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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के स्तंभ में प्रस्तुत है महानगर की कहानियाँ के अंतर्गत
सूरज प्रकाश लघुकथा— "ग्लोबलाइजेशन"


बंबई का सबसे पॉश और महँगा इलाका, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर जहाँ हमारे पादुका विहीन हुसैन रहते हैं और शोभा डे भी। धीरूभाई अंबानी का घर भी वहीं और दूसरे बिजनेस टायकून कहे जाने वाले उद्योगपतियों के दफ्तर भी वहीं। इसी इलाके में देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाले बैंकों, वित्तीय संस्थानों और दूसरे औद्योगिक घरानों के दफ्तर। इस इलाके में ऑफिस और घर शायद देश की तुलना में सबसे महँगे हैं।

तो इसी इलाके में एक बहुत बड़े वित्तीय संस्थान के गेट के पास का नज़ारा। लंच का समय। एयर कंडीशंड दफ्तरों की बंद हवा से थोड़ी देर के लिए निजात पाने और लंच के बाद के सिगरेट, पान और तफरीह के लिए वहाँ सैकड़ों लोग चहलकदमी कर रहे हैं। किसी न किसी काम से इस इलाके में आये सैकड़ों वे लोग भी हैं जो अब लंच टाइम हो जाने के कारण टाइम किल करने की नीयत से यों ही टहल रहे हैं ।

तभी वह आता है। एक बहुत बड़ा सा बैग टैक्सी से निकालता है और वहीं गेट के पास ही अपनी स्टैंडिंग दुकान शुरू कर देता है। उसने बैग में से दस जोड़ी मोजे निकाले हैं और खड़े–खड़े आवाजें देना शुरू कर दी हैं–– "पीटर इंगलैंड के मोजे सिर्फ बीस रूपये में...सिर्फ बीस रूपये में इंटरनेशनल कम्पनी के मोजे...। सौ रूपये में पाँच जोड़ी। ले जाइये... ले जाइये सिर्फ बीस रूपये में...।"

उसने शानदार कपड़े पहने हुए हैं। गले में बेहतरीन टाई और पैरों में चमकते जूते। जिस बैग में वह मोजे रखे हैं वह भी अच्छी किस्म का है। यानी शक की कोई गुंजाइश नहीं।
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खते ही देखते उसके चारों तरफ भीड़ लग गयी है और लोग सब काम भूल कर अपनी पसंद के रंग और डिजाइन के मोजे चुनने लगे हैं।

सिर्फ घंटे भर में उसने तीन सौ जोड़ी मोजे बेच लिये हैं और खाली बैग ले कर चला गया है। जिन लोगों को बाद में पता चला है वे लपक कर आये हैं लेकिन उसे वहाँ न पा कर निराश हो गये हैं। एक नायाब खरीदारी होते–होते रह गयी। जो लोग पाँच–पाँच जोड़ी ले गये हैं उन्हीं से कहा जा रहा है एकाध जोड़ी दे देने के लिए।

अगले दिन वह फिर आया है। इस बार उसके पास दो बैग हैं। दोनों बैग उसने फिर घंटे भर में ही खाली कर दिये हैं। आज कोई चूकना नहीं चाहता।
मेरे ऑफिस के भी कई लोग लाये हैं कई–कई जोड़े। महिलाएँ अपने पतियों के लिए इतना सस्ता सौदा करके खुश हैं। बीस रूपये में आजकल ब्रैंडेड मोजे मिलते कहाँ हैं।

मेरे बॉस भी लाये हैं। दस जोड़ी। खूब खुश हैं। पूरे घर के लिए साल भर का इंतजाम हो गया। मैं उनकी मेज से यों ही एक पैकेट उठा कर देखता हूँ और तुरंत ही वापिस भी रख देता हूँ। मेरी इस तरह की प्रतिक्रिया देख कर वे अचानक पूछते हैं – "क्या हुआ।"
"कुछ नहीं। बस, ये मोजे नकली हैं।"
"अरे कमाल करते हैं आप। ये पीटर इंगलैंड के मोजे हैं। भला नकली कैसे हो सकते हैं? जरा इनकी क्वालिटी तो देखिये और ये पैकिंग?" वे अचानक ताव खाने लगे हैं।
मैंने धैर्यपूर्वक जवाब दिया है – "ये मैं नहीं आपके ये मोजे खुद ही बता रहे हैं किये उल्हास नगर का नकली माल है।
"आप कैसे कह सकते हैं कि ये नकली हैं।"

"जरा ध्यान से देखिये, इंगलैंड की स्पैलिंग क्या लिखी है इस पर। ई एन जी एल ई एन डी। वह आदमी तीन दिन से सबको बेवकूफ बना रहा है और न किसी ने ये लेबल देखा और न ही ये सोचा कि पीटर इंगलैंड कम्पनी कहाँ की है और क्या मोजे बनाती भी है या नहीं।"
उन्होंने भी मोजे उलट पलट कर देखे हैं और वापिस रख दिये हैं।
इस वक्त उनका चेहरा देखने लायक है।
"वैसे ये बता दूँ कि हमारे ये साहब करोड़ों की वित्तीय धोखाधड़ियों का पता लगाने वाले विभाग के सर्वेसर्वा हैं।"

९ दिसंबर २००२

 
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