरनाक चीज होती है। गुस्से के दौरान जो हो जाये वही कम होता है मगर उतरने के बाद जो हो चुका होता है वह बहुत अधिक हो चुकता है, आपको पछताने का भी मौका नहीं मिलता। आज फिर मेरे हसबैण्ड ने मुझसे झगड़ा किया, जैसा अक्सर वह करता रहता है तो...’
‘यू आर मैरिड?’, वह थोड़ा तेज स्वर में बोला।
‘हाँ, चार साल हो गये।
‘अच्छा! बट... रियली, आप लगती नहीं हैं।’
‘तो क्या लगती हूँ मैं?’, लड़की ने चेहरे पर तनिक उत्सुकता लाते हुए पूछा।
‘आप तो कॉलेज गोइंग लगती हैं।’, आनन्द ने तुरन्त कहा।
लड़की जोर से हँसी। अपनी परेशानियों और दुखों को दबाते हुए जोर से हँसी।
कुरबान! आनन्द का दिल उतनी जोर से धड़का जितना जोर से वो हँसी।
‘गुड जोक, गुड जोक।’, उसने कहा। आनन्द शरमा सा गया।
‘आप कुछ झगड़े के बारे में बता रहीं थी।’

‘हाँ,’, उसका मुस्कराता हुआ चेहरा एकदम गम्भीर हो गया, ‘हम कहीं जाने के लिए तैयार हो रहे थे कि एक फिजूल की बात पर उसने झगड़ा शुरू किया। वह हमेशा ऐसा ही करता है। बात बात पर झगड़ा, बिना बात पर झगड़ा, कुछ हुआ तो झगड़ा, कुछ न हुआ तो झगड़ा। कहते हैं कि औरत ज्यादा झगड़ा करती है मगर वो तो लड़ाई-झगड़े में औरतों को भी मात करता है। मैं इन रोज-रोज के झगड़ों से भर चुकी थी। कभी तो लिमिट होती है। आज ये इतना बढ़ गया कि गुस्से में मैं घर से निकल पड़ी, बिना कोई सामान उठाये। पैसे, मोबाइल, पर्स सब छोड़कर मैं निकल गयी।’, वह साँस लेने के लिए रुकी।

आनन्द स्तब्ध भाव से उसे देख रहा था। उसके सामने सिर्फ एक दुखी चेहरा था और पीड़ामयी आवाज। वह सब कुछ भूल गया था- आशिकी के गाने, रस्सी, सूसाइड नोट, विशाखा की उपहासपूर्ण बातें, और भी बहुत कुछ और विशाखा भी। जो कुछ है तो सामने बैठी दुखी लड़की। क्या कोई इतनी सुन्दर लड़की को भी दुख दे सकता है? कितना कठोर होगा वो? उसने ध्यान दिया था कि जब वह बोलती है तो उसके निचले होंठ में एक लय, एक थिरकन होती है। बस, समय ठहर जाये और वह इस थिरकन को महसूस करता रहे। पार्श्व में चलता हुआ गाना ऐन फिट बैठ रहा था- तू ही ये मुझको बता दे, चाहूँ मैं या ना...

‘गुस्से के कारण मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया।’, वह बता रही थी, ‘बाहर आकर मैं यूँ ही एक ओर चलने लगी, फिर मैंने पता नहीं कहाँ जाने के लिए ऑटो लिया, शायद वहीं जहाँ हमें जाना था। मुझे याद आया कि मेरे पास तो पैसे ही नहीं थे। मैंने ऑटो वाले को बताया तो उसने कहा कि जहाँ जा रहे हैं वहाँ से लेकर दे देना। मैंने कहा, ऐसा नहीं हो सकता तो उसने मुझे बुरा भला कहते हुए यहाँ उतार दिया। अभी मेरा दिमाग कुछ ठिकाने लगा ही था कि वो तीन आदमी मेरे पीछे पड़ गये। पर थैंक गॉड’, उसके चेहरे पर महीन सी मुस्कान आई, ‘आपने दरवाजा खोल दिया और मेरी जान बच गयी नहीं तो आज तो मेरा...। आप तो जानते ही होंगे कि दिल्ली कितनी अनसेफ है औरतों के लिए।’
‘वो तो है। अच्छा किया आप यहाँ आ गयीं। यहाँ आपको कोई खतरा नहीं है।’, आनन्द ने मुस्कराते हुए कहा।
‘आप अकेले रहते हैं यहाँ?’, लड़की ने तनिक आशंकित स्वर में पूछा। पहले पूछने पर उसे अजीब उत्तर जो मिला था।
‘मैं अभी आया।’, आनन्द वही मुस्कान लिये सोफे से उठा और अपने कमरे में चला गया।

