गन्ने में शेर
-योगेश प्रवीण
जाड़े की शाम
का धुँधलका गहरा रहा था। मैं राहुल शुक्ला और योगेश कुमार के
साथ दुधवा नेशनल पार्क से ६ किलोमीटर दूर स्थित बेला गाँव की
बाहरी सीमा रेखा पर अलाव जलाए बैठा था। योगेश बता रहे थे, ‘वह
सामने आप गन्ने का खेत देख रहे हैं जो मुश्किल से चार एकड़ जमीन
पर फैला है। इसमें एक शेरनी ने बच्चे दिये हैं।’ मैं उत्सुक हो
उठा ‘‘कब, कितने हैं, क्या उनको देखने का मौका मिल सकता है?’’
हाँ, आज सुबह चरवाहे उधर से डंगर ले जा रहे थे, तभी उन्होंने
तीन शेर बच्चे खेत की मेड़ पर खेलते देखे थे। डॉ. राहुल ने
बताया, ‘‘जैसे ही चरवाहे उनकी ओर बढ़े वे गन्ने के अंदर चले
गये।’’
क्या बतायें साहब, पास बैठे हरखू काका जो गाँव के प्रधान भी रह
चुके हैं, खाँसते हुए बोले-‘‘पहले शेर जंगल माँ रहैं आदमी के
पास नाहीं आवति रहें मुलु बीस, तीस बरस भए उइ गन्ना माँ आय के
रहै लागि हैं। बड़ा आतंक मचावत हैं गन्ना काटब मुसकिल होई जात
है।’’ वह डॉ. राहुल और योगेश जी की ओर इशारा करता हुआ कहता है
‘‘ई साहब लोग दस-पंद्रह बरस से हियाँ आवत जात हैं और इन ही
बाघन के पीछे घूमा करत हैं उनके फोटू खींचत हैं।’’ डॉ. राहुल
की ओर उँगली उठाकर कहता है ‘‘पिछली बार तो ई साहब बचि गये कौनो
आवाज सुनिन अउर गन्ना माँ घुस गये। हुआँ बाघ बाघिन एक सुअर
मारि कै खाय रहे रहैं। बाघिन इनका देखि कै हुंइकी ओर दौरि परी।
ई बंदूक की गोली दागत भागे, तौन वा पलटि गयी। नाहीं तौ वहु
इनका मारि डारति।’’ मैंने इन दोनों मित्रों की पुस्तक ‘किलिंग
ग्राउंड्स’ पिछले वर्ष पढ़ी थी और तभी से मेरे मन में इन दोनों
से मिलने की इच्छा थी। राहुल विद्यांत कॉलेज मेरा शिष्य रहा
था। मैंने इन दोनों मित्रों से संपर्क किया। दोनों का आत्मीय
व्यक्तित्व, अभिमान विहीन, उदार एवं पूर्वाग्रहों से पूर्णतः
मुक्त मेरे जेहन में उतर गया, मैंने उनसे गन्ना शेर के बारे
में पूछा तो कहने लगे, ‘‘चलिए सर आपको दिखा लाते हैं।’’ और
परिमाणमतः आज मैं अपने इस विलक्षण शिष्य व उसके दोस्तों के साथ
तराई के क्षेत्र में आया था।
अंधाधुंध कटान
श्री योगेश कुमार बताते हैं कि भारत की आजादी के साथ देश का
बँटवारा हुआ पाकिस्तान से आये हुए शरणार्थियों को बसाने के
लिए तराई के सघन जंगलों का अंधाधुंध कटान हुआ। आधे से ज्यादा
जंगल काटकर खेतों में बदल दिये गये और इसी कटान के साथ शेरों
से उनका असली घर छिन गया। यहाँ गन्ने की खेती बड़ी जोर से बढ़ी,
शेर के लिए गन्ना घास की एक किस्म-जैसा था। इसलिए जंगल में
ताकतवर शेर के द्वारा मादिन के पीछे लड़ाई होने पर कमजोर शेर
बाहर आकर गन्ने में रहने लगे। जंगल कम हो गये थे, इसलिए शेरों
ने गन्ने को ही अपना नया वातावरण मान लिया, और यहीं बस गये।
लखनऊ शहर में डेढ़-दो-सौ किलोमीटर की दूरी तक में कहीं ऐसे सघन
वन नहीं हैं, जिनमें शेर बसते हों, लेकिन अभी पिछले १५ वर्षों
के भीतर दो बार लखनऊ के कुकरैल जंगल में शेर आ गये और मारे
गये। शेर कोई और नहीं, गन्ना शेर ही थे, जो खेतों-छिपते हुए
चलकर यहाँ आ गये थे।
डॉ. राहुल शुक्ला ने बात को आगे बढ़ाया, ‘‘सर, शेरों के गन्ने
में बसने के और भी कई कारण थे। पहली बात, शेर रात्रिचर जानवर
है, उसकी आँखे तेज रोशनी में चौंधिया जाती हैं। गन्ने में सघन
