सारा
जंगल लाल नजर आ रहा था। यहाँ के जंगलों में पतझड़ से पहले पेड़ों
के पत्ते लाल हो जाते हैं, जैसे पके हुए फल और फिर कुछ दिनों
के बाद सारे पत्ते झड जाते हैं और सिर्फ ठूँठ रह जाते हैं। जब
सारा जंगल लाल हो जाता है तो बड़ा मनमोहक लगता है। इस दृश्य को
देखने के लिये सैलानियों की भीड़ लगी रहती है।
ऐसा दृश्य शुभ्रा ने किसी फिल्म में देखा था और आज सामने देख
कर रोमांचित हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे किसी जश्न की
तैयारी हो और चारों ओर कोलाहल मचा हो। पेड़, पत्ते आपस में
बातें कर रहे हों, खिलखिला रहे हों। ऐसे में तरुण के साथ होने
से मन प्रफुल्लित हो रहा था। हलके गुलाबी रंग के शर्ट और जीन्स
में बड़े हैंडसम लग रहे थे तरुण। गुलाबी रंग के कपड़े तरुण को
बहुत पसंद हैं शायद। उसने एक बार पूछा भी था, तो वह मुस्कुरा
के रह गए।
पता नहीं हर वक्त यह रिचर्ड क्यों लगा रहता है। उसे समझ में
नहीं आता क्या, यह हमारा पारिवारिक कार्यक्रम है और फिर हमारी
नई- नई शादी हुई है, हमें भी एक दूसरे का साथ चाहिये।
आज से तीन महीने पहले जालंधर में उनकी शादी हुई है। शुभ्रा
इंजिनियर है। पहले वह बंगलौर में एक अच्छी कंपनी में काम कर
रही थी। बड़ी बहन की शादी पाँच साल पहले हो चुकी थी। माता- पिता
शुभ्रा की शादी के लिये बहुत परेशान थे। योग्य वर के लिये
लगातार भाग दौड़ कर रहे थे। शुभ्रा के साथ काम करने वाले दो-तीन
लड़के उससे शादी करना चाहते थे। एक ने तो घर आ कर उसके पिता
रंजीत कपूर जी से मिल कर शादी का प्रस्ताव रखा भी था लेकिन
उन्हें अंतरजातीय रिश्ता मंजूर नहीं था। इन्टरनेट या समाचार
पत्रों के माध्यम से मिलने वाले रिश्तों पर उन्हें भरोसा नहीं
था। दूर दराज के बिलकुल अनजान लोगों के बारे में सब कुछ जान
पाना संभव नहीं होता, फिर ऐसे बिलकुल अनजान लोगों के हाथ बेटी
को कैसे सौंप दे। योग्य कन्या का विवाह भी एक समस्या है। कोई
जाना पहचाना लड़का नजर में होता तो उसकी योग्यता शुभ्रा से कम
होती।
उस दिन पापा के दोस्त खन्ना अंकल आए।
बेटी, तेरे खन्ना अंकल आए हैं, एक गिलास पानी तो ला।
पानी रख कर शुभ्रा अन्दर चली गई तो खन्ना ने पूछा- इसकी शादी
की बात बनी?
नहीं यार, मैं तो बड़ा परेशान हूँ।
अरे अपना सुखविंदर भी तो अपने बेटे के लिये लड़की ढूँढ रहा है।
उससे मिल न।
"कौन, अपना सुक्खी?"
"हाँ, हाँ वही।"
"मुझे तो मालूम नहीं था। काफी दिनों से मिला नहीं हूँ न। क्या
करता है वह?"
"बड़ा काबिल लड़का है। आई. आई. टी. दिल्ली से इंजीनियरिंग कर के
किसी मल्टीनेशनल कंपनी में अमेरिका में तीन वर्षों से कार्यरत
है। बाकी घर परिवार की जानकारी तो मुझसे ज्यादा तुम्हें है।"
"अरे तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?"
