सूबे
के नए नए बने युवा मुख्यमंत्री ने जैसे कि घोषणा की थी, हर
तरफ लैपटॉप बाँटा जा रहा था।
कुछ खुशनसीब लोगों को मुख्यमंत्री महोदय ने खुद लैपटॉप
वितरित किया।
चारों तरफ एक अजब सा उत्साह था।
शहरों के लड़के फेसबुक, ट्विटर और गेम्स खेलने को लेकर
उत्साहित थे तो गाँव के लड़के स्टार्टबटन, कॉपी पेस्ट,
और वीडियो कैसे चलायें सीखने में व्यस्त थे।
मगर इन सब के बीच गुड़िया किसी और ही चिंता में डूबी थी। वह
सोच रही थी कि कैसे उसकी दीदी को पिछली बार तीस हजार का
चेक मिला था जिसमें मास्टर जी और बाकी बाबू लोगों को
खिलाने पिलाने के बाद भी २०-२५ हजार बच ही गए थे।
कितने खुश थे बापू, सबके लिए नए कपड़े खरीदे थे बापू ने।
पहली बार उसे पता चला था कि नए कपड़ों की सुगंध कैसी होती
है। पहली बार घर में दो दो तरकारियाँ एक साथ बनी थीं, पनीर
और आलू गोभी। उस दिन ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था जैसे माँ
ने खाना बनाने में बहुत समय लगा दिया। जाने कितनी बार
जाकर पूछ आई थी माँ से कि खाना बना या नहीं मगर उस दिन
खाना जैसे न बनने की जिद पे अड़ा था और भूख ने तूफान मचा
रक्खा था। कितना उजला कितना मुलायम होता है ना पनीर, जी कर
रहा था इसे निगलूँ ही ना बस मुँह में ही चबाती रहूँ, उसका
जायका लेती रहूँ। सुबह पापा ने स्कूल जाते समय दो रुपये
भी दिए जिनसे मैंने जीभ लाल करने वाला चूरन खरीदा था। और
तो और दीदी की शादी में बाबा को कर्ज भी नहीं लेना पड़ा था।
मगर उसे, उसे तो लैपटॉप मिलेगा जबसे इस बात का पता चला है
सब के सब उदास हैं। माँ ने तो ना जाने कितनी गालियाँ बकी
होंगी बद्दुआएँ दी होंगी उस मुए मुख्यमंत्री को। बापू ने
भी सोचा था इस बार पैसे मिलेंगे तो मकान की मरम्मत करा
लेंगे और एक बिजली का कनेक्शन ले लेंगे, और इस बार तो
उन्होंने उसे अनारकली सूट दिलवाने का वादा भी किया था। यही
सब सोच कर गुड़िया अपने भाग्य को कोस ही रही थी कि उसके
बापू ने ये खुशखबरी सुनाई कि उन्होंने लैपटॉप का सौदा १०
हजार में कर दिया है। अब माँ खुश थी बापू खुश थे गुड़िया
खुश थी।
उसी शाम मुख्यमंत्री महोदय मीडिया वालों को बता रहे थे कि
कैसे उनके इस प्रयास से प्रदेश में सूचना क्रान्ति आएगी
प्रदेश का विकास होगा।
३ मार्च २०१४ |