फसल होने के कारण अंदर रोशनी बहुत कम होती है, यह हल्की रोशनी
शेर की आँखों के लिए बहुत ठीक बैठती है। इसलिए दिन में छिपे
रहने के लिए गन्ना शेर के लिए बहुत ठीक और आरामदेह होता है।
दूसरी बात, ‘‘शेर के मुँह, नाखून और दाँतों में उसके खाते हुए
शिकार का खून और गोश्त लगा रहता है। इस पर मक्खियाँ भिनभिनाकर
उसे तंग करती हैं। गन्ने के भीतर अंधेरा वातावरण होने से
मक्खियाँ अंदर नहीं जातीं परिणामतः बाघ उनसे बचा रहता है।
तीसरी बात, शेर को गर्मीं बहुत लगती है, मूलतः ठंडे देश
साइबेरिया का प्राणी होने के कारण वह हर समय हाँफता रहता है और
पानी पीना चाहता है। गन्ना भी काफी पानी माँगता है, इसलिए
गन्ने में जलपंप वगैरह से लगातार पानी सींचा जाता है, जो शेर
को गर्मी में भी मिलता रहता है। चौथा कारण, खाना आराम से मिल
जाता है। खेतों में गाँवों के आसपास गाय, बैल, गधा, सूअर,
कुत्ता, बिल्ली, नीलगाय आदि कई पालतू जानवर घूमा करते हैं। बाघ
इन्हें आसानी से दबोच लेता है, जबकि जंगल में हिरन पकड़ने के
लिए उसे सैकड़ों जुगाड़ लगाने पड़ते हैं। उसकी बहुत ताकत खर्च
होती है। बीस बार हमला करने पर एक बार सफलता मिलती है और यहाँ
पहली बार में ही सफलता मिल जाती है, क्योंकि पालतू जानवरों में
स्वयं रक्षा की ताकत काफी कमजोर होती है, और वे भाग भी नहीं
पाते।
गन्ने के खेतों में शेर अपने आप में एक बड़ा ही रोचक परिदृश्य
है। यह भारत की आजादी के बाद शुरू हुआ और धीरे-धीरे बढ़ते हुए
अब इस स्थिति में आ गया है कि आदमी और शेर दोनों ही सुरक्षित
नहीं हैं। डॉ. राहुल शुक्ला और श्री योगेश कुमार ने इस विषय पर
गहन अध्ययन किया है और अनेक ऐसे बिंदु ढूँढ निकाले हैं, जो
गन्ने में रहने वाले शेर को एक पूर्णतः बदले हुए स्वभाव का
प्राणी मानते हैं। दोनों मित्रों ने ‘किलिंग ग्राउंड्स’ नामक
पुस्तक भी लिखी है, जिसमें गन्ना शेर के संबंध में विस्तृत
जानकारी है।
बाघिन के अंधे बच्चे
बच्चे देने के लिए शेरनी गन्ने की घनी फसल को सब प्रकार से ठीक
पाती है। बाघ के बच्चे अंधे पैदा होते हैं। अतः उनकी सुरक्षा
के लिए बाघिन को पहले दो हफ्ते तक उनके पास रहना पड़ता है। ऐसे
में अगर माँ को खाना न मिले, तो उसका दूध नहीं उतरता है। दूध
की कमी से बच्चे कमजोर होने के साथ मर भी सकते हैं। इसलिए
बाघिन को शिकार भी करना जरूरी है। शेर स्वभाव से ही अकेला
जानवर है। बबर शेर की तरह परिवार में नहीं रहता, जो उसके समूह
के अन्य सदस्य शिकार करके लायें और नये बच्चे जनने वाली माँ को
खिलायें। बाघिन भी बच्चों को छोड़कर बाहर शिकार की तलाश में
ज्यादा देर नहीं घूम सकती है, क्योंकि बच्चों पर सियार, भेड़िया
व लकड़बग्घे हमला करके उन्हें मार सकते हैं। ऐसे में बाघिन
तुरंत मिलने वाले भोजन से काम चलाती है। कुत्ता, बिल्ली व गधा
आदि मार लेती है और बच्चों के पास बनी रहती है।
सूरज डूबे काफी समय हो चुका था। देर रात तक लोग अलाव के पास
बैठे तापते रहे और इसी विषय पर चर्चा होती रही, तभी दूर से
गर्जना की आवाज आयी और सब लोग अचानक चुप होकर एक-दूसरे की ओर
देखने लगे, फिर किसी ने अपने आप ही अनपूछे प्रश्न का उत्तर दे
दिया, ‘‘ये शेर है, इस पार जंगल नहीं है, ये कहीं गन्ने से