"मुझे भी कहाँ मालूम था। उस दिन काफी दिनों के बाद बाजार में
मिल गया तो पता चला।"
फिर क्या था बात फटाफट तय हो गई। तरुण के माता, पिता तो आ कर
लड़की देख गए। लेकिन तरुण और शुभ्रा की बात तो स्काइप पर ही हो
पाई। उतनी दूर से अचानक आ तो सकता नहीं था। परिवार के सभी लोग
स्काइप पर ही मिल लिये। तरुण बहुत शालीन और सभ्य लड़का है। सभी
को बहुत पसंद आया। और फिर शादी तय हो गयी।
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ख्यालों में खोई शुभ्रा ने देखा तो तरुण और रिचर्ड काफी आगे
निकल गए थे। पीछे से धीरे- धीरे मम्मी और पापा आ रहे थे। वह
मम्मी और पापा का साथ देने के लिये रुक गई। एक सप्ताह के बाद
मम्मी और पापा वापस लौट रहे हैं। तरुण ने उन लोगों को यहाँ
देखने लायक सब कुछ ले जा कर दिखलाया। कितना सम्मान करता है
उनका। बिलकुल बेटे जैसा। धीरे- धीरे मम्मी पापा भी आ गए। उनकी
धीमी चाल का साथ देने के लिये शुभ्रा को रुकते देख कर दोनों
वहीं पर बने बेंच पर बैठते हुए बोले- भाई हम तो थक गए, अब तुम
लोग घुमो टहलो और लौटते वक्त हमें ले लेना। हम यहीं बैठते हैं।
"ठीक है तो मै भी यहीं रुकती हूँ।"
"अरे नहीं बेटा, तुम लोग घुमो न। हमने तो बहुत कुछ देख लिया।"
और शुभ्रा को तरुण और रिचर्ड के साथ भेज दिया। रिचर्ड, तरुण का
जिगरी दोस्त, हर कदम हर जगह हर समय उसके साथ।
भगवान ने हमारी चिंता दूर कर दी। कितना अच्छा दामाद मिला है।
अब हम चैन से बाकी जिन्दगी गुजार सकते हैं। बेटी को एक अच्छे
जीवन साथी के साथ खुश देख कर दोनों बड़े खुश हैं। यही देखने के
लिये तो दोनों शुभ्रा के साथ चले आए। शादी के बाद तरुण तो
तुरंत वापस लौट आया था, छुट्टी नहीं थी। शुभ्रा के कागजात
वगैरह तैयार होने में करीब तीन महीने लगे। तरुण के माँ पापा ने
ही कहा कि आप लोग भी साथ चले जाइए। नई-नई शादी है, मिल जुल कर
इनकी गृहस्थी का इंतजाम करवा दीजिएगा। बेटी के साथ कुछ दिन रह
कर आएँगे तो आपको भी तसल्ली होगी।
"तरुण बोलता कम है न।"
"हाँ इतना पढ़ा- लिखा, इतनी बड़ी कम्पनी में काम करने वाला, क्या
आप की तरह बेमतलब बकता रहेगा?"
"अरे पढ़े लिखे लोग बोलते नहीं हैं क्या? और मैं बेमतलब बोलता
हूँ?"
"और नहीं तो क्या।"
"बड़ी आई"
कुछ देर दोनों मुँह फुला कर बैठे रहे।
"तरुण देखने में भी कितना सुन्दर है न।"
"हाँ तो अपनी शुभ्रा भी तो लाखों में एक है।"
"वही तो मैं कह रहा हूँ दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी है।
भगवान बुरी नजर से बचाए।"
"हाँ सही कहा।"
"शादी के दिन याद है न लोग कैसे जले जा रहे थे इन्हें देख कर।"
"हाँ और क्या! किसी को अच्छा नहीं लग रहा था इनका रिश्ता होना
देख कर
सारी सहेलियाँ इसकी तक़दीर की सराहना कर रही थीं, अरे तेरी तो
ऐश है। अमरीका में रहेगी। दोनों इतनी अच्छी कंपनी में इतनी
अच्छी नौकरी करते हो क्या बात है।"
"हाँ और कपूर और उसकी पत्नी ने तो हद ही कर दी। अभी बारात आने
वाली है और कहते हैं कि लड़के के विषय में सब जाँच पड़ताल कर ली
है न। विदेश में बसे लड़कों के बारे में अक्सर धोखा हो जाता
है।"
"हाँ और क्या! बेकार में लोग बिदेश में बसे लड़कों के बारे में
गलत-गलत अफवाहें उड़ाते हैं। उनसे बेटी ब्याहने में डरते हैं।
जब तक आँखों से कुछ देखा न हो, सुनी सुनाई बातों पर किसी को