हालाँकि लड़की को उसकी मुस्कान से कोई खतरा महसूस नहीं हो रहा था, न कोई खौफ, न कुटिलता लग रही थी लेकिन किसी का दिमाग पलटते क्या देर लगती है। फिर भी वह आश्वस्त थी। उसकी नजरों ने कमरे का जायजा लिया। सामने की दीवार पर एक बड़ी सी मॉडर्न आर्ट पेंटिन्ग टंगी थी। एक ओर टीवी कैबिनेट थी जिस पर एक एलसीडी टीवी रखा था। ड्राइंग रूम सामान्य था, जिसमें दिखावटी और महँगी चीजें कम थी मगर साफ और सुरुचिपूर्ण था। अभी वह छत पर लगी लाइटों को देख ही रही थी कि भीतर से आते हुए गाने की आवाज बन्द हो गयी और कुछ ही क्षणों बाद आनन्द वापस आ गया।
‘गाना क्यों बन्द कर दिया?’, पूछना तो नहीं बनता था फिर भी उसने पूछा।
‘शायद अब उसकी जरूरत नहीं है।’, आनन्द ने बहुत हल्की मुस्कान के साथ कहा।
लड़की कुछ नहीं बोली लेकिन उसके चेहरे पर बड़ा-बड़ा ‘क्यों’ लिखा हुआ था।
‘जब आपने घण्टी बजाई थी उस समय मैं अपने भीतर कुछ निश्चित कर रहा था। ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है कि मैं कुछ करना चाहता हूँ उससे पहले ही कोई रुकावट, कोई व्यवधान आ जाता है मगर आज ऐसा खूबसूरत व्यवधान पहली बार आया है।’, उसने अर्थपूर्ण ढंग से लड़की को देखते हुए कहा और एक क्षण रुका।
लड़की असमंजस से उसे देख रही थी।

‘कई बार लाइफ में ऐसी स्टेज आती है, ऐसा लगता है मानो सब कुछ खत्म हो गया है और कई चीजें जैसे, निराशा, दुख, गुस्सा, हताशा, असफलता मिलकर उसे ऐसी जगह धकेलकर ले आती हैं जहाँ एक ही रास्ता होता है-मौत का रास्ता। आपके आने से पहले मैं आत्महत्या करने जा रहा था। अगर आप पाँच मिनट नहीं आती तो मैं मर चुका होता।’
‘आप... आत्महत्या? ...क्यों?’, लड़की ने हैरानी से पूछा।
‘बस दिमाग खराब हो गया था। और ये जो दिमाग है न वो दिल की वजह से खराब होता है क्योंकि हम दिल को बहुत बड़ा मानते हैं। सच कहूँ तो बहुत कमीना होता है ये दिल..’
‘आपने ठीक कहा’, लड़की ने जोर जोर से गर्दन हिलाते हुए कहा, ‘सचमुच आपका दिमाग...क्योंकि मुझे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा आप क्या कहना चाह रहे हैं।’

‘सॉरी, मैं बहकने लग गया था लेकिन सच्चाई यही है कि मैं आत्महत्या करने वाला था मगर आपके आने से मेरा इरादा बदल गया। मेरे लिए आप जिन्दगी बनकर आयी हैं।’, आनन्द भावुक होने लगा। उसे लग रहा था आने वाले कुछ ही क्षणों में वह ये भी बोल देगा कि वह उसे प्यार करने लगा है।
‘कैसे?’, लड़की उसके भीतर चल रही कशमकश से अनजान, पूछ रही थी।
‘कैसे, कैसे, कैसे। कैसे बताऊँ? एक्चुली, आप बहुत सुन्दर हैं और इतनी सुन्दर लड़की भी परेशान और दुखी है तो मेरी परेशानी और दुख तो कुछ भी नहीं है। मैं तो उस लड़की के पीछे दीवाना हूँ जो मुझे कतई नहीं चाहती। जो मुझे पागल कहती है, फेलियर कहती है और भी जमाने भर की बातें। उसने तो मेरी आखरी इच्छा भी पूरी नहीं की। और मैं उसके लिए जान देने जा रहा था। मैंने रस्सी भी तलाश कर ली थी। मैं आपको बताता हूँ, अभी, बिल्कुल अभी कुछ देर पहले एक पल ऐसा आया था जब मैं सब कुछ भूल गया था, सब कुछ। आपके दर्द भरे चेहरे ने सब कुछ भुला दिया था, मेरे अपने सारे दर्द, मेरे अपने सारे दुख, उस लड़की को भी...’,