डंहुक रहा है। सम्मोहित करती हुई वह आवाज करीब दो मिनट तक
अपनी पराकाष्ठा पर रही, फिर धीरे-धीरे हल्की होती हुई समाप्त हो
गयी और रात का सन्नाटा फिर से छा गया। दूसरे दिन सुबह गन्ना
कटने की तैयारी होने लगी। आसपास के गाँवों से बाइस मजदूर हरखू
मुखिया के यहाँ जमा हो गये। राहुल ने दुधवा नेशनल पार्क से एक
हाथी मँगवाया था। सुबह साढ़े सात बजे महावत हाथी लेकर आ पहुँचा।
योगेश कुमार, राहुल और हम, उस पर बैठकर गन्ने के पास पहुँचे।
शेरनी का शिकार
योगेशजी ने अपना कैमरा सँभाल लिया। राहुल ने ३१५ राइफल लोड कर
ली, मजदूर खेतों के दक्षिणी किनारे पर लाठी, डंडे, बाँका,
वगैरह लेकर खड़े हो गये। हाँका शुरू हुआ, शेर को गन्ने के बाहर
खदेड़ा जा रहा था। पहले गन्ने में हाथी ने प्रवेश किया और
पीछे-पीछे जोर से चीखते हुए गन्ने को लाठियों से पीटते हुए
मजदूर घुसे। सूरज आसमान में लगभग दो बाँस चढ़ आया था, लेकिन
कोहरा अभी भी काफी घना था। गन्ने पर ओस की बड़ी-बड़ी बूँदें ऐसे
ठहरी हुई थीं, जैसे रात में कोई बारिश हुई हो।
तभी राहुल हौदे पर खड़ा हो गया और अँगुली उठाकर एक ओर इशारा
करने लगा। योगेशजी और हम भी उत्सुकता से उठ खड़े हुए। हम लोगों
से सात-आठ मीटर की दूरी पर गन्ने के अगौड़े बहुत तेजी से हिल
रहे थे, लगता था कि कोई जानवर उनके बीच से भाग रहा है। ‘‘साहब
ये शेरनी जा रही है, कहते हुए महावत ने हाथी तेज कर दिया।’’
हाँकेवालों की आवाजों से पता चल रहा था कि एक पाढ़ा और दो सूअर
भी इसी गन्ने से बाहर निकले थे और जंगल की ओर भाग गये।
सौंदर्यपूर्ण दृश्य
करीब दो मिनट अनदिखी शेरनी का पीछा करते हुए हम लोग गन्ने के
बाहर निकल आये। जैसे ही हाथी खुले खेत की मेंड़ पर आया, बिलकुल
सामने हम लोगों की नजर पके हुए गेहूँ के खेत की तरफ भागती हुई
शेरनी पर पड़ी। उसके पीछे बिल्ली की तरह तीन छोटे बच्चे भयभीत
परंतु उछलते-कूदते चले जा रहे थे। योगेशजी ने एक पूर्णतः
पेशेवर फोटोग्राफर की तरह एक मिनट में ही मोटर ड्राइव लगाकर
अपने माइकोन एफ थ्री कैमरे की एक पूरी रील खींच दी और तुरंत ही
दूसरा कैमरा उठाकर उन पर फोकस कर दिया। गेहूँ के खेत के पास
पहुँचकर शेरनी कुछ पल के लिए रुकी, इतने में उसके बच्चे उनके
पास पहुँच गये। शेरनी उन्हें अपने चारों पैरों के बीच समेटकर
हाथी की ओर देखने लगी, हाथी भी ठिठककर रुक गया। वह एक
सौंदर्यपूर्ण दृश्य था। शेरनी ने दाँत निकालकर एक-दो बार हाथी
को आगे न बढ़ने की चुनौती दी। परंतु महावत ने अंकुश से गोदकर
हाथी को आगे बढ़ा दिया।
शेरनी भागकर
गेहूँ के खेत को पार कर गयी और बैलगाड़ी के रास्ते पर आ गयी।
अपनी सफलता देखकर हाँकेवाले और
जोर
से शोर मचाने लगे थे। भागती शेरनी को देखकर हाथी भी उत्साहित
था। हम लोगों ने करीब दो मील तक शेरनी का पीछा किया और आखिर वह
नदी के किनारे फैले घास के एक मैदान में प्रवेश कर गयी।
योगेश बताने लगे, ‘‘प्रवीणजी! ये शेरनी भागी नहीं हैं कल तक यह
वहाँ से लौटकर किसी दूसरे गन्ने में अपना अड्डा जमा लेगी। इन
शेरों को बचाना बहुत ही कठिन कार्य है।
अवैध शिकारी इनके पीछे घूमते रहते हैं और गँवार गाँव वाले भी
यह नहीं समझते कि वह शेर जो उनके गाय-बैल मारता है, उसे बचाना
क्यों जरूरी है? |