बदनाम करना ठीक नहीं।"
"अब अपने तरुण को ही लो। ऐसी जगह पर रह कर भी कितना विनम्र और
शांत लड़का है। इतने दिनों में तो हमने कभी शराब, सिगरेट भी
पीते नहीं देखा। न ही लड़कियों की दोस्ती देखी। न पैसे का
अभिमान न कोई बुरी आदत।
शराब, सिगरेट क्या हमारे देश में रहने वाले लड़के नहीं पीते? और
बुजुर्गों का सम्मान तो इसकी तरह हमारे भारत में रहने वाले
लड़के भी नहीं करते। हमारा कितना ध्यान रखता है।"
"अच्छे बुरे तो हर जगह होते हैं। कोई यहाँ आ कर भटक भी गया तो
इसका मतलब यह तो नहीं कि सभी भटक जाते हैं।"
"चलो भगवान ने इतनी कृपा की है हम पर, दोनों बेटियों की
जिम्मेदारी से मुक्त हो कर ख़ुशी-ख़ुशी बुढ़ापा गुजार सकते हैं।"
"बुढ़ापा क्यों, अब तो हम दोबारा जवान हो जायेंगे और बस मजे
करेंगे।"
"चलो भी, जवानी में तो कहीं ले कर घुमने गए नहीं, अब इस उम्र
में भी यहाँ आए हैं तो बेटी दामाद के बहाने से, तुम तो बस रहने
भी दो।"
"अब पुरानी बातें छोड़ो।"
"ठीक है, ठीक है, ये लोग काफी दूर निकल गए शायद"
"हाँ बता रहे थे उधर कुछ एडवेंचर राइड्स वगैरह कुछ है। लगता है
वहीं सब मस्ती कर रहे हैं।"
"लेकिन शुभ्रा को तो इन चीजों से डर लगता है। याद है अपनी
सहेलियों के साथ जायंट व्हील पर चढ़ गई थी तो कितना डर गई थी।"
"अब तुम यह सब सोचना छोड़ो। वह अपने पति के साथ है। दोनों एक
दुसरे को समझ लेंगे।"
..."अच्छा सुनो, यह रिचर्ड अपने लिये डेरा देख रहा है कि
नहीं?"
"हाँ बता तो रहा था दो, तीन जगह बात की है उसने।"
"तब ठीक है। अभी नई- नई शादी हुई है। एक ही घर में एक पराये
मर्द का रहना ठीक नहीं है। वह भी एक विदेशी। हमारी सभ्यता,
संस्कृति तो मालूम नहीं होगी उसे। हमारे सामने ही चला जाता तो
हमलोग निश्चिंत हो कर जाते।"
"ठीक है न, दो, चार दिनों में क्या हो जायगा।"
"दो ही कमरे हैं अभी तक शुभ्रा और तरुण अलग ही रह रहे हैं। और
कैसा बदतमीज़ है एक बार भी उसने नहीं कहा कि तुम दोनों बेडरूम
में रहो और मै बाहर वाले कमरे में शुभ्रा के मम्मी, पापा के
साथ सो लूँगा।"
"तरुण भी तो सीधे हैं। जोर दिया होता तो न।"
"इन लोगों की संस्कृति अलग है न। दूसरों के लिये एडजस्ट करना
इनका स्वभाव नहीं होता। वह तो शुक्र मनाओ कि वह दूसरी जगह जाने
के लिये तैयार हो गया। वर्ना कह सकता था कि मै यहाँ रहूँगा तुम
लोग दूसरा घर देख लो। हुंह।"
"अच्छा छोड़ो ये बातें। दो चार दिनों में वह चला जायगा और हमें
क्या मतलब।"
"हूँ।"
"यहाँ के लोग कितने सलीके वाले हैं, मजाल है कोई लाइन तोड़ कर
आगे निकल आए। रास्ते में कहीं जरा सा भी कचरा नजर नहीं आता। उस
दिन हमलोग जिस लेक पर गए थे उसका पानी कितना साफ था, बिलकुल
शीशे की तरह। सच, मैं तो हमेशा ही चाहता था कि शुभ्रा की शादी
अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा जैसे किसी देश में काम करने वाले
लड़के से हो। ऊपर वाले ने हमारी सुन ली।"
"अच्छा जी, उस दिन अमृतसर में बस की टिकट लेने के लिये आपने ही
धक्का मुक्की कर लाइन तोड़ी और आगे पहुँच कर टिकट खरीदा था और
यहाँ के लोगों की तारीफ कर रहे हैं।
अब वहाँ की बात छोड़ो। वहाँ तो लाइन में लगोगे तो खड़े ही रह
जाओगे। आप का नंबर कभी नहीं आने वाला। खैर छोड़ो, तुमने शुभ्रा
से बात की थी? वह खुश तो है न?"