वह भावुकता की सीमा पार करने लगा था, ‘मुझे, एक्चुली मुझे आपसे...’
‘तो मेरा आना तो आपके लिए शुभ हो गया।’, लड़की ने जल्दी से उसकी बात काटते हुए कहा, ‘पहले आप बैठ जाएँ।’, वह अभी तक खड़ा था और लड़की को डर लग रहा था कि वो किसी भी समय उसे पकड़ न ले। शायद तब खुद उसे ध्यान आया कि वह खड़ा है। उसने सोफे को खाली नजरों से देखा और उस पर बैठ गया।
‘आपने मेरे जीवन की रक्षा की है और मैं मुझे बचाने वाले का नाम भी नहीं जानता।’, फिर वही मुस्कराहट उसके चेहरे पर चिपक गई।
लड़की ने चैन की साँस ली। ‘मुस्कान से डर नहीं लगता साहब, भावुकता से लगता है।’ उसने मन ही मन ‘दबंग’ के संवाद को परिवर्तित किया।

‘अच्छा! तो क्या नाम होना चाहिए मेरा?’, लड़की ने मुस्कान दबाते हुए पूछा।
अब जो उसके चेहरे पर भाव था, वो भी जानलेवा था। हे भगवान! मुझे क्या हो रहा है? इतनी सुन्दर मूरत क्यों मुझे अपनी ओर खींच रही है। वह लगातार उसके बारे में सोच रहा था। वह लगातार उसे देख रहा था। लड़की का पीड़ा वाला भाव शरारती भाव में बदल गया था। लड़की भी उसके भावों को देख रही थी और समझ रही थी। हे भगवान! एक और रोमियो।
‘आपने सुना, मैंने क्या पूछा था आपसे?’
‘क्या पूछा था? मुझे ध्यान नहीं।’, उसका ध्यान टूटा।
‘मैं पूछ रही थी घर में कुछ खाने को है क्या? मुझे भूख लग रही है और मुझे लगता है आपने भी नहीं खाया होगा। आदमी खाना खाकर मरने की थोड़ी ना सोचता है।’, लड़की ने मासूमियत से कहा।
‘खाना?’, वह धीरे से बोला, ‘खाने के बारे में तो मैंने सोचा ही नहीं था क्योंकि मुझे तो भूख ही नहीं लगी।
आपने ठीक कहा, मरने वाला खाने के बारे में कहाँ सोचता है। मगर अब आपने खाने की बात की तो मुझे भी भूख का अहसास होने लगा है।’
‘वैरी गुड। तो कुछ है खाने को या बाहर...’, उसकी नजर घड़ी पर गई, ‘सवा ग्यारह होने वाले हैं।

बाहर से भी क्या मिलेगा?’
‘कुछ न कुछ तो मिल ही जायेगा।’, वह उठता हुआ बोला, ‘मैं देखता हूँ।’
जब वह लौटा तो कुछ सन्तरें, केले, बिस्किट और नमकीन लेकर आया। सामान उसने मेज पर रखा और खेदपूर्ण स्वर में बोला, ‘अभी तो फिलहाल यही है घर में।’
‘चलेगा चलेगा। अभी तो यही चलेगा। छप्पन भोग फिर कभी।’, वह मुस्कराते हुए बोली।
क्या लड़की है, हर ऐंगल से अच्छी लगती है। उसने मन ही मन सोचा।
‘मैं सचमुच आपका आभारी हूँ। आपके आने की वजह से मेरी जान बच गई।’
‘लगता है आपने वो कहावत नहीं सुनी जो अक्सर लड़के ही बोलते हैं कि ट्रेन, बस और लड़की के पीछे कभी नहीं भागना चाहिए, दूसरी मिल जाती है।’
‘हाँ, सुना तो है।’
‘तो फिर?’
‘आज से गाँठ बाँध लेता हूँ।’
‘ओके। मुझे अपने घर फोन करना था, क्या मुझे फोन मिलेगा?’