"हाँ, हाँ वह बहुत खुश है। कल देखा नहीं दोनों शाम को घूम कर
लौटे तो कितने खुश थे। आपस में तो दोनों हँस-बोल रहे ही हैं,
कल छुट्टी थी तो दोनों मोर्निंग वाक करने चले गए। घंटों बाद
लौटे"
"हाँ वो तो है"
"देखो वो भी आ रहे हैं।"
"बहुत मज़ा आया माँ, आपलोगों को भी आना चाहिये था।"
"तुम लोगों ने मजे किये न, बस यही बहुत है। अब हमलोगों को चलना
चाहिये।"
"हाँ चलो।"
अगले दिन आधी रात में शुभ्रा के मम्मी पापा की हिंदुस्तान के
लिये उड़ान थी। मम्मी पापा और शुभ्रा तीनों भावुक हो रहे थे।
तरुण को समझा रहे थे- बेटा, बड़े प्यार से हमने अपनी बेटियों को
पाला है। इसे किसी तरह का दुःख न होने देना। पहली बार इतनी दूर
विदेश की धरती पर छोड़ कर जा रहे हैं, सिर्फ तुम्हारे सहारे।
उसका पूरा ख्याल रखना। तरुण चुपचाप सर झुका कर सब कुछ सुनता
रहा और सर हिला कर मुस्कुराता रहा।
मम्मी पापा को बिदा कर के वापस लौटते समय शुभ्रा सुबक रही थी।
तरुण ने उसे हलके से थपथपा कर चुप कराया। शुभ्रा को अच्छा लगा।
ऐसा लगा कि माता पिता के बाद तरुण ही वह है जिस पर वह पूरा
भरोसा कर सकती है, तभी तो अपना घर अपना देश सब कुछ छोड़ कर सात
समुन्दर पार आँख मूँद कर उसका हाथ पकड़ कर चली आई। धीरे- धीरे
मन शांत होने लगा। दोनों घर पहुँचे तब तक रात के तीन बज चुके
थे। रिचर्ड सोया हुआ था।
"कल तुम्हारी ऑफिस का पहला दिन है, जल्दी ही जाना होगा सो
जाओ।"
अब तीन बजे नींद क्या आती। मम्मी पापा के जाने से मन भरी हो
रहा था। पड़े-पड़े सैकड़ों बातें दिमाग में घूमने लगीं। शादी के
पहले की, शादी तय होने से ले कर आज तक की, और फिर आने वाले
भविष्य के बारे में और इसी उधेड़ बुन में सुबह हो गई। तरुण तो
बिस्तर पर पड़ते ही सो गया। बहुत थक गया था शायद।
सुबह के साढ़े छह बज गए, नहीं सोने के कारण थकान तो लग रही थी
फिर भी शुभ्रा उठ गई। थोड़ा नाश्ते का इंतजाम कर के वह स्वयं भी
तैयार हो गई। तरुण और रिचर्ड भी तैयार हो गए। शुभ्रा ने रिचर्ड
से भी नाश्ता करने को कहा। रिचर्ड ने चुपचाप नाश्ता किया और
ऑफिस के लिये निकल पड़ा। अजीब आदमी है, न थैंक्स बोलता है न
मुस्कुराता है, यह तुम्हारा दोस्त इन्सान है या रोबोट? शुभ्रा
ने हँसते हुए कहा।
तरुण ने कुछ जवाब नहीं दिया सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया।
आज तुम्हारी ऑफिस का पहला दिन है, चलो मैं तुम्हें छोड़ता हुआ
अपने ऑफिस चला जाऊँगा। और दोनों ऑफिस के लिये निकल गए।
शुभ्रा तो तरुण की कंपनी में ही काम मिल गया है, लेकिन उनके
ऑफिस अलग-अलग हैं। आज से छह महीने पहले तरुण का प्रोजेक्ट भी
उसी ऑफिस में था जहाँ आज शुभ्रा का है। अतः वहाँ के लोग भी
तरुण को अच्छी तरह से जानते हैं। तरुण शुभ्रा को वहाँ छोड़ता
हुआ अपने ऑफिस की ओर बढ़ गया।
"शाम को हमारे ऑफिस का समय अलग-अलग है, तुम मुझे लेने मत आना,
मैं चली जाऊँगी।"
ओ.के. कहता हुआ तरुण चला गया।
पहले दिन उसका सबसे परिचय कराया गया। संयोग से उसका मैनेजर एक
हिन्दुस्तानी था। ऑफिस में दुनिया के हर क्षेत्र के लोग थे।
एशियाई, विशेष कर हिन्दुस्तानी बहुत थे।
"शुभ्रा हमारी नई साथी है और इस प्रोजेक्ट काम करेगी।"
सभी ने उसका एक स्वर एक में अभिवादन किया। तभी उनमें से एक
गोरी महिला ने पूछा- आर यु तरुण’स वाइफ ( क्या तुम तरुण की
पत्नी हो?)