उसने सहमति में सिर हिलाया और मोबाइल फोन लेने अपने कमरे में चला गया।
और कुछ देर बाद दो भूखे जीव मेज पर रखा सारा सामान खा गये। उसके बाद गर्मागर्म चाय पी, जो लड़की ने रसोई में उसके साथ खड़े होकर बनाई। वह अपने घर फोन कर चुकी थी और जल्द ही उसे कोई लेने आने वाला था। आनन्द सोच रहा था कि ये लड़की खुद तो चली जायेगी मगर उसकी नींद उड़ा जायेगी।
‘आपने अभी तक अपना नाम नहीं बताया?’
‘अरे, आपने ही तो मेरा नामकरण किया था। भूल गये? मेरा नाम ‘खूबसूरत व्यवधान’ है।’
आनन्द झेंप गया। ‘सॉरी।’

तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी। अजनबी नम्बर था।
‘मेरा होगा, क्या नम्बर है?’, लड़की बोली।
उसने नम्बर बताया। लड़की के सहमति में सिर हिलाते ही उसने फोन उसकी ओर बढ़ा दिया।
‘हैलो?.. हाँ, आ गये तुम?...बाहर खड़े हो?...ठीक है, मैं आ रही हूँ।’
‘मैं चलती हूँ। थैंक्यू सो मच। आपने मेरी मदद की और मुझे अपने घर रुकने दिया।’, लड़की आभार प्रकट करती हुई बोली।
‘थैंक्यू तो मुझे बोलना चाहिए। आपने मेरी जान बचाई है। एक बात पूछूँ? आप फेसबुक पर है? लेकिन...मैं सर्च कैसे करूँगा, आपने तो नाम भी नहीं बताया।’, वह मायूस स्वर में बोला।
‘मैं सर्च कर लूँगी आपको।’
‘हाँ प्लीज। आनन्द सागर के नाम से मेरी प्रोफाइल है।’
‘और वैसे क्या नाम है आपका?’, उसके निचले होंठ में फिर थिरकन हुई।
‘आनन्द सागर ही है।’, उसने गहरी साँस लेते हुए कहा।
लड़की दरवाजे की ओर बढ़ी।
‘क्या हमारी फिर मुलाकात होगी?’

‘देखते हैं...मेरे जाने के बाद अगर आप जिन्दा रहे तो?’, उसने मुस्कराते हुए कहा।
यही वो क्षण था जिसे वो रोकना चाहता था, ठहरा देना चाहता था, इस मुस्कराहट को और मुस्कराने वाली को। उसने कामना तो की लेकिन जल्द ही सिर झटक दिया।
‘अरे नहीं। अब मैं ऐसा नहीं करूँगा। मुझे ट्रेन, बस, लड़की वाली बात याद रहेगी।’
‘ओके दैन।’, लड़की ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। आनन्द ने तुरन्त उसका हाथ थाम लिया और गर्मजोशी से मिलाते हुए हल्का सा दबाव दिया। ये दिखावा था जबकि उसे ऐसा लग रहा था कि उसकी जान जा रही है।
‘बाय।’, उसने धीरे से कहा।
लड़की बाहर निकल गयी। बाहर सड़क के किनारे एक कार खड़ी थी। वह उसमें जाकर बैठ गयी। उसे नहीं पता उसका कौन उसे लेने आया था। वह गई तो उसका दिल भी ले गई।

लड़की कार में बैठी। ड्राइविंग सीट पर उसका पति बैठा था और पीछे विशाखा।
‘क्या हुआ दीदी?’, विशाखा ने व्यग्र स्वर में पूछा।
‘गुड न्यूज है। अब आत्महत्या नहीं करेगा वो और तुम्हारी वजह से तो बिल्कुल भी नहीं क्योंकि...।’
विशाखा ने छुटकारे की साँस ली, ‘मुझे आप पर विश्वास था दीदी। एक्टर लोग कुछ भी कर सकते हैं।’
‘क्योंकि अब वो मेरा रोमियो है।’, खूबसूरत व्यवधान खिलखिलाते हुए बोली।
उसके पति ने मुस्कराते हुए उसे देखा और कार आगे बढ़ा दी।

 १० मार्च २०१४

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