"यस।" ऑफिस में उसका पति लोकप्रिय है जान कर शुभ्रा को अच्छा
लगा। तभी एक एशियाई मूल की महिला ने पूछा- कौन सा?,
क्या वही तरुण?"
"हाँ, वही तरुण।" मुस्कुराती हुई उस गोरी महिला ने जवाब दिया।
उन दोनों का उस तरह से मुस्कुराना शुभ्रा को अजीब लगा। खैर सब
से मिल कर अच्छा लगा। सभी अच्छे लोग थे। लंच ब्रेक में सबसे
बातें हुईं। यहाँ का अंतर्राष्ट्रीय माहौल बिलकुल अलग लेकिन
अच्छा लगा। लंच ब्रेक के बाद उसके मैनेजर ने कहा- तुम्हारा काम
तो कल से ही शुरू होगा, अगर चाहो तो आज घर जा सकती हो। शुभ्रा
तो चाहती ही थी। रात भर नहीं सोने के कारण थकी हुई तो थी ही,
घर जा कर थोड़ा सोना चाहती थी अतएव वह घर के लिये निकल पड़ी।
घर की एक-एक चाबी तीनों के पास है। दरवाजे पर आटोमेटिक लॉक है।
अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर वह अन्दर आ गई। खाली घर अचानक
बिलकुल सूना सा लगा फिर भी मन में एक उमंग है, ख़ुशी है। चलो
थोड़ी देर आराम कर लूँ फिर शाम के चाय नाश्ते का इंतजाम करूँगी।
और वहीं सोफे पर लेट गई। हिन्दुस्तानी लड़कियाँ नौकरीपेशा हों
या घरेलू, परिवार के खाने पीने का ख्याल रखना अपना पहला फ़र्ज़
समझती हैं।
इक्कीसवें माले की खिड़की से सामने का दृश्य विहंगम नजर आता है।
सामने एक चर्च दिखलाई देता है। उधर से गुजरते हुए कभी-कभी घंटे
की आवाज सुनाई देती है तो श्रद्धा से सर वैसे ही झुक जाता है
जैसे हिंदुस्तान में मंदिर की घंटी या गुरूद्वारे की सबद सुन
कर झुक जाया करता था। इन्हीं विचारों में खोई हुई उसकी पलकें
भारी होने लगीं और वह नींद की आगोश में चली गई। अचानक कुछ आवाज
सुन कर उसकी आँखें खुल गईं उसे लगा उसने कोई सपना देखा शायद
उसने फिर से आँखें मूँद लीं। तभी लगा जैसे बेडरूम से कुछ आवाज
आ रही है। वह डर गई। धीरे से उठ कर दबे पाँव दरवाजे तक गई।
सहमते हुए हलके से दरवाजे को धक्का दिया और--------.
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तरुण और रिचर्ड को बिस्तर पर उस
हालत में देख कर शुभ्रा के मुँह से निकलने वाली चीख गले में ही
घुट कर रह गई। सर घुमने लगा। किसी तरह लडखडाती हुई दुसरे कमरे
में भागी।
इतना बड़ा धोखा! कुछ पल पहले जो दृश्य सुहावने लग रहे थे, अब
धुँधले और डरावने लगने लगे। कुछ पल पहले जहाँ वह सपनो का महल
बना रही थी, लहरों के थपेड़े सब कुछ बहा कर अपने साथ ले गए,
पीछे रह गया सिर्फ रेत और उस पर छटपटाती एक छोटी सी मछली